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कोरोना के बाद ट्रांसपोर्ट सेक्टर का गिरा मनोबल, समस्याओंं से जूझ रहे कारोबारी - मेरठ कोरोना

देश के लोगों तक जरूरी सामान पहुंचाने वाले ट्रांसपोर्टर परेशान हैं. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने ट्रांसपोर्ट सेक्टर का मनोबल गिरा दिया है. लंबी यात्रा और परिवार से दूरी होने के डर से युवा वर्ग भी ट्रक ड्राइविंग के पेशे से किनारा कर रहे हैं. मेरठ जैसे शहर में मोटर वाहन ड्राइविंग के लिए प्रशिक्षण संस्थान भी नहीं है. केवल अनुभव के आधार पर ही ड्राइवरों के लाइसेंस बनाए जा रहे हैं.

ट्रांसपोर्ट सेक्टर का हुआ बुरा हाल
ट्रांसपोर्ट सेक्टर का हुआ बुरा हाल
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Published : Apr 4, 2021, 6:40 PM IST

मेरठ: खेतीबाड़ी के बाद परिवहन सेक्टर देश में रोजगार का प्रमुख स्रोत माना जाता है. आबादी का बड़ा हिस्सा ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में काम करके न सिर्फ अपनी आजीविका चला रहा है, बल्कि जान जोखिम में डालकर देश के हर व्यक्ति तक हर जरूरत का सामान पहुंचा रहे हैं. वहीं, पिछले साल आए कोरोना वायरस की वजह से खासकर माल ढोने वाले वाहनों से जुड़े यही लोग अब आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं.

कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने ट्रांसपोर्ट सेक्टर का मनोबल गिरा दिया है. कोरोना संक्रमण का डर, डीजल का महंगा होना और कुशल श्रम शक्ति की कमी आदि के कारण ट्रक मालिक भी रुचि कम ले रहे हैं. ऐसे में ट्रांसपोर्ट सेक्टर का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है. नौकरी में जोखिम, लंबी यात्रा और परिवार से दूरी के कारण युवा वर्ग भी इस पेशे से किनारा कर रहे हैं. हैरानी की बात तो यह है कि मेरठ जैसे बड़े शहर में भारी मोटर वाहन ड्राइविंग के लिए प्रशिक्षण संस्थान भी नहीं है. केवल अनुभव के आधार पर ही ड्राइवरों के लाइसेंस बनाए जा रहे हैं.

ट्रांसपोर्टर परेशान.
कोरोना की मार झेल रहा ट्रांसपोर्ट कारोबार

माल परिवहन न सिर्फ देश की रीढ़ कहा जाता है, बल्कि मानव जीवन का अभिन्न अंग भी कहा जाता है. इनके बिना सरकार भी कुछ नहीं कर सकती. पिछले एक साल से भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में लॉरी मालिकों को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है. कोरोना के डर से बहुत से लोगों ने इस क्षेत्र से दूरी बना ली है, जिससे ट्रांसपोर्टरों का भी मनोबल गिर चुका है.

जोखिम भरा सफर करने को मजबूर ट्रक चालक

ETV भारत ने मेरठ के ट्रांसपोर्ट नगर पहुंच कर लॉरी मालिकों और ट्रक चालकों से बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा. ट्रक चालक सुनील कुमार ने बताया कि वे मेरठ से वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर समेत पूर्वांचल तक गाड़ी लेकर जाते हैं. लंबे सफर की वजह से क्लीनर नहीं मिलने के कारण उनको अकेले ही परेशानी उठानी पड़ती है. उसके बाद रास्ते में रोड पर गाड़ी चलाते वक्त बाइक, कार, हल्के वाहनों वाले खुद अपने वाहन आगे अड़ा देते हैं और बाद में गाली-गलौज करके ट्रक चालकों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं, बल्कि उनके पैसे भी छीन लेते हैं. इसके चलते इतना डर हो गया है कि चालक ट्रक लेकर ज्यादातर रात को ही चलते हैं, लेकिन रात में भी सफर करना सेफ नहीं है.

'इससे बेहतर है खेत में फावड़ा चला लें'

कई बार तो ऐसे मामलों में पुलिस को बुलाना पड़ जाता है, लेकिन वहां हल्के वाहन चालकों के कई परिचित आ जाते हैं और ट्रक चालक अकेला फंस जाता है. बेरोजगारी की वजह से जैसे-तैसे काम चला रहे हैं. परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरीवश ड्राइविंग करनी पड़ रही है. सुनील कुमार ने बताया कि वर्तमान में ट्रक ड्राइविंग के पेशे में कोई भी आने को तैयार नहीं है. इससे बेहतर है कि किसी के खेत खलियान में 300 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी कर फावड़ा चला लें, क्योंकि रास्ते में इतनी मुसीबतें हैं कि उनका सामना नहीं हो पा रहा है.

24 घंटे समस्याओं से भरा है यह कारोबार

ट्रांसपोर्टर राकेश विज का कहना है कि ड्राइवरी पेशे में युवा पीढ़ी आने को तैयार नहीं है. हालात ये बन गए हैं कि हमारे बच्चे इस व्यापार से जुड़ने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि यह व्यापार इस समय पूरा सड़क पर आ गया है. जान-माल हो, गाड़ी हो, कुछ भी हो सब सड़क पर है. बावजूद इसके सरकार की तरफ से विभिन्न प्रकार की नीतियां ट्रांसपोर्टर पर लागू कर दी गई हैं. इससे ट्रांसपोर्टर पर बोझ बढ़ता चला जा रहा है. उन्होंने बताया कि ड्राइवर से लेकर अन्य स्टॉफ, सड़क पर निकलने पर पुलिस, आरटीओ से संबंधित इतनी समस्याएं हैं कि माल परिवहन क्षेत्र समस्याओं से भरा हुआ है. 24 घंटे हम समस्याओं वाला व्यापार कर रहे हैं. सरकार ने कोरोना काल में भी न तो कोई टैक्स में छूट दी और न ही किस्तों में कोई राहत दी है. इस कारण यह कारोबार ठप होने के कगार पर पहुंच गया है.

'ट्रांसपोर्टर देश की रीढ़ की हड्डी'

यूपी मोटर ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन जोनल अध्यक्ष पिंकी चनोटिया का कहना है कि ट्रांसपोर्टर अपने देश की रीढ़ की हड्डी की ईंट हैं. हम पैदा होने से लेकर मरने तक का समान ढोते हैं. हमारे बिना सरकार की रेल खड़ी रह जाती है, क्योंकि प्लेटफार्म तक सामान हम पहुंचाते हैं और प्लेटफार्म पर आने वाला सामान भी हम ही उठाते हैं. सरकार के पानी के जहाज भी हमारे बिना खड़े रह जाएंगे, क्योंकि बंदरगाह तक सामान हम ही पहुंचाते और लाते हैं. बंदरगाह पर आने वाले सामान को भी ट्रांसपोर्टर ही उठाकर नियमित स्थान पर पहुंचाते हैं. सरकार की कोई भी फैक्ट्री प्राइवेट हो या सरकारी सब हमारे बगैर नहीं चल सकते हैं. फैक्ट्रियों को कच्चा माल भी हम पहुंचाते हैं और पक्का माल भी हम ही उठाते हैं.

जनशक्ति के अभाव में मंदी से जूझ रहे ट्रांसपोर्टर

कोरोना काल का असर अभी भी कम नहीं हुआ है. आज भी ट्रांसपोर्ट कारोबार में जबरदस्त मंदी आई हुई है. फैक्ट्रियां पूरी तरह चल नहीं पाई हैं. लॉकडाउन होने पर फैक्ट्रियों के जो मजदूर अपने घर चले गए थे, वे लौटकर नहीं आए हैं. जब देश की फैक्ट्रियां चलेंगी तो सामान का आवागमन शुरू होगा और तब हमारा व्यवसाय धीरे-धीरे लाइन पर आएगा. लॉरी मालिकों का कहना है कि इस मंदी के दौर में ट्रकों पर क्लीनर और हेल्पर भी नहीं मिल पा रहे हैं. थोड़ा बहुत काम अकेले ड्राइवरों से चल रहा है, लेकिन वे भी इतना थक जाते हैं कि तीन-चार दिन की छुट्टी के बाद आते हैं.

