ETV Bharat / technology

Milky Way का इतिहास और भविष्य, जानें सबसे पास वाली आकाशगंगा तक जाने में कितना वक्त लगेगा - GALAXY EVOLUTION IN HINDI

इस आर्टिकल में हम आपको मिल्की वे का इतिहास और इसके भविष्य के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं की रोचक बात बताते हैं.

Representative image of Milky Way and universe
मिल्की वे और यूनिवर्स की रिप्रेज़ेंटेटिव इमेज (फोटो - ETV BHARAT via Copilot Designer)
author img

By ETV Bharat Tech Team

Published : Feb 23, 2025, 8:14 PM IST

हैदराबाद: हम पृथ्वी पर रहते हैं, जो सौर मंडल का एक ग्रह है और इसका डायमीटर यानी व्यास 12,756 किलोमीटर है. अपने घर पर बैठे-बैठे, हमें अपना घर, मोहल्ला, राज्य, देश और पृथ्वी ही काफी बड़ी लगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मांड में पृथ्वी का कितना अस्तित्व है. ब्रह्मांड में बहुत सारी आकाशगंगाएं (Galaxies) है, उन गैलेक्सीज़ में से एक गैलेक्सी का नाम मिल्की-वे गैलेक्सी है, और मिल्की-वे गैलेक्सी के अंदर हमारा पूरा सौर मंडल मौजूद है, जिसके एक ग्रह पृथ्वी पर हम रहते हैं.

ऐसे में क्या आपके मन में कभी ऐसा सवाल आया है कि हमारी मिल्की-वे गैलेक्सी कितनी बड़ी है? इसकी उत्पत्ति कब और कैसे हुई? इसके एक छोर से दूसरे छोर तक जाने में कितना समय लगेगा? अगर आप ऐसे सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो हमारे इस विस्तृत आर्टिकल को पढ़ें. इसमें आपको मिल्की-वे गैलेक्सी के बारे में कई रोचक जानकारियां जानने का मौका मिलेगा. तो चलिए शुरू करते हैं.

मिल्की वे गैलेक्सी क्या है?

मिल्की वे गैलेक्सी को हिंदी में आकाशगंगा या क्षीरपथ भी कहते हैं. यह एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय संरचना है, जिसके अंदर हमारी सौर मंडल स्थित है. यह मिल्की वे गैलेक्सी अरबों तारों, गैस, धूल और ग्रहों से बनी हुई है. इसके अंदर एक केंद्रीय घूर्णन भाग है, जिसे एक अज़ीब क्षेत्र माना जाता है और इसे गैलेक्टिक सेंटर (Galactic Center) कहते हैं. मिल्की वे गैलेक्सी को हम स्पाइरल गैलेक्सी भी कहते हैं, क्योंकि अगर आप इसे नीचे या ऊपर से देखेंगे तो आपको यह किसी घुमती हुई स्पाइरल रिंग या पिनव्हील की तरह लगेगी.

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स (IIA) के डायरेक्टर प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने ईटीवी भारत दिए एक खास इंटरव्यू में बताया, "मिल्की वे खुद भी एक मिनी-ब्रह्मांड की तरह ही है. इसमें कई उपग्रह आकाशगंगाएं भी हैं. आकाशगंगाएं ग्रूप्स और क्लस्टरों में बनती हैं. मिल्की वे भी ब्रह्मांड के तरह ही काफी पुरानी है."

मिल्की वे गैलेक्सी में बहुत सारी स्पाइरल यानी घुमावदार भुजाएं हैं और इसके एक घुमावदार भुजा (Spiral Arm) में सूर्य स्थित है, जो मिल्की वे गैलेक्सी के बीच से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष (26,000 Light Years) दूर है. मिल्की वे गैलेक्सी के सेंटर से सूर्य की दूरी को हम आपको अलग तरीके से समझाते हैं. अगर आप सूर्य से चलते हुए करीब 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से भी यात्रा करेंगे तो आपको मिल्की वे के सेंटर तक पहुंचने में लगभग 26,000 साल लग जाएंगे.

मिल्की वे का जन्म कब हुआ?

हम इसी मिल्की वे गैलेक्सी के एक ग्रह में मौजूद एक देश में रहते हैं. अगर आप मिल्की वे की तस्वीर को ऊपर से देखेंगे तो यह अंतरिक्ष में एक बड़े घूमते हुए पिनव्हील की तरह दिखाई देगी. इसके अलावा, अगर आप इसे रात के साफ आसमान में देखेंगे तो यह एक धुंधली, चमकीली पट्टी या दूधिया बैंड के रूप में नज़र आएगी, जिसके कारण इसे "मिल्की वे" कहा जाता है.

हमारी गैलेक्सी का यह नाम एक लैटिन वाक्यांश विया लैक्टिया (via lactea) से आया है, जिसका मतलब "दूधिया मार्ग" होता है." इसके अलावा एक ग्रीक शब्द गैलेक्ज़ियास (Galaxias) से गैलेक्सी (Galaxy) शब्द निकला. इस तरह से हमारी इस गैलेक्सी का नाम मिल्की वे गैलेक्सी पड़ा.

मिल्की वे गैलेक्सी करीब 14 अरब साल पहले बनी थी. मिल्की वे गैलेक्सी में तारे, ग्रह, क्षुद्रग्रह (Asteroids) और धूल और गैस के बादल मौजूद हैं. इसमें मौजूद धूल और गैस के बादलों को नेब्यूला (Nebulae) कहा जाता है. धूल और गैस के बादल और तारे मिल्की वे के सेंटर से लंबी-लंबी स्पाइरल आर्म्स यानी घुमावदार भुजाओं में फैल जाते हैं.

हमने आपको इस आर्टिकल की शुरुआत में अपने ग्रह यानी पृथ्वी का व्यास बताया था, जो 12,756 किलोमीटर है. अब हम आपको मिल्की वे गैलेक्सी का व्यास बताते हैं. इसका व्यास करीब 1,00,000 प्रकाश वर्ष (1,00,000 Light Years) है.

हमारा सौर मंडल मिल्की वे गैलेक्सी के सेंटर से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष दूर है. मिल्की वे में मौजूद सभी चीज, इसके केंद्र के चारों ओर घूमती रहती है. हमारे सूर्य (और इसके साथ पृथ्वी समेत पूरे सौरमंडल को) को मिल्की वे के केंद्र के चारों ओर सिर्फ एक चक्कर लगाने में 250 मिलियन करीब 25 करोड़ साल लगते हैं.

मिल्की वे में यूनिक क्या है?

हमारी मिल्की वे गैलेक्सी ब्रह्मांड यानी यूनिवर्स में मौजूद अरबों गैलेक्सीज़ में सिर्फ एक गैलेक्सी है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस यूनिवर्स में मिल्की वे हमारी गैलेक्सी है या हमारा घर है. मिल्की वे हमारी उत्पत्ति की कहानी का एक हिस्सा है. सालों तक रिसर्च करने के बाद अभी तक में एस्ट्रोनॉमर्स ने यह जाना है कि, यह एक बड़ी स्पाइरल गैलेक्सी है, जो कई अन्य गैलेक्सीज़ की तरह ही है, लेकिन यह अपनी कुछ अनोखे इतिहास की वजह से बाकियों से अलग है. मिल्की वे के अंदर रहकर हमें इसके स्ट्रक्चर और कंटेंट को नजदीक से देखने को मौका मिलता है, जबकि हम अन्य गैलेक्सीज़ की चीजों को नहीं देख सकते. हालांकि, इसी कारण से एस्ट्रोनॉमर्स के लिए गैलेक्टिक स्ट्रक्चर की पूरी तस्वीर लेना काफी मुश्किल होता है, लेकिन मिल्की वे पर हुआई मॉडर्न रिसर्च, हमारी इस समझ को बेहतर बनाती है कि गैलेक्सी कैसे बनी है और ऐसी क्या चीज़ है, जो हमारी गैलेक्सी को आकार देती रहती है.

सुभ्रमण्यम ब्रह्मांडीय विकिरण (Cosmic Radiation) और ब्रह्मांड के शुरुआती दौर के मिल्की वे के निर्माण पर पड़े प्रभाव के बारे में चर्चा करते हुए बताया, "मिल्की वे के निर्माण के लिए किसी खास परिस्थितियों की जरूरत नहीं थी, बस इसे बहुत घने क्षेत्र में बनने से बचना था. अगर ऐसा होता तो शायद यह किसी दूसरी आकाशगंगा से टकरा कर या उसमें मिल जाती. इसी कारण यह आकाशगंगा काफी लंबे वक्त तक बची रही और अपने स्पाइरल स्ट्रक्चर को भी बनाए रखा."

इसे आसान शब्दों में कहे तो इतने अरबों सालों से मिल्की वे आकाशगंगा और उसका स्पाइरल स्ट्रक्चर इसलिए बचा रह गया क्योंकि उसका निर्माण किसी घने क्षेत्र में नहीं हुआ और इसलिए उसका किसी दूसरी आकाशगंगाओं से टकराव नहीं हुआ. इंसानों ने सबसे पहले नग्न आंखों से ही तारों को ऑब्ज़र्व करना शुरू किया था. उसके बाद धीरे-धीरे पॉवरफुल टेलीस्कोप्स का अविष्कार होता गया है और उसकी मदद से तारों और पूरी गैलेक्सीज़ के बारे में खोज होने लगी. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी मॉडर्न होती गई, वैसे-वैसे इंसानों ने मिल्की-वे गैलेक्सी के कई रहस्यों से पर्दा उठाना शुरू कर दिया है, लेकिन पुराने रहस्यों के सुलझने के बाद, इंसानों के सामने कई नए रहस्य भी आने शुरू हो गए और वैज्ञानिकों ने उसके भी संभावित जवाब ढूंढ लिए. आइए हम आपको ऐसे ही कुछ रोचक प्रश्नों और उसके जवाबों के बारे में बताते हैं.

ब्रह्मांड की सबसे बड़ी आकाशगंगा कौनसी है?

वैज्ञानिकों को अभी तक पता चली जानकारी के अनुसार ब्रह्मांड की सबसे बड़ी गैलेक्सी का नाम एल्सियोनियस (Alcyoneus) है. इसका आकार 16.3 मिलियन यानी करीब 1 करोड़ 60 लाख, 30 हजार प्रकाश वर्ष (16.3 Million Light-Years) चौड़ी है. इसे आप मिल्की वे गैलेक्सी से तुलना करें तो, एल्सियोनियस का व्यास, हमारी गैलेक्सी से 160 गुना चौड़ा है.

रिसर्चर्स ने नए अध्ययन के बाद जानकारी दी है कि एल्सियोनियस से पहले ब्रह्मांड की सबसे बड़ी गैलेक्सी IC 1101 थी, जो 3.9 मिलियन यानी 39 लाख प्रकाश-वर्ष चौड़ी है, लेकिन अब सबसे बड़ी गैलेक्सी एल्सियोनियस है, जो IC 1101 से भी 4 गुना चौड़ी है. एल्सियोनियस का नाम एक पौराणिक दानव के नाम पर पड़ा था, जो हर्क्यूलिस से लड़ा था. ग्रीक में उस दानव के नाम का मतलब "mighty ass" होता है. हमारी पृथ्वी से एल्सियोनियस की दूरी करीब 3 बिलियन यानी करीब 300 करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर है.

ब्रह्मांड की सबसे छोटी आकाशगंगा कौनसी है?

वैज्ञानिकों को अभी तक पता चली जानकारी के अनुसार ब्रह्मांड की सबसे छोटी आकाशगंगा यानी गैलेक्सी का नाम सेग्यू 1 (Segue 1) और सेग्यू 3 (Segue 3) है. ये दोनों सबसे छोटी गैलेक्सीज़ हैं, जो मिल्की वे के गैलेक्टिक हेलो में स्थित है. इन्हें ड्वार्फ गैलेक्सीज़ (Dwarf Galaxies) भी कहते हैं. ये काफी कमजोर हैं और कुछ सौ गुना सूर्य जितनी चमकीली हैं. इनमें 1000 से ज्यादा तारे नहीं होते. ये अंतरिक्ष में महज कुछ ही प्रकाश वर्ष में फैले हुए हैं.

हमारी गैलेक्सी में कितने तारे और ग्रह मौजूद हैं?

इस मामले को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 6 साल की खोज की और माइक्रोलेंसिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके लाखों तारों का सर्वेक्षण किया. उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तारों के चारों ओर ग्रह का होना कोई अपवाद नहीं बल्कि एक नियम है. प्रत्येक तारों पर ग्रहों की औसत संख्या एक से अधिक है. इसका मतलब यह होता है कि पृथ्वी से सिर्फ 50 प्रकाश-वर्ष की दूरी तक में ही कम से कम 1500 ग्रह हो सकते हैं.

यह आंकड़ा प्रोबिंग लेंसिंग अनोमलीज़ नेटवर्क (PLANET) कॉलेबरेशन द्वारा 6 सालों के दौरान किए गए ऑब्ज़रवेशन पर आधारित है. इसकी स्थापना 1995 में हुई थी. इस सर्वेक्षण से प्राप्त मोटे अनुमानों से पता चलता है कि हमारी गैलेक्सी में 10 बिलियन यानी 1000 करोड़ से भी अधिक स्थलीय ग्रह (ऐसे ग्रह, जिनमें स्थल हो) हो सकते हैं.

इसी तरह हमारी गैलेक्सी में मौजूद तारों के बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान कहता है कि, मिल्की वे में लगभग 100 बिलियन यानी करीबल 10,000 करोड़ तारे हैं. ये सभी तारे मिलकर एक बड़े डिस्क का निर्माण करते हैं, जिसका व्यास लगभग 1,00,000 प्रकाश-वर्ष है और हमारा सौर मंडल हमारी आकाशगंगा के केंद्र से करीब 25 या 26 हजार प्रकाश-वर्ष दूर है. हम अपनी आकाशगंगा यानी मिल्की वे के उपनगरों में रहते हैं.

संभावित रहने योग्य ग्रहों और एक्सोप्लैनेट्स पर रिसर्च

जब वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी अन्य सूर्य जैसे तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हुए एक ग्रह पाया था, उसके 20 साल बाद उन्होंने पृथ्वी जैसे एक ग्रह की खोज की, जिसका नाम केप्लर-452बी (Kepler-452b) है. यह सूर्य जैसे एक तारे के उस ओर स्थित है, जहां जीवन जीने के लिए आवश्यक चीजें जैसे पानी तरल रूप में हो सकती हैं. Kepler-452b पृथ्वी से सिर्फ 60 प्रतिशत बड़ा है.

इसरो के नए अध्यक्ष वी नारायण ने ईटीवी भारत को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में एक्सोप्लैनेट्स के अध्ययन और उन पर जीवन की संभावना को ढूंढने के लिए इसरो की प्लानिंग के बारे में बात करते हुए बताया कि, "इसरो में एक्सोप्लैनेट्स की खोज और उन पर जीवन की संभावनाओं को ढूंढने के लिए बहस और चर्चाएं चल रही है."

एक्सोप्लैनेट्स वे ग्रह होते हैं जो किसी अन्य तारे के चारों ओर घूमते हैं और यह रहने योग्य हो सकते हैं. यह तारे के चारों ओर का वह क्षेत्र होता है जहां पानी तरल रूप में रह सकता है. यह ऐसा क्षेत्र होता है, जो सूर्य जैसे तारे से बहुत नजदीक होता है और न बहुत दूर, ताकि उसमें मौजूद पानी वाष्पित या जम ना जाए. इसे गोल्डीलॉक्स जोन कहते हैं क्योंकि यह न तो बहुत गर्म होता है और न ही बहुत ठंडा, बल्कि सही होता है. हमारे सौर मंडल में पृथ्वी ऐसे ही क्षेत्र में स्थित है, इसलिए हम इसमें जीवन जी सकते हैं.

मिल्की वे में रहने योग्य संभावित एक्सोप्लैनेट्स और उनकी लोकेशन्स

1. Gliese 667Cc: नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के अनुसार, इस एक्सप्लैनेट्स की पृथ्वी से दूरी करीब 22 प्रकाश-वर्ष दूर है और यह पृथ्वी से करीब 4.5 गुना बड़ा है.

2. Kepler-22b: इस एक्सोप्लैनेट्स की दूरी करीब 600 प्रकाश-वर्ष दूर है. यह पहला केप्लर ग्रह था जिसे उसके पेरेंट स्टार (सूर्य जैसा तारा) के रहने योग्य क्षेत्र में पाया गया, लेकिन यह ग्रह पृथ्वी से लगभग 2.4 गुना बड़ा है. हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह "सुपर-अर्थ" ग्रह पथरीला है, तरल है या गैसीय है.

3. Kepler-69c: केप्लर-69सी पृथ्वी से करीब 2700 प्रकाश-वर्ष दूर है और यह पृथ्वी से करीब 70% बड़ा है. इस एक्सोप्लैनेट की संरचना के बारे में भी वैज्ञानिक और रिसर्चर्स अनिश्चित हैं.

4. Kepler-62f: नासा के अनुसार, केप्लर-62एफ पृथ्वी से लगभग 40 प्रतिशत बड़ा है और एक ऐसे तारे की परिक्रमा करता है जो हमारे सूर्य से बहुत ठंडा है. केप्लर-62एफ पृथ्वी से लगभग 1,200 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है. इसका ऑर्बिट 267 दिनों का है और इसे रहने योग्य क्षेत्र के रूप में माना जाता है. वहीं, Kepler-62 अपने लाल छोटे तारे के करीब परिक्रमा करता है. यह तारा सूर्य की तुलना में काफी कम रोशनी उत्पन्न करता है. इसके बड़े आकार के कारण, यह संभावित रूप से पथरीले ग्रहों की कैटिगरी में आता है, जिनमें महासागर हो सकते हैं.

5. Kepler-186f: यह एक्सोप्लैनेट यानी ग्रह पृथ्वी से करीब 10% ही बड़ा है. पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 500 प्रकाश-वर्ष है. रिसर्चर्स को ऐसा लगता है कि यह अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में स्थित है. हालांकि, उस क्षेत्र के बाहरी किनारे पर Kepler-186f को अपने तारे से सिर्फ एक-तिहाई उर्जा ही मिल पाती है. यहां पर उसी उर्जा की बात कर रहे हैं, जो हमारे ग्रह यानी पृथ्वी को सूर्य से मिलती है.

6. Kepler-442b: नासा के द्वारा रिलीज़ की गई एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, यह पृथ्वी से करीब 33% बड़ा है और अपने स्टार की परिक्रमा हर 112 दिनों में पूरी करता है. इस ग्रह की घोषणा 2015 में की गई थी और यह पृथ्वी से करीब 1,194 प्रकाश-वर्ष दूर है.

7. Kepler-452b: इस ग्रह की खोज की घोषणा 2015 में की गई थी. नासा एक्सोप्लैनेट्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह सूर्य के आकार बराबर तारे की चारों ओर परिक्रमा करने वाला और पृथ्वी के आकार वाला पहला ग्रह है. केप्लर-452, हमारे सूर्य से काफी मिलता-जुलता है और यह रहने योग्य क्षेत्र में ही परिक्रमा करता है.

8. Kepler-1649c: इस एक्सोप्लैनेट का आकार पृथ्वी के समान ही पाया गया है और यह भी अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में ही परिक्रमा करता है. यह ग्रह पृथ्वी से करीब 300 प्रकाश-वर्ष दूर है. यह पृथ्वी से सिर्फ 1.06 गुना बड़ा है.

9) Proxima Centauri b: नासा के अनुसार, यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से सबसे पास स्थित है. पृथ्वी से इसकी दूसरी सिर्फ 4 प्रकाश-वर्ष यानी करीब 40 ट्रिलियन किलोमीटर दूर है. हालांकि, यह एक्सोप्लैनेट अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में पाया जाता है, लेकिन यह काफी ज्यादा मात्रा में अल्ट्रावॉलेट रेडिएशन मौजूद हैं, जो सूर्य जैसे तारे के काफी नजदीर स्थित होने की वजह से है. इसी कारण इसका ऑर्बिटल पीरियड सिर्फ 11.2 दिनों का है.

प्रॉक्सिमा सेंटॉरी बी तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?

स्पेस डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक नासा का Juno probe 2,65,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बृहस्पति (Jupiter) ग्रह की ऑर्बिट में गया था. अगर इसी स्पीड से चलें तो प्रॉक्सिमा सेंटॉरी बी तक पहुंचने में लगभग 17,157 साल लग सकते हैं.

ब्रेकथ्रू स्टारशॉट इनिशिएटीव के संस्थापक बहुत हाई स्पीड से प्रॉक्सिमा सेंटॉरी तक वेफर-थिन प्रोब भेजना चाहते हैं. इन प्रोब्स को पतली पालों (thin sails) से सुसज्जित करने की है, जो पृथ्वी-आधारित पॉवरफुल लेजर द्वारा दी गई ऊर्जा को पकड़ेंगी.

इस प्रोग्राम के वैज्ञानिकों के अनुसार, ये पॉवरफुल लेज़र प्रोब्स की स्पीड को लाइट स्पीड के 20% (215.85 मिलियन यानी करीब 21.585 करोड़ किलोमीटर प्रति घंटा) तक तेज कर देगा. इस स्पीड से प्रोब्स करीब 20 से 25 सालों में प्रॉक्सिमा सेंटॉरी तक पहुंच सकते हैं.

सौरमंडल का स्थान और इसकी कक्षा

हमारे सौरमंडल में एक सूर्य, आठ ग्रह, आधिकारिक तौर पर घोषित 5 छोटे ग्रह (Dwarf Planets), सैकड़ों चांद के साथ-साथ हजारों क्षुद्रग्रहों (Asteroids) और धूमकेतु (Comets) शामिल हैं. हमारा सौरमंडल मिल्की वे में स्थित है. हमारा सूर्य मिल्की वे की एक छोटी, आंशिक आर्म में स्थित है, जिसे ओरियन आर्म, या ओरियन स्पर (Orion Spur) कहा जाता है, जो सैजिटेरियस (Sagittarius) और पर्सियस (Perseus) आर्म्स के बीच है.

हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर लगभग 515,000 मील प्रति घंटा यानी करीब 8,28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से परिक्रमा करता है. इस स्पीड से हमारे सौरमंडल को आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 250 मिलियन यानी करीब 25 करोड़ साल लगते हैं.

मिल्की वे में सोलर सिस्टम की अन्य स्टार सिस्टम्स से तुलना

स्टार सिस्टम उन ग्रहों, उल्काओं या अन्य वस्तुओं का समूह होती है, जो एक बड़े तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, जबकि हमारी आकाशगंगा में कम से कम 200 बिलियन अन्य तारे शामिल हैं, लेकिन सौरमंडल सिर्फ एक ही है. इसी कारण हमारे सूर्य को उसके लैटिन नाम सोल से जाना जाता है.

हमारे सौरमंडल में तारे, सूर्य, पृथ्वी समेत सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों के साथ-साथ कई चंद्रमा, एस्ट्रॉइड्स, कॉमेट, चट्टान और धूल भी शामिल हैं. मिल्की वे गैलेक्सी में मौजूद अरबों तारों में से सूर्य सिर्फ एक तारा है. इसे अगर आसान तरीके से समझें तो, मान लीजिए हम सूर्य को रेत के एक छोटे से दाने जितना छोटा बना दें, तो हमारा सौरमंडल इतना छोटा हो जाएगा कि वह हमारी हाथ की हथेली पर आ जाएगा.

