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रामनगर में है 'रामलीला' की धूम, 47 साल पुराना है इतिहास

उत्तराखंड में हर त्यौहार बड़ी शिद्दत से मनाया जाता है. होली-दिवाली हों या फिर अन्य स्थानीय त्यौहार उत्तराखंड में इन्हें मनाने की अनूठी परंपरा रही है. इन दिनों रामलीला का मंचन हो रहा है. कुमाऊं की रामलीला प्रसिद्ध है. इसमें कुमाऊं की विशिष्ट सांस्कृतिक झलक दिखाई देती है. गीत नाट्य शैली में होने वाली कुमाऊं की रामलीला समूचे देश में अनूठी मानी जाती है. इन दिनों रामनगर में रामलीला चल रही है. 47 साल से यहां रामलीला का मंचन हो रहा है. कोविडकाल में पिछले साल रामलीला नहीं हो पाई थी. इस बार शुरू हुई रामलीला को लेकर कलाकारों में अपार जोश है.

ramnagar
रामनगर की रामलीला
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Published : Oct 12, 2021, 2:17 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 6:31 PM IST

रामनगर: प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव के तत्वाधान में कुमाऊंनी शैली पर आधारित रामलीला का मंचन हो रहा है. मंचन के सातवें दिन पंचवटी से शूर्पणखा नासिका छेदन हुआ. इस मंचन को देखने के लिए दर्शकों का अपार समूह उमड़ पड़ा. पिछले वर्ष कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण रामलीला का मंचन नहीं हो पाया था.

रामनगर में चार अक्टूबर से रामलीला का मंचन चल रहा है, मल्टीप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे जमाने में भी रामलीला देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ रहा है. रामनगर व आस पास के क्षेत्रों के लोग रामनगर प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव पहुंच रहे हैं.

रामलीला मंचन के 7वें दिन पंचवटी से शूर्पणखा नासिका छेदन, खर-दूषण वध, रावण-शूर्पणखा संवाद, रावण-मारीच संवाद, सीता हरण, जटायु मोक्ष, राम विलाप, शबरी आश्रम का कार्यक्रम हुआ. कलाकारों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया.

रामनगर में है 'रामलीला' की धूम.

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25 साल से रामनगर प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव रंगमंच से जुड़े रावण की भूमिका निभा रहे भुवन जोशी कहते हैं कि विगत वर्ष कोरोना के चलते हम अभिनय नहीं कर पाए थे. दोबारा से हम इस रंगमंच पर अभिनय कर रहे हैं. बहुत अच्छा लग रहा है. भुवन जोशी ने कहा कि रामनगर व आसपास के लोग इस रामलीला के मंचन को हृदय की गहराइयों से देखते हैं. वे कहते हैं कि जब हमारे साथ इतने धार्मिक दर्शक जुड़ते हैं, कई समुदायों के लोग जुड़ते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है. अपने करैक्टर को और अच्छा निभाने की प्रेरणा मिलती है.

भुवन जोशी कहते हैं कि रामलीला का मंचन इसलिए भी जरूरी है कि हमें देखकर व सीखकर ही आने वाली पीढ़ी भी इसका मंचन कर सकेगी. वरना आने वाली पीढ़ी भी इसे भूल जाएगी. इसलिए रावण भुवन जोशी ने अनुरोध किया कि नई पीढ़ी के सभी लोग इस परंपरा को सीखें, जिससे हमारी यह परंपरा व संस्कृति यूं ही आगे बढ़ती रहे.

वहीं शूर्पणखा का रोल निभा रहे मानव जोशी कहते है कि मैं पिछले 5 सालों से शूर्पणखा का रोल अदा कर रहा हूँ. मानव जोशी ने कहा कि 2 साल से कोविड की वजह से हम परेशान चल रहे थे. हम प्रोफेशनल आर्टिस्ट हैं और हम लोगों की आजीविका भी यहीं से जुड़ी है. अब सब चीजें सामान्य हो रही हैं, जिससे हम खुश हैं. मानव जोशी ने कहा कि शूर्पणखा के नाक छेदन को देखने के लिए लोगों की ज्यादा ही भीड़ उमड़ती है और हम उससे प्रोत्साहित भी होते हैं.