जानिए कहां-कहां टैक्स भरते हैं ट्रांसपोर्टर

सरकार ट्रांसपोर्टर से इतना टैक्स लेती है कि आप सपने में भी सोच नहीं सकते. जब हम चेसिस खरीदते हैं तो उस पर एक्साइज ड्यूटी, जीएसटी देते हैं. जब बॉडी बनाते हैं तो उस पर एक्साइज ड्यूटी और जीएसटी देते हैं. इसके बाद गाड़ी को पास कराते हैं तो रोड टैक्स एवं परमिट टैक्स देते हैं. सभी टैक्स देने के बाद जब तैयार ट्रक रोड पर उतरता है तो फिर से रोड का टोल टैक्स देते हैं. उसके बाद प्रति लीटर डीजल पर सरकार को 55 रुपये टैक्स दे रहे हैं. चारों तरफ से सरकार ट्रांसपोर्टर को मार रही है, जिससे ट्रांसपोर्ट सेक्टर का इतना बुरा हाल हो चुका है कि किसी भी वक्त यह कारोबार डूब सकता है.

जानिए मेरठ शहर से क्या होता है निर्यात

मेरठ एक ऐसा शहर है जहां से पूरे हिंदुस्तान में सामान जाता है. यहां लगभग 300 ट्रांसपोर्टर कंपनियां हैं. जो छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सामान देश के हर राज्य में भेजते हैं. मेरठ जिले समेत आसपास के जिलों में बड़ी संख्या में चीनी मिलें हैं. जहां से चीनी सप्लाई की जाती है. मेरठ शहर में आलू की भरपूर पैदावार होती और हजारों ट्रक भरकर आलू भेजा जाता है. स्पोर्ट्स का सामान, कैंचियां, बैंड बाजे का सामान देश के कोने-कोने में जाता है.

लाखों परिवारों का हो रहा पालन-पोषण

कोरोना काल के बाद मजदूर काम पर नहीं लौट रहे हैं. इसके चलते ट्रांसपोर्ट सेक्टर फेल होता दिख रहा है. मेरठ जिले में 6 हजार से ज्यादा ट्रक चल रहे हैं. जबकि बड़ी सख्या में बाहरी जनपदों एवं राज्यों से ट्रकों का आना-जाना अलग से लगा रहता है. चालक, परिचालक, क्लीनर के अलावा लोडर समेत मेरठ के लाखों परिवार इस कारोबार के सहारे जिंदगी बसर कर रहे हैं. अगर यही हाल रहा था तो वो दिन दूर नहीं जब न सिर्फ ट्रांसपोर्ट सेक्टर का अस्तित्व मिट सकता है, बल्कि लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे.

मेरठ: खेतीबाड़ी के बाद परिवहन सेक्टर देश में रोजगार का प्रमुख स्रोत माना जाता है. आबादी का बड़ा हिस्सा ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में काम करके न सिर्फ अपनी आजीविका चला रहा है, बल्कि जान जोखिम में डालकर देश के हर व्यक्ति तक हर जरूरत का सामान पहुंचा रहे हैं. वहीं, पिछले साल आए कोरोना वायरस की वजह से खासकर माल ढोने वाले वाहनों से जुड़े यही लोग अब आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं.

कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने ट्रांसपोर्ट सेक्टर का मनोबल गिरा दिया है. कोरोना संक्रमण का डर, डीजल का महंगा होना और कुशल श्रम शक्ति की कमी आदि के कारण ट्रक मालिक भी रुचि कम ले रहे हैं. ऐसे में ट्रांसपोर्ट सेक्टर का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है. नौकरी में जोखिम, लंबी यात्रा और परिवार से दूरी के कारण युवा वर्ग भी इस पेशे से किनारा कर रहे हैं. हैरानी की बात तो यह है कि मेरठ जैसे बड़े शहर में भारी मोटर वाहन ड्राइविंग के लिए प्रशिक्षण संस्थान भी नहीं है. केवल अनुभव के आधार पर ही ड्राइवरों के लाइसेंस बनाए जा रहे हैं.

ट्रांसपोर्टर परेशान.
कोरोना की मार झेल रहा ट्रांसपोर्ट कारोबार

माल परिवहन न सिर्फ देश की रीढ़ कहा जाता है, बल्कि मानव जीवन का अभिन्न अंग भी कहा जाता है. इनके बिना सरकार भी कुछ नहीं कर सकती. पिछले एक साल से भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में लॉरी मालिकों को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है. कोरोना के डर से बहुत से लोगों ने इस क्षेत्र से दूरी बना ली है, जिससे ट्रांसपोर्टरों का भी मनोबल गिर चुका है.

जोखिम भरा सफर करने को मजबूर ट्रक चालक

ETV भारत ने मेरठ के ट्रांसपोर्ट नगर पहुंच कर लॉरी मालिकों और ट्रक चालकों से बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा. ट्रक चालक सुनील कुमार ने बताया कि वे मेरठ से वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर समेत पूर्वांचल तक गाड़ी लेकर जाते हैं. लंबे सफर की वजह से क्लीनर नहीं मिलने के कारण उनको अकेले ही परेशानी उठानी पड़ती है. उसके बाद रास्ते में रोड पर गाड़ी चलाते वक्त बाइक, कार, हल्के वाहनों वाले खुद अपने वाहन आगे अड़ा देते हैं और बाद में गाली-गलौज करके ट्रक चालकों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं, बल्कि उनके पैसे भी छीन लेते हैं. इसके चलते इतना डर हो गया है कि चालक ट्रक लेकर ज्यादातर रात को ही चलते हैं, लेकिन रात में भी सफर करना सेफ नहीं है.

'इससे बेहतर है खेत में फावड़ा चला लें'

कई बार तो ऐसे मामलों में पुलिस को बुलाना पड़ जाता है, लेकिन वहां हल्के वाहन चालकों के कई परिचित आ जाते हैं और ट्रक चालक अकेला फंस जाता है. बेरोजगारी की वजह से जैसे-तैसे काम चला रहे हैं. परिवार का पेट पालने के लिए मजबूरीवश ड्राइविंग करनी पड़ रही है. सुनील कुमार ने बताया कि वर्तमान में ट्रक ड्राइविंग के पेशे में कोई भी आने को तैयार नहीं है. इससे बेहतर है कि किसी के खेत खलियान में 300 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी कर फावड़ा चला लें, क्योंकि रास्ते में इतनी मुसीबतें हैं कि उनका सामना नहीं हो पा रहा है.

24 घंटे समस्याओं से भरा है यह कारोबार

ट्रांसपोर्टर राकेश विज का कहना है कि ड्राइवरी पेशे में युवा पीढ़ी आने को तैयार नहीं है. हालात ये बन गए हैं कि हमारे बच्चे इस व्यापार से जुड़ने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि यह व्यापार इस समय पूरा सड़क पर आ गया है. जान-माल हो, गाड़ी हो, कुछ भी हो सब सड़क पर है. बावजूद इसके सरकार की तरफ से विभिन्न प्रकार की नीतियां ट्रांसपोर्टर पर लागू कर दी गई हैं. इससे ट्रांसपोर्टर पर बोझ बढ़ता चला जा रहा है. उन्होंने बताया कि ड्राइवर से लेकर अन्य स्टॉफ, सड़क पर निकलने पर पुलिस, आरटीओ से संबंधित इतनी समस्याएं हैं कि माल परिवहन क्षेत्र समस्याओं से भरा हुआ है. 24 घंटे हम समस्याओं वाला व्यापार कर रहे हैं. सरकार ने कोरोना काल में भी न तो कोई टैक्स में छूट दी और न ही किस्तों में कोई राहत दी है. इस कारण यह कारोबार ठप होने के कगार पर पहुंच गया है.

'ट्रांसपोर्टर देश की रीढ़ की हड्डी'

यूपी मोटर ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन जोनल अध्यक्ष पिंकी चनोटिया का कहना है कि ट्रांसपोर्टर अपने देश की रीढ़ की हड्डी की ईंट हैं. हम पैदा होने से लेकर मरने तक का समान ढोते हैं. हमारे बिना सरकार की रेल खड़ी रह जाती है, क्योंकि प्लेटफार्म तक सामान हम पहुंचाते हैं और प्लेटफार्म पर आने वाला सामान भी हम ही उठाते हैं. सरकार के पानी के जहाज भी हमारे बिना खड़े रह जाएंगे, क्योंकि बंदरगाह तक सामान हम ही पहुंचाते और लाते हैं. बंदरगाह पर आने वाले सामान को भी ट्रांसपोर्टर ही उठाकर नियमित स्थान पर पहुंचाते हैं. सरकार की कोई भी फैक्ट्री प्राइवेट हो या सरकारी सब हमारे बगैर नहीं चल सकते हैं. फैक्ट्रियों को कच्चा माल भी हम पहुंचाते हैं और पक्का माल भी हम ही उठाते हैं.

