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शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र बढ़ा सकती है सरकार, जानिए लोगों की राय

स्वस्थ्‍य, सबल, सक्षम नारी हमेशा से मोदी सरकार की प्राथमिकता में रही है. इसी क्रम में मोदी सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष किए पर विचार कर रही है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी मॉनसून सत्र में सरकार इस संबंध में प्रस्ताव सदन के पटल पर पेश कर सकती है.

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Published : Sep 9, 2020, 10:07 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 5:04 PM IST

Modi Government
शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ने के फायदे

देहरादून: केन्‍द्र सरकार जल्‍द ही लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने जा रही हैं. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र पर फिर से विचार करने की बात कही थी. ऐसे में मोदी सरकार 14 सितंबर से शुरू होने वाले मॉनसून सत्र में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव पारित कर सकती है.

उम्र बढ़ाने की समीक्षा के लिए गठित टास्क फोर्स जल्द अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी. मातृत्व प्रवेश आयु समीक्षा से संकेत मिलता है कि एक बार फिर लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाई जा सकती है. जो कि अभी 18 वर्ष है. साल 1929 में शारदा एक्ट आया था, जिसमें लड़की की विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष तय थी. इस कानून में 1978 में संशोधन हुआ जिसमें लड़की की विवाह की आयु 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई.

शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र बढ़ा सकती है सरकार.

मौजूदा समय में भारतीय कानून के मुताबिक, लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल और लड़कों की शादी की उम्र 21 साल है. ऐसा इसलिए क्योंकि समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि लड़कियां जल्दी मैच्योर हो जाती हैं. इसलिए दुल्हन को दूल्हे से कम उम्र का होना चाहिए. साथ ही यह भी कहा जाता है कि चूंकि हमारे यहां पितृसत्तात्मक समाज है, तो पति के उम्र में बड़े होने पर पत्नी को उसकी बात मानने पर उसके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचती. लेकिन इन सबके बीच समय-समय पर लड़कियों की शादी की उम्र पर पुनर्विचार की जरूरत उठती रही है.

क्या कहते हैं आंकड़े

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2005-2006 में जहां 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी. वहीं, 2015-2016 में यह आंकड़ा 27 फीसदी था. भारत में बाल विवाह पर रोकने संबंधी कानून सबसे पहले 1929 में पारित हुआ था. उसके बाद वर्ष 1949, 1978 और 2006 में इस कानून में संशोधन किए गए. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक बाल विवाह अपराध है और दोषियों को 2 साल की जेल और एक लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है.

Modi Government
यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़े.

ये भी पढ़ें: बढ़ेगी लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र !, लोगों ने की PM के फैसले की सराहना

उत्तराखंड का बचपन अब बाल विवाह की बेड़ियों से मुक्ति की तरफ बढ़ रहा है. प्रदेश में बाल विवाह के अब महज 0.40 फीसदी ही मामले शेष रह गए हैं और पूरे देश में सिर्फ पांच ही राज्य ऐसे हैं, जो उत्तराखंड से स्थिति में नजर आते हैं. बाल विवाह के मामले में देश के औसत की बात करें तो यह आंकड़ा है 0.73 फीसदी का है.

इसके साथ ही उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर में सुधार किया हुआ है. एसआरएस की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार मातृ मृत्यु अनुपात में सर्वाधिक गिरावट दर्ज करने में उत्तराखंड देश का पहला राज्य है. प्रदेश में साल 2016 में प्रति 1 हजार पर 38 मृत्यु दर थी. जो 2017 में घटकर 32 हो गई. वर्ष 2018-19 में शिशु मृत्यु दर 31 पर आ गया है.

उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए लड़कियों की शादी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 साल करना जरूरी है. दरअसल बालिकाओं की शादी के लिए 18 साल की उम्र बेहद कम मानी जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता साधना शर्मा का कहना है कि इस उम्र में न तो छात्राएं मैच्योर हो पाती हैं और न ही अपने भले-बुरे की पहचान कर पाती हैं.

विवाह को लेकर क्या कहती है यूनिसेफ

  • विश्व के ज्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष ही है.
  • भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
  • 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.
  • वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली.
  • यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
  • इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है.

पहले भी बहस का मुद्दा रही है उम्र

शादी की उम्र भारत में पहले भी बहस का मुद्दा रही है. 2018 में लॉ कमीशन ने भी तर्क दिया था कि शादी की उम्र में अंतर रखना पति के उम्र में बड़े और पत्नी के छोटे होने के रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है. बजट 2020-21 को संसद में पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव दिया है, जो लड़कियों की शादी की उम्र पर विचार करेगी और छह महीने में अपनी रिपोर्ट देगी. ऐसा में उम्मीद है कि आगामी मॉनसून सत्र में सरकार इस विधेयक को सदन में प्रस्तुत कर सकती है.

उत्तराखंड की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्या का कहना है कि कम उम्र में शादी के कारण लड़कियां कई परेशानियों से जूझती है. लेकिन शादी की उम्र बढ़ने से उन्हें कई फायदे मिलेंगे. उम्र बढ़ने के साथ लड़कियां में समझदारी बढ़ेगी और वे अपना भला-बुरा सोच पाएंगी. वे समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाएंगी. ऐसे में केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाती है तो यह स्वागत योग्य कदम है.

शादी के लिए 21 साल की उम्र सही

शादी के बाद जहां लड़की को अपने ससुराल और पति की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. वहीं, एक बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण भी करना होता है. ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि लड़की के लिए 21 साल के बाद स्वस्थ रूप से गर्भ धारण करने की उम्र होती है.

