देहरादून: हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर को लेकर के खूब चर्चाएं हुईं, क्योंकि चमोली जिला प्रशासन ने एक पत्र शासन को लिखा था. जिसमें कि जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे भू-धंसाव को लेकर चिंता जाहिर की गई थी. जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे इस भू-धंसाव को लेकर शासन ने तत्काल प्रभाव से एक्शन लिया. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन-न्यूनीकरण प्राधिकरण ने शोधकर्ताओं की एक जांच टीम गठित की और मौके पर भेजा गया.
शोधकर्ताओं ने तकरीबन 4 दिनों तक जोशीमठ शहर में जाकर स्थलीय निरीक्षण किया. वहां पर लगातार हो रही भौगोलिक गतिविधियों को बारीकी से अध्ययन किया और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की. इसके बाद टीम ने रिपोर्ट प्रबंधन विभाग को सौंपी है. इस जांच कमेटी में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन के शोधकर्ताओं के अलावा वाडिया इंस्टीट्यूट, आईआईटी रुड़की और सीबीआरआई रुड़की के शोधकर्ता भी मौजूद थे.
जोशीमठ शहर के भू-धंसाव की 3 बड़ी वजह: आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि शोधकर्ताओं की जांच में जोशीमठ शहर में लगातार हो रहे भू धंसाव के पीछे 3 बड़े कारण नजर आ रहे हैं. पहला सबसे बड़ा कारण है अलकनंदा द्वारा जोशीमठ शहर के नीचे पहाड़ की तलहटी पर लगातार हो रहा भू कटाव है, जिसकी वजह से धीरे-धीरे पहाड़ नीचे की ओर खिसक रहा है. दूसरी वजह शहर में एक व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम ना होना भू-धंसाव का बड़ा कारण माना जा रहा है.
आपदा सचिव रंजीत कुमार सिन्हा के मुताबिक एक व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम ना होने की वजह से सीवरेज के साथ-साथ बरसात का पूरा पानी जमीन में समा रहा है, जिसकी वजह से लगातार जमीन के अंदर सिंक होल बन रहे हैं. भू-धंसाव का तीसरी कारण शहर में लगातार हो रहा अंधाधुंध अव्यवस्थित निर्माण भी जोशीमठ शहर में आपदा का बड़ा पहलू है.
सरकार का एक्शन प्लान: आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि जोशीमठ शहर में आने वाली इस मुसीबत से निपटने के लिए सरकार अपना मजबूत एक्शन प्लान तैयार कर रही है. जोशीमठ शहर के अलग-अलग क्षेत्र के लिए हमें अलग-अलग रणनीति पर काम करना होगा. रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि उनके द्वारा तीन काम तत्काल प्रभाव के साथ किए जा रहे हैं.
पहला, जोशीमठ शहर के नीचे अलकनंदा नदी से हो रहे भू कटाव को रोकना. इसके लिए नदी के तटबंधों को मजबूत करने के लिए युद्धस्तर पर काम किया जाएगा. दूसरा, जोशीमठ शहर के स्ट्रांग वाटर ड्रेनेज सिस्टम को तैयार करना है. उन्होंने कहा कि शहर में एक मजबूत वाटर ड्रेनेज सिस्टम बनाने की जरूरत है. जिस पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा सीवर लाइन की व्यवस्था को लेकर की मसौदा तैयार किया जा रहा है, ताकि बरसात के पानी के साथ साथ सीवरेज का भी पानी जमीन के अंदर ना जाए.
आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि तीसरा प्लान सिंचाई और पेयजल विभाग के साथ समन्वय बनाकर विस्थापन की दिशा में काम किया जा रहा है. हालांकि, विस्थापन में थोड़ा समय लग सकता है. इस प्रक्रिया को भी अमल में लाए जाने की कवायद शुरू की जा रही है. जिसके लिए जिला प्रशासन से भूमि का प्रस्ताव मांगा है, जिसको लेकर के आगे की रणनीति पर काम किया जा रहा है.
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मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट से नहीं चेती सरकार: जोशीमठ शहर पर आई इस मुसीबत की भविष्यवाणी 70 के दशक में ही कर दी गई थी. दरअसल, जोशीमठ शहर की इस आफत को लेकर साल 1976 में एक कमीशन का गठन किया गया था, जिसका नाम मिश्रा कमीशन था. मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट में भी जोशीमठ शहर के भविष्य पर मंडरा रहे इस खतरे को लेकर सरकार को आगाह किया था.
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि जोशीमठ शहर खुद ही एक बड़े भूस्खलन के ऊपर बसा हुआ शहर है. उन्होने बताया कि पूर्व में यह बात भी निकल कर आयी थी कि कई सौ साल पहले कोई बड़ा भूस्खलन आया होगा और उसी भूस्खलन की मोटी लेयर के ऊपर यह पूरा शहर बसा हुआ है. उन्होंने बताया कि जोशीमठ शहर की इस अस्थिरता को लेकर समय-समय पर चिंता है उठती आई है और इसी के चलते 1976 में मिश्रा कमेटी गठित की गई थी.
मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट में जोशीमठ शहर में भविष्य में बड़े भूस्खलन और भू-धंसाव की चिंता जाहिर की गई थी. लेकिन उसके बावजूद भी लगातार जोशीमठ शहर में अंधाधुंध निर्माण कार्य होता रहा और आज यह फिर से अलार्मिंग स्टेज पर है. जय सिंह रावत ने यहां तक कहा कि मिश्रा कमेटी के अलावा भूगर्भ वैज्ञानिकों ने यह भी कहा था कि जोशीमठ में सुरंग बनाना बेहद खतरनाक है. लेकिन इसके बावजूद भी वहां पर तमाम इस तरह के प्रोजेक्ट चलाए गए. लेकिन इन सबका अंजाम क्या होगा, यह कोई नहीं जानता.
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उत्तराखंड अन्य शहर भी आपदा की जद में: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि केवल जोशीमठ शहर ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के और भी कई शहर इसी तरह से भविष्य में एक बड़ी आपदा के मुहाने पर खड़े हैं. नैनीताल के बलिया नाला में लगातार हो रहा भूस्खलन हमारे सामने हैं, भूकंप के मुहाने पर मौजूद पहाड़ों की रानी मसूरी और उत्तरकाशी का वरुणावत पर्वत का उदाहरण हम सबके सामने है.
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत एक तकरीबन 2 शताब्दी पहले उत्तराखंड के शेर कांडा पर्वत पर आये बड़े भूस्खलन का हवाला देते हुए बताते हैं कि 1861 में यहां इतना बड़ा भूस्खलन आया था कि पहली बार वहां पर डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मारे गए और दूसरी बार भी बड़ी संख्या में लोग इस भूस्खलन के चलते काल के ग्रास में समा गए.
प्रदेश में जोशीमठ के अलावा अन्य शहरों पर लगातार बनी रहने वाली इन मुसीबतों को लेकर के आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि सरकार लगातार हर एक गतिविधि पर नजर बनाए हुए हैं. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि नैनीताल सहित अन्य जगहों पर लगातार हो रहे भूस्खलन पर गहनता से शोध हो रहा है और वहां पर इंस्टेंट रिलीफ के साथ साथ रणनीतिक निर्माण कार्यों पर भी लगातार काम चल रहा है.