हरिद्वारः बीते 20 सालों में हरिद्वार का आकार जहां कई गुना तक बढ़ गया है वहीं आबादी के लिहाज से भी हरिद्वार में दोगुना इजाफा हुआ है. इसके बावजूद वर्ष 2004 के बाद हरिद्वार शहर को कोई नया सरकारी अस्पताल नहीं मिल पाया है. इतना ही नहीं, जर्जर हो चुके हरिद्वार के मुख्य जिला चिकित्सालय की हालत ऐसी है कि सबसे ज्यादा मरीजों का उपचार करने वाले अस्पताल का लेंटर भी गिरने लगा है. खास बात ये है कि अस्पताल में ना तो सर्जन है और ना ही पोस्टमॉर्टम की सुविधा.
सन 1976 में जिला चयन राय अस्पताल यानी जिला मुख्य चिकित्सालय का निर्माण उस समय की जरूरतों को देखते हुए तत्कालीन यूपी सरकार द्वारा कराया गया था. उस समय शहर की आबादी के हिसाब से ही इस अस्पताल की क्षमता रखी गई थी. लेकिन इन बीते करीब 46 सालों में शहर की जनसंख्या में कई गुना की वृद्धि हुई. लेकिन अस्पताल आज भी वैसा का वैसा ही है. जिला चिकित्सालय के बाद इसके पड़ोस में ही महिला चिकित्सालय का निर्माण कराया गया था. वर्ष 2004 में कुंभ के दौरान मेला अस्पताल का निर्माण हुआ था. लेकिन वर्तमान की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए अब यह अस्पताल भी क्षमता के अनुसार नाकाफी साबित हो रहे हैं.
जिला चिकित्सालय में जहां 70 मरीजों को भर्ती करने की व्यवस्था है तो वहीं महिला चिकित्सालय में 50 महिलाओं को भर्ती किया जा सकता है. नई बिल्डिंग बनने के बाद यह क्षमता बढ़कर 50 हो जाएगी. इसी तरह सर्वाधिक महत्वपूर्ण मेला अस्पताल में भी 100 बेड की व्यवस्था की गई है. जहां पर उपचार के तमाम आधुनिक उपकरण रखे गए हैं. लेकिन बड़ी बात यह है कि जितनी संख्या में चिकित्सक और स्टाफ की इन अस्पतालों में जरूरत है, उतनी संख्या में यहां पर तैनाती नहीं हो पाई है. इतना ही नहीं, कई महत्वपूर्ण बीमारियों के उपचार के लिए इन अस्पतालों में चिकित्सक ही मौजूद नहीं हैं.
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ऐसा भी देखने में आ रहा है कि तैनाती के बाद से ही कुछ चिकित्सक ड्यूटी पर नहीं आए और वे लगातार लापता चल रहे हैं. ना तो विभाग ने उनकी अस्पतालों से छुट्टी की है और ना ही उनकी जगह किसी नए चिकित्सक को जिम्मेदारी दी गई है. इस तरह की कई कमियों के बावजूद चाहे जिला चिकित्सालय हो या फिर महिला या फिर मेला अस्पताल सभी जगह मरीजों का तांता लगा रहता है. जिस तरह हरिद्वार मेलों और यात्रियों का शहर है और हर साल स्थानीय लोगों के अलावा लाखों की संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं उनके हिसाब से अस्पतालों की व्यवस्था लचर ही है.
कई सालों से हो रही मांग: उत्तरी हरिद्वार, जिले का एक ऐसा क्षेत्र है जो संत बाहुल्य होने के साथ घनी आबादी वाला भी है. लिहाजा, इस क्षेत्र से लंबे समय से एक अस्पताल की मांग उठती चली आ रही है. कई बार शासन प्रशासन और राजनेताओं ने इस इलाके को एक बड़ा अस्पताल देने के वादे तो किए लेकिन आज तक वे वादे धरातल पर नहीं उतर पाए. जिस कारण इस इलाके के लोगों को उपचार के लिए जिला या मेला अस्पताल की दौड़ ही लगानी पड़ती है.
तीन हैं सरकारी अस्पताल: हरिद्वार शहर और आसपास के देहात के इलाकों में रहने वाली करीब 11 लाख की आबादी के लिए 3 बड़े सरकारी अस्पताल स्थित हैं. इनमें सबसे बड़ा जिला अस्पताल, उसके बाद मेला और फिर महिलाओं के लिए महिला अस्पताल का निर्माण किया गया है. लेकिन इन अस्पतालों में जरूरत के अनुरूप अभी भी कई सुविधाएं मुहैया नहीं हैं.
