पाली. निकाय चुनाव को लेकर अब पाली में राजनीति की सरगर्मियां पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. गली मोहल्लों में जो पिछले 10 दिनों से चुनावी शोर शराबा चल रहा था, वह पूरी तरह से शांत हो चुका है. मतदान के बाद लगातार प्रचार प्रसार कर रहे प्रत्याशियों का भविष्य अब ईवीएम में बंद हो चुका है. वहीं पाली के लॉ कॉलेज के स्ट्रांग रूम में इन सभी का भविष्य कैद हो चुका है.
ऐसे में दोनों ही पार्टियों के आला पदाधिकारी अपने-अपने जिताऊ प्रत्याशियों के बाराबंदी में व्यस्त हो चुके हैं. चुनाव के बाद से ही अंदर ही अंदर कांग्रेस और भाजपा के आला पदाधिकारी अपने-अपने प्रत्याशियों को गोपनीय स्थानों पर ले जाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. हालांकि अगर इन दोनों ही पार्टियों के अंदर की बात को जाने तो, इस बार दोनों ही पार्टी के आला पदाधिकारियों की नजर पाली निकाय क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशियों पर ज्यादा है.
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पाली की नगर निकाय राजनीति में यह पहली बार है कि दोनों ही पार्टियां इस बार निर्दलीय प्रत्याशी पर ज्यादा नजर रखे हुए हैं. इस बार दोनों ही पार्टी के कई कार्यकर्ता पार्टी के टिकट वितरण प्रणाली से नाखुश नजर आए थे. ऐसे में कई जिताऊ कार्यकर्ताओं ने पार्टी से बगावत करते हुए बतौर निर्दलीय अपना नामांकन भरा और चुनाव लड़ा है. ऐसे में पार्टी के आला पदाधिकारी इन प्रत्याशियों को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश में जुट गए है.
दोनों ही पार्टियां निकाय बोर्ड बनाकर अपने पार्टी के चेहरे को शहरी मुखिया के रूप में सामने लाने की कोशिश में है. इसी को लेकर 16 नवंबर की शाम को मतदान प्रक्रिया समाप्त होते ही दोनों ही पार्टी के पदाधिकारियों द्वारा अपने-अपने प्रत्याशियों की बाड़ाबंदी शुरू कर दी गई. वहीं पार्टी से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को भी पार्टी के अधिकारी एक मझधार में लाने के लिए उन्हें भी पाबंदी में शामिल करने के प्रयास कर रहे हैं.