इसका मतलब है कि अगर हमारी हाथ की हथेली पूरा सौरमंडल है तो उसमें रखा रेत का एक छोटा सा दाना सूर्य होगा और उसे भी काफी छोटा दाना हमारी पृथ्वी होगी. इस तरह से प्लूटो ग्रह (जो सूर्य से काफी दूर है) आपकी हथेली के बीच से लगभग एक इंच दूर परिक्रमा करता नज़र आएगा.

ये भी पढ़ें:

हैदराबाद: हम पृथ्वी पर रहते हैं, जो सौर मंडल का एक ग्रह है और इसका डायमीटर यानी व्यास 12,756 किलोमीटर है. अपने घर पर बैठे-बैठे, हमें अपना घर, मोहल्ला, राज्य, देश और पृथ्वी ही काफी बड़ी लगती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मांड में पृथ्वी का कितना अस्तित्व है. ब्रह्मांड में बहुत सारी आकाशगंगाएं (Galaxies) है, उन गैलेक्सीज़ में से एक गैलेक्सी का नाम मिल्की-वे गैलेक्सी है, और मिल्की-वे गैलेक्सी के अंदर हमारा पूरा सौर मंडल मौजूद है, जिसके एक ग्रह पृथ्वी पर हम रहते हैं.

ऐसे में क्या आपके मन में कभी ऐसा सवाल आया है कि हमारी मिल्की-वे गैलेक्सी कितनी बड़ी है? इसकी उत्पत्ति कब और कैसे हुई? इसके एक छोर से दूसरे छोर तक जाने में कितना समय लगेगा? अगर आप ऐसे सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो हमारे इस विस्तृत आर्टिकल को पढ़ें. इसमें आपको मिल्की-वे गैलेक्सी के बारे में कई रोचक जानकारियां जानने का मौका मिलेगा. तो चलिए शुरू करते हैं.

मिल्की वे गैलेक्सी क्या है?

मिल्की वे गैलेक्सी को हिंदी में आकाशगंगा या क्षीरपथ भी कहते हैं. यह एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय संरचना है, जिसके अंदर हमारी सौर मंडल स्थित है. यह मिल्की वे गैलेक्सी अरबों तारों, गैस, धूल और ग्रहों से बनी हुई है. इसके अंदर एक केंद्रीय घूर्णन भाग है, जिसे एक अज़ीब क्षेत्र माना जाता है और इसे गैलेक्टिक सेंटर (Galactic Center) कहते हैं. मिल्की वे गैलेक्सी को हम स्पाइरल गैलेक्सी भी कहते हैं, क्योंकि अगर आप इसे नीचे या ऊपर से देखेंगे तो आपको यह किसी घुमती हुई स्पाइरल रिंग या पिनव्हील की तरह लगेगी.

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स (IIA) के डायरेक्टर प्रो. अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने ईटीवी भारत दिए एक खास इंटरव्यू में बताया, "मिल्की वे खुद भी एक मिनी-ब्रह्मांड की तरह ही है. इसमें कई उपग्रह आकाशगंगाएं भी हैं. आकाशगंगाएं ग्रूप्स और क्लस्टरों में बनती हैं. मिल्की वे भी ब्रह्मांड के तरह ही काफी पुरानी है."

मिल्की वे गैलेक्सी में बहुत सारी स्पाइरल यानी घुमावदार भुजाएं हैं और इसके एक घुमावदार भुजा (Spiral Arm) में सूर्य स्थित है, जो मिल्की वे गैलेक्सी के बीच से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष (26,000 Light Years) दूर है. मिल्की वे गैलेक्सी के सेंटर से सूर्य की दूरी को हम आपको अलग तरीके से समझाते हैं. अगर आप सूर्य से चलते हुए करीब 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से भी यात्रा करेंगे तो आपको मिल्की वे के सेंटर तक पहुंचने में लगभग 26,000 साल लग जाएंगे.

मिल्की वे का जन्म कब हुआ?

हम इसी मिल्की वे गैलेक्सी के एक ग्रह में मौजूद एक देश में रहते हैं. अगर आप मिल्की वे की तस्वीर को ऊपर से देखेंगे तो यह अंतरिक्ष में एक बड़े घूमते हुए पिनव्हील की तरह दिखाई देगी. इसके अलावा, अगर आप इसे रात के साफ आसमान में देखेंगे तो यह एक धुंधली, चमकीली पट्टी या दूधिया बैंड के रूप में नज़र आएगी, जिसके कारण इसे "मिल्की वे" कहा जाता है.

हमारी गैलेक्सी का यह नाम एक लैटिन वाक्यांश विया लैक्टिया (via lactea) से आया है, जिसका मतलब "दूधिया मार्ग" होता है." इसके अलावा एक ग्रीक शब्द गैलेक्ज़ियास (Galaxias) से गैलेक्सी (Galaxy) शब्द निकला. इस तरह से हमारी इस गैलेक्सी का नाम मिल्की वे गैलेक्सी पड़ा.

मिल्की वे गैलेक्सी करीब 14 अरब साल पहले बनी थी. मिल्की वे गैलेक्सी में तारे, ग्रह, क्षुद्रग्रह (Asteroids) और धूल और गैस के बादल मौजूद हैं. इसमें मौजूद धूल और गैस के बादलों को नेब्यूला (Nebulae) कहा जाता है. धूल और गैस के बादल और तारे मिल्की वे के सेंटर से लंबी-लंबी स्पाइरल आर्म्स यानी घुमावदार भुजाओं में फैल जाते हैं.

हमने आपको इस आर्टिकल की शुरुआत में अपने ग्रह यानी पृथ्वी का व्यास बताया था, जो 12,756 किलोमीटर है. अब हम आपको मिल्की वे गैलेक्सी का व्यास बताते हैं. इसका व्यास करीब 1,00,000 प्रकाश वर्ष (1,00,000 Light Years) है.

हमारा सौर मंडल मिल्की वे गैलेक्सी के सेंटर से करीब 26,000 प्रकाश वर्ष दूर है. मिल्की वे में मौजूद सभी चीज, इसके केंद्र के चारों ओर घूमती रहती है. हमारे सूर्य (और इसके साथ पृथ्वी समेत पूरे सौरमंडल को) को मिल्की वे के केंद्र के चारों ओर सिर्फ एक चक्कर लगाने में 250 मिलियन करीब 25 करोड़ साल लगते हैं.

मिल्की वे में यूनिक क्या है?

हमारी मिल्की वे गैलेक्सी ब्रह्मांड यानी यूनिवर्स में मौजूद अरबों गैलेक्सीज़ में सिर्फ एक गैलेक्सी है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि इस यूनिवर्स में मिल्की वे हमारी गैलेक्सी है या हमारा घर है. मिल्की वे हमारी उत्पत्ति की कहानी का एक हिस्सा है. सालों तक रिसर्च करने के बाद अभी तक में एस्ट्रोनॉमर्स ने यह जाना है कि, यह एक बड़ी स्पाइरल गैलेक्सी है, जो कई अन्य गैलेक्सीज़ की तरह ही है, लेकिन यह अपनी कुछ अनोखे इतिहास की वजह से बाकियों से अलग है. मिल्की वे के अंदर रहकर हमें इसके स्ट्रक्चर और कंटेंट को नजदीक से देखने को मौका मिलता है, जबकि हम अन्य गैलेक्सीज़ की चीजों को नहीं देख सकते. हालांकि, इसी कारण से एस्ट्रोनॉमर्स के लिए गैलेक्टिक स्ट्रक्चर की पूरी तस्वीर लेना काफी मुश्किल होता है, लेकिन मिल्की वे पर हुआई मॉडर्न रिसर्च, हमारी इस समझ को बेहतर बनाती है कि गैलेक्सी कैसे बनी है और ऐसी क्या चीज़ है, जो हमारी गैलेक्सी को आकार देती रहती है.

सुभ्रमण्यम ब्रह्मांडीय विकिरण (Cosmic Radiation) और ब्रह्मांड के शुरुआती दौर के मिल्की वे के निर्माण पर पड़े प्रभाव के बारे में चर्चा करते हुए बताया, "मिल्की वे के निर्माण के लिए किसी खास परिस्थितियों की जरूरत नहीं थी, बस इसे बहुत घने क्षेत्र में बनने से बचना था. अगर ऐसा होता तो शायद यह किसी दूसरी आकाशगंगा से टकरा कर या उसमें मिल जाती. इसी कारण यह आकाशगंगा काफी लंबे वक्त तक बची रही और अपने स्पाइरल स्ट्रक्चर को भी बनाए रखा."

इसे आसान शब्दों में कहे तो इतने अरबों सालों से मिल्की वे आकाशगंगा और उसका स्पाइरल स्ट्रक्चर इसलिए बचा रह गया क्योंकि उसका निर्माण किसी घने क्षेत्र में नहीं हुआ और इसलिए उसका किसी दूसरी आकाशगंगाओं से टकराव नहीं हुआ. इंसानों ने सबसे पहले नग्न आंखों से ही तारों को ऑब्ज़र्व करना शुरू किया था. उसके बाद धीरे-धीरे पॉवरफुल टेलीस्कोप्स का अविष्कार होता गया है और उसकी मदद से तारों और पूरी गैलेक्सीज़ के बारे में खोज होने लगी. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी मॉडर्न होती गई, वैसे-वैसे इंसानों ने मिल्की-वे गैलेक्सी के कई रहस्यों से पर्दा उठाना शुरू कर दिया है, लेकिन पुराने रहस्यों के सुलझने के बाद, इंसानों के सामने कई नए रहस्य भी आने शुरू हो गए और वैज्ञानिकों ने उसके भी संभावित जवाब ढूंढ लिए. आइए हम आपको ऐसे ही कुछ रोचक प्रश्नों और उसके जवाबों के बारे में बताते हैं.

ब्रह्मांड की सबसे बड़ी आकाशगंगा कौनसी है?

वैज्ञानिकों को अभी तक पता चली जानकारी के अनुसार ब्रह्मांड की सबसे बड़ी गैलेक्सी का नाम एल्सियोनियस (Alcyoneus) है. इसका आकार 16.3 मिलियन यानी करीब 1 करोड़ 60 लाख, 30 हजार प्रकाश वर्ष (16.3 Million Light-Years) चौड़ी है. इसे आप मिल्की वे गैलेक्सी से तुलना करें तो, एल्सियोनियस का व्यास, हमारी गैलेक्सी से 160 गुना चौड़ा है.

रिसर्चर्स ने नए अध्ययन के बाद जानकारी दी है कि एल्सियोनियस से पहले ब्रह्मांड की सबसे बड़ी गैलेक्सी IC 1101 थी, जो 3.9 मिलियन यानी 39 लाख प्रकाश-वर्ष चौड़ी है, लेकिन अब सबसे बड़ी गैलेक्सी एल्सियोनियस है, जो IC 1101 से भी 4 गुना चौड़ी है. एल्सियोनियस का नाम एक पौराणिक दानव के नाम पर पड़ा था, जो हर्क्यूलिस से लड़ा था. ग्रीक में उस दानव के नाम का मतलब "mighty ass" होता है. हमारी पृथ्वी से एल्सियोनियस की दूरी करीब 3 बिलियन यानी करीब 300 करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर है.

ब्रह्मांड की सबसे छोटी आकाशगंगा कौनसी है?

वैज्ञानिकों को अभी तक पता चली जानकारी के अनुसार ब्रह्मांड की सबसे छोटी आकाशगंगा यानी गैलेक्सी का नाम सेग्यू 1 (Segue 1) और सेग्यू 3 (Segue 3) है. ये दोनों सबसे छोटी गैलेक्सीज़ हैं, जो मिल्की वे के गैलेक्टिक हेलो में स्थित है. इन्हें ड्वार्फ गैलेक्सीज़ (Dwarf Galaxies) भी कहते हैं. ये काफी कमजोर हैं और कुछ सौ गुना सूर्य जितनी चमकीली हैं. इनमें 1000 से ज्यादा तारे नहीं होते. ये अंतरिक्ष में महज कुछ ही प्रकाश वर्ष में फैले हुए हैं.

हमारी गैलेक्सी में कितने तारे और ग्रह मौजूद हैं?

