बाली (पाली). जिले के बाली क्षेत्र के देसूरी उपखंड के अंतर्गत त्रैलोक्य दीपक रणकपुर जैन मंदिर शुक्रवार से पर्यटकों और दर्शनार्थियों के लिए खोला जा रहा है. हर साल यहां 6 लाख अधिक देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं. अपनी प्रतिष्ठा के 50 साल बाद कोरोना काल में वीरानी झेल रहे विश्व विख्यात रणकपुर जैन मंदिर के शुक्रवार को विशाल पट खुलने के साथ ही चहल-पहल लौट आएगी. अपने शिल्प वैभव और वास्तुकला के लिए मशहूर इस मंदिर के फिलहाल दर्शन किए जा सकेंगे और इसके शिल्पकला को निहारा जा सकेगा. लेकिन प्रशासन के आगामी निर्देश मिलने तक परिसर में भोजनशाला और धर्मशाला बंद ही रहेगी.
'कोविड के नियमों के साथ मिलेगा मंदिर में प्रवेश'
रणकपुर जैन मंदिर का प्रबंधन देखने वाली श्री आणंद जी कल्याण जी पेढ़ी के प्रबंधक जसराज माली ने बताया कि मंदिर में आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्ते बनाए गए हैं और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए खड़े रखने लिए सफेद रंग के बॉक्स भी बनाए गए हैं. मंदिर में हाथ सैनिटाइज कर, मास्क पहनकर जाने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को ही प्रवेश मिलेगा. मंदिर तक पहुंचने के लिए कई रास्ते हैं, लेकिन हर प्रवेशार्थी प्रबंधन की नजरों से गुजरेगा. जिससे सैनिटाइजर और मास्क बांधे होना सुनिश्चित किया जा सके. इसके लिए अतिरिक्त रास्ते बैरिकेडिंग लगाकर रोक दिए गए हैं.
मंदिर के मुख्य पुजारी परिवार के सदस्य मानव शर्मा ने बताया कि मंदिर में पर्यटकों को प्रवेश मिलने के साथ परिसर में चहल-पहल लौट आएगी. उन्होंने बताया कि मंदिर में पर्यटकों को प्रवेश देने के लिए सरकारी गाइडलाइन की पालना की जाएगी.
'हर साल पहुंचते हैं 6 लाख से अधिक पर्यटक'
रणकपुर की आणंदजी कल्याण जी पैड़ी द्वारा उपलब्ध आंकड़ो के मुताबिक रणकपुर में हर साल 6 लाख से अधिक देशी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं. साल 2018 में 4,90,284 देशी और 1,17,107 विदेशी पर्यटक और वर्ष 2019 में 4,95,371 देशी और 1,05,949 पर्यटक पहुंचे थे. लेकिन कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते इस साल जनवरी से मार्च तक महज ही 83,419 देशी और 29,822 विदेश पर्यटक ही पहुंच पाए हैं.
'क्यों कहलाता हैं मंदिर 'त्रैलोक्य दीपक'
इस मंदिर में प्रवेश द्वार पर ही मंदिर का नाम 'त्रैलोक्य दीपक श्री राणकपुर तीर्थ' लिखा हुआ है. मान्यता है कि यह द्वार तीन लोक में दीपक समान है, इसलिए यह त्रिभुवन विहार नाम से भी अलंकृत है. धरण विहार,चतुर्मुख प्रासाद कहा जाता है. इसे स्वर्ग लोक के नलिनीगुल्म विमान की उपमा भी दी गई है. मंदिर के निर्माता मेवाड़ के राणा कुंभा के मंत्री धरण शाह ने स्वप्न में नलिनीगुल्म विमान देखने के बाद ही इस विमान सदृश मन्दिर निर्मित कराने का संकल्प मन में लिया था.
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'मंदिर में है 1,444 स्तंम्भ'
मंदिर में चार द्वार हैं. गर्भ गृह में भगवान आदिनाथ की 72 इंच विशाल और चारों दिशाओं में दर्शनीय चार भव्य प्रतिमाएं हैं. दूसरी तरफ तीसरे मंजिल के गर्भ गृह में भी इसी तरह चार-चार प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं. छहत्तर छोटी शिखरबन्द देव कुलिकाएं, रंगमंडप और शिखरों से मंडित चार बड़ी कुलिकाएं और चारों दिशाओं में चार महाधर प्रासाद यानी कुल 84 देव कुलिकाएं इस जिन भवन में हैं. चारों दिशाओं में 4 मेघनाद मंडप भी बेजोड़ हैं. जिनालय में नौ तलघर भी बताए जाते हैं. मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विपुल स्तम्भावली है. कहीं भी खड़े रहे, ये प्रभु के दर्शन में बाधा नहीं बनते. मंदिर में कुल 1,444 स्तम्भ हैं.
'धरणशाह के जीवन काल में ही हो गई थी प्रतिष्ठा'
आचार्य सोमसुन्दरसुरि की प्रेरणा से विक्रम संवत 1446 में मंदिर का निर्माण शुरू किया गया. राणा कुम्भा ने प्राचीन मादगी गांव के पास मंदिर के लिए जमीन दी थी. राणा के नाम से यह राणापुर, राणकपुर और अब रणकपुर कहलाया. मंदिर के शिल्पी मुंडारा निवासी देपा था. 50 साल बाद भी मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हुआ, तो धरणशाह ने अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए विक्रम संवत 1446 में प्रतिष्ठा करा दी. बाद में आनन्दजी कल्याणजी पैड़ी ने 1980 से 2001 तक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.
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'हरियाली से लकदक है अरावली पर्वतमाला'
इन दिनों हरियाली से लकदक अरावली पर्वतमाला मंदिर के आकर्षण में चार चांद लगा रही है. पर्वतमाला से सटकर निर्मित किए गए इस मंदिर के चारों ओर हरियाली का साम्राज्य है. सामने छलक रहा बांध, बांध में जा रही नदी, कल-कल करते झरने इस मंदिर के सौंदर्य में बढ़ोतरी कर रहे हैं. कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य भी समीप है, जहां वन्यजीवो की अठखेलियां देखने को मिल जाती हैं.