ये भी पढ़ें: हरिद्वार में जिला कारागार में बैंड बाजों के साथ निकली श्रीराम की बारात, जमकर थिरके कैदी

वहीं पिछले 8 सालों से ही राम-लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे सुमित लोहनी और अमित लोहनी कहते हैं कि हम नई पीढ़ी हैं. नई पीढ़ी अगर कोई कार्य करती है, तो उससे प्रेरित होकर आने वाली पीढ़ियां भी वो काम करती हैं. इससे हमारी संस्कृति और यह रंगमंच का कार्यक्रम यूं ही आगे बढ़ता रहेगा. सुमित कहते हैं कि यह खुशी की बात है कि कोरोना के बाद अब रामलीला का मंचन हो रहा है, जिससे सभी कलाकार उत्साहित हैं और एकजुट होकर इस रामलीला का मंचन कर रहे हैं. सुमित कहते हैं कि 1974 में स्वर्गीय प्रेम बल्लभ बेलवाल जी द्वारा रामलीला का मंचन कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी. तब से यह कार्यक्रम लगातार चल रहा है.

वहीं पिछले 9 वर्षों से लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे अमित लोहनी कहते हैं कि आज का जो मंचन है, वो बहुत ही महत्वपूर्ण है. आज शूर्पणखा नासिका छेदन बहुत अहम दिन है. पूरी रामलीला शूर्पणखा के नाक छेदन के इर्द-गिर्द घूमती है. शूर्पणखा जब रावण से कहती है कि राम-लक्ष्मण द्वारा मेरी नाक काट दी गई, तो ये रामलीला का सार है. इसी दिन से वो राम-लक्ष्मण से बदला लेने के लिए रावण को भड़काती है.

वहीं लगातार 47 सालों से ये कार्यक्रम कर रहे प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव के अध्यक्ष कमल बेलवाल कहते है कि 1974 से लगातार यहां रामलीला का मंचन चल रहा है. तब से निर्बाध गति से ये कार्यक्रम चलता रहा. पिछले वर्ष इसका मंचन कोविड की वजह से नहीं हो पाया था. वहीं इस बार छोटे कलाकारों ने कहा कि रामलीला का मंचन करना है. हम तो हिम्मत नहीं कर पा रहे थे, लेकिन बच्चों का उत्साह देखकर मना नहीं कर पाये. अब सब कुछ आपके सामने है.

ये भी पढ़ें: 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' थीम पर होगा अल्मोड़ा रामलीला का मंचन

गीत-नाट्य शैली में होने वाली कुमाऊं की रामलीला समूचे देश में अपने ढंग की अनूठी रामलीला है. इसके अंतर्गत सभी पात्र गाते हुए अभिनय करने हैं. यहां मंचित होने वाली रामलीलाओं में भी कुमाऊं की विशिष्ट संस्कृति साफ झलकती है. गीत-नाटक शैली वाली यहां की रामलीलाओं में सभी पात्र गाकर ही अभिनय करते हैं. इसीलिए लोग कुमाऊं की रामलीला को इतना पसंद करते हैं.

रामनगर: प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव के तत्वाधान में कुमाऊंनी शैली पर आधारित रामलीला का मंचन हो रहा है. मंचन के सातवें दिन पंचवटी से शूर्पणखा नासिका छेदन हुआ. इस मंचन को देखने के लिए दर्शकों का अपार समूह उमड़ पड़ा. पिछले वर्ष कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण रामलीला का मंचन नहीं हो पाया था.

रामनगर में चार अक्टूबर से रामलीला का मंचन चल रहा है, मल्टीप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे जमाने में भी रामलीला देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ रहा है. रामनगर व आस पास के क्षेत्रों के लोग रामनगर प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव पहुंच रहे हैं.

रामलीला मंचन के 7वें दिन पंचवटी से शूर्पणखा नासिका छेदन, खर-दूषण वध, रावण-शूर्पणखा संवाद, रावण-मारीच संवाद, सीता हरण, जटायु मोक्ष, राम विलाप, शबरी आश्रम का कार्यक्रम हुआ. कलाकारों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया.

रामनगर में है 'रामलीला' की धूम.

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25 साल से रामनगर प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव रंगमंच से जुड़े रावण की भूमिका निभा रहे भुवन जोशी कहते हैं कि विगत वर्ष कोरोना के चलते हम अभिनय नहीं कर पाए थे. दोबारा से हम इस रंगमंच पर अभिनय कर रहे हैं. बहुत अच्छा लग रहा है. भुवन जोशी ने कहा कि रामनगर व आसपास के लोग इस रामलीला के मंचन को हृदय की गहराइयों से देखते हैं. वे कहते हैं कि जब हमारे साथ इतने धार्मिक दर्शक जुड़ते हैं, कई समुदायों के लोग जुड़ते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है. अपने करैक्टर को और अच्छा निभाने की प्रेरणा मिलती है.

भुवन जोशी कहते हैं कि रामलीला का मंचन इसलिए भी जरूरी है कि हमें देखकर व सीखकर ही आने वाली पीढ़ी भी इसका मंचन कर सकेगी. वरना आने वाली पीढ़ी भी इसे भूल जाएगी. इसलिए रावण भुवन जोशी ने अनुरोध किया कि नई पीढ़ी के सभी लोग इस परंपरा को सीखें, जिससे हमारी यह परंपरा व संस्कृति यूं ही आगे बढ़ती रहे.

वहीं शूर्पणखा का रोल निभा रहे मानव जोशी कहते है कि मैं पिछले 5 सालों से शूर्पणखा का रोल अदा कर रहा हूँ. मानव जोशी ने कहा कि 2 साल से कोविड की वजह से हम परेशान चल रहे थे. हम प्रोफेशनल आर्टिस्ट हैं और हम लोगों की आजीविका भी यहीं से जुड़ी है. अब सब चीजें सामान्य हो रही हैं, जिससे हम खुश हैं. मानव जोशी ने कहा कि शूर्पणखा के नाक छेदन को देखने के लिए लोगों की ज्यादा ही भीड़ उमड़ती है और हम उससे प्रोत्साहित भी होते हैं.

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वहीं पिछले 8 सालों से ही राम-लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे सुमित लोहनी और अमित लोहनी कहते हैं कि हम नई पीढ़ी हैं. नई पीढ़ी अगर कोई कार्य करती है, तो उससे प्रेरित होकर आने वाली पीढ़ियां भी वो काम करती हैं. इससे हमारी संस्कृति और यह रंगमंच का कार्यक्रम यूं ही आगे बढ़ता रहेगा. सुमित कहते हैं कि यह खुशी की बात है कि कोरोना के बाद अब रामलीला का मंचन हो रहा है, जिससे सभी कलाकार उत्साहित हैं और एकजुट होकर इस रामलीला का मंचन कर रहे हैं. सुमित कहते हैं कि 1974 में स्वर्गीय प्रेम बल्लभ बेलवाल जी द्वारा रामलीला का मंचन कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी. तब से यह कार्यक्रम लगातार चल रहा है.

वहीं पिछले 9 वर्षों से लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे अमित लोहनी कहते हैं कि आज का जो मंचन है, वो बहुत ही महत्वपूर्ण है. आज शूर्पणखा नासिका छेदन बहुत अहम दिन है. पूरी रामलीला शूर्पणखा के नाक छेदन के इर्द-गिर्द घूमती है. शूर्पणखा जब रावण से कहती है कि राम-लक्ष्मण द्वारा मेरी नाक काट दी गई, तो ये रामलीला का सार है. इसी दिन से वो राम-लक्ष्मण से बदला लेने के लिए रावण को भड़काती है.

वहीं लगातार 47 सालों से ये कार्यक्रम कर रहे प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति पैठपड़ाव के अध्यक्ष कमल बेलवाल कहते है कि 1974 से लगातार यहां रामलीला का मंचन चल रहा है. तब से निर्बाध गति से ये कार्यक्रम चलता रहा. पिछले वर्ष इसका मंचन कोविड की वजह से नहीं हो पाया था. वहीं इस बार छोटे कलाकारों ने कहा कि रामलीला का मंचन करना है. हम तो हिम्मत नहीं कर पा रहे थे, लेकिन बच्चों का उत्साह देखकर मना नहीं कर पाये. अब सब कुछ आपके सामने है.

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गीत-नाट्य शैली में होने वाली कुमाऊं की रामलीला समूचे देश में अपने ढंग की अनूठी रामलीला है. इसके अंतर्गत सभी पात्र गाते हुए अभिनय करने हैं. यहां मंचित होने वाली रामलीलाओं में भी कुमाऊं की विशिष्ट संस्कृति साफ झलकती है. गीत-नाटक शैली वाली यहां की रामलीलाओं में सभी पात्र गाकर ही अभिनय करते हैं. इसीलिए लोग कुमाऊं की रामलीला को इतना पसंद करते हैं.

Last Updated : Oct 12, 2021, 6:31 PM IST
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