उदयपुर. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में 2 सीटें जीतकर सबको चौंकाने वाली बीटीपी में इस बार 2 फाड़ हो गए हैं. बीटीपी के दोनों विधायकों ने मिलकर नई पार्टी बाप (भारत आदिवासी पार्टी) बना ली है. ऐसे में डूंगरपुर और बांसवाड़ा के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में बाप पार्टी पैर पसारने लगी है. इसका बड़ा असर कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों पर पड़ेगा. आदिवासी युवाओं में गहरी पैठ के चलते बाप और बीटीपी मजबूती से टक्कर देंगी. वहीं, कांग्रेस और भाजपा को इससे बड़ा नुकसान हो सकता है.
बाप से डूंगरपुर के चौरासी विधायक राजकुमार रोत एक बार फिर मैदान में खड़े होंगे. वहीं, सागवाड़ा से रामप्रसाद डिंडोर मैदान में फिर से आ सकते हैं. बाप इस बार डूंगरपुर की 4, बांसवाड़ा में 5, प्रतापगढ़ में 2 और उदयपुर समेत कुल 27 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकर भाजपा-कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकती है. बीटीपी ने अभी तक चौरासी से रणछोड़ लाल ताबियाड को टिकिट दिया है. वहीं, बांसवाड़ा से 2 और सलूंबर से 1 प्रत्याशी को टिकट दिया है.
दोनों पार्टियों के लिए सिर दर्द : राजनीतिक विश्लेषक डॉ. कुंजन आचार्य ने बताया कि आदिवासी इलाकों में बीटीपी का बढ़ता जन आधार दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) के वोटों में सेंध लगाने की कोशिश करेगा. पिछले चुनाव में आदिवासी क्षेत्र में उभरकर सामने आई भारतीय ट्राइबल पार्टी अब राजस्थान के कई विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. इससे उदयपुर और बांसवाड़ा संभाग की विधानसभा सीटों पर प्रभाव देखने को मिलेगा. बांसवाड़ा और डुंगरपुर में जहां पहले कांग्रेस-बीजेपी के बीच मुकाबला होता था, अब वहां बीटीपी और बाप दो नई पार्टियां आ गई हैं, जो बीजेपी और कांग्रेस की चुनावी गणित को बिगाड़ सकती हैं.
दरअसल, मेवाड़ में आदिवासी आरक्षित सीटें हैं. भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी ने पिछले चुनाव में दो सीटें जीतकर बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी. हालांकि, इस बार बीटीपी के दोनों विधायकों ने पार्टी छोड़कर एक नई पार्टी बनाई है, भारत आदिवासी पार्टी. इससे मुकाबला और बढ़ गया है. राजनीतिक विश्लेषक कुंजन आचार्य बताते हैं कि हालांकि इन दोनों पार्टियों का इतना वर्चस्व नहीं है, लेकिन आदिवासी इलाकों में युवाओं की बीच पकड़ बनाना राष्ट्रीय पार्टियों के लिए समस्या खड़ी कर सकती हैं.