देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों के नजदीक आते ही नए जिलों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज हो जाती हैं. दरअसल, एक दर्जन से ज्यादा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां नए जिलों की मांग होती रही है. लिहाजा चुनाव से पहले राजनीतिक दल लोगों की इस भावना से खेलने में देरी नहीं करते. यही कारण है कि इस बार पहले दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind Kejriwal) ने नए जिलों का राग छेड़ा और फिर शुरू हो गई नए जिलों के निर्माण की राजनीतिक बयानबाजी. उत्तराखंड में नए जिलों पर क्यों राजनीतिक दल इतना गंभीर दिखते हैं और क्या हैं इसके राजनीतिक मायने...? समझते हैं.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से पहले एक बार फिर प्रदेश में नए जिलों के गठन को लेकर (Formation of new districts in Uttarakhand) सियासत शुरू हो गई है. 14 दिसंबर को काशीपुर पहुंचे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रदेश में नए जिलों के गठन का मुद्दा उछाल दिया है. इसके बाद प्रदेश के सभी राजनीतिक दल नए जिलों के गठन को लेकर अपने-अपने दावे पेश करने लगे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नए जिलों के गठन को लेकर बड़ी बात कही है.
हरीश रावत ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री रहते साल 2016 में उन्होंने 9 नए जिलों के लिए 100 करोड़ रुपए की व्यवस्था की थी. इसमें 37 से ज्यादा तहसीलें और उप तहसीलें भी गठित करने का काम शुरू किया गया था. साल 2016 में जिन क्षेत्रों को जिला बनाने की बात कही थी, उसमें नरेंद्र नगर, काशीपुर, गैरसैंण, बीरोंखाल, खटीमा, कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट शामिल थे.
'खिचड़ी' बनकर तैयार, बस मौका चाहिए: हरीश रावत ने कहा कि उस साल विपक्षी दलों ने अगर उनकी सरकार को गड़बड़ाया नहीं होता तो आज ये जिले अस्तित्व में होते. उन्होंने कहा कि हमने सीएम रहते जिले बनाने के लिए तहसील, उप तहसील और पटवारी हलके बनाने की प्रक्रिया को पूरा किया है. हरदा ने कहा कि सारी खिचड़ी बनकर तैयार है. अब अगर जनता उनको मौका देगी तो सभी जिले अस्तित्व में आ जाएंगे.
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राजनीतिक दलों का हकीकत से कोई वास्ता नहीं: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने नए जिलों के गठन को लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला है. उन्होंने कहा है कि अरविंद केजरीवाल पहले बताएं कि दिल्ली में उनके द्वारा कितने नए जिले बनाए गए हैं. उनको पहले ये जानकारी साझा करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ चुनाव के समय पर घोषणा करने वाले दल हैं, हकीकत का इनसे कोई वास्ता नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार ने इसके लिए आयोग का गठन किया था. आयोग की रिपोर्ट के बाद ही सरकार कोई फैसला करेगी.
तत्कालीन CM डॉ. निशंक ने की थी सबसे पहले घोषणा: राज्य स्थापना से पहले से भले ही नए जिलों की मांग उठती रही हो लेकिन सबसे पहले नए जिलों की मांग को बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने सुना था. डॉ. निशंक ने मुख्यमंत्री रहते 4 नए जिले बनाने की घोषणा भी की और इस घोषणा को धरातल पर उतारने की कवायद भी शुरू की थी.
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डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक (Former CM Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank) ने सबसे पहले 4 जिले कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट बनाने की घोषणा की थी. हालांकि, इस घोषणा के बाद साल 2011 में निशंक मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए और भुवन चंद्र खंडूरी वापस मुख्यमंत्री बने. इस दौरान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूरी ने 4 जिलों के लिए शासनादेश जारी किया लेकिन इसके बाद प्रदेश में चुनाव हो गए और प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया. कांग्रेस की सरकार बन गई.
इसके बाद कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बाकी क्षेत्रों में भी जिलों की मांग को देखते हुए राजस्व परिषद के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक 3 सदस्यीय आयोग बना कर जिलों के गठन पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा, जिस पर आज तक कुछ काम आगे नहीं बढ़ पाया.
यूं तो भाजपा ने साल 2011 में 4 नए जिले बनाए जाने की घोषणा की थी लेकिन आज 10 साल बाद भी यह जिले अस्तित्व में नहीं आ सके हैं. जिसको लेकर सवाल उठने भी लाजिमी हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल में 2016 के दौरान नए जिलों के साथ ही नई तहसीलें भी बनाए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन परिस्थितियां अनुकूल ना होने के चलते अभी भी वह मामले लंबित पड़े हैं. अब अगर कांग्रेस फिर से सत्ता में आती है तो उन फाइलों को पुनर्जीवित किया जाएगा, जिससे राज्य के लोगों की मांगों को पूरा किया जा सके.