पाली. जिले में जल व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए पूरे जिले भर में 52 बांध बनाए गए हैं. इन बांधों में हर वर्ष मानसून के समय बरसाती पानी की अच्छी आवक होती है. जिससे इनके आसपास के क्षेत्र में जल व्यवस्था को सुचारु रखा जाता है. वहीं जिले के सबसे बड़े जवाई बांध में पानी की आवक से हजारों किसानों की कृषि और पाली जिले के 9 शहरों में वर्ष भर तक जलापूर्ति की जाती है. हर वर्ष इन बांधों में मानसून का पानी तो आता है.
लेकिन इस पानी के आंकलन को लेकर हर बार अधिकारियों की गणित बिगड़ जाती है. हर बार अधिकारी जो पानी का आंकलन लगाते है. वह आकलन सही नहीं बैठ पाता. ऐसे में हर वर्ष पेयजल को लेकर समस्याएं सामने आती है. कभी किसानों को सिंचाई का पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता, तो कभी लोगों के लिए पेयजल का संकट होता है और उन्हें 3 से 4 दिन के अंतराल में पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है. कभी ऐसे भी संकट पैदा होते हैं कि लोगों को पीने के लिए भी ट्रेन से पानी मंगवाना पड़ता है. इन सभी कारणों के पीछे जलसंसाधन विभाग की अनदेखी सामने आती है. विभाग की ओर से हर वर्ष मानसून से पहले बांधों की रिपोर्ट तैयार की जाती है. इसमें इस रिपोर्ट में आज भी बांधों का आंकलन उस समय से ही किया जाता है.
जब बांधों का निर्माण हुआ था लेकिन जब से बांध बने हैं. उस समय से अब तक इन बांधों में कई परिवर्तन आए हैं इन बातों का अधिकारी ध्यान नहीं रख पाते. जानकारी है कि पाली में लगभग जल संसाधन विभाग की ओर से लगभग 52 बांधों पर निगरानी रखी जाती है. इन 52 बांधों में से 20 बांधों से पाली की पेयजल व्यवस्था को सुचारु रखा जाता है. वहीं अन्य बांधों से पाली की पेयजल और कृषि की व्यवस्थाओं को बरकरार रखा जाता है. अधिकारियों की मानें तो पाली में जितने भी बांध बने हुए हैं. वह आजादी से पहले या 20 वर्ष से अधिक समय पुराने हैं. इन बांधों में हर वर्ष मानसून के पानी के साथ में काफी मात्रा में मिट्टी आ जाती है.
ऐसे में हर वर्ष इन बांधों की गहराई कम होती जा रही है. लेकिन हर वर्ष जो विभाग की ओर से रिपोर्ट बनाई जाती है. वह रिपोर्ट उसी पुराने चार्ट के आधार पर बनाई जाती है जो चार्ट उस बांध के निर्माण के समय तैयार किया गया था. ऐसे में बांध के डेड स्टोरेज की गहराई का आंकलन सही नहीं हो पाता. जिससे हर वर्ष पानी को लेकर संकट के हालात पैदा हो जाता है. जलदाय विभाग के अधिकारियों का भी कहना है कि बांधों के निर्माण के बाद अभी तक इन बांधों से सिल्ट निकालने का काम कभी नहीं किया गया है. ऐसे में बांधों में आने वाले पानी के साथ कि सिल्ट लगातार बांधों की जमीन में जमती रहती हैं.