वाराणसी: वैसे तो धर्म और सियासत का बेहद पुराना रिश्ता है. चुनावों के नजदीक आने के साथ ये रिश्ता और भी ज्यादा गहरा होता नजर आ रहा है. जैसा कि 16 फरवरी को संत रविदास जयंती है. ऐसे में एक बार फिर से धर्म वाली सियासत गर्म हो गई है. क्योंकि, वाराणसी के सीर गोवर्धन में स्थापित संत रविदास मंदिर को पंजाब की सत्ता की चाभी व दलितों को साधने का समीकरण माना जाता है.
16 फरवरी को होने वाले 645वें जयंती की तैयारियां जोरों पर है. एक ओर जहां वाराणसी की सीर गोवर्धन स्थित मंदिर में रंगाई-पुताई का काम चल रहा है, तो वहीं दूसरी ओर परिसर के बाहर टेंट व स्टेज बनाया जा रहा है, जहां संगत ठहरेगी और संत रविदास का पाठ किया जाएगा.
मंदिर प्रशासन ने बताया है कि स्पेशल ट्रेनों के जरिए पंजाब व देश-विदेश से रैदासी सीर गोवर्धन पहुंचते हैं और उस समय यह पूरा इलाका मिनी हिंदुस्तान के रूप में नजर आता है. यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु संत रविदास के दरबार में मत्था टेक अपनी हाजिरी लगाते हैं और लंगर का स्वाद चखते हैं.
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सियासत के लिए अहम है ये मंदिर
मंदिर की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फरवरी में पंजाब में चुनाव होने थे, रविदास जयंती के कारण चुनाव की तारीख को बदल कर दिया गया है. इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक एके लारी बताते हैं कि संत रविदास जयंती महज रविदास जयंती नहीं है बल्कि सियासी दलों के लिए पंजाब व पश्चिम के वोट बैंक को साधने का एक बड़ा जरिया भी है. इसलिए सभी दल के लोग यहां पर अपनी हाजिरी लगाने के साथ-साथ दलित वोट बैंक को भी साधते हैं जिससे सत्ता की चाबी उनके हाथ लग जाए.
राजनेताओं का लगता है जमावड़ा
संत रविदास की जयंती के मौके पर वाराणसी के रविदास मंदिर में बड़े-बड़े राजनीतिक पार्टी के दिग्गजों का जमावड़ा लगता है, जिनका सीधा कनेक्शन दलित वोट बैंक से होता है. इस मंदिर पर सीएम योगी आदित्यनाथ, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, प्रियंका गांधी, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मायावती भी मत्था टेक चुकी हैं.
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