मथुरा: लेखक, क्रांतिकारी, समाज सेवी और दानवीर के नाम से पहचाने जाने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की समाधि धर्म की नगरी वृंदावन में यमुना नदी के किनारे बनी हुई है. मगर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है. जिस राजा ने राधा और कृष्ण के अटूट प्रेम को देखते हुए प्रेम महाविद्यालय इंटर कॉलेज की स्थापना के लिए 1909 में की गई और 80 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश में दान कर दी गई आज उसी राजा की समाधि स्थल खंडहर में तब्दील है. बता दें कि 14 सितंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी का शिलान्यास करने पहुंच रहे हैं.
महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म जाट परिवार मे एक दिसंबर 1886 हाथरस के मुरसान में हुआ था. तीन वर्ष की आयु में राजा हर नारायण सिंह ने उन्हें गोद ले लिया था, क्योंकि राजा हर नारायण सिंह के कोई पुत्र नहीं था. राजा हर नारायण सिंह की पत्नी रानी साहब कुमारी हाथरस छोड़कर वृंदावन के महल में आकर महेंद्र प्रताप सिंह के साथ रहने लगी. अलीगढ़ के सय्यद खां द्वारा स्थापित स्कूल में बीए तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद महेंद्र प्रताप सिंह का विवाह राजकुमारी संगरुर के साथ हुआ था. शादी समारोह में पहुंचने के लिए दो स्पेशल ट्रेन से बराती पहुंचे थे.
खंडहर में तब्दील राजा की समाधि राधा कृष्ण के अटूट प्रेम की निशानी प्रेम महाविद्यालयवृन्दावन यमुना नदी केसी घाट के किनारे प्रेम महाविद्यालय इंटर कॉलेज की स्थापना 1909 मे की गई थी, कार्यक्रम समारोह में मदन मोहन मालवीय सहित कई हस्तियां पहुंची थी. महाविद्यालय का नाम प्रेम इसलिए रखा गया क्योंकि वृंदावन में राधा कृष्ण के प्रेम की अटूट कहानियां सुनने को मिलती है. और राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने पुत्री का नाम भक्ति और पुत्र का नाम प्रेम रखा था. दोनों को मिलाकर प्रेम शब्द से ही महाविद्यालय इंटर कॉलेज की स्थापना की गई.
मरने से पूर्व बनवाई गई थी समाधि स्थलराजा महेंद्र प्रताप सिंह वृन्दावन यमुना नदी के किनारे अपनी समाधि स्थल बनवाई थी और कहा था 'मरने के उपरांत मेरा शव यहां पर दफना दिया जाए. राजा महेंद्र प्रताप सिंह को तीन नाम से जाना जाता था पीटर इसाई धर्म का शब्द, पीर मुस्लिम धर्म का शब्द और प्रताप हिंदू धर्म का शब्द, पीटर पीर प्रताप के नाम से राजा महेंद्र प्रताप सिंह जाने जाते थे.
राजा की समाधि खंडहर में तब्दील 80 एकड़ भूमि दान में दी गयी
राजा महेंद्र प्रताप सिंह बड़े दानवीर थे 1911 में अपनी रियासत मे से आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को 80 एकड़ भूमि दान में दे दी गई, जिसमें वृंदावन यमुना नदी के किनारे आर्य समाज गुरुकुल, राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, छात्रावास, पीएमवी पॉलिटेक्निक, सहित प्रदेश के कई जिलों में भूमि दान मे दे दी गई.
समाधि स्थल जर्जर
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का देहांत 29 अप्रैल 1979 को हुआ था. समाधि स्थल यमुना नदी के किनारे केसी घाट पर बनी हुई है यह स्थान खंडहरो में तब्दील है. दानवीर समाजसेवी और क्रांतिकारियों मे सुमार अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्र सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह समाधि स्थल को देखकर स्थानीय लोगों की भावनाएं आहत होती हैं, कई बार राष्ट्रीय स्मारक बनवाने को लेकर मांग उठाई गयी लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.डॉ. वेद प्रकाश ने बताया 15 अगस्त 1947 को वृंदावन राजा महेंद्र प्रताप सिंह पुनः वापस आए, क्योंकि विदेशों में रहकर राजा महेंद्र पता सिंह ने सालों तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. राजा साहब ने अपने जीते जी प्रेम महाविद्यालय के सामने समाधि स्थल बनवाई थी. 29 अप्रैल 1979 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुई थी और उनका पार्थिक शरीर यहां समाधि स्थल में स्थापित किया गया लेकिन आज वही स्थान जर्जर हालत में है.राजा की समाधि खंडहर में तब्दील उन्होंने कहा कि 1932 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को शांति नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था. 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हो गई और उस समय ऐसा कालचक्र चला राजा साहब के इतिहास को भुला दिया गया. राजा महेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु होने के बाद मात्र 30 पैसे का डाक टिकट जारी करके श्रद्धांजलि दी गई. सरकार की विडंबना रही कि राजस आपके बलिदान को भुला दिया गया.