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गणेश चतुर्थी: गाय के गोबर से बनाई ईको फ्रेंडली मूर्तियां, महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर - Dhatri Federation Mussoorie

मसूरी में महिलाएं भगवान गणेश का मूर्ति बनाने के लिए गाय के गोबर का इस्तेमाल कर रहे हैं. उनका कहना है कि गोबर से बनी मूर्तियां पूरी तरह इको फ्रेंडली हैं.

Mussoorie
गोबर से बनी मूर्तियां
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Published : Aug 21, 2021, 9:11 AM IST

मसूरी: हिदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर का खास महत्व है और त्योहारों पर गोबर से पूजा की जाती है. इसका महत्व उस समय और बढ़ जाता है, जब कोई पर्व नजदीक हो. मसूरी में गणेश चतुर्थी को खास बनाने के लिए गृहणियां इस बार गोबर की मूर्तियां बना रही हैं. जिनकी कीमत काफी कम रखी गई हैं.

गौर हो कि मसूरी में धात्री फेडरेशन के तत्वाधान में धात्री स्वयं सहायता समूह नंदिनी बांडासारी में ईको फ्रेंडली भगवान गणेश की प्रतिमा बनाई जा रही हैं. ताकि गणेश चतुर्थी के पर्व को लोग ईको फ्रेंडली तरीके से मना सकें. भद्री गाड रेंज की रेंज अधिकारी मेधावी कीर्ति ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार से जोड़ने व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह कदम उठाया गया है.

पढ़ें-गाय के गोबर को बनाया मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज

उन्होंने बताया कि भगवान गणेश की प्रतिमा बनाने के लिए गांव की आठ लड़कियों का समूह नंदिनी बनाया गया है.भगवान गणेश की मूर्ति को बनाने में गाय के गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है. मूर्ति बनाने वाली महिलाओं का कहना है कि यह विकल्प पर्यावरण की रक्षा करने में मदद करेगा. मूर्ति बनाने में पहाड़ी गोबर के साथ ही साथ ही स्थानीय जड़ी-बूटियों का भी उपयोग किया गया है.

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना लक्ष्य: उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं को घर बैठे रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है. उन्होंने आगे कहा कि भगवान गणेश की प्रतिमा के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है, देहराूदन व हरिद्वार पर अधिक फोकस किया जा रहा है. दुकानदारों व बड़े शो रूम संचालकों से बात की जा रही है.

पढ़ें-जेपी नड्डा ने पहले दिन हरिद्वार में 4 बैठकों में लिया हिस्सा, जानें क्या कुछ रहा खास

मेधावी कीर्ति ने कहा कि अब त्योहारों का सीजन आ गया है जिसको देखते हुए अन्य भगवानों प्रतिमांए भी बनाई जाएंगी. प्रतिमांए छह इंच की बनाई जा रही हैं, जिसकी कीमत भी काफी कम रखी गई है.

जानें कैसे तैयार की जा रही मूर्तियां: संस्था के सदस्यों का कहना है कि मूर्ति बनाने के लिए गोबर को गूंथा जाता है फिर सुखाया जाता है. उसके बाद उसे पीसा जाता है और स्थानीय जड़ी-बूटियों को मिलाकर एक बार फिर गूंथा जाता है. गोबर के सूखने के बाद सांचे में डाला जाता है और सूखने के बाद उससे प्रतिमा तैयार की जाती हैं. रंगने का कार्य अंतिम चरण में किया जाता है.

मसूरी: हिदू रीति-रिवाज में गाय के गोबर का खास महत्व है और त्योहारों पर गोबर से पूजा की जाती है. इसका महत्व उस समय और बढ़ जाता है, जब कोई पर्व नजदीक हो. मसूरी में गणेश चतुर्थी को खास बनाने के लिए गृहणियां इस बार गोबर की मूर्तियां बना रही हैं. जिनकी कीमत काफी कम रखी गई हैं.

गौर हो कि मसूरी में धात्री फेडरेशन के तत्वाधान में धात्री स्वयं सहायता समूह नंदिनी बांडासारी में ईको फ्रेंडली भगवान गणेश की प्रतिमा बनाई जा रही हैं. ताकि गणेश चतुर्थी के पर्व को लोग ईको फ्रेंडली तरीके से मना सकें. भद्री गाड रेंज की रेंज अधिकारी मेधावी कीर्ति ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार से जोड़ने व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह कदम उठाया गया है.

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उन्होंने बताया कि भगवान गणेश की प्रतिमा बनाने के लिए गांव की आठ लड़कियों का समूह नंदिनी बनाया गया है.भगवान गणेश की मूर्ति को बनाने में गाय के गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है. मूर्ति बनाने वाली महिलाओं का कहना है कि यह विकल्प पर्यावरण की रक्षा करने में मदद करेगा. मूर्ति बनाने में पहाड़ी गोबर के साथ ही साथ ही स्थानीय जड़ी-बूटियों का भी उपयोग किया गया है.

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना लक्ष्य: उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं को घर बैठे रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है. उन्होंने आगे कहा कि भगवान गणेश की प्रतिमा के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है, देहराूदन व हरिद्वार पर अधिक फोकस किया जा रहा है. दुकानदारों व बड़े शो रूम संचालकों से बात की जा रही है.

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मेधावी कीर्ति ने कहा कि अब त्योहारों का सीजन आ गया है जिसको देखते हुए अन्य भगवानों प्रतिमांए भी बनाई जाएंगी. प्रतिमांए छह इंच की बनाई जा रही हैं, जिसकी कीमत भी काफी कम रखी गई है.

जानें कैसे तैयार की जा रही मूर्तियां: संस्था के सदस्यों का कहना है कि मूर्ति बनाने के लिए गोबर को गूंथा जाता है फिर सुखाया जाता है. उसके बाद उसे पीसा जाता है और स्थानीय जड़ी-बूटियों को मिलाकर एक बार फिर गूंथा जाता है. गोबर के सूखने के बाद सांचे में डाला जाता है और सूखने के बाद उससे प्रतिमा तैयार की जाती हैं. रंगने का कार्य अंतिम चरण में किया जाता है.

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