भीलवाड़ा: अजमेर में स्थित विश्व प्रसिद्ध हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के 813वें उर्स का आगाज 28 दिसंबर को झंडे की रस्म के बाद होगा. प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले उर्स में वर्ष 1944 से ही झंडे की रस्म भीलवाड़ा के रहने वाला लाल मोहम्मद गौरी परिवार निभाता आया है. वर्तमान में लाल मोहम्मद गौरी के पोते फखरुद्दीन गौरी 28 दिसंबर को झंडे की रस्म अदा करेंगे. इसके बाद उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जाएगी.
झंडे की रस्म भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गोरी के पोते फखरुद्दीन गोरी, सैय्यद मारूफ अहमद साहब की सदारत में असर की नमाज के बाद, सूफियाना कलाम व 25 तोपों की सलामी के साथ अदा की जाएगी. असर की नमाज के बाद गरीब नमाज गेस्ट हाउस से गौरी परिवार के सानिध्य में उर्स के झंडे का जलसा रवाना होगा. यह लंगर खाना गली होते हुए दरगाह के निजाम गेट में प्रवेश करेगा. यहां से यह झंडा दरगाह के बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया जाएगा. इसी के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जाएगी.
फखरुद्दीन गौरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि अजमेर शरीफ में दरगाह के बुलंद दरवाजे पर इस वर्ष भी उर्स का झंडा पेश किया जाएगा. इस रस्म की शुरुआत 1928 में पीर मुर्शिद सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान ने की थी. वर्ष 1944 से मेरे दादा लाल मोहम्मद गौरी ने यह परंपरा निभाने की शुरुआत की थी. वहीं वर्ष 2007 से इस परंपरा को मैं निभा रहा हूं. इस बार 28 दिसंबर को यह रस्म अदा की जाएगी. दरगाह के गेस्ट हाउस से असर की नमाज के बाद जुलूस की शुरुआत होगी और बुलंद दरवाजे पर झंडा पेश किया जाएगा. उर्स रजब के चांद रात से 9 रजब तक यानी बड़े कुल की रस्म तक रहेगा.
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बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म के बाद उर्स की अनौपचारिक शुरुआत हो जाती है. उर्स में देश-विदेश से सभी जायरीन इस जलसे में शिरकत फरमाकर एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं. इस दौरान अमन-चैन व भाईचारे की दुआ करते हैं. मैं इस मौके पर देशवासियों को यही पैगाम देना चाहता हूं कि आपस में मिलजुल कर अमन-चैन व शांति से रहें. जिससे एक-दूसरे के साथ-साथ भाईचारा बना रहे.