ETV Bharat / state

ब्रज में होलिकात्सव शुरू: 40 दिन तक अलग-अलग होली, जानिए लट्ठमार से लड्डूमार होली तक की परंपरा - HOLI IN BANKE BIHARI TEMPLE

बसंत पंचमी से ब्रज में 40 दिन की होली की शुरुआत. ब्रज की छड़ी मार होली भी आकर्षण का केंद्र.

मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब
मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (Photo credit: ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 3, 2025, 2:08 PM IST

मथुरा : बसंत पंचमी के दिन से होली रंगोत्सव का पर्व पूरे 40 दिनों तक हर्षोल्लास के साथ ब्रज में खेला जाता है. अनेक रंगों के साथ बसंत पंचमी के दिन से होली का हांडा मंदिरों में गढ़ जाता है और बाल स्वरूप के ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. पूरे जनपद के मंदिरों में होली के अनेक रंग लड्डूमार होली, लठ्ठमार होली, रंगों की होली, चप्पल मार होली के साथ फालैन की होली, छड़ी मार होली भी विश्व विख्यात है.

मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज (Video credit: ETV Bharat)

बसंत पंचमी का महत्व भारतीय कैलेंडर के अनुसार, एक साल में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत ऋतु होती हैं. बसंत ऋतु यानी बसंत पंचमी से खेत खलियान में सरसों लहराने लगती है. नए पौधे की पत्तियां निकल आती हैं. किसान इसी दिन से बसंत पंचमी महोत्सव खुशाली के तौर पर मनाया जाता है. घरों में नए पकवान व्यंजन का भोग लगाया जाता है. ठाकुर जी के लिए पीले वस्त्र और खीर के साथ हलवा का भोग लगाया जाता है.

लट्ठमार होली
लट्ठमार होली (Photo credit: ETV Bharat)

द्वारिकाधीश मंदिर पुजारी राकेश तिवारी, सीमा मोरवाल विद्वान, लोक गीतकार प्रशांत कुमार व इतिहासकार राजेश कुमार के मुताबिक, ब्रज में 40 दिनों तक रंगोत्सव के पर्व बसंत पंचमी के दिन से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और सभी मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. साथ ही मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाता है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. रसिया गीत के साथ समाज गायन भी होता है, कहीं लड्डूमार, लट्ठमार, चप्पल मार, फालैन की होली के बाद रंगों की होली, छड़ी मार होली खेली जाती है. मंदिरों के साथ संतों के आश्रम मे होली भव्यता के साथ खेली जाती है. कहते हैं सब जग होरी ब्रज होरा खेला जाता है.

मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज
मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज (Photo credit: ETV Bharat)

वह बताते हैं कि छाता तहसील के फालैन गांव में प्राचीन परंपरा आज भी कायम है. फालैन में पांच गांव की एक ही विशाल होली रखी जाती है, जो 20 फीट चौड़ी 15 फीट ऊंचाई की होती है. सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिला यहां पूजा करने के लिए आती हैं. होलिका दहन के दिन मोनू पंडा होलिका की धधकती अंगारों के बीच नंगे पांव निकलता है. गांव के प्राचीन भक्त पहलाद मंदिर परिसर में मोनू पंडा 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे हुए हैं. प्रतिदिन मोनू 5 घंटे सुबह-शाम कठोर तपस्या करते हैं. उन्होंने बताया कि तपस्या करने के बाद केवल मोनू घर ही जाते हैं. तपस्या के अनुरूप इधर उधर जाना प्रतिबंधित होता है.

द्वापर युग से चली आ रही लड्डूमार होली की परंपरा : वह बताते हैं कि राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लड्डूमार होली भव्यता के साथ खेली जाती है. नंद गांव के ग्वाला कृष्ण रूपी भेष में बरसाना पहुंचते हैं. मंदिर में जाकर राधा रानी से होली खेलने के लिए निमंत्रण दिया जाता है. मंदिर सेवायतों की अनुमति मिलने के बाद होली का निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाता है. श्रद्धालुओं को बूंदी के लड्डू लुटाए जाते हैं, जो लड्डूमार होली कहलाई जाती है. द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.

मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब
मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (Photo credit: ETV Bharat)

लठ्ठमार होली की पौराणिक मान्यता : वह बताते हैं कि कृष्ण भगवान सर्वप्रथम बरसाना जब होली खेलने के लिए पहुंचे थे तो सैकड़ों की संख्या में गोपियों को देखकर घबरा गए और एक मंदिर में जाकर छुप गए थे. जब राधा कान्हा को ढूंढते हुए मंदिर में पहुंचीं तो देखा कान्हा छुपे हुए बैठे हैं. राधा ने कान्हा से कहा कि पहले आप ब्रज दूल्हा बनो फिर सभी गोपियां आपके साथ लट्ठमार होली खेलेंगी. तभी कान्हा का नाम ब्रज दूल्हा के नाम से विख्यात हुआ. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रज दूल्हा की अनुमति मिलने के बाद बरसाना में लट्ठमार होली शुरू होती है.

मंदिरों में खेली जाएगी होली : 2 फरवरी को मथुरा बरसाना के राधा रानी मंदिर में, 3 फरवरी (बसंत पंचमी) को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में, 28 फरवरी होली की प्रथम चौपाई राधा रानी मंदिर में, 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली में, 8 मार्च बरसाना में लठ्ठमार होली, 9 मार्च नन्द गांव में लठ्ठमार होली, 10 मार्च रंगभरनी होली, बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, 11 मार्च मथुरा द्वारकाधीश मंदिर में होली, 11 मार्च गोकुल रमणरेती आश्रम होली, 12 मार्च वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर में होली, 12 मार्च चतुर्वेदी समाज का प्राचीन डोला, 13 मार्च को फालैन होली, 14 मार्च रंगों की होली देश भर में, 15 मार्च बलदेव का हुरंगा, 22 मार्च वृन्दावन में रंग की होली.

जिला पर्यटन अधिकारी यादराम ने बताया कि हर साल 9 करोड़ से अधिक सैलानी यहां के मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं. होली पर 10 से 12 लाख श्रद्धालु और 20 हजार से अधिक विदेशी सैलानी होली देखने खेलने के लिए आते हैं. होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त की लगन होने के बाद मंदिर परिसर के पास बने प्रहलाद कुंड में स्नान करने के बाद मोनू की बहन दूध की धार धरती पर गिरती है. और मोनू वहां से होलिका की धड़कती अंगारों के बीच से नंगे पांव निकलता है.

मथुरा में बांके बिहारी को लगाया गया गुलाल : वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सोमवार को बसंत पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. मंदिर परिसर में बांके बिहारी को गुलाल लगाकर उड़ाया गया. आज से ब्रज में 40 दिनों तक होली की शुरुआत हो जाती है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. बसंत पंचमी के अवसर पर बांके बिहारी को पीले वस्त्र धारण कराए गए और पूरा परिसर रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजा गया.

मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (Video credit: ETV Bharat)

मंदिरों में होली की शुरुआत : सेवायत मोहित कृष्ण गोस्वामी के मुताबिक, मथुरा वृंदावन के मंदिरों में बसंत पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी, राधा रमन, राधा दामोदर मंदिर सहित कई मंदिरों मे बसंत पंचमी मनाई जा रही है. आज से ही ब्रज में 40 दिनों तक होली के रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है. चारों तरफ होली के गीत गाए जा रहे हैं. बसंत पंचमी पर्व पर बांके बिहारी समेत कई मंदिरों में ठाकुरजी को पीले वस्त्र धारण कराकर विशेष सिंगार किया गया. हलवा केसर युक्त खीर का भोग लगाया जा रहा है.


लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु : बसंत पंचमी के अवसर पर मथुरा-वृंदावन के मंदिरों में दूर दराज से दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन हुआ है. बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की अटूट भीड़ देखने को मिल रही है. पूरा मंदिर परिसर रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजा हुआ है तो वहीं बसंत पंचमी के अवसर पर दर्शन करके श्रद्धालु भक्ति में लीन हैं.

प्रशासन की व्यवस्था : बसंत पंचमी के अवसर पर वृंदावन क्षेत्र को आठ जोन, बारह सेक्टर में बांटा गया है. श्रद्धालुओं की निकासी और प्रवेश द्वार अलग-अलग बनाए गए हैं तो वहीं दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की जा रही है कि मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन के द्वारा बनाए गए रास्तों का ही प्रयोग करें. इधर-उधर ना जाएं, मंदिर की कुंज गलियों में निकासी और प्रवेश द्वार भी बनाए गए हैं.

मथुरा वृंदावन में 40 दिन की होली का आगाज : बसंत पंचमी के दिन से होली रंगोत्सव का पर्व पूरे 40 दिनों तक हर्षोल्लास के साथ ब्रज में खेला जाता है. अनेक रंगों के साथ बसंत पंचमी के दिन से होली का हांडा मंदिरों में गढ़ जाता है और बाल स्वरूप के ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. पूरे जनपद के मंदिरों में होली के अनेक रंग लड्डूमार होली, लठ्ठमार होली, रंगों की होली, चप्पल मार होली के साथ फालैन की होली, छड़ी मार होली भी विश्व विख्यात है.

बसंत पंचमी का महत्व भारतीय कैलेंडर के अनुसार, एक साल में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत ऋतु होती हैं. बसंत ऋतु यानी बसंत पंचमी से खेत खलियान में सरसों लहराने लगती है. नए पौधे की पत्तियां निकल आती हैं. किसान इसी दिन से बसंत पंचमी महोत्सव खुशाली के तौर पर मनाया जाता है. घरों में नए पकवान व्यंजन का भोग लगाया जाता है. ठाकुर जी के लिए पीले वस्त्र और खीर के साथ हलवा का भोग लगाया जाता है. द्वारिकाधीश मंदिर पुजारी राकेश तिवारी, सीमा मोरवाल विद्वान, लोक गीतकार प्रशांत कुमार व इतिहासकार राजेश कुमार के मुताबिक, ब्रज में 40 दिनों तक रंगोत्सव के पर्व बसंत पंचमी के दिन से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और सभी मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. साथ ही मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाता है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. रसिया गीत के साथ समाज गायन भी होता है, कहीं लड्डूमार, लठ्ठमार, चप्पल मार, फालैन की होली के बाद रंगों की होली, छड़ी मार होली खेली जाती है.

मंदिरों के साथ संतों के आश्रम मे होली भव्यता के साथ खेली जाती है. कहते हैं सब जग होरी ब्रज होरा खेला जाता है. छाता तहसील के फालैन गांव में प्राचीन परंपरा आज भी कायम है. फालैन में पांच गांव की एक ही विशाल होली रखी जाती है, जो 20 फीट चौड़ी 15 फीट ऊंचाई की होती है. सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिला यहां पूजा करने के लिए आती हैं. होलिका दहन के दिन मोनू पंडा होलिका की धधकती अंगारों के बीच नंगे पांव निकलता है. गांव के प्राचीन भक्त पहलाद मंदिर परिसर में मोनू पंडा 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे हुए हैं. प्रतिदिन मोनू 5 घंटे सुबह-शाम कठोर तपस्या करते हैं. उन्होंने बताया कि तपस्या करने के बाद केवल मोनू घर ही जाते हैं. तपस्या के अनुरूप इधर उधर जाना प्रतिबंधित होता है. जिला पर्यटन अधिकारी यादराम ने बताया कि हर साल 9 करोड़ से अधिक सैलानी यहां के मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं. होली पर 10 से 12 लाख श्रद्धालु और 20 हजार से अधिक विदेशी सैलानी होली देखने खेलने के लिए आते हैं.

मंदिरों में खेली जाएगी होली : 2 फरवरी को मथुरा बरसाना के राधा रानी मंदिर में, 3 फरवरी (बसंत पंचमी) को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में, 28 फरवरी होली की प्रथम चौपाई राधा रानी मंदिर में, 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली में, 8 मार्च बरसाना में लठ्ठमार होली, 9 मार्च नन्द गांव में लठ्ठमार होली, 10 मार्च रंगभरनी होली, बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, 11 मार्च मथुरा द्वारकाधीश मंदिर में होली, 11 मार्च गोकुल रमणरेती आश्रम होली, 12 मार्च वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर में होली, 12 मार्च चतुर्वेदी समाज का प्राचीन डोला, 13 मार्च को फालैन होली, 14 मार्च रंगों की होली देश भर में, 15 मार्च बलदेव का हुरंगा, 22 मार्च वृन्दावन में रंग की होली.

यह भी पढ़ें : बांके बिहारी मंदिर में अब विदेशी भक्त भी खुलकर दे सकेंगे दान, मिला FCRA लाइसेंस - BANKE BIHARI TEMPLE

मथुरा : बसंत पंचमी के दिन से होली रंगोत्सव का पर्व पूरे 40 दिनों तक हर्षोल्लास के साथ ब्रज में खेला जाता है. अनेक रंगों के साथ बसंत पंचमी के दिन से होली का हांडा मंदिरों में गढ़ जाता है और बाल स्वरूप के ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. पूरे जनपद के मंदिरों में होली के अनेक रंग लड्डूमार होली, लठ्ठमार होली, रंगों की होली, चप्पल मार होली के साथ फालैन की होली, छड़ी मार होली भी विश्व विख्यात है.

मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज (Video credit: ETV Bharat)

बसंत पंचमी का महत्व भारतीय कैलेंडर के अनुसार, एक साल में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत ऋतु होती हैं. बसंत ऋतु यानी बसंत पंचमी से खेत खलियान में सरसों लहराने लगती है. नए पौधे की पत्तियां निकल आती हैं. किसान इसी दिन से बसंत पंचमी महोत्सव खुशाली के तौर पर मनाया जाता है. घरों में नए पकवान व्यंजन का भोग लगाया जाता है. ठाकुर जी के लिए पीले वस्त्र और खीर के साथ हलवा का भोग लगाया जाता है.

लट्ठमार होली
लट्ठमार होली (Photo credit: ETV Bharat)

द्वारिकाधीश मंदिर पुजारी राकेश तिवारी, सीमा मोरवाल विद्वान, लोक गीतकार प्रशांत कुमार व इतिहासकार राजेश कुमार के मुताबिक, ब्रज में 40 दिनों तक रंगोत्सव के पर्व बसंत पंचमी के दिन से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और सभी मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. साथ ही मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाता है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. रसिया गीत के साथ समाज गायन भी होता है, कहीं लड्डूमार, लट्ठमार, चप्पल मार, फालैन की होली के बाद रंगों की होली, छड़ी मार होली खेली जाती है. मंदिरों के साथ संतों के आश्रम मे होली भव्यता के साथ खेली जाती है. कहते हैं सब जग होरी ब्रज होरा खेला जाता है.

मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज
मथुरा में 40 दिन तक होली का आगाज (Photo credit: ETV Bharat)

वह बताते हैं कि छाता तहसील के फालैन गांव में प्राचीन परंपरा आज भी कायम है. फालैन में पांच गांव की एक ही विशाल होली रखी जाती है, जो 20 फीट चौड़ी 15 फीट ऊंचाई की होती है. सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिला यहां पूजा करने के लिए आती हैं. होलिका दहन के दिन मोनू पंडा होलिका की धधकती अंगारों के बीच नंगे पांव निकलता है. गांव के प्राचीन भक्त पहलाद मंदिर परिसर में मोनू पंडा 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे हुए हैं. प्रतिदिन मोनू 5 घंटे सुबह-शाम कठोर तपस्या करते हैं. उन्होंने बताया कि तपस्या करने के बाद केवल मोनू घर ही जाते हैं. तपस्या के अनुरूप इधर उधर जाना प्रतिबंधित होता है.

द्वापर युग से चली आ रही लड्डूमार होली की परंपरा : वह बताते हैं कि राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लड्डूमार होली भव्यता के साथ खेली जाती है. नंद गांव के ग्वाला कृष्ण रूपी भेष में बरसाना पहुंचते हैं. मंदिर में जाकर राधा रानी से होली खेलने के लिए निमंत्रण दिया जाता है. मंदिर सेवायतों की अनुमति मिलने के बाद होली का निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाता है. श्रद्धालुओं को बूंदी के लड्डू लुटाए जाते हैं, जो लड्डूमार होली कहलाई जाती है. द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है.

मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब
मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (Photo credit: ETV Bharat)

लठ्ठमार होली की पौराणिक मान्यता : वह बताते हैं कि कृष्ण भगवान सर्वप्रथम बरसाना जब होली खेलने के लिए पहुंचे थे तो सैकड़ों की संख्या में गोपियों को देखकर घबरा गए और एक मंदिर में जाकर छुप गए थे. जब राधा कान्हा को ढूंढते हुए मंदिर में पहुंचीं तो देखा कान्हा छुपे हुए बैठे हैं. राधा ने कान्हा से कहा कि पहले आप ब्रज दूल्हा बनो फिर सभी गोपियां आपके साथ लट्ठमार होली खेलेंगी. तभी कान्हा का नाम ब्रज दूल्हा के नाम से विख्यात हुआ. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रज दूल्हा की अनुमति मिलने के बाद बरसाना में लट्ठमार होली शुरू होती है.

मंदिरों में खेली जाएगी होली : 2 फरवरी को मथुरा बरसाना के राधा रानी मंदिर में, 3 फरवरी (बसंत पंचमी) को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में, 28 फरवरी होली की प्रथम चौपाई राधा रानी मंदिर में, 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली में, 8 मार्च बरसाना में लठ्ठमार होली, 9 मार्च नन्द गांव में लठ्ठमार होली, 10 मार्च रंगभरनी होली, बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, 11 मार्च मथुरा द्वारकाधीश मंदिर में होली, 11 मार्च गोकुल रमणरेती आश्रम होली, 12 मार्च वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर में होली, 12 मार्च चतुर्वेदी समाज का प्राचीन डोला, 13 मार्च को फालैन होली, 14 मार्च रंगों की होली देश भर में, 15 मार्च बलदेव का हुरंगा, 22 मार्च वृन्दावन में रंग की होली.

जिला पर्यटन अधिकारी यादराम ने बताया कि हर साल 9 करोड़ से अधिक सैलानी यहां के मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं. होली पर 10 से 12 लाख श्रद्धालु और 20 हजार से अधिक विदेशी सैलानी होली देखने खेलने के लिए आते हैं. होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त की लगन होने के बाद मंदिर परिसर के पास बने प्रहलाद कुंड में स्नान करने के बाद मोनू की बहन दूध की धार धरती पर गिरती है. और मोनू वहां से होलिका की धड़कती अंगारों के बीच से नंगे पांव निकलता है.

मथुरा में बांके बिहारी को लगाया गया गुलाल : वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सोमवार को बसंत पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. मंदिर परिसर में बांके बिहारी को गुलाल लगाकर उड़ाया गया. आज से ब्रज में 40 दिनों तक होली की शुरुआत हो जाती है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. बसंत पंचमी के अवसर पर बांके बिहारी को पीले वस्त्र धारण कराए गए और पूरा परिसर रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजा गया.

मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब (Video credit: ETV Bharat)

मंदिरों में होली की शुरुआत : सेवायत मोहित कृष्ण गोस्वामी के मुताबिक, मथुरा वृंदावन के मंदिरों में बसंत पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी, राधा रमन, राधा दामोदर मंदिर सहित कई मंदिरों मे बसंत पंचमी मनाई जा रही है. आज से ही ब्रज में 40 दिनों तक होली के रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है. चारों तरफ होली के गीत गाए जा रहे हैं. बसंत पंचमी पर्व पर बांके बिहारी समेत कई मंदिरों में ठाकुरजी को पीले वस्त्र धारण कराकर विशेष सिंगार किया गया. हलवा केसर युक्त खीर का भोग लगाया जा रहा है.


लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु : बसंत पंचमी के अवसर पर मथुरा-वृंदावन के मंदिरों में दूर दराज से दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन हुआ है. बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की अटूट भीड़ देखने को मिल रही है. पूरा मंदिर परिसर रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजा हुआ है तो वहीं बसंत पंचमी के अवसर पर दर्शन करके श्रद्धालु भक्ति में लीन हैं.

प्रशासन की व्यवस्था : बसंत पंचमी के अवसर पर वृंदावन क्षेत्र को आठ जोन, बारह सेक्टर में बांटा गया है. श्रद्धालुओं की निकासी और प्रवेश द्वार अलग-अलग बनाए गए हैं तो वहीं दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की जा रही है कि मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन के द्वारा बनाए गए रास्तों का ही प्रयोग करें. इधर-उधर ना जाएं, मंदिर की कुंज गलियों में निकासी और प्रवेश द्वार भी बनाए गए हैं.

मथुरा वृंदावन में 40 दिन की होली का आगाज : बसंत पंचमी के दिन से होली रंगोत्सव का पर्व पूरे 40 दिनों तक हर्षोल्लास के साथ ब्रज में खेला जाता है. अनेक रंगों के साथ बसंत पंचमी के दिन से होली का हांडा मंदिरों में गढ़ जाता है और बाल स्वरूप के ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. पूरे जनपद के मंदिरों में होली के अनेक रंग लड्डूमार होली, लठ्ठमार होली, रंगों की होली, चप्पल मार होली के साथ फालैन की होली, छड़ी मार होली भी विश्व विख्यात है.

बसंत पंचमी का महत्व भारतीय कैलेंडर के अनुसार, एक साल में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत ऋतु होती हैं. बसंत ऋतु यानी बसंत पंचमी से खेत खलियान में सरसों लहराने लगती है. नए पौधे की पत्तियां निकल आती हैं. किसान इसी दिन से बसंत पंचमी महोत्सव खुशाली के तौर पर मनाया जाता है. घरों में नए पकवान व्यंजन का भोग लगाया जाता है. ठाकुर जी के लिए पीले वस्त्र और खीर के साथ हलवा का भोग लगाया जाता है. द्वारिकाधीश मंदिर पुजारी राकेश तिवारी, सीमा मोरवाल विद्वान, लोक गीतकार प्रशांत कुमार व इतिहासकार राजेश कुमार के मुताबिक, ब्रज में 40 दिनों तक रंगोत्सव के पर्व बसंत पंचमी के दिन से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और सभी मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है. साथ ही मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाता है. मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है. रसिया गीत के साथ समाज गायन भी होता है, कहीं लड्डूमार, लठ्ठमार, चप्पल मार, फालैन की होली के बाद रंगों की होली, छड़ी मार होली खेली जाती है.

मंदिरों के साथ संतों के आश्रम मे होली भव्यता के साथ खेली जाती है. कहते हैं सब जग होरी ब्रज होरा खेला जाता है. छाता तहसील के फालैन गांव में प्राचीन परंपरा आज भी कायम है. फालैन में पांच गांव की एक ही विशाल होली रखी जाती है, जो 20 फीट चौड़ी 15 फीट ऊंचाई की होती है. सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिला यहां पूजा करने के लिए आती हैं. होलिका दहन के दिन मोनू पंडा होलिका की धधकती अंगारों के बीच नंगे पांव निकलता है. गांव के प्राचीन भक्त पहलाद मंदिर परिसर में मोनू पंडा 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे हुए हैं. प्रतिदिन मोनू 5 घंटे सुबह-शाम कठोर तपस्या करते हैं. उन्होंने बताया कि तपस्या करने के बाद केवल मोनू घर ही जाते हैं. तपस्या के अनुरूप इधर उधर जाना प्रतिबंधित होता है. जिला पर्यटन अधिकारी यादराम ने बताया कि हर साल 9 करोड़ से अधिक सैलानी यहां के मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं. होली पर 10 से 12 लाख श्रद्धालु और 20 हजार से अधिक विदेशी सैलानी होली देखने खेलने के लिए आते हैं.

मंदिरों में खेली जाएगी होली : 2 फरवरी को मथुरा बरसाना के राधा रानी मंदिर में, 3 फरवरी (बसंत पंचमी) को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में, 28 फरवरी होली की प्रथम चौपाई राधा रानी मंदिर में, 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली में, 8 मार्च बरसाना में लठ्ठमार होली, 9 मार्च नन्द गांव में लठ्ठमार होली, 10 मार्च रंगभरनी होली, बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, 11 मार्च मथुरा द्वारकाधीश मंदिर में होली, 11 मार्च गोकुल रमणरेती आश्रम होली, 12 मार्च वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर में होली, 12 मार्च चतुर्वेदी समाज का प्राचीन डोला, 13 मार्च को फालैन होली, 14 मार्च रंगों की होली देश भर में, 15 मार्च बलदेव का हुरंगा, 22 मार्च वृन्दावन में रंग की होली.

यह भी पढ़ें : बांके बिहारी मंदिर में अब विदेशी भक्त भी खुलकर दे सकेंगे दान, मिला FCRA लाइसेंस - BANKE BIHARI TEMPLE

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.