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देहरादून में आज से अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का आगाज, पहाड़ी एप्पल को मिलेगी नई पहचान

उत्तराखंड के सेबों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने की उम्मीद जग गई है. देहरादून में आज से अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. जिससे उत्तराखंड की सेब को पहचान मिल सके. जानिए उत्तराखंड में सेब की खेती की स्थिति क्या है और क्यों नहीं मिल पा रही सेब को पहचान.

utttarakhand apple
उत्तराखंड सेब
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Published : Sep 23, 2021, 4:16 PM IST

Updated : Sep 24, 2021, 10:06 AM IST

देहरादूनः उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में 25,318 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है. लेकिन दुर्भाग्य आज तक यहां के सेबों को अपनी पहचान नहीं मिल पाई है. हालांकि, सरकार अब अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में जुटी है. इसी को देखते हुए आज से उद्यान विभाग राज्य का पहला अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव आयोजित करने जा रहा है. इसका आयोजन 24, 25 और 26 सितंबर को होगा. जिसके माध्यम से सेब को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जाएगी.

भारत में सेब की पैदावार के मामले में उत्तराखंड का तीसरा नंबर है. इससे पहले जम्मू कश्मीर और हिमाचल आते हैं. उत्तराखंड के 11 जिलों के पर्वतीय इलाकों में 25,318 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है. जिनमें उत्तरकाशी जिले में सबसे ज्यादा सेब की खेती की जाती है. यहां 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हर साल होता है, लेकिन सरकारों के ढीले रवैये और उचित बाजार उपलब्ध न होने के कारण आज भी उत्तराखंड का सेब पहचान का मोहताज है.

अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का होगा आयोजन.

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उत्तराखंड का सेब हिमाचल की ब्रांडिंगः आज भी उत्तराखंड के सेबों को हिमाचल की पेटियों में भरकर बेचा जाता है. उत्तरकाशी और दून के पर्वतीय क्षेत्र में होने वाले सेब हिमाचल की ब्रांडिंग के जरिये बिकते हैं. यानी सेब तो उत्तराखंड का होता है, लेकिन उस पर टैग हिमाचल का लगता है. जिस कारण उत्तराखंड के सेब को पहचान नहीं मिल पाती है.

हालांकि, बीते कुछ सालों में सरकार ने 'उत्तराखंड एप्पल' नाम से सेब के कार्टन यानी गत्ते उपलब्ध कराए हैं, लेकिन यह भी नाकाफी है. अभी भी आराकोट बंगाण में काश्तकार हिमाचल प्रदेश के कार्टन यानी पेटियों का इस्तेमाल करते हैं.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड के सेब को मिलने लगी अपनी पहचान, उद्यान विभाग मुहैया करा रहा कार्टन

उत्तरकाशी जिला सेब का सिरमौरः उत्तराखंड में सेब का सर्वाधिक उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है. खासकर गंगा और यमुना घाटी तो सेब उत्पादन के लिए खास पहचान रखती हैं. देश और प्रदेश में सेब की बढ़ती मांग के चलते यहां काश्तकारों का रुझान सेब उत्पादन में लगातार बढ़ रहा है. यहां के काश्तकारों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से सीख लेते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाया है. नतीजन हर साल सेब का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और काश्तकारों की संख्या भी. सेब की मांग बढ़ने से काश्तकारों को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है.

ये भी पढ़ेंः पारंपरिक खेती छोड़ पूनम ने लगाए सेब के बाग, सफलता देख CM धामी ने दी बधाई

इन वैरायटी की सेबों का होता है उत्पादनः उत्तरकाशी के आराकोट और हर्षिल क्षेत्रों में रॉयल डेलिसस, रेड डेलिसस और गोल्डन डिलिसस प्रजाति के सेब होते हैं. इस प्रजाति के सेब के पेड़ काफी बड़े होते हैं और शीतकाल के दौरान इनके लिए अच्छी बर्फबारी भी जरूरी होती है. काश्तकार अब स्पर प्रजाति के रेड चीफ, सुपर चीफ और गोल गाला के पौधे लगा रहे हैं. वहीं, कम बर्फबारी होने पर भी स्पर प्रजाति के पेड़ों में उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है. इन पेड़ों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं होती और फलों की क्वालिटी और मात्रा भी अच्छी होती है. अब रूट स्टॉक विधि से सेब लगाई जा रही है. जो कम समय में फल दे देते हैं.

