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प्रदेश में बेहताशा बढ़ रहे सर्किल रेट, अचल संपत्ति खरीदने वाले लोग हो रहे परेशान

प्रदेश में स्टांप एवं पंजीयन विभाग की तरफ से सभी जिलों में सर्किल रेट बढ़ाने का काम किया जाता है पिछले कुछ समय में लगातार सर्किल रेट काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. बेतहाशा सर्किल रेट बढ़ने से अचल संपत्ति खरीदने वाले लोगों को स्टांप खरीदने में तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. संपत्ति की कीमत कम होने के बावजूद सर्किल रेट अधिक होने की वजह से खरीदारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

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Published : Nov 17, 2022, 7:42 PM IST

लखनऊ : प्रदेश में स्टांप एवं पंजीयन विभाग की तरफ से सभी जिलों में सर्किल रेट बढ़ाने का काम किया जाता है पिछले कुछ समय में लगातार सर्किल रेट काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. बेतहाशा सर्किल रेट बढ़ने से अचल संपत्ति खरीदने वाले लोगों को स्टांप खरीदने में तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. संपत्ति की कीमत कम होने के बावजूद सर्किल रेट अधिक होने की वजह से खरीदारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.


उदाहरण के रूप में अगर बताएं तो जब सर्किल रेट का रिवीजन किया जाता है और नई दरें प्रस्तावित की जाती हैं तो प्रशासन के स्तर पर सर्वे कराने के काम किए जाते हैं. एक क्षेत्र का सर्वे उसके विकास सड़क व अन्य मापदंडों के आधार पर किया जाता है. इसके बाद सर्किल रेट लागू किया जाता है. कई बार ऐसा होता है कि किसी एक क्षेत्र में सर्किल रेट अगर 15 से ₹20000 वर्गमीटर निर्धारित किया जाता है तो उसी आधार पर रजिस्ट्री कराने की प्रक्रिया होती है. जब अचल संपत्ति या अन्य कोई संपत्ति बेचने की बात होती है तो कई बार सर्किल रेट से कम कीमत उस प्रॉपर्टी की मिलती है. जब उसका जो खरीदार होता है वह सर्किल रेट के आधार पर ही स्टांप आदि खरीदने की कार्रवाई करता है, जिससे उसका अधिक पैसा खर्च होता है.

जानकारी देते संवाददाता धीरज त्रिपाठी.

कई बार ऐसा होता है कि सर्किल रेट अधिक रहता है और जो प्रॉपर्टी है वह संबंधित क्षेत्र में पिछड़े क्षेत्र की है. जहां पर सड़क की चौड़ाई भी कम है और अन्य विकास के कार्य भी वहां पर नहीं हुए हैं. ऐसे में उस प्रॉपर्टी की कीमत काफी कम खरीदार की तरफ से लगाई जाती है, लेकिन उस क्षेत्र का सर्किल रेट अधिक होने की वजह से खरीदार को परेशानी का सामना करना पड़ता है. स्टांप एवं पंजीयन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम सर्वे के आधार पर ही सर्किल रेट की दरें रिवाइज करते हैं. इसके बाद उसका प्रकाशन किया जाता है किसी को अगर आपत्ति होती है तो आपत्ति और सुझाव मांगे जाते हैं और उसका निस्तारण भी कराया जाता है.

सर्किल रेट निर्धारित करने अपनी एक प्रक्रिया है उस प्रक्रिया के अनुरूप संबंधित क्षेत्र में सर्किल रेट को रिवाइज किया जाता है. वहां पर सड़क की चौड़ाई विकास के कार्य कालोनी के स्वरूप ग्रामीण क्षेत्र का स्वरूप आदि देखने के बाद ही सर्किल रेट तय किया जाता है. अगर कहीं कोई विसंगति होती है उसे दूर किया जाता है. काफी बार देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे तमाम जगह होते हैं जहां पर ठीक ढंग से मूल्यांकन नहीं होता है जिससे सर्किल रेट अधिक हो जाता है इससे किसानों को तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सरकार सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए. जिससे व्यवस्थित तरीके से समान रूप से सर्किल रेट लागू करने की कार्रवाई की जाए. संबंधित क्षेत्र की लोकेशन और तमाम अन्य मांगों को देखते हुए सर्किल रेट लागू किया जाना चाहिए. जिसे विक्रेता को पूरा लाभ मिल सके.

राकेश कुमार अग्रवाल कहते हैं कि लखनऊ में पिछले कई वर्षों से सर्किल रेट का रिवीजन नहीं हुआ है. सर्किल रेट कई बार अधिक हो जाने से लोगों को दिक्कत होती है. सरकार को व्यवस्थित तरीके से सर्किल रेट बढ़ाकर काम करना चाहिए. जब डेवलपमेंट नहीं होता है ठीक-ठाक से और सर्किल रेट उसके हिसाब से नहीं बढ़ता है तो समस्या होती है. डेवलपमेंट के आधार पर ही सर्किल रेट होना चाहिए.


उप महानिरीक्षक निबंधन लखनऊ अजय कुमार त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से कहा कि विगत पांच छह वर्षों से लखनऊ में सर्किल रेट का रिवीजन नहीं हुआ है. सर्किल रेट का जब रिवीजन होता है तो उसके लिए प्रस्ताव उपनिबंधक के स्तर से तहसील के साथ कलेक्टर के पास आता है. इसके बाद हमारे पास आता है और उसकी समीक्षा होती है. समीक्षा के बाद नीचे से आए प्रस्ताव का प्रकाशन किया जाता है. जिससे जन सामान्य की आपत्ति या सुझाव आमंत्रित कर लिया जाए. प्रकाशन करने के बाद लिस्ट को सब रजिस्ट्रार ऑफिस सहायक स्टांप आयुक्त कार्यालय, कलेक्टर के ऑफिस में एडीएम फाइनेंस के ऑफिस में और तहसील स्तर पर प्रदर्शित करा दिए जाते हैं. इसके लिए एक निश्चित अवधि दी जाती है कि, अगर सर्किल रेट से संबंधित दाखिल आपत्ति की समीक्षा कर निस्तारण किया जाता है.

दरें बढ़ाई जाने के लिए एक सामान्य औसत लिया जाता है और बकायदा इससे पहले सर्वे कराए जाता है. इसके बावजूद अगर कहीं कोई दिक्कत होती है तो उसका रिवीजन कराने की प्रक्रिया होती है. किसी भी क्षेत्र में सर्किल रेट अलग-अलग दरों पर होता है. सड़कों की चौड़ाई डेवलपमेंट आदि देखने के बाद ही सर्किल रेट का निर्धारण होता है. हम लोगों की कोशिश होती है कि सर्किल रेट की दरें कहीं पर भी अप्रसांगिक ना हों. संपत्ति के आधार पर सर्किल रेट तय किए जाते हैं. सड़क की चौड़ाई संपत्ति अगर कॉर्नर की है तो उसका 10 फीसद सर्किल रेट बढ़ जाता है.


राजधानी के कुछ क्षेत्रों का सर्किल रेट : विक्रमादित्य मार्ग में ₹22000 वर्ग मीटर, वर्ष 2010 में सर्किल रेट ₹11000 वर्ग मीटर था. इसी प्रकार पार्क रोड का वर्तमान समय में ₹27500 और वर्ष 2010 में ₹15000 वर्ग मीटर सर्किल रेट था. गोमतीनगर के विभूति खंड का वर्तमान समय में ₹40000 और वर्ष 2010 में ₹18000 सर्किल रेट था. महानगर का अभी ₹25000 और इससे पहले 2010 में ₹12500 सर्किल रेट था. हजरतगंज का अभी ₹45500, इससे पहले 2010 में 18500 सर्किल रेट था. गोमतीनगर के विवेक खंड का अभी 30500 और वर्ष 2010 में 12500 सर्किल रेट था. चिनहट का अभी ₹10500 और इससे पहले वर्ष 2010 में ₹5000 सर्किल रेट था.

यह भी पढ़ें : प्रचारकों की सूची में नाम शामिल कर अखिलेश ने चला बड़ा दांव, दुविधा में शिवपाल

लखनऊ : प्रदेश में स्टांप एवं पंजीयन विभाग की तरफ से सभी जिलों में सर्किल रेट बढ़ाने का काम किया जाता है पिछले कुछ समय में लगातार सर्किल रेट काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. बेतहाशा सर्किल रेट बढ़ने से अचल संपत्ति खरीदने वाले लोगों को स्टांप खरीदने में तमाम तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. संपत्ति की कीमत कम होने के बावजूद सर्किल रेट अधिक होने की वजह से खरीदारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.


उदाहरण के रूप में अगर बताएं तो जब सर्किल रेट का रिवीजन किया जाता है और नई दरें प्रस्तावित की जाती हैं तो प्रशासन के स्तर पर सर्वे कराने के काम किए जाते हैं. एक क्षेत्र का सर्वे उसके विकास सड़क व अन्य मापदंडों के आधार पर किया जाता है. इसके बाद सर्किल रेट लागू किया जाता है. कई बार ऐसा होता है कि किसी एक क्षेत्र में सर्किल रेट अगर 15 से ₹20000 वर्गमीटर निर्धारित किया जाता है तो उसी आधार पर रजिस्ट्री कराने की प्रक्रिया होती है. जब अचल संपत्ति या अन्य कोई संपत्ति बेचने की बात होती है तो कई बार सर्किल रेट से कम कीमत उस प्रॉपर्टी की मिलती है. जब उसका जो खरीदार होता है वह सर्किल रेट के आधार पर ही स्टांप आदि खरीदने की कार्रवाई करता है, जिससे उसका अधिक पैसा खर्च होता है.

जानकारी देते संवाददाता धीरज त्रिपाठी.

कई बार ऐसा होता है कि सर्किल रेट अधिक रहता है और जो प्रॉपर्टी है वह संबंधित क्षेत्र में पिछड़े क्षेत्र की है. जहां पर सड़क की चौड़ाई भी कम है और अन्य विकास के कार्य भी वहां पर नहीं हुए हैं. ऐसे में उस प्रॉपर्टी की कीमत काफी कम खरीदार की तरफ से लगाई जाती है, लेकिन उस क्षेत्र का सर्किल रेट अधिक होने की वजह से खरीदार को परेशानी का सामना करना पड़ता है. स्टांप एवं पंजीयन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम सर्वे के आधार पर ही सर्किल रेट की दरें रिवाइज करते हैं. इसके बाद उसका प्रकाशन किया जाता है किसी को अगर आपत्ति होती है तो आपत्ति और सुझाव मांगे जाते हैं और उसका निस्तारण भी कराया जाता है.

सर्किल रेट निर्धारित करने अपनी एक प्रक्रिया है उस प्रक्रिया के अनुरूप संबंधित क्षेत्र में सर्किल रेट को रिवाइज किया जाता है. वहां पर सड़क की चौड़ाई विकास के कार्य कालोनी के स्वरूप ग्रामीण क्षेत्र का स्वरूप आदि देखने के बाद ही सर्किल रेट तय किया जाता है. अगर कहीं कोई विसंगति होती है उसे दूर किया जाता है. काफी बार देखा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे तमाम जगह होते हैं जहां पर ठीक ढंग से मूल्यांकन नहीं होता है जिससे सर्किल रेट अधिक हो जाता है इससे किसानों को तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सरकार सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए. जिससे व्यवस्थित तरीके से समान रूप से सर्किल रेट लागू करने की कार्रवाई की जाए. संबंधित क्षेत्र की लोकेशन और तमाम अन्य मांगों को देखते हुए सर्किल रेट लागू किया जाना चाहिए. जिसे विक्रेता को पूरा लाभ मिल सके.

राकेश कुमार अग्रवाल कहते हैं कि लखनऊ में पिछले कई वर्षों से सर्किल रेट का रिवीजन नहीं हुआ है. सर्किल रेट कई बार अधिक हो जाने से लोगों को दिक्कत होती है. सरकार को व्यवस्थित तरीके से सर्किल रेट बढ़ाकर काम करना चाहिए. जब डेवलपमेंट नहीं होता है ठीक-ठाक से और सर्किल रेट उसके हिसाब से नहीं बढ़ता है तो समस्या होती है. डेवलपमेंट के आधार पर ही सर्किल रेट होना चाहिए.


उप महानिरीक्षक निबंधन लखनऊ अजय कुमार त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से कहा कि विगत पांच छह वर्षों से लखनऊ में सर्किल रेट का रिवीजन नहीं हुआ है. सर्किल रेट का जब रिवीजन होता है तो उसके लिए प्रस्ताव उपनिबंधक के स्तर से तहसील के साथ कलेक्टर के पास आता है. इसके बाद हमारे पास आता है और उसकी समीक्षा होती है. समीक्षा के बाद नीचे से आए प्रस्ताव का प्रकाशन किया जाता है. जिससे जन सामान्य की आपत्ति या सुझाव आमंत्रित कर लिया जाए. प्रकाशन करने के बाद लिस्ट को सब रजिस्ट्रार ऑफिस सहायक स्टांप आयुक्त कार्यालय, कलेक्टर के ऑफिस में एडीएम फाइनेंस के ऑफिस में और तहसील स्तर पर प्रदर्शित करा दिए जाते हैं. इसके लिए एक निश्चित अवधि दी जाती है कि, अगर सर्किल रेट से संबंधित दाखिल आपत्ति की समीक्षा कर निस्तारण किया जाता है.

दरें बढ़ाई जाने के लिए एक सामान्य औसत लिया जाता है और बकायदा इससे पहले सर्वे कराए जाता है. इसके बावजूद अगर कहीं कोई दिक्कत होती है तो उसका रिवीजन कराने की प्रक्रिया होती है. किसी भी क्षेत्र में सर्किल रेट अलग-अलग दरों पर होता है. सड़कों की चौड़ाई डेवलपमेंट आदि देखने के बाद ही सर्किल रेट का निर्धारण होता है. हम लोगों की कोशिश होती है कि सर्किल रेट की दरें कहीं पर भी अप्रसांगिक ना हों. संपत्ति के आधार पर सर्किल रेट तय किए जाते हैं. सड़क की चौड़ाई संपत्ति अगर कॉर्नर की है तो उसका 10 फीसद सर्किल रेट बढ़ जाता है.


राजधानी के कुछ क्षेत्रों का सर्किल रेट : विक्रमादित्य मार्ग में ₹22000 वर्ग मीटर, वर्ष 2010 में सर्किल रेट ₹11000 वर्ग मीटर था. इसी प्रकार पार्क रोड का वर्तमान समय में ₹27500 और वर्ष 2010 में ₹15000 वर्ग मीटर सर्किल रेट था. गोमतीनगर के विभूति खंड का वर्तमान समय में ₹40000 और वर्ष 2010 में ₹18000 सर्किल रेट था. महानगर का अभी ₹25000 और इससे पहले 2010 में ₹12500 सर्किल रेट था. हजरतगंज का अभी ₹45500, इससे पहले 2010 में 18500 सर्किल रेट था. गोमतीनगर के विवेक खंड का अभी 30500 और वर्ष 2010 में 12500 सर्किल रेट था. चिनहट का अभी ₹10500 और इससे पहले वर्ष 2010 में ₹5000 सर्किल रेट था.

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