देहरादून: केन्‍द्र सरकार जल्‍द ही लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने जा रही हैं. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र पर फिर से विचार करने की बात कही थी. ऐसे में मोदी सरकार 14 सितंबर से शुरू होने वाले मॉनसून सत्र में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव पारित कर सकती है.

उम्र बढ़ाने की समीक्षा के लिए गठित टास्क फोर्स जल्द अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी. मातृत्व प्रवेश आयु समीक्षा से संकेत मिलता है कि एक बार फिर लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाई जा सकती है. जो कि अभी 18 वर्ष है. साल 1929 में शारदा एक्ट आया था, जिसमें लड़की की विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष तय थी. इस कानून में 1978 में संशोधन हुआ जिसमें लड़की की विवाह की आयु 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई.

शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र बढ़ा सकती है सरकार.

मौजूदा समय में भारतीय कानून के मुताबिक, लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल और लड़कों की शादी की उम्र 21 साल है. ऐसा इसलिए क्योंकि समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि लड़कियां जल्दी मैच्योर हो जाती हैं. इसलिए दुल्हन को दूल्हे से कम उम्र का होना चाहिए. साथ ही यह भी कहा जाता है कि चूंकि हमारे यहां पितृसत्तात्मक समाज है, तो पति के उम्र में बड़े होने पर पत्नी को उसकी बात मानने पर उसके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचती. लेकिन इन सबके बीच समय-समय पर लड़कियों की शादी की उम्र पर पुनर्विचार की जरूरत उठती रही है.

क्या कहते हैं आंकड़े

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2005-2006 में जहां 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी. वहीं, 2015-2016 में यह आंकड़ा 27 फीसदी था. भारत में बाल विवाह पर रोकने संबंधी कानून सबसे पहले 1929 में पारित हुआ था. उसके बाद वर्ष 1949, 1978 और 2006 में इस कानून में संशोधन किए गए. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के मुताबिक बाल विवाह अपराध है और दोषियों को 2 साल की जेल और एक लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है.

Modi Government
यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़े.

ये भी पढ़ें: बढ़ेगी लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र !, लोगों ने की PM के फैसले की सराहना

उत्तराखंड का बचपन अब बाल विवाह की बेड़ियों से मुक्ति की तरफ बढ़ रहा है. प्रदेश में बाल विवाह के अब महज 0.40 फीसदी ही मामले शेष रह गए हैं और पूरे देश में सिर्फ पांच ही राज्य ऐसे हैं, जो उत्तराखंड से स्थिति में नजर आते हैं. बाल विवाह के मामले में देश के औसत की बात करें तो यह आंकड़ा है 0.73 फीसदी का है.

इसके साथ ही उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर में सुधार किया हुआ है. एसआरएस की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार मातृ मृत्यु अनुपात में सर्वाधिक गिरावट दर्ज करने में उत्तराखंड देश का पहला राज्य है. प्रदेश में साल 2016 में प्रति 1 हजार पर 38 मृत्यु दर थी. जो 2017 में घटकर 32 हो गई. वर्ष 2018-19 में शिशु मृत्यु दर 31 पर आ गया है.

उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए लड़कियों की शादी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 साल करना जरूरी है. दरअसल बालिकाओं की शादी के लिए 18 साल की उम्र बेहद कम मानी जाती है. सामाजिक कार्यकर्ता साधना शर्मा का कहना है कि इस उम्र में न तो छात्राएं मैच्योर हो पाती हैं और न ही अपने भले-बुरे की पहचान कर पाती हैं.

विवाह को लेकर क्या कहती है यूनिसेफ

  • विश्व के ज्यादातर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष ही है.
  • भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी.
  • 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.
  • वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए और कुछ बेहतर प्रावधान शामिल कर, इस कानून की जगह ली.
  • यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
  • इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है.

पहले भी बहस का मुद्दा रही है उम्र

शादी की उम्र भारत में पहले भी बहस का मुद्दा रही है. 2018 में लॉ कमीशन ने भी तर्क दिया था कि शादी की उम्र में अंतर रखना पति के उम्र में बड़े और पत्नी के छोटे होने के रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है. बजट 2020-21 को संसद में पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव दिया है, जो लड़कियों की शादी की उम्र पर विचार करेगी और छह महीने में अपनी रिपोर्ट देगी. ऐसा में उम्मीद है कि आगामी मॉनसून सत्र में सरकार इस विधेयक को सदन में प्रस्तुत कर सकती है.

उत्तराखंड की महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्या का कहना है कि कम उम्र में शादी के कारण लड़कियां कई परेशानियों से जूझती है. लेकिन शादी की उम्र बढ़ने से उन्हें कई फायदे मिलेंगे. उम्र बढ़ने के साथ लड़कियां में समझदारी बढ़ेगी और वे अपना भला-बुरा सोच पाएंगी. वे समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाएंगी. ऐसे में केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाती है तो यह स्वागत योग्य कदम है.

शादी के लिए 21 साल की उम्र सही

शादी के बाद जहां लड़की को अपने ससुराल और पति की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. वहीं, एक बच्चे को जन्म देकर उसका पालन पोषण भी करना होता है. ऐसे में डॉक्टरों का मानना है कि लड़की के लिए 21 साल के बाद स्वस्थ रूप से गर्भ धारण करने की उम्र होती है.

Last Updated : Sep 10, 2020, 5:04 PM IST
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