इस मामले को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 6 साल की खोज की और माइक्रोलेंसिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके लाखों तारों का सर्वेक्षण किया. उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तारों के चारों ओर ग्रह का होना कोई अपवाद नहीं बल्कि एक नियम है. प्रत्येक तारों पर ग्रहों की औसत संख्या एक से अधिक है. इसका मतलब यह होता है कि पृथ्वी से सिर्फ 50 प्रकाश-वर्ष की दूरी तक में ही कम से कम 1500 ग्रह हो सकते हैं.

यह आंकड़ा प्रोबिंग लेंसिंग अनोमलीज़ नेटवर्क (PLANET) कॉलेबरेशन द्वारा 6 सालों के दौरान किए गए ऑब्ज़रवेशन पर आधारित है. इसकी स्थापना 1995 में हुई थी. इस सर्वेक्षण से प्राप्त मोटे अनुमानों से पता चलता है कि हमारी गैलेक्सी में 10 बिलियन यानी 1000 करोड़ से भी अधिक स्थलीय ग्रह (ऐसे ग्रह, जिनमें स्थल हो) हो सकते हैं.

इसी तरह हमारी गैलेक्सी में मौजूद तारों के बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान कहता है कि, मिल्की वे में लगभग 100 बिलियन यानी करीबल 10,000 करोड़ तारे हैं. ये सभी तारे मिलकर एक बड़े डिस्क का निर्माण करते हैं, जिसका व्यास लगभग 1,00,000 प्रकाश-वर्ष है और हमारा सौर मंडल हमारी आकाशगंगा के केंद्र से करीब 25 या 26 हजार प्रकाश-वर्ष दूर है. हम अपनी आकाशगंगा यानी मिल्की वे के उपनगरों में रहते हैं.

संभावित रहने योग्य ग्रहों और एक्सोप्लैनेट्स पर रिसर्च

जब वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी अन्य सूर्य जैसे तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हुए एक ग्रह पाया था, उसके 20 साल बाद उन्होंने पृथ्वी जैसे एक ग्रह की खोज की, जिसका नाम केप्लर-452बी (Kepler-452b) है. यह सूर्य जैसे एक तारे के उस ओर स्थित है, जहां जीवन जीने के लिए आवश्यक चीजें जैसे पानी तरल रूप में हो सकती हैं. Kepler-452b पृथ्वी से सिर्फ 60 प्रतिशत बड़ा है.

इसरो के नए अध्यक्ष वी नारायण ने ईटीवी भारत को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में एक्सोप्लैनेट्स के अध्ययन और उन पर जीवन की संभावना को ढूंढने के लिए इसरो की प्लानिंग के बारे में बात करते हुए बताया कि, "इसरो में एक्सोप्लैनेट्स की खोज और उन पर जीवन की संभावनाओं को ढूंढने के लिए बहस और चर्चाएं चल रही है."

एक्सोप्लैनेट्स वे ग्रह होते हैं जो किसी अन्य तारे के चारों ओर घूमते हैं और यह रहने योग्य हो सकते हैं. यह तारे के चारों ओर का वह क्षेत्र होता है जहां पानी तरल रूप में रह सकता है. यह ऐसा क्षेत्र होता है, जो सूर्य जैसे तारे से बहुत नजदीक होता है और न बहुत दूर, ताकि उसमें मौजूद पानी वाष्पित या जम ना जाए. इसे गोल्डीलॉक्स जोन कहते हैं क्योंकि यह न तो बहुत गर्म होता है और न ही बहुत ठंडा, बल्कि सही होता है. हमारे सौर मंडल में पृथ्वी ऐसे ही क्षेत्र में स्थित है, इसलिए हम इसमें जीवन जी सकते हैं.

मिल्की वे में रहने योग्य संभावित एक्सोप्लैनेट्स और उनकी लोकेशन्स

1. Gliese 667Cc: नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के अनुसार, इस एक्सप्लैनेट्स की पृथ्वी से दूरी करीब 22 प्रकाश-वर्ष दूर है और यह पृथ्वी से करीब 4.5 गुना बड़ा है.

2. Kepler-22b: इस एक्सोप्लैनेट्स की दूरी करीब 600 प्रकाश-वर्ष दूर है. यह पहला केप्लर ग्रह था जिसे उसके पेरेंट स्टार (सूर्य जैसा तारा) के रहने योग्य क्षेत्र में पाया गया, लेकिन यह ग्रह पृथ्वी से लगभग 2.4 गुना बड़ा है. हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह "सुपर-अर्थ" ग्रह पथरीला है, तरल है या गैसीय है.

3. Kepler-69c: केप्लर-69सी पृथ्वी से करीब 2700 प्रकाश-वर्ष दूर है और यह पृथ्वी से करीब 70% बड़ा है. इस एक्सोप्लैनेट की संरचना के बारे में भी वैज्ञानिक और रिसर्चर्स अनिश्चित हैं.

4. Kepler-62f: नासा के अनुसार, केप्लर-62एफ पृथ्वी से लगभग 40 प्रतिशत बड़ा है और एक ऐसे तारे की परिक्रमा करता है जो हमारे सूर्य से बहुत ठंडा है. केप्लर-62एफ पृथ्वी से लगभग 1,200 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है. इसका ऑर्बिट 267 दिनों का है और इसे रहने योग्य क्षेत्र के रूप में माना जाता है. वहीं, Kepler-62 अपने लाल छोटे तारे के करीब परिक्रमा करता है. यह तारा सूर्य की तुलना में काफी कम रोशनी उत्पन्न करता है. इसके बड़े आकार के कारण, यह संभावित रूप से पथरीले ग्रहों की कैटिगरी में आता है, जिनमें महासागर हो सकते हैं.

5. Kepler-186f: यह एक्सोप्लैनेट यानी ग्रह पृथ्वी से करीब 10% ही बड़ा है. पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 500 प्रकाश-वर्ष है. रिसर्चर्स को ऐसा लगता है कि यह अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में स्थित है. हालांकि, उस क्षेत्र के बाहरी किनारे पर Kepler-186f को अपने तारे से सिर्फ एक-तिहाई उर्जा ही मिल पाती है. यहां पर उसी उर्जा की बात कर रहे हैं, जो हमारे ग्रह यानी पृथ्वी को सूर्य से मिलती है.

