प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फ्रॉस्ट इंटरनेशनल लिमिटेड कानपुर के प्रबंध निदेशक उदय जे देसाई को जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि "जेल मे लंबे समय से रहने और ट्रायल शीघ्र पूरा न होने के आधार पर षडयंत्र के जरिए करोड़ों रुपये का बैंक फ्राड करने के आरोपी को जमानत पर नहीं रिहा किया जा सकता. जेल मे जरूरी सुविधाए मिल रही है. याची पर 4041 करोड़ रुपये बैक का नुकसान करने के षडयंत्र का आरोप है. रोटोमैक कंपनी के साथ मिलकर कंपनियो का गलत आर्थिक आंकड़ा दिया और आर्थिक अपराध किया है, जिसे जमानत पाने का अधिकार नहीं है"
याची की बेटी कैंसर की मरीज
अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग खन्ना और सीरियस फ्राड इनवेस्टिगेशन आफिस की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश औप संजय कुमार यादव ने बहस की. याची के वरिष्ठ अधिवक्ताओ का कहना था कि "याची 19 मार्च 2020 से जेल में है. विवेचना पूरी हो चुकी है. चार्जशीट दायर हो चुकी है. पूछताछ के लिए हिरासत मे रखने की जरूरत नहीं है. याची की बेटी कैंसर मरीज है, जो अंतिम स्टेज पर है. उसे देखभाल की जरूरत है. मुकद्दमे का ट्रायल जल्दी होने की संभावना भी नहीं है. आरोप दस्तावेजी साक्ष्य पर आधारित है, जिसमें छेडछाड की गुंजाइश नहीं है.
मुख्य आरोपी रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी,सह अभियुक्त सुनील वर्मा और अनूप बढेरा को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी है. उन्होने कंपनी एक्ट की धारा 212(6)की वैधता को चुनौती दी है. ऐसे मे जेल मे रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होने वाला. इसलिए जमानत पर रिहा किया जए. सीबीआई के वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश ने अर्जी की पोषणीयता पर आपत्ति की. उन्होंने कहा कि "कानपुर की जिला अदालत चल रही है. वहां अर्जी न देकर सीधे हाईकोर्ट मे दाखिल की गई है. याची पर फर्जी बुक ऑफ एकाउंट देकर बैंक को कुल 7820 करोड़ रुपये का नुकसान किया है. खाते एनपीए हो गए. आरोपी ने गंभीर आर्थिक अपराध किया है. बैंक से कोर्ट ने अर्जी बलहीन मानते हुए खारिज कर दी है."