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जोधपुर: स्पेलिंग मिस्टेक होने पर स्कूल में एडमिशन से इनकार...हाईकोर्ट से राहत

राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने आवेदन पत्र और दस्तावेज में अंकित नाम की स्पेलिंग में मामूली विरोधाभास होने के आधार पर दो बच्चों को राहत देते हुए तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं. स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को एडमिशन देने से इनकार कर दिया था.

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Published : Jul 30, 2019, 3:20 PM IST

जोधपुर: स्पेलिंग मिस्टेक होने पर स्कूल में प्रवेश से इनकार...हाईकोर्ट से राहत

जोधपुर. सूरसागर निवासी मोहम्मद आरिफ के तीन वर्षीय पुत्र मोहम्मद असद और मोहम्मद नदीम की पुत्री जिकरा की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता रजाक के. हैदर व पंकज साईं ने पैरवी करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था. लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया.

जोधपुर: स्पेलिंग मिस्टेक होने पर स्कूल में प्रवेश से इनकार...हाईकोर्ट से राहत

लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि दोनों बच्चों के आवेदन पत्र और दस्तावेज में अंकित उनके नाम की स्पेलिंग में मामूली विरोधाभास है. अधिवक्ता हैदर ने तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत चयनित बच्चों को इस तरह के अव्यावहारिक कारणों से शिक्षा से वंचित करना अनुचित है.

अधिनियम की साफ मंशा है कि किसी भी बालक को दस्तावेज में विसंगति के आधार पर शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता, लेकिन फिर भी दोनों बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया. जो न केवल अविधिक और अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार और स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने और दोनों बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया.

जोधपुर. सूरसागर निवासी मोहम्मद आरिफ के तीन वर्षीय पुत्र मोहम्मद असद और मोहम्मद नदीम की पुत्री जिकरा की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता रजाक के. हैदर व पंकज साईं ने पैरवी करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था. लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया.

जोधपुर: स्पेलिंग मिस्टेक होने पर स्कूल में प्रवेश से इनकार...हाईकोर्ट से राहत

लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि दोनों बच्चों के आवेदन पत्र और दस्तावेज में अंकित उनके नाम की स्पेलिंग में मामूली विरोधाभास है. अधिवक्ता हैदर ने तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत चयनित बच्चों को इस तरह के अव्यावहारिक कारणों से शिक्षा से वंचित करना अनुचित है.

अधिनियम की साफ मंशा है कि किसी भी बालक को दस्तावेज में विसंगति के आधार पर शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता, लेकिन फिर भी दोनों बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया. जो न केवल अविधिक और अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार और स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने और दोनों बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया.

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शिक्षा का अधिकार से वंचित करने का मामला


जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने आवेदन पत्र और दस्तावेज में अंकित नाम की स्पेलिंग में मामूली विरोधाभास होने के आधार पर दो प्रवेशार्थियों को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित करने के मामले में दोनों बच्चों को राहत देते हुए तत्काल प्रवेश देने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख शासन सचिव, प्रारम्भिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के निदेशक, जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक) और निजी स्कूल सेंट एनस्लम स्कूल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। 


जोधपुर के सूरसागर निवासी मोहम्मद आरिफ के तीन वर्षीय पुत्र मोहम्मद असद और मोहम्मद नदीम की पुत्री जिकरा की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता रजाक के. हैदर व पंकज साईं ने पैरवी करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन आवेदन किया था। लॉटरी प्रक्रिया में चयनित होने के उपरांत उसे प्रवेश के लिए पात्र घोषित किया गया, लेकिन निजी स्कूल ने उसे इस आधार पर प्रवेश से वंचित कर दिया कि दोनों बच्चों के आवेदन पत्र और दस्तावेज में अंकित उनके नाम की स्पेलिंग में मामूली विरोधाभास है। 


अधिवक्ता हैदर ने तर्क दिया कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत चयनित बच्चों को इस तरह के अव्यावहारिक कारणों से शिक्षा से वंचित करना अनुचित है। अधिनियम की साफ मंशा है कि किसी भी बालक को दस्तावेज में विसंगति के आधार पर शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता, लेकिन फिर भी दोनों बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया, जो न केवल अविधिक और अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने राज्य सरकार व स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने और दोनों बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने का आदेश पारित किया।

बाईट रज्जाक हैदर, अधिवक्ता



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