6. Kepler-442b: नासा के द्वारा रिलीज़ की गई एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक, यह पृथ्वी से करीब 33% बड़ा है और अपने स्टार की परिक्रमा हर 112 दिनों में पूरी करता है. इस ग्रह की घोषणा 2015 में की गई थी और यह पृथ्वी से करीब 1,194 प्रकाश-वर्ष दूर है.

7. Kepler-452b: इस ग्रह की खोज की घोषणा 2015 में की गई थी. नासा एक्सोप्लैनेट्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह सूर्य के आकार बराबर तारे की चारों ओर परिक्रमा करने वाला और पृथ्वी के आकार वाला पहला ग्रह है. केप्लर-452, हमारे सूर्य से काफी मिलता-जुलता है और यह रहने योग्य क्षेत्र में ही परिक्रमा करता है.

8. Kepler-1649c: इस एक्सोप्लैनेट का आकार पृथ्वी के समान ही पाया गया है और यह भी अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में ही परिक्रमा करता है. यह ग्रह पृथ्वी से करीब 300 प्रकाश-वर्ष दूर है. यह पृथ्वी से सिर्फ 1.06 गुना बड़ा है.

9) Proxima Centauri b: नासा के अनुसार, यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से सबसे पास स्थित है. पृथ्वी से इसकी दूसरी सिर्फ 4 प्रकाश-वर्ष यानी करीब 40 ट्रिलियन किलोमीटर दूर है. हालांकि, यह एक्सोप्लैनेट अपने तारे के रहने योग्य क्षेत्र में पाया जाता है, लेकिन यह काफी ज्यादा मात्रा में अल्ट्रावॉलेट रेडिएशन मौजूद हैं, जो सूर्य जैसे तारे के काफी नजदीर स्थित होने की वजह से है. इसी कारण इसका ऑर्बिटल पीरियड सिर्फ 11.2 दिनों का है.

प्रॉक्सिमा सेंटॉरी बी तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?

स्पेस डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक नासा का Juno probe 2,65,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बृहस्पति (Jupiter) ग्रह की ऑर्बिट में गया था. अगर इसी स्पीड से चलें तो प्रॉक्सिमा सेंटॉरी बी तक पहुंचने में लगभग 17,157 साल लग सकते हैं.

ब्रेकथ्रू स्टारशॉट इनिशिएटीव के संस्थापक बहुत हाई स्पीड से प्रॉक्सिमा सेंटॉरी तक वेफर-थिन प्रोब भेजना चाहते हैं. इन प्रोब्स को पतली पालों (thin sails) से सुसज्जित करने की है, जो पृथ्वी-आधारित पॉवरफुल लेजर द्वारा दी गई ऊर्जा को पकड़ेंगी.

इस प्रोग्राम के वैज्ञानिकों के अनुसार, ये पॉवरफुल लेज़र प्रोब्स की स्पीड को लाइट स्पीड के 20% (215.85 मिलियन यानी करीब 21.585 करोड़ किलोमीटर प्रति घंटा) तक तेज कर देगा. इस स्पीड से प्रोब्स करीब 20 से 25 सालों में प्रॉक्सिमा सेंटॉरी तक पहुंच सकते हैं.

सौरमंडल का स्थान और इसकी कक्षा

हमारे सौरमंडल में एक सूर्य, आठ ग्रह, आधिकारिक तौर पर घोषित 5 छोटे ग्रह (Dwarf Planets), सैकड़ों चांद के साथ-साथ हजारों क्षुद्रग्रहों (Asteroids) और धूमकेतु (Comets) शामिल हैं. हमारा सौरमंडल मिल्की वे में स्थित है. हमारा सूर्य मिल्की वे की एक छोटी, आंशिक आर्म में स्थित है, जिसे ओरियन आर्म, या ओरियन स्पर (Orion Spur) कहा जाता है, जो सैजिटेरियस (Sagittarius) और पर्सियस (Perseus) आर्म्स के बीच है.

हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर लगभग 515,000 मील प्रति घंटा यानी करीब 8,28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से परिक्रमा करता है. इस स्पीड से हमारे सौरमंडल को आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 250 मिलियन यानी करीब 25 करोड़ साल लगते हैं.

मिल्की वे में सोलर सिस्टम की अन्य स्टार सिस्टम्स से तुलना

स्टार सिस्टम उन ग्रहों, उल्काओं या अन्य वस्तुओं का समूह होती है, जो एक बड़े तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, जबकि हमारी आकाशगंगा में कम से कम 200 बिलियन अन्य तारे शामिल हैं, लेकिन सौरमंडल सिर्फ एक ही है. इसी कारण हमारे सूर्य को उसके लैटिन नाम सोल से जाना जाता है.

हमारे सौरमंडल में तारे, सूर्य, पृथ्वी समेत सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों के साथ-साथ कई चंद्रमा, एस्ट्रॉइड्स, कॉमेट, चट्टान और धूल भी शामिल हैं. मिल्की वे गैलेक्सी में मौजूद अरबों तारों में से सूर्य सिर्फ एक तारा है. इसे अगर आसान तरीके से समझें तो, मान लीजिए हम सूर्य को रेत के एक छोटे से दाने जितना छोटा बना दें, तो हमारा सौरमंडल इतना छोटा हो जाएगा कि वह हमारी हाथ की हथेली पर आ जाएगा.

इसका मतलब है कि अगर हमारी हाथ की हथेली पूरा सौरमंडल है तो उसमें रखा रेत का एक छोटा सा दाना सूर्य होगा और उसे भी काफी छोटा दाना हमारी पृथ्वी होगी. इस तरह से प्लूटो ग्रह (जो सूर्य से काफी दूर है) आपकी हथेली के बीच से लगभग एक इंच दूर परिक्रमा करता नज़र आएगा.

ये भी पढ़ें:

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.