आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
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जो परमेश्वर के कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता; वह परमेश्वर को ही प्राप्त होता है. राग, भय और क्रोध से सर्वथा रहित, मेरे में ही तल्लीन, परमात्मा के ही आश्रित तथा ज्ञानरूप तप से पवित्र हुए बहुत-से भक्त परमात्मा के भाव प्राप्त हो चुके हैं. जिस भाव से सारे लोग परमात्मा की शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप परमात्मा उन्हें फल देता है. निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है. कर्मों की सिद्धि चाहने वाले मनुष्य देवताओं की उपासना किया करते हैं. प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार परमेश्वर के द्वारा मानव समाज के चार विभाग परमेश्वर के द्वारा रचे गए हैं. यद्यपि परमेश्वर उसका कर्ता है, फिर भी परमेश्वर अकर्ता और अविनाशी है. परमात्मा पर किसी कर्म और कर्मफल का प्रभाव नहीं पड़ता, जो परमात्मा के सम्बन्ध में इस सत्य को जानता है, वह कभी भी कर्मों के पाश में नहीं बंधता. प्राचीन काल में समस्त मुक्तात्माओं ने परमात्मा की दिव्य प्रकृति को जान कर ही कर्म किया, अतः मानव को चाहिए कि उनके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करे. कर्म की बारीकियों को समझना अत्यन्त कठिन है. अतः मनुष्य को चाहिए कि वह यह ठीक से जाने कि कर्म क्या है, विकर्म क्या है और अकर्म क्या है. जो पुरुष कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है, वह योगी सम्पूर्ण कर्मों को करने वाला है. जिसके सम्पूर्ण कर्मों का आरम्भ संकल्प और कामना से रहित है तथा जिसके सम्पूर्ण कर्म ज्ञान रूपी अग्नि से जल गए हैं, उसको ज्ञानीजन भी बुद्धिमान कहते हैं. जो कर्म और फल की आसक्ति का त्याग करके आश्रय से रहित और सदा तृप्त है, वह कर्मों में अच्छी तरह लगा हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.
Last Updated : Aug 3, 2021, 6:03 AM IST