जनशक्ति के अभाव में मंदी से जूझ रहे ट्रांसपोर्टर

कोरोना काल का असर अभी भी कम नहीं हुआ है. आज भी ट्रांसपोर्ट कारोबार में जबरदस्त मंदी आई हुई है. फैक्ट्रियां पूरी तरह चल नहीं पाई हैं. लॉकडाउन होने पर फैक्ट्रियों के जो मजदूर अपने घर चले गए थे, वे लौटकर नहीं आए हैं. जब देश की फैक्ट्रियां चलेंगी तो सामान का आवागमन शुरू होगा और तब हमारा व्यवसाय धीरे-धीरे लाइन पर आएगा. लॉरी मालिकों का कहना है कि इस मंदी के दौर में ट्रकों पर क्लीनर और हेल्पर भी नहीं मिल पा रहे हैं. थोड़ा बहुत काम अकेले ड्राइवरों से चल रहा है, लेकिन वे भी इतना थक जाते हैं कि तीन-चार दिन की छुट्टी के बाद आते हैं.

जानिए कहां-कहां टैक्स भरते हैं ट्रांसपोर्टर

सरकार ट्रांसपोर्टर से इतना टैक्स लेती है कि आप सपने में भी सोच नहीं सकते. जब हम चेसिस खरीदते हैं तो उस पर एक्साइज ड्यूटी, जीएसटी देते हैं. जब बॉडी बनाते हैं तो उस पर एक्साइज ड्यूटी और जीएसटी देते हैं. इसके बाद गाड़ी को पास कराते हैं तो रोड टैक्स एवं परमिट टैक्स देते हैं. सभी टैक्स देने के बाद जब तैयार ट्रक रोड पर उतरता है तो फिर से रोड का टोल टैक्स देते हैं. उसके बाद प्रति लीटर डीजल पर सरकार को 55 रुपये टैक्स दे रहे हैं. चारों तरफ से सरकार ट्रांसपोर्टर को मार रही है, जिससे ट्रांसपोर्ट सेक्टर का इतना बुरा हाल हो चुका है कि किसी भी वक्त यह कारोबार डूब सकता है.

जानिए मेरठ शहर से क्या होता है निर्यात

मेरठ एक ऐसा शहर है जहां से पूरे हिंदुस्तान में सामान जाता है. यहां लगभग 300 ट्रांसपोर्टर कंपनियां हैं. जो छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सामान देश के हर राज्य में भेजते हैं. मेरठ जिले समेत आसपास के जिलों में बड़ी संख्या में चीनी मिलें हैं. जहां से चीनी सप्लाई की जाती है. मेरठ शहर में आलू की भरपूर पैदावार होती और हजारों ट्रक भरकर आलू भेजा जाता है. स्पोर्ट्स का सामान, कैंचियां, बैंड बाजे का सामान देश के कोने-कोने में जाता है.

लाखों परिवारों का हो रहा पालन-पोषण

कोरोना काल के बाद मजदूर काम पर नहीं लौट रहे हैं. इसके चलते ट्रांसपोर्ट सेक्टर फेल होता दिख रहा है. मेरठ जिले में 6 हजार से ज्यादा ट्रक चल रहे हैं. जबकि बड़ी सख्या में बाहरी जनपदों एवं राज्यों से ट्रकों का आना-जाना अलग से लगा रहता है. चालक, परिचालक, क्लीनर के अलावा लोडर समेत मेरठ के लाखों परिवार इस कारोबार के सहारे जिंदगी बसर कर रहे हैं. अगर यही हाल रहा था तो वो दिन दूर नहीं जब न सिर्फ ट्रांसपोर्ट सेक्टर का अस्तित्व मिट सकता है, बल्कि लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे.

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