उदयपुर. दक्षिणी राजस्थान का एक महल होली को लेकर विशेष महत्व रखता है. आदिवासी सुदूर इलाके की पहाड़ियों पर स्थित इस महल में ही होलिका भक्त प्रहलाद का होली में जलाने के लिए बैठी थी. आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़े इस महल के बारे में....
इस गांव में है हिरण्यकश्यप का महल: दरअसल हिरण्यकश्यप का यह महल उदयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर उदयपुर-अहमदाबाद राजमार्ग पर टीडी से जावर गांव में बताया जाता है. हजारों वर्ष पुराने इस महल के बारे में आज भी स्थानीय लोग कहानियां सुनाते मिलते हैं. हालांकि वर्तमान में इस महल का खंडहर स्वरूप ही पहाड़ी पर देखने को मिलता है. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि उदयपुर का जावर माइंस क्षेत्र पौराणिक कथाओं के अनुसार अरावली रेंज की पहाड़ियों पर इस महल के अवशेष दिखाई देते हैं.
इस महल तक जाने के लिए पथरीले रास्तों से होते हुए करीब 4 से 5 किलोमीटर तक पहाड़ी पर चढ़ना पड़ता है. जहां दूर पहाड़ी पर एक महल की परकोटेनुमा दीवार दिखाई देती है. जहां ऊपर चढ़ने पर पहाड़ी के पहले भाग में महल के प्रवेश द्वार जैसे खंडर दिखाई देते हैं. हालांकि अब यह अवशेषों में तब्दील हो रही है. लेकिन अभी भी यह पौराणिक समय में भव्य महल होने का सबूत देती हैं. स्थानीय हनुमान मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां हिरण्यकश्यप का महल है. भक्त प्रहलाद को मारने के लिए होलिका इसी स्थान पर आग में बैठी थी. वे कहते हैं कि उनके बुजुर्गो से उन्होंने ये कहानी सुनी है.
कई बीघा में फैला हुआ महल: साहित्यकार डॉ महेंद्र भाणावत ने बताया कि इतिहास के दृष्टिकोण से इसे लेकर काफी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. जावर किसी दौर में बहुत बड़े देश के रूप में जाना जाता था. वहां का राजा हिरण्यकश्यप था. हिरण्यकश्यप का महल काफी लंबा चौड़ा होने के साथ कई बीघा क्षेत्र में फैला हुआ था. उन्होंने बताया कि मेवाड़ में होली का अपना एक विशेष इतिहास और महत्व है. इतना ही नहीं पहाड़ी पर कई किलोमीटर में फैले इस महल के चारों और प्रवेश द्वार बने हुए थे. वहीं खण्डर दिवारें महल की भव्यता की ओर इशारा करती हैं. लेकिन वर्तमान में पूरा महल जमीन में समाया हुआ नजर आता है.
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इसी महल में हुआ था प्रहलाद का जन्म: इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि इसी जगह राजा हिरण्यकश्यप का महल था. जहां भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ था. प्रहलाद की बुआ होलिका ने उसे लेकर अपनी गोद में होलिका में बैठी थी. कहा जाता है कि इसमें प्रहलाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई. स्थानीय लोगों का दावा है कि देश में होली की शुरूआत इसी जगह से हुई थी.
ग्रामीणों का कहना है कि यहां भगवान विष्णु का एक मंदिर है. इसके सामने एक धुणी बनी हुई है. जिसके बारे में मान्यता है कि होलीका भक्त प्रहलाद को मारने के लिए इसी स्थान पर आग में बैठी थी. कहा जाता है कि भक्त प्रहलाद की विष्णु भक्ति के चलते राजा हिरण्यकश्यप द्वारा उसे मारने के सभी प्रयास विफल होते जा रहे थे. इस पवित्र धुणी के बारे में मान्यता हैं कि यहीं प्रहलाद आग से बचकर निकले थे और होली की परंपरा शुरू हुई थी.
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स्थानीय लोग अभी भी यहां गहरी आस्था और विश्वास रखते हैं. ऐसे में मांगलिक कार्यक्रमों और अपने अन्य आयोजनों के लिए यहां आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं. इसके साथ ही वहां बने कुंड में आज भी लोग स्नान करते हैं. क्योंकि इसी कुंड में भक्त प्रहलाद ने होलिका से निकलकर स्नान किया था. इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखा.