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Lockdown Effect: सरकार की बेरुखी का शिकार नाथपुरा गांव, दाने-दाने को मोहताज हैं ग्रामीण

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Published : Apr 9, 2020, 4:51 PM IST

लॉकडाउन के बाद मैनपुरी जिले के नाथपुरा गांव के लोगों को राशन तक नहीं मिला है. ग्रामीणों का कहना है कि हम लोग मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपना पेट पालते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से वो भी बंद है. अभी तक हम लोगों के पास कोई भी सरकारी सहायता नहीं पहुंची है.

सरकार की बेरूखी का शिकार मैनपुरी का गांव
सरकार की बेरूखी का शिकार मैनपुरी का गांव

मैनपुरी: आखिर कौन सुनेगा नाथपुरा गांव के इन ग्रामीणों का दर्द. वो दर्द जो लॉकडाउन से पहले भी बार-बार जुबां पर आया, लेकिन सुनने वाले इनके दर तक पहुंच नहीं पाया. लॉकडाउन में ईटीवी भारत की टीम जब इन ग्रामीणों का हाल जानने इनके पास पहुंची तो दर्द फूट-फूट कर जुबां पर आ गया. देखें नाथपुरा गांव के हालात पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

गांव तक जाने के लिए नहीं है सड़क
मैनपुरी जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत करपिया का मजरा का नाथपुरा गांव है. ईटीवी भारत के संवाददाता को गांव तक पहुंचने के लिए दो किलोमीटर तक पगडंडियों पर पैदल चलना पड़ा, क्योंकि मुख्य मार्ग से गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है. यह हाल तब है जब योगी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री जिले से हैं.

जानकारी मुताबिक 1965 में नाथपुरा गांव में कुछ लोग आकर बस गए. धीरे-धीरे कई ग्रामीणों ने यहां डेरा जमा लिया, लेकिन तब से लेकर अब तक न सांसद, न विधायक, न मंत्री और न ग्राम प्रधान किसी ने भी इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया. अब तक यह गांव न तो किसी सरकारी कागज में दर्ज है और न ही इस गांव तक कोई सुख-सुविधाएं पहुंच रही हैं.

मेहनत-मजदूरी पर लगा लॉकडाउन
बता दें कि 200 की संख्या में वाशिंदे इस गांव निवास करते हैं, जो सपेरा समुदाय से आते हैं. ये लोग गांव-गांव जाकर सांप दिखाकर अपना पेट पालते थे. सरकार ने सांप दिखाने पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी है. अब यह लोग मेहनत, मजदूरी करके किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं. देश में लॉकडाउन घोषित होने के बाद इनकी मेहनत, मजदूरी पर भी लॉकडाउन लग गया है, जिससे ये लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

वोट मांगने के बाद गायब हो जाते हैं साहब
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान भुखमरी का दर्द इन ग्रामीणों की आंखों में साफ नजर आया. गांव के लोगों का कहना था कि सरकार के नुमाइंदे वोट मांगने के समय आते हैं और फिर पांच साल तक दिखाई नहीं देते हैं. जिला प्रशासन भी हमारी सुध नहीं लेता है. ऐसे में हम आखिर अपना दर्द किससे बयां करें. ग्रामीणों ने कहा कि देशभर में कोरोना वायरस महामारी फैली है, जिस कारण घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई है. बिना मेहनत-मजदूरी किए हमारा गुजर-बसर होने वाला नहीं है.

गांव तक नहीं पहुंची सरकारी मदद
ग्रामीणों ने कहा कि जब सरकार ने लॉकडाउन के दौरान हम जैसे गरीबों के लिए मदद का एलान किया तो हम लोग खुश हुए, लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी हमारा हाल जानने नहीं आया. न हमें राशन मिल रहा है और कोई सहायता मिल रही है. ग्रामीणों ने कहा कि कोरोना वायरस तो बाद में आएगा, लेकिन हम पहले भूखे ही मर जाएंगे.

अधिकतर ग्रामीणों का नहीं बना है राशन कार्ड
ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम प्रधान उनकी एक बात नहीं सुनता है. राशन डीलर ने राशन कार्ड पहले से ही जमा कर रखे हैं. पूरे गांव में केवल तीन लोगों के पास राशन कार्ड हैं, जिस पर राशन डीलर ने 15-15 किलो राशन दे दिया है. ग्रामीणों ने बताया कि जिनको राशन की जरूरत थी, उनको 14 रुपये प्रति किलो के रेट पर राशन दिया गया. ऐसे में कब तक हम लोग खरीदकर खाएंगे.

मैनपुरी: आखिर कौन सुनेगा नाथपुरा गांव के इन ग्रामीणों का दर्द. वो दर्द जो लॉकडाउन से पहले भी बार-बार जुबां पर आया, लेकिन सुनने वाले इनके दर तक पहुंच नहीं पाया. लॉकडाउन में ईटीवी भारत की टीम जब इन ग्रामीणों का हाल जानने इनके पास पहुंची तो दर्द फूट-फूट कर जुबां पर आ गया. देखें नाथपुरा गांव के हालात पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

गांव तक जाने के लिए नहीं है सड़क
मैनपुरी जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत करपिया का मजरा का नाथपुरा गांव है. ईटीवी भारत के संवाददाता को गांव तक पहुंचने के लिए दो किलोमीटर तक पगडंडियों पर पैदल चलना पड़ा, क्योंकि मुख्य मार्ग से गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है. यह हाल तब है जब योगी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री जिले से हैं.

जानकारी मुताबिक 1965 में नाथपुरा गांव में कुछ लोग आकर बस गए. धीरे-धीरे कई ग्रामीणों ने यहां डेरा जमा लिया, लेकिन तब से लेकर अब तक न सांसद, न विधायक, न मंत्री और न ग्राम प्रधान किसी ने भी इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया. अब तक यह गांव न तो किसी सरकारी कागज में दर्ज है और न ही इस गांव तक कोई सुख-सुविधाएं पहुंच रही हैं.

मेहनत-मजदूरी पर लगा लॉकडाउन
बता दें कि 200 की संख्या में वाशिंदे इस गांव निवास करते हैं, जो सपेरा समुदाय से आते हैं. ये लोग गांव-गांव जाकर सांप दिखाकर अपना पेट पालते थे. सरकार ने सांप दिखाने पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी है. अब यह लोग मेहनत, मजदूरी करके किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं. देश में लॉकडाउन घोषित होने के बाद इनकी मेहनत, मजदूरी पर भी लॉकडाउन लग गया है, जिससे ये लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

वोट मांगने के बाद गायब हो जाते हैं साहब
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान भुखमरी का दर्द इन ग्रामीणों की आंखों में साफ नजर आया. गांव के लोगों का कहना था कि सरकार के नुमाइंदे वोट मांगने के समय आते हैं और फिर पांच साल तक दिखाई नहीं देते हैं. जिला प्रशासन भी हमारी सुध नहीं लेता है. ऐसे में हम आखिर अपना दर्द किससे बयां करें. ग्रामीणों ने कहा कि देशभर में कोरोना वायरस महामारी फैली है, जिस कारण घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई है. बिना मेहनत-मजदूरी किए हमारा गुजर-बसर होने वाला नहीं है.

गांव तक नहीं पहुंची सरकारी मदद
ग्रामीणों ने कहा कि जब सरकार ने लॉकडाउन के दौरान हम जैसे गरीबों के लिए मदद का एलान किया तो हम लोग खुश हुए, लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी हमारा हाल जानने नहीं आया. न हमें राशन मिल रहा है और कोई सहायता मिल रही है. ग्रामीणों ने कहा कि कोरोना वायरस तो बाद में आएगा, लेकिन हम पहले भूखे ही मर जाएंगे.

अधिकतर ग्रामीणों का नहीं बना है राशन कार्ड
ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम प्रधान उनकी एक बात नहीं सुनता है. राशन डीलर ने राशन कार्ड पहले से ही जमा कर रखे हैं. पूरे गांव में केवल तीन लोगों के पास राशन कार्ड हैं, जिस पर राशन डीलर ने 15-15 किलो राशन दे दिया है. ग्रामीणों ने बताया कि जिनको राशन की जरूरत थी, उनको 14 रुपये प्रति किलो के रेट पर राशन दिया गया. ऐसे में कब तक हम लोग खरीदकर खाएंगे.

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