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शिव का अद्भुत धाम है नीलकंठ, बड़ी रोचक और रहस्यमयी है इस मंदिर के पीछे की कहानी - भगवान शिव उत्तराखंड

नीलकंठ महादेव मंदिर उत्तर भारत के मुख्य शिवमंदिरों में से एक है. नीलकंठ मंदिर के पास ही एक पानी का झरना है, जहां श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं. इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी है. जानिए.

शिव का अद्भुत धाम नीलकंठ
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Published : Jul 7, 2019, 2:29 PM IST

ऋषिकेश: भगवान शिव का प्राचीन नीलकंठ महादेव मंदिर पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है. यूं तो बाबा के जलाभिषेक के लिए पूरे साल भक्तों की भीड़ रहती है. लेकिन सावन का महीना महादेव के दिवानों के लिए खास होता है. जिस महीने लाखों की तादाद में श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लेकर बाबा नीलकंठ को चढ़ाते हैं. 17 जुलाई से ये कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी.

शिव का अद्भुत धाम नीलकंठ

नीलकंठ मंदिर की कथा
नीलकंठ मंदिर के पुजारी शिवानन्द गिरी बताते हैं कि जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो मंथन के दौरान कालकूट नामम घातक विष निकला. जिसके बाद देवताओं और दानवों के निवेदन पर भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में उतार लिया. लेकिन विष पीने के बाद शिव भी विचलित होने लगे और वे कंठ में विष लिए भ्रमण करते हुए मणिकूट पर्वत पहुंचे.

पढ़ें- बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़, बापू से जुड़ी हैं कई यादें

कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने देखा कि दो नदियां मधुमती और पंकजा बह रही है. जिसके बाद भगवान शिव ने वहीं पर एक बड़ (बरगद) के पेड़ के नीचे बैठकर 60 हजार वर्षों तक तप किया. जिसके बाद उनके कंठ को शांति मिली. भोलेनाथ के भीतर से विष समाप्त होने के बाद माता पार्वती ने उनके पास पहुंचकर कहा कि जिस जगह पर आने से आपको शांति मिली है, इस जगह आप अपनी कुछ छाप छोड़िये. जिसके बाद भगवान शिव ने अपने हाथों से यहां पर कंठ रूपी शिवलिंग की स्थापना की. जिसके बाद से यह स्थान नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया है.

ऐसे पहुंचे बाबा नीलकंठ के द्वार
नीलकंठ मंदिर ऋषिकेश शहर के निकट पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में आता है. ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है. वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं. बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है. सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है. यह रास्ता 23 किमी लंबा है. वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी का है. जानकारी के लिए बता दें कि नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लिए लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है. साथ ही निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है.

17 जुलाई से शुरू होगी कांवड़ यात्रा
सावन महीने के दौरान नीलकंठ मंदिर में कांवड़ियां रूप में लाखों शिवभक्त बाबा का जलाभिषेक करने आते हैं. जिसको लेकर मंदिर द्वारा आने-जाने वाले रास्तों में बैरिकेडिंग, मंदिर परिसर में साफ सफाई की व्यवस्था सहित सारी तैयारियां लगभग पूरी कर दी गई हैं.

ऋषिकेश: भगवान शिव का प्राचीन नीलकंठ महादेव मंदिर पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है. यूं तो बाबा के जलाभिषेक के लिए पूरे साल भक्तों की भीड़ रहती है. लेकिन सावन का महीना महादेव के दिवानों के लिए खास होता है. जिस महीने लाखों की तादाद में श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लेकर बाबा नीलकंठ को चढ़ाते हैं. 17 जुलाई से ये कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी.

शिव का अद्भुत धाम नीलकंठ

नीलकंठ मंदिर की कथा
नीलकंठ मंदिर के पुजारी शिवानन्द गिरी बताते हैं कि जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो मंथन के दौरान कालकूट नामम घातक विष निकला. जिसके बाद देवताओं और दानवों के निवेदन पर भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में उतार लिया. लेकिन विष पीने के बाद शिव भी विचलित होने लगे और वे कंठ में विष लिए भ्रमण करते हुए मणिकूट पर्वत पहुंचे.

पढ़ें- बीमारी की चपेट में महात्मा गांधी का लगाया पेड़, बापू से जुड़ी हैं कई यादें

कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने देखा कि दो नदियां मधुमती और पंकजा बह रही है. जिसके बाद भगवान शिव ने वहीं पर एक बड़ (बरगद) के पेड़ के नीचे बैठकर 60 हजार वर्षों तक तप किया. जिसके बाद उनके कंठ को शांति मिली. भोलेनाथ के भीतर से विष समाप्त होने के बाद माता पार्वती ने उनके पास पहुंचकर कहा कि जिस जगह पर आने से आपको शांति मिली है, इस जगह आप अपनी कुछ छाप छोड़िये. जिसके बाद भगवान शिव ने अपने हाथों से यहां पर कंठ रूपी शिवलिंग की स्थापना की. जिसके बाद से यह स्थान नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया है.

ऐसे पहुंचे बाबा नीलकंठ के द्वार
नीलकंठ मंदिर ऋषिकेश शहर के निकट पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में आता है. ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है. वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं. बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है. सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है. यह रास्ता 23 किमी लंबा है. वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी का है. जानकारी के लिए बता दें कि नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लिए लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है. साथ ही निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है.

17 जुलाई से शुरू होगी कांवड़ यात्रा
सावन महीने के दौरान नीलकंठ मंदिर में कांवड़ियां रूप में लाखों शिवभक्त बाबा का जलाभिषेक करने आते हैं. जिसको लेकर मंदिर द्वारा आने-जाने वाले रास्तों में बैरिकेडिंग, मंदिर परिसर में साफ सफाई की व्यवस्था सहित सारी तैयारियां लगभग पूरी कर दी गई हैं.

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ऋषिकेश--मणिकूट पर्वत स्थित भगवान शिव का प्राचीन नीलकण्ठ महादेव मंदिर पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है,भगवान शिव समुद्र मंथन में निकले विष को अपने कंठ में धारण करने के बाद यहीं पर आकर 60 हजार वर्षों तक तप किया, बताया जाता है की भगवन शिव ने खुद ही यहां पर एक शिवलिंग की स्थापना की जिसके बाद यह मंदिर नीलकण्ठ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ,सावन के महीने में 15 दिनों तक आयोजित होने वाले कांवड़ मेले में 50 लाख तक श्रद्धालु पंहुचते हैं।


Body:वी/ओ--नीलकंठ मंदिर के पुजारी शिवानन्द गिरी ने बताया की जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया और मंथन के दौरान कालकूट नाम का घातक विष निकला जिसके बाद देवताओं और दानवों के आग्रह पर भगवान् शिव में उस विष को अपने कंठ में उतार लिया लेकिन विष पीने के बाद शिव भी विचलित होने लगे और वे कंठ में विष को लिए भ्रमण करते हुए मणिकूट पर्वत पर पंहुचे जहाँ पर भगवान् शिव ने देखा की दो नदियाँ मधुमती और पंकजा बह रही है जिसके बाद भगवान् शिव वहीँ पर एक बड (बरगद) के वृक्ष के नीचे बैठकर 60 हजार वर्षों तक तप किया जिसके बाद उनके कंठ से वह विष समाप्त हुआ,भगवान् शिव के भीतर से विष समाप्त होने के बाद माता पार्वती  उनके पास पंहुची और भगवान् शिव से कहा की जिस जगह पर आने से आपको शांति मिली है और आपके भीतर से विष समाप्त हुआ है उस जगह पर अपनी छाप छोडिये जिसके बाद भगवान् शिव ने अपने हाथों से यहाँ पर कंठ रुपी शिवलिंग की स्थापना की जिसके बाद से यह स्थान नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वी/ओ--नीलकंठ महादेव उत्तर भारत के मुख्य शिवमंदिरों में से एक है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने जब विष ग्रहण किया था,भगवान शिव ने जब विष ग्रहण किया उनका गला नीला पड़ गया यही कारण है भगवान शिव को नीलकंठ नाम से जाना जाता है।नीलकंठ मंदिर के पास ही एक पानी का झरना है जहां श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।सावन के महीन ने भगवान् शिव के इस नीलकंठ मंदिर में लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करने पंहुचते हैं,नीलकंठ मंदिर में सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी भी भगवान शिव के इस मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए पंहुचते हैं।

वी/ओ--यह मंदिर वैसे तो ऋषिकेश शहर के निकट है, लेकिन पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के अंतर्गत आता है। ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है। वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं। बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है। सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है। यह रास्ता 23 किमी का है। वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी है। जबकि ऋषिकेश शहर से पैदल दूरी 15 किमी है। नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है। निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है।



Conclusion:वी/ओ--नीलकंठ मंदिर में सावन के महीने में आयोजित होने वाले कांवड़ के मेले में कई लाख शिवभक्त भगवान शिव को जलाभिषेक के लिए पंहुचते हैं,मंदिर की ओर से मेले को लेकर अपनी तैयारियां शुरू कर दी गई है मंदिर के आने जाने वाले रास्तों में बैरिकेटिंग,मंदिर परिसर में साफ सफाई की व्यवस्था सहित कई तरह की तैयारियां शुरू कर दी गई है,मंदिर के मुख्य पुजारी शिवानंद गिरी बताते हैं कि कांवड़ में भगवान का जलाभिषेक के लिए हरियाणा से सबके अधिक श्रद्धालु पंहुचते हैं।

वन टू वन--शिवानन्द गिरी(मुख्य पुजारी,नीलकंठ मंदिर)
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