देहरादून: विकास के नाम पर उत्तराखंड का हो रहा विनाश का मुद्दा पिछले कई सालों से उठ रहा है, लेकिन तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया. यदि हम अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेते तो शायद आज जोशीमठ में ये दिन नहीं देखने पड़ते. साल 2013 में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष दिवंगत सुषमा स्वराज ने संसद में उत्तराखंड में बेतरतीब तरीके से हो रहे विकास का मुद्दा उठाया था.
2013 की केदारनाथ आपदा के बाद संसद में दिवंगत सुषमा स्वराज ने चेताया था कि विकास के नाम पर उत्तराखंड में प्रकृति से छेड़छाड़ की जा रही है, उसका ही नतीजा है कि देवभूमि विकास के बजाए विनाश की तरफ बढ़ रही है. सुषमा स्वराज ने तब संसद में कहा था कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके अरबों रुपए का जो विकास किया जाता है, उसे प्रकृति का क्रोध एक दिन में नष्ट कर देता है और आज जोशीमठ में वही होता भी दिख रहा है.
जोशीमठ में वर्तमान हालत देखकर दिवंगत सुषमा स्वराज का संसद में दिया ये भाषण हमें ये सोचने पर मजबूर कर रहा है कि सालों पहले जिसकी चिंता जता दी गई थी, उस पर अभीतक हमने ध्यान क्यों नहीं दिया? आखिर आज ये सवाल फिर से खड़ा हो रहा जोशीमठ के विनाश का जिम्मेदार किसे माना जाए? और उत्तराखंड को विकास का सपना दिखाकर विनाश की सूली पर कब तक चढ़ाया जाएगा?
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बता दें कि उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में घरों और जमीन में पड़ी दरारें लगातार चौड़ी होती जा रही हैं. असुरक्षित घरों को तोड़ा जा रहा है. लोगों को जोशीमठ से शिफ्ट किया जा रहा है. आज जोशीमठ की हालात को देकर वैज्ञानिकों के एक बार चेताया है कि उत्तराखंड में विकास का पहिया सीमित रफ्तार से दौड़ाया जाए, कहीं ऐसा न हो कि विकास पर विनाश भारी पड़ जाए.
गौर हो कि उत्तराखंड की 12 नदियों पर 32 छोटे-बड़े बांध और परियोजनाएं बनी हैं. जिसमें भागीरथ नदी पर 6, अलकनंदा नदी पर 5, गंगा नदी पर 3, रामगंगा नदी पर 3, काली नदी पर एक, कोसी नदी पर एक, पिंडर नदी पर दो, धौलीगंगा नदी पर तीन, यमुना नदी पर 3, टोंस नदी पर तीन परियोजनाओं के साथ ही शारदा नदी पर दो परियोजनाएं शामिल हैं. साल 2005 से 2010 के दौरान उत्तराखंड सरकार ने 24 से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी थी.
वहीं, 24 जलविद्युत परियोजनाओं का मामला सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचा. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. जिसके बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने विशेषज्ञों की 12 सदस्यीय समिति गठित की. जिसकी रिपोर्ट मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन 24 परियोजनाओं पर रोक लगा दी. ये सभी परियोजनाएं करीब तीस हजार करोड़ की लागत से बनाई जानी थी. इसके अलावा कई बाध परियोजनाएं प्रस्तावित हैं.
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