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गौरैया बचाने के लिए करें जतन, पर्यावरण का हैं ये विशेष अंग

पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में गौरैया एक विशेष भूमिका निभाती हैं, लेकिन यह दुखद है कि पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या कम होती जा रही है. लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अमिता कनौजिया पिछले कई सालों से गौरैया को बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं.

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Published : Mar 21, 2019, 10:50 AM IST

गौरैया (फाइल फोटो).

लखनऊ : हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारे पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में गौरैया एक विशेष भूमिका निभाती हैं, लेकिन यह दुखद है कि पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या कम होती जा रही है. ऐसे में लोगों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी संख्या को दोबारा बढ़ाने के लिए कई आयोजन किए जा रहे हैं. इन प्रयासों में स्पैरो हाउसेस बांटना और कुछ प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाना शामिल किया गया है.

अमिता कनौजिया कई सालों से गौरैया को बचाने के लिए काम कर रही हैं.

पर्यावरण में गौरैया अपने विशेष कार्य की वजह से जानी जाती है. यह पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में सहायक होते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अमिता कनौजिया पिछले कई सालों से गौरैया को बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं. हर साल वह गौरैया के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके अभियान से लोगों को जोड़ने की ओर अग्रसर करती हैं. इसके साथ ही वह समय-समय पर लोगों को स्पैरो हाउस, कृत्रिम घोसले और गौरैया को संरक्षित करने वाले कई कार्य करती हैं.

प्रोफेसर अमिता कहती है ऐसे कई कारण हमारे सामने हैं, जिनकी वजह से शहरी क्षेत्रों में गौरैया दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैं. हमारी जीवनशैली इसका सबसे बड़ा कारण है. उन्होंने बताया कि पहले के घरों में रोशनदान होते थे, जिनसे आकर गौरैया घोसले या अपना घर बनाकर रहती थी. इसके अलावा ऐसे पेड़ भी अब हमारे आसपास नहीं रहते जिन पर वह अपना घोंसला बनाना पसंद करती हैं. जैसे जंगली बबूल, बेर आदि. इन पौधों पर ही वह रहती हैं. सबसे जरूरी बात यह है कि हमारे खानपान में बदलाव आया है, जिसकी वजह से गौरैया का खानपान भी प्रभावित हुआ है.

पहले के घरों में चावल घर में साफ किए जाते थे, जिसमें से कीड़े या फिर धान जैसे चीजें निकलती थी और वह देखने पर गौरैया उसे अपना भोजन बनाती थी, लेकिन अब घरों में ऐसा नहीं होता. गौरैया को बचाने के लिए हमें सबसे पहले अपने घरों के बाहर स्पैरो हाउसेस लगाने चाहिए, पानी रखना चाहिए और अनाज के कुछ दाने जरूर घर के छज्जे या फिर छतों पर रखना चाहिए. जागरूकता की वजह से ही इनकी संख्या भी बढ़ सकती है. पिछले कुछ वर्षों में इसके प्रति जागरूकता बड़ी है और लोग अपने घरों के आसपास यह सभी जतन करने लगे हैं जो अच्छी बात है.

लखनऊ : हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारे पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में गौरैया एक विशेष भूमिका निभाती हैं, लेकिन यह दुखद है कि पिछले कुछ सालों में इनकी संख्या कम होती जा रही है. ऐसे में लोगों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी संख्या को दोबारा बढ़ाने के लिए कई आयोजन किए जा रहे हैं. इन प्रयासों में स्पैरो हाउसेस बांटना और कुछ प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाना शामिल किया गया है.

अमिता कनौजिया कई सालों से गौरैया को बचाने के लिए काम कर रही हैं.

पर्यावरण में गौरैया अपने विशेष कार्य की वजह से जानी जाती है. यह पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में सहायक होते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अमिता कनौजिया पिछले कई सालों से गौरैया को बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं. हर साल वह गौरैया के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके अभियान से लोगों को जोड़ने की ओर अग्रसर करती हैं. इसके साथ ही वह समय-समय पर लोगों को स्पैरो हाउस, कृत्रिम घोसले और गौरैया को संरक्षित करने वाले कई कार्य करती हैं.

प्रोफेसर अमिता कहती है ऐसे कई कारण हमारे सामने हैं, जिनकी वजह से शहरी क्षेत्रों में गौरैया दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैं. हमारी जीवनशैली इसका सबसे बड़ा कारण है. उन्होंने बताया कि पहले के घरों में रोशनदान होते थे, जिनसे आकर गौरैया घोसले या अपना घर बनाकर रहती थी. इसके अलावा ऐसे पेड़ भी अब हमारे आसपास नहीं रहते जिन पर वह अपना घोंसला बनाना पसंद करती हैं. जैसे जंगली बबूल, बेर आदि. इन पौधों पर ही वह रहती हैं. सबसे जरूरी बात यह है कि हमारे खानपान में बदलाव आया है, जिसकी वजह से गौरैया का खानपान भी प्रभावित हुआ है.

पहले के घरों में चावल घर में साफ किए जाते थे, जिसमें से कीड़े या फिर धान जैसे चीजें निकलती थी और वह देखने पर गौरैया उसे अपना भोजन बनाती थी, लेकिन अब घरों में ऐसा नहीं होता. गौरैया को बचाने के लिए हमें सबसे पहले अपने घरों के बाहर स्पैरो हाउसेस लगाने चाहिए, पानी रखना चाहिए और अनाज के कुछ दाने जरूर घर के छज्जे या फिर छतों पर रखना चाहिए. जागरूकता की वजह से ही इनकी संख्या भी बढ़ सकती है. पिछले कुछ वर्षों में इसके प्रति जागरूकता बड़ी है और लोग अपने घरों के आसपास यह सभी जतन करने लगे हैं जो अच्छी बात है.

Intro:लखनऊ। हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में गौरैया एक विशेष भूमिका निभाती हैं पर यह दुखद है कि पिछले कुछ वर्षों में इनकी संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है। ऐसे में लोगों मैं गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी संख्या को दोबारा बढ़ाने के लिए कई आयोजन किए जा रहे हैं । इन प्रयासों में स्पैरो हाउसेस बांटना और कुछ प्रतियोगिताओं के माध्यम से बच्चों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाना शामिल किया गया है।


Body:वीओ1 पर्यावरण में गौरैया अपने विशेष कार्य की वजह से जानी जाती है। यह पर्यावरण में प्रदूषण को कम करने में सहायक होते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अमिता कनौजिया पिछले कई वर्षों से गौरैया को बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं। हर साल वह गौरैया के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके अभियान से लोगों को जोड़ने की ओर अग्रसर करती हैं। इसके साथ ही वह समय समय पर लोगों को स्पैरो हाउस, कृत्रिम घोसले और गौरैया को संरक्षित करने वाले कई कार्य करती हैं। प्रो अमिता कहती है ऐसे कई कारण हमारे सामने हैं जिनकी वजह से शहरी क्षेत्रों में गौरैया दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैं। हमारी जीवनशैली इसका सबसे बड़ा कारण है। पहले के घरों में रोशनदान होते थे जिनसे आकर गौरैया घोसले या अपना घर बनाकर रहती थी। इसके अलावा ऐसे पेड़ भी अब हमारे आसपास नहीं रहते जिन पर वह अपना घोंसला बनाना पसंद करती हैं जैसे जंगली बबूल, बेर आदि। इन पौधों पर ही वह रहती हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि हमारे खानपान में बदलाव आया है जिसकी वजह से गौरैया का खानपान भी प्रभावित हुआ है। पहले के घरों में चावल घर में साफ किए जाते थे जिसमें से कीड़े या फिर धान जैसे चीजें निकलती थी और वह देखने पर गौरैया उसे अपना भोजन बनाती थी, लेकिन अब घरों में ऐसा नहीं होता गौरव को बचाने के लिए हमें सबसे पहले अपने घरों के बाहर स्पैरो हाउसेस लगाने चाहिए, पानी रखना चाहिए और अनाज के कुछ दाने जरूर घर के छज्जे या फिर छतों पर रखना चाहिए। जागरूकता की वजह से ही इनकी संख्या भी बढ़ सकती है। पिछले कुछ वर्षों में इसके प्रति जागरूकता बड़ी है और लोग अपने घरों के आसपास यह सभी जतन करने लगे हैं जो अच्छी बात है।


Conclusion:बाइट- डॉ अमिता कनौजिया रामांशी मिश्रा
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