ये भी पढ़ेंः हर्षिल के सेब को मिलेगी पहचान, 'माननीयों' ने की पहल

सेब मंडी की घोषणा सफेद हाथीः उत्तरकाशी में सेब मंडी तक नहीं है. उत्तरकाशी के आराकोट में सेब मंडी खुलने की घोषणा तो हुई, लेकिन यह कवायद भी धरातल पर नहीं उतरी है. नतीजा, हिमाचल प्रदेश के आढ़ती ही उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में दूसरे राज्यों की मंडियों को भेजते हैं. कई बार सड़कें बंद होने पर सेब समय पर मंडी नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में कई बार सेब वाहनों में पड़े-पड़े ही खराब होने लगते हैं. जिससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. उधर, हर्षिल के झाला में कोल्ड स्टोरेज भी बंद पड़ा हुआ है.

ये भी पढ़ेंः हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों ने किया अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का विरोध, जानें वजह

देर से ही सही सरकार ने उठाए कदमः जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के सेबों को सबसे बेहतर सेब के रूप में पहचान मिली है. देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही इसकी बेहद ज्यादा डिमांड है. खास बात ये है कि उत्तराखंड के आराकोट बंगाण, हर्षिल समेत दूसरे क्षेत्रों में भी बेहतर क्वालिटी के सेब का उत्पादन किया जाता है, लेकिन यहां के सेबों को इस रूप में पहचान नहीं मिल पाई है.

इसी बात को समझते हुए उत्तराखंड उद्यान विभाग ने भी प्रदेश के सेब को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू किए हैं, इस दिशा में देहरादून में होने जा रहा अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव बेहद खास है, तीन दिवसीय इस सेब महोत्सव में सेबों की कई किस्में लोगों को देखने को मिलेगी.

जिलेवार सेब का उत्पादन

जिला क्षेत्रफल (हेक्टेयर) उत्पादन (मीट्रिक टन)
उत्तरकाशी9372.59 20529
अल्मोड़ा1577 14137
नैनीताल12429066
देहरादून47997342
चमोली1064 3354
पौड़ी11233057
पिथौरागढ़ 1600 3012
टिहरी 3820.34 1910

अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का होगा आयोजनः देहरादून में अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव 24, 25 और 26 सितंबर को आयोजित होना है. जिसके लिए उद्यान विभाग अपनी पूरी तैयारियां कर रहा है. उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड का सेब जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के सेब से किसी भी मामले में कम नहीं है, ऐसे में पूर्व में किए गए प्रयासों के साथ अब पहली बार अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव मनाकर प्रदेश के इस सेब को ब्रांड बनाने की कोशिश की जा रही है.

देहरादूनः उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में 25,318 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है. लेकिन दुर्भाग्य आज तक यहां के सेबों को अपनी पहचान नहीं मिल पाई है. हालांकि, सरकार अब अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में जुटी है. इसी को देखते हुए आज से उद्यान विभाग राज्य का पहला अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव आयोजित करने जा रहा है. इसका आयोजन 24, 25 और 26 सितंबर को होगा. जिसके माध्यम से सेब को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जाएगी.

भारत में सेब की पैदावार के मामले में उत्तराखंड का तीसरा नंबर है. इससे पहले जम्मू कश्मीर और हिमाचल आते हैं. उत्तराखंड के 11 जिलों के पर्वतीय इलाकों में 25,318 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता है. जिनमें उत्तरकाशी जिले में सबसे ज्यादा सेब की खेती की जाती है. यहां 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हर साल होता है, लेकिन सरकारों के ढीले रवैये और उचित बाजार उपलब्ध न होने के कारण आज भी उत्तराखंड का सेब पहचान का मोहताज है.

अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का होगा आयोजन.

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उत्तराखंड का सेब हिमाचल की ब्रांडिंगः आज भी उत्तराखंड के सेबों को हिमाचल की पेटियों में भरकर बेचा जाता है. उत्तरकाशी और दून के पर्वतीय क्षेत्र में होने वाले सेब हिमाचल की ब्रांडिंग के जरिये बिकते हैं. यानी सेब तो उत्तराखंड का होता है, लेकिन उस पर टैग हिमाचल का लगता है. जिस कारण उत्तराखंड के सेब को पहचान नहीं मिल पाती है.

