ऋषिकेश: भगवान शिव का प्राचीन नीलकंठ महादेव मंदिर पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है. यूं तो बाबा के जलाभिषेक के लिए पूरे साल भक्तों की भीड़ रहती है. लेकिन सावन का महीना महादेव के दिवानों के लिए खास होता है. जिस महीने लाखों की तादाद में श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लेकर बाबा नीलकंठ को चढ़ाते हैं. 17 जुलाई से ये कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी.
नीलकंठ मंदिर की कथा
नीलकंठ मंदिर के पुजारी शिवानन्द गिरी बताते हैं कि जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो मंथन के दौरान कालकूट नामम घातक विष निकला. जिसके बाद देवताओं और दानवों के निवेदन पर भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में उतार लिया. लेकिन विष पीने के बाद शिव भी विचलित होने लगे और वे कंठ में विष लिए भ्रमण करते हुए मणिकूट पर्वत पहुंचे.
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कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने देखा कि दो नदियां मधुमती और पंकजा बह रही है. जिसके बाद भगवान शिव ने वहीं पर एक बड़ (बरगद) के पेड़ के नीचे बैठकर 60 हजार वर्षों तक तप किया. जिसके बाद उनके कंठ को शांति मिली. भोलेनाथ के भीतर से विष समाप्त होने के बाद माता पार्वती ने उनके पास पहुंचकर कहा कि जिस जगह पर आने से आपको शांति मिली है, इस जगह आप अपनी कुछ छाप छोड़िये. जिसके बाद भगवान शिव ने अपने हाथों से यहां पर कंठ रूपी शिवलिंग की स्थापना की. जिसके बाद से यह स्थान नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया है.
ऐसे पहुंचे बाबा नीलकंठ के द्वार
नीलकंठ मंदिर ऋषिकेश शहर के निकट पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में आता है. ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है. वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं. बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है. सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है. यह रास्ता 23 किमी लंबा है. वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी का है. जानकारी के लिए बता दें कि नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लिए लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है. साथ ही निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है.
17 जुलाई से शुरू होगी कांवड़ यात्रा
सावन महीने के दौरान नीलकंठ मंदिर में कांवड़ियां रूप में लाखों शिवभक्त बाबा का जलाभिषेक करने आते हैं. जिसको लेकर मंदिर द्वारा आने-जाने वाले रास्तों में बैरिकेडिंग, मंदिर परिसर में साफ सफाई की व्यवस्था सहित सारी तैयारियां लगभग पूरी कर दी गई हैं.