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सर्जन की तैनाती नहींः किसी भी अस्पताल में फिजिशियन के बाद यदि किसी डॉक्टर की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वह होता है सर्जन. क्योंकि एक सर्जन ही कई तरह के ऑपरेशन कर मरीज को बचाता है. लेकिन जिला चिकित्सालय में बीते लंबे समय से सर्जन की ही तैनाती नहीं है. यहां पर सर्जन के 2 पद स्वीकृत हैं, लेकिन दोनों ही खाली हैं. सर्जरी के मरीज परेशान होकर वापस लौटने को मजबूर हैं. हालांकि, यहां पर सर्जन की तैनाती तो है लेकिन पिछले 2 महीनों से सर्जन लापता हैं. इस कारण ना तो यहां पर सर्जरी हो पा रही है और ना ही सर्जरी की ओपीडी संचालित हो रही है.
नहीं है पीएम एक्सपर्ट: हरिद्वार के जिला चिकित्सालय की बात करें तो इसी अस्पताल कैंपस में मोर्चरी बनी हुई है. तीर्थ नगरी होने और घनी आबादी वाला इलाका होने के कारण यहां पर रोजाना आधा दर्जन पोस्टमॉर्टम होते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि पिछले काफी समय से यहां पर पोस्टमॉर्टम एक्सपर्ट का टोटा बना हुआ है. काफी समय से यह पद रिक्त चला रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पोस्टमॉर्टम जैसी अहम जिम्मेदारी को अस्पताल कैसे निभा रहा होगा.
पर्याप्त संख्या में हैं टेक्नीशियन: जिला महिला एवं मेला अस्पताल में भले चिकित्सकों की कमी हो लेकिन टेक्नीशियन को पर्याप्त संख्या में रखा गया है. चाहे वह लैब टेक्नीशियन हो या फिर किसी भी मशीन पर तैनात कर्मचारी.
जर्जर हो चुका अस्पताल: सन 1971 में बनना शुरू हुआ जिला चिकित्सालय 1976 में बनकर तैयार हुआ और तब से लगातार रोजाना यहां सैकड़ों की संख्या में मरीज ना केवल चिकित्सकों को दिखाने आते हैं, बल्कि भर्ती भी किए जाते हैं. समय के साथ अब यह अस्पताल जर्जर हो चुका है. हालत यह है कि अब चिकित्सकों और मरीजों के सिर पर छतों का लेंटर गिरने लगा है. इससे कई बार मरीज व चिकित्सक घायल भी हो चुके हैं. बेहद पुराना होने के कारण इसका जीर्णोद्धार भी अब संभव नजर नहीं आता.
इमरजेंसी कक्ष होगा बड़ा: जिला मुख्य चिकित्सालय एमरजेंसी में कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि अचानक ज्यादा संख्या में मरीजों के आने के कारण उपचार करना मुश्किल हो जाता है. इसके लिए अब सरकार ने अगले महीने में आपातकालीन कक्ष बड़ा करने का आदेश जारी कर दिया है. आने वाले 6 माह में इमरजेंसी का आकार बड़ा किया जाएगा.
चिकित्सकों की है कमी: कोरोना कॉल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला मेला अस्पताल आज चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है. इस अस्पताल में तमाम सुविधाएं मुहैया होने के बावजूद चिकित्सकों का टोटा बना हुआ है. मेला अस्पताल में चिकित्सकों के 29 पद स्वीकृत हैं. लेकिन इसमें से 12 पर ही चिकित्सकों की तैनाती की गई है. जबकि 17 पद अभी भी खाली पड़े हुए हैं.
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एमआरआई व डिजिटल एक्स रे उपलब्ध: बीते 2 सालों में अस्पताल को उच्चीकृत करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए. सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपयोग की एमआरआई मशीन के साथ डिजिटल एक्स रे मशीन को भी जिला चिकित्सालय में स्थापित किया गया है. ताकि मरीजों को समय पर बेहतर उपचार दिया जा सके.
आधुनिक ओटी में हो रहे ऑपरेशन: 4 साल पहले तक हरिद्वार के जिला चिकित्सालय में साधारण ऑपरेशन थिएटर ही हुआ करता था. लेकिन जरूरत के अनुरूप इसमें बदलाव किया गया और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिला चिकित्सालय को आधुनिक तकनीक से लैस ऑपरेशन थिएटर मुहैया कराया गया. इससे अब जटिल से जटिल ऑपरेशन भी जिला चिकित्सालय में आसानी से चिकित्सकों द्वारा किया जाता है.