हालांकि, बीते कुछ सालों में सरकार ने 'उत्तराखंड एप्पल' नाम से सेब के कार्टन यानी गत्ते उपलब्ध कराए हैं, लेकिन यह भी नाकाफी है. अभी भी आराकोट बंगाण में काश्तकार हिमाचल प्रदेश के कार्टन यानी पेटियों का इस्तेमाल करते हैं.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड के सेब को मिलने लगी अपनी पहचान, उद्यान विभाग मुहैया करा रहा कार्टन

उत्तरकाशी जिला सेब का सिरमौरः उत्तराखंड में सेब का सर्वाधिक उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है. खासकर गंगा और यमुना घाटी तो सेब उत्पादन के लिए खास पहचान रखती हैं. देश और प्रदेश में सेब की बढ़ती मांग के चलते यहां काश्तकारों का रुझान सेब उत्पादन में लगातार बढ़ रहा है. यहां के काश्तकारों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से सीख लेते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाया है. नतीजन हर साल सेब का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और काश्तकारों की संख्या भी. सेब की मांग बढ़ने से काश्तकारों को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है.

ये भी पढ़ेंः पारंपरिक खेती छोड़ पूनम ने लगाए सेब के बाग, सफलता देख CM धामी ने दी बधाई

इन वैरायटी की सेबों का होता है उत्पादनः उत्तरकाशी के आराकोट और हर्षिल क्षेत्रों में रॉयल डेलिसस, रेड डेलिसस और गोल्डन डिलिसस प्रजाति के सेब होते हैं. इस प्रजाति के सेब के पेड़ काफी बड़े होते हैं और शीतकाल के दौरान इनके लिए अच्छी बर्फबारी भी जरूरी होती है. काश्तकार अब स्पर प्रजाति के रेड चीफ, सुपर चीफ और गोल गाला के पौधे लगा रहे हैं. वहीं, कम बर्फबारी होने पर भी स्पर प्रजाति के पेड़ों में उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है. इन पेड़ों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं होती और फलों की क्वालिटी और मात्रा भी अच्छी होती है. अब रूट स्टॉक विधि से सेब लगाई जा रही है. जो कम समय में फल दे देते हैं.

ये भी पढ़ेंः हर्षिल के सेब को मिलेगी पहचान, 'माननीयों' ने की पहल

सेब मंडी की घोषणा सफेद हाथीः उत्तरकाशी में सेब मंडी तक नहीं है. उत्तरकाशी के आराकोट में सेब मंडी खुलने की घोषणा तो हुई, लेकिन यह कवायद भी धरातल पर नहीं उतरी है. नतीजा, हिमाचल प्रदेश के आढ़ती ही उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में दूसरे राज्यों की मंडियों को भेजते हैं. कई बार सड़कें बंद होने पर सेब समय पर मंडी नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में कई बार सेब वाहनों में पड़े-पड़े ही खराब होने लगते हैं. जिससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. उधर, हर्षिल के झाला में कोल्ड स्टोरेज भी बंद पड़ा हुआ है.

ये भी पढ़ेंः हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों ने किया अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का विरोध, जानें वजह

देर से ही सही सरकार ने उठाए कदमः जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के सेबों को सबसे बेहतर सेब के रूप में पहचान मिली है. देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही इसकी बेहद ज्यादा डिमांड है. खास बात ये है कि उत्तराखंड के आराकोट बंगाण, हर्षिल समेत दूसरे क्षेत्रों में भी बेहतर क्वालिटी के सेब का उत्पादन किया जाता है, लेकिन यहां के सेबों को इस रूप में पहचान नहीं मिल पाई है.

इसी बात को समझते हुए उत्तराखंड उद्यान विभाग ने भी प्रदेश के सेब को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयास शुरू किए हैं, इस दिशा में देहरादून में होने जा रहा अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव बेहद खास है, तीन दिवसीय इस सेब महोत्सव में सेबों की कई किस्में लोगों को देखने को मिलेगी.

जिलेवार सेब का उत्पादन

जिला क्षेत्रफल (हेक्टेयर) उत्पादन (मीट्रिक टन)
उत्तरकाशी9372.59 20529
अल्मोड़ा1577 14137
नैनीताल12429066
देहरादून47997342
चमोली1064 3354
पौड़ी11233057
पिथौरागढ़ 1600 3012
टिहरी 3820.34 1910

अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का होगा आयोजनः देहरादून में अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव 24, 25 और 26 सितंबर को आयोजित होना है. जिसके लिए उद्यान विभाग अपनी पूरी तैयारियां कर रहा है. उद्यान मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि उत्तराखंड का सेब जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के सेब से किसी भी मामले में कम नहीं है, ऐसे में पूर्व में किए गए प्रयासों के साथ अब पहली बार अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव मनाकर प्रदेश के इस सेब को ब्रांड बनाने की कोशिश की जा रही है.

Last Updated : Sep 24, 2021, 10:06 AM IST
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