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स्पेशल रिपोर्टः मंडावा का 'रण' आसान नहीं...सींगड़ा की जीत हार में उलझे सांसद

राजनीति में कई बार परिस्थितियां इतनी बलवान होती हैं कि बड़े से बड़े नेता चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता. झुंझुनू के मंडावा विधानसभा क्षेत्र में भी यही हालात बन रहे हैं. जिस तरह से राजस्थान की एकमात्र महिला सांसद का टिकट पिछले लोकसभा चुनाव में कटा था, वैसी ही कुछ परिस्थितियां वर्तमान में नरेंद्र खीचड़ के सामने बन गई हैं.

assembly by election, झुंझुनू सांसद नरेंद्र खींचड़
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Published : Oct 10, 2019, 4:17 PM IST

Updated : Oct 10, 2019, 10:15 PM IST

झुंझुनू. मंडावा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से कोई बूथ स्तर का कार्यक्रम हो या बड़े से बड़े नेता की सभा, झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ हर जगह ये विश्वास दिलाने के प्रयास में जुटे रहते हैं कि वो पूरे मन से उम्मीदवार को जिताने में जुटे हैं. इसका कारण है कि हर सर्वे में उनका पुत्र आगे चल रहा था. टिकट मिलने से एक दिन पहले तक उनके पुत्र अतुल खींचड़ का ही टिकट तय माना जा रहा था. बाद में राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां ऐसी बनी कि ऐन वक्त पर टिकट कट गया.

मंडावा विधानसभा चुनाव में झुंझुनू सांसद नरेंद्र खींचड़ की भूमिका

ऐसे में लोग अब मानने को तैयार नहीं है कि पुत्र के राजनीतिक करिअर को दांव पर लगाकर वो टिकट मिलने से एक दिन पहले भाजपा में आई सुशीला सींगड़ा के लिए मन से लगेंगे. इसलिए वो चाहते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय नेताओं के सामने ये संदेश कतई ना जाए कि अंदरखाने कोई गड़बड़ कर रहे हैं या मन से साथ नहीं है.

पढ़ें: विधानसभा उप चुनाव: मंडावा के बाजार से चुनावी चर्चा, स्थानीय ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी

कहीं इतिहास तो नहीं दोहराया जाएगा

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सूरजगढ़ विधायक संतोष अहलावत को झुंझुनू से टिकट मिला और उन्होंने यहां से पहली बार कमल खिलाया. इससे सूरजगढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गई और संतोष अहलावत ने अपने पति सुरेंद्र अहलावत के लिए यहां से टिकट की मांग की. लेकिन, भाजपा ने अपने कद्दावर नेता दिगंबर सिंह को चुनाव में उतारा. लेकिन यहां गड़बड़ हो गई और केवल छह महीने में ही भाजपा के हाथ से सूरजगढ़ विधानसभा की सीट निकल गई और दिगंबर चुनाव में हार गए. आरोप यह भी लगे कि संतोष अहलावत ने अंदरखाने गड़बड़ की, नहीं तो केवल छह महीने में माहौल कैसे बदल गया. राजनीतिक हलकों में भी यह चर्चा आम है कि इसे राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने गंभीरता से लिया. राजस्थान से एकमात्र महिला सांसद होने और बेस्ट सांसद का अवॉर्ड मिलने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया. उनकी जगह मंडावा विधायक नरेंद्र खीचड़ को टिकट दिया गया. अब विधायक भी अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी जगह भाजपा ने सुशीला सींगड़ा को टिकट दे दिया. अब स्थिति ऐसी बन गई है कि खींचड़ को सुशीला सींगड़ा के प्रचार में कोई कमी नहीं रखनी होगी. नहीं तो निश्चित ही राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व उनसे ये सवाल जरूर करेगा कि छह महीने में परिस्थितियां कैसे बदल गई. क्या उन्होंने पुत्र मोह में पूरा साथ नहीं दिया. नेताओं में ये चर्चा है कि इस हार का बदला संतोष अहलावत की तरह नरेंद्र खीचड़ का अगली बार सांसद का टिकट काटकर चुकाया जा सकता है.

झुंझुनू. मंडावा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से कोई बूथ स्तर का कार्यक्रम हो या बड़े से बड़े नेता की सभा, झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ हर जगह ये विश्वास दिलाने के प्रयास में जुटे रहते हैं कि वो पूरे मन से उम्मीदवार को जिताने में जुटे हैं. इसका कारण है कि हर सर्वे में उनका पुत्र आगे चल रहा था. टिकट मिलने से एक दिन पहले तक उनके पुत्र अतुल खींचड़ का ही टिकट तय माना जा रहा था. बाद में राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां ऐसी बनी कि ऐन वक्त पर टिकट कट गया.

मंडावा विधानसभा चुनाव में झुंझुनू सांसद नरेंद्र खींचड़ की भूमिका

ऐसे में लोग अब मानने को तैयार नहीं है कि पुत्र के राजनीतिक करिअर को दांव पर लगाकर वो टिकट मिलने से एक दिन पहले भाजपा में आई सुशीला सींगड़ा के लिए मन से लगेंगे. इसलिए वो चाहते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय नेताओं के सामने ये संदेश कतई ना जाए कि अंदरखाने कोई गड़बड़ कर रहे हैं या मन से साथ नहीं है.

पढ़ें: विधानसभा उप चुनाव: मंडावा के बाजार से चुनावी चर्चा, स्थानीय ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी

कहीं इतिहास तो नहीं दोहराया जाएगा

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सूरजगढ़ विधायक संतोष अहलावत को झुंझुनू से टिकट मिला और उन्होंने यहां से पहली बार कमल खिलाया. इससे सूरजगढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गई और संतोष अहलावत ने अपने पति सुरेंद्र अहलावत के लिए यहां से टिकट की मांग की. लेकिन, भाजपा ने अपने कद्दावर नेता दिगंबर सिंह को चुनाव में उतारा. लेकिन यहां गड़बड़ हो गई और केवल छह महीने में ही भाजपा के हाथ से सूरजगढ़ विधानसभा की सीट निकल गई और दिगंबर चुनाव में हार गए. आरोप यह भी लगे कि संतोष अहलावत ने अंदरखाने गड़बड़ की, नहीं तो केवल छह महीने में माहौल कैसे बदल गया. राजनीतिक हलकों में भी यह चर्चा आम है कि इसे राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने गंभीरता से लिया. राजस्थान से एकमात्र महिला सांसद होने और बेस्ट सांसद का अवॉर्ड मिलने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया. उनकी जगह मंडावा विधायक नरेंद्र खीचड़ को टिकट दिया गया. अब विधायक भी अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी जगह भाजपा ने सुशीला सींगड़ा को टिकट दे दिया. अब स्थिति ऐसी बन गई है कि खींचड़ को सुशीला सींगड़ा के प्रचार में कोई कमी नहीं रखनी होगी. नहीं तो निश्चित ही राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व उनसे ये सवाल जरूर करेगा कि छह महीने में परिस्थितियां कैसे बदल गई. क्या उन्होंने पुत्र मोह में पूरा साथ नहीं दिया. नेताओं में ये चर्चा है कि इस हार का बदला संतोष अहलावत की तरह नरेंद्र खीचड़ का अगली बार सांसद का टिकट काटकर चुकाया जा सकता है.

Intro:राजनीति में कई बार परिस्थितियां इतनी बलवान होती है कि बड़े से बड़े नेता चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते, झुंझुनू के मंडावा विधानसभा में भी यही हालात बन रहे हैं और जिस तरह से राजस्थान की एकमात्र महिला सांसद का टिकट गत लोकसभा चुनाव में टिकट कटा था वैसी ही कुछ परिस्थितियां वर्तमान नरेंद्र खीचड़ के सामने है।


Body:झुंझुनू। मंडावा विधानसभा में भाजपा की ओर से कोई बूथ स्तर का कार्यक्रम हो या बड़े से बड़े नेता की सभा, झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ हर जगह यह विश्वास दिलाने के प्रयास में जुटे रहते हैं कि वे पूरे मन से प्रत्याशी को जिताने में जुटे हैं। इसका कारण है कि हर सर्वे में उनका पुत्र आगे चल रहा था टिकट मिलने से 1 दिन पहले तक उनके पुत्र अतुल खीचड़ का ही टिकट तय माना जा रहा था। बाद में राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां ऐसी बनी कि ऐन वक्त पर टिकट कट गया ऐसे में लोग अब मानने को तैयार नहीं है कि पुत्र के राजनीतिक कैरियर को दांव पर लगाकर वे टिकट मिलने से 1 दिन पहले भाजपा में आई सुशीला सीगड़ा के लिए मन से लगेंगे। इसलिए वे चाहते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय नेताओं के सामने यह संदेश कतई नहीं जाए की अंदरखाने कोई गड़बड़ कर रहे हैं, या मन से साथ नहीं है।

इतिहास ऐसे तो नहीं दोहराया जाएगा
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सूरजगढ़ विधायक संतोष अहलावत को झुंझुनू से टिकट मिला और उन्होंने यहां से पहली बार कमल खिलाया। इससे सूरजगढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गई और संतोष अहलावत ने अपने पति सुरेंद्र अहलावत के लिए यहां से टिकट की मांग की, लेकिन भाजपा ने अपने कद्दावर नेता दिगंबर सिंह को चुनाव में उतारा। यहां गड़बड़ हो गई और केवल 6 माह में ही भाजपा के हाथ से सूरजगढ़ विधानसभा की सीट निकल गई और दिगंबर चुनाव में हार गए। आरोप यह भी लगे कि संतोष अहलावत ने अंदरखाने गड़बड़ कि, नहीं तो केवल 6 माह में माहौल कैसे बदल गया। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि इसे राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने गंभीरता से लिया और राजस्थान से एकमात्र महिला सांसद होने बेस्ट सांसद का अवार्ड मिलने के बाद भी उनका टिकट काट दिया। उनकी जगह मंडावा विधायक नरेंद्र खीचड़ को टिकट दिया गया अब विधायक भी अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन उनकी जगह भाजपा ने सुशीला सीगड़ा को टिकट दे दिया। अब यह तय है कि यदि सुशीