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उपचुनाव में अखिलेश की दूरी से सपा में गजब चर्चाएं, प्रचार में गायब रहने से कार्यकर्ताओं में नाराजगी

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक फैसले की गजब तरह से चर्चाएं हो रही हैं. प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर रहे एक वरिष्ठ नेता इस फैसले पर कहते हैं कि जब हम राजनीति के क्षेत्र में हैं तो प्रचार में ना जाना सबसे बड़ी मूर्खता है.

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
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Published : Jun 27, 2022, 4:25 PM IST

Updated : Jun 27, 2022, 7:23 PM IST

लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक फैसले की गजब तरह से चर्चाएं हो रही हैं. दरअसल, अखिलेश यादव आजमगढ़ व रामपुर के लोकसभा उपचुनाव के प्रचार से दूर रहे. इसको लेकर समाजवादी पार्टी के अंदर नेताओं और कार्यकर्ताओं में खासा नाराजगी भी है. अनौपचारिक बातचीत में सपा नेता और कार्यकर्ता कहते हैं कि आखिर हमारी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव चाहते क्या हैं, क्या उन्हें राजनीति करनी नहीं आती. वह कहते हैं कि इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा, लेकिन उपचुनाव में अखिलेश यादव के ना जाने से कार्यकर्ताओं में मायूसी है. अगर वह प्रचार में जाते तो कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ता और इसके अच्छे परिणाम होते.

आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में यह दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में गईं थीं, लेकिन उपचुनाव हुए तो सपा अपनी जीत बरकरार नहीं रख पाई. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया और जीत दर्ज की. समाजवादी पार्टी के नेता व कार्यकर्ताओं द्वारा कई तरह की चर्चाएं की जा रही हैं. एक वरिष्ठ नेता जो पार्टी में प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर रहे हैं, उन्होंने कहा कि जब हम राजनीति के क्षेत्र में हैं तो प्रचार में ना जाना सबसे बड़ी मूर्खता है. हमें समाज के बीच जाकर अपनी बात कहने का हक है, नहीं तो फिर राजनीति करने का कोई औचित्य नहीं है. रामपुर और आजमगढ़ हमारी सीटें थीं, लेकिन वहां की जनता को हम उपचुनाव के लिए समझा नहीं पाए. कार्यकर्ताओं का मनोबल भी काफी कम हुआ है. अगर अखिलेश यादव चुनाव प्रचार में पहुंचते और जनता से संवाद करते तो जनता भी अखिलेश यादव के साथ खड़ी हुई नजर आती. वे कहते हैं कि आजमगढ़ व रामपुर में अभी 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हुई थी. जिसके बाद अखिलेश यादव का उपचुनाव में दूरी बनाना आत्मघाती कदम साबित हुआ.

राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री

पार्टी के अंदर कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़कर वरिष्ठ नेताओं से राय मशविरा करें और फील्ड पर जाएं. उन्हें संगठन को मजबूत करने को लेकर काम करना होगा. तभी समाजवादी पार्टी बेहतर परफॉर्म कर पाएगी. हमें ट्वीटर वाली दुनिया से बाहर निकलकर समाज के बीच जाना होगा. विधानसभा चुनाव में गठबंधन दल के रूप में जुड़ने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी अखिलेश यादव की कार्यशैली पर कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है कि उन्हें ट्विटर से बाहर निकल कर समाज के बीच जाकर संगठन निर्माण और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है. सिर्फ कुछ लोगों की सलाह पर और ट्विटर के सहारे सवाल उठाने से कुछ नहीं होगा. जमीन पर उतरकर संघर्ष करना होगा.


राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपनी जमीनी सक्रियता के लिए प्रसिद्ध थे. उनके उत्तराधिकारी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ट्विटर पर सक्रियता के लिए चर्चित हैं. दो पीढ़ियों की यह कार्यशैली अब चर्चा में है. कुछ दिन पहले उनके चुनावी गठबंधन के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने भी यही आरोप लगाया था. उनका कहना था कि अखिलेश को ट्विटर छोड़कर जमीन पर सक्रियता दिखानी चाहिए. रामपुर और आजमगढ़ चुनाव परिणाम से यह चर्चा तेज हो गई है.

ये भी पढ़ें : लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में बदलाव: प्राची सिंह को मिली डीसीपी ईस्ट की कमान, कासिम बनें DCP नार्थ

चौंकाने वाली बात यह है कि अखिलेश दोनों क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए थे. उन्होंने प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए लोकसभा की सदस्यता छोड़कर विधानसभा में रहने का निर्णय लिया था, लेकिन सौ दिन में ही यह निर्णय निरर्थक साबित हो रहा है. विधानसभा से लेकर सड़क तक मुख्य विपक्षी पार्टी अपने दायित्व का प्रभावी निर्वहन करने में विफल हुई है. इससे समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं में भी काफी नाराजगी है कि राजनीतिक क्षेत्र में होने के बावजूद लोकसभा चुनाव के प्रचार में ना जाना कहां का अच्छा निर्णय है. इससे कार्यकर्ताओं में अच्छा सन्देश नहीं जाता है.

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लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक फैसले की गजब तरह से चर्चाएं हो रही हैं. दरअसल, अखिलेश यादव आजमगढ़ व रामपुर के लोकसभा उपचुनाव के प्रचार से दूर रहे. इसको लेकर समाजवादी पार्टी के अंदर नेताओं और कार्यकर्ताओं में खासा नाराजगी भी है. अनौपचारिक बातचीत में सपा नेता और कार्यकर्ता कहते हैं कि आखिर हमारी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव चाहते क्या हैं, क्या उन्हें राजनीति करनी नहीं आती. वह कहते हैं कि इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा, लेकिन उपचुनाव में अखिलेश यादव के ना जाने से कार्यकर्ताओं में मायूसी है. अगर वह प्रचार में जाते तो कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ता और इसके अच्छे परिणाम होते.

आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में यह दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में गईं थीं, लेकिन उपचुनाव हुए तो सपा अपनी जीत बरकरार नहीं रख पाई. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक चुनाव प्रचार किया और जीत दर्ज की. समाजवादी पार्टी के नेता व कार्यकर्ताओं द्वारा कई तरह की चर्चाएं की जा रही हैं. एक वरिष्ठ नेता जो पार्टी में प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर रहे हैं, उन्होंने कहा कि जब हम राजनीति के क्षेत्र में हैं तो प्रचार में ना जाना सबसे बड़ी मूर्खता है. हमें समाज के बीच जाकर अपनी बात कहने का हक है, नहीं तो फिर राजनीति करने का कोई औचित्य नहीं है. रामपुर और आजमगढ़ हमारी सीटें थीं, लेकिन वहां की जनता को हम उपचुनाव के लिए समझा नहीं पाए. कार्यकर्ताओं का मनोबल भी काफी कम हुआ है. अगर अखिलेश यादव चुनाव प्रचार में पहुंचते और जनता से संवाद करते तो जनता भी अखिलेश यादव के साथ खड़ी हुई नजर आती. वे कहते हैं कि आजमगढ़ व रामपुर में अभी 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हुई थी. जिसके बाद अखिलेश यादव का उपचुनाव में दूरी बनाना आत्मघाती कदम साबित हुआ.

राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री

पार्टी के अंदर कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़कर वरिष्ठ नेताओं से राय मशविरा करें और फील्ड पर जाएं. उन्हें संगठन को मजबूत करने को लेकर काम करना होगा. तभी समाजवादी पार्टी बेहतर परफॉर्म कर पाएगी. हमें ट्वीटर वाली दुनिया से बाहर निकलकर समाज के बीच जाना होगा. विधानसभा चुनाव में गठबंधन दल के रूप में जुड़ने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी अखिलेश यादव की कार्यशैली पर कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं. उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है कि उन्हें ट्विटर से बाहर निकल कर समाज के बीच जाकर संगठन निर्माण और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है. सिर्फ कुछ लोगों की सलाह पर और ट्विटर के सहारे सवाल उठाने से कुछ नहीं होगा. जमीन पर उतरकर संघर्ष करना होगा.


राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपनी जमीनी सक्रियता के लिए प्रसिद्ध थे. उनके उत्तराधिकारी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ट्विटर पर सक्रियता के लिए चर्चित हैं. दो पीढ़ियों की यह कार्यशैली अब चर्चा में है. कुछ दिन पहले उनके चुनावी गठबंधन के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने भी यही आरोप लगाया था. उनका कहना था कि अखिलेश को ट्विटर छोड़कर जमीन पर सक्रियता दिखानी चाहिए. रामपुर और आजमगढ़ चुनाव परिणाम से यह चर्चा तेज हो गई है.

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चौंकाने वाली बात यह है कि अखिलेश दोनों क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए थे. उन्होंने प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए लोकसभा की सदस्यता छोड़कर विधानसभा में रहने का निर्णय लिया था, लेकिन सौ दिन में ही यह निर्णय निरर्थक साबित हो रहा है. विधानसभा से लेकर सड़क तक मुख्य विपक्षी पार्टी अपने दायित्व का प्रभावी निर्वहन करने में विफल हुई है. इससे समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं में भी काफी नाराजगी है कि राजनीतिक क्षेत्र में होने के बावजूद लोकसभा चुनाव के प्रचार में ना जाना कहां का अच्छा निर्णय है. इससे कार्यकर्ताओं में अच्छा सन्देश नहीं जाता है.

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Last Updated : Jun 27, 2022, 7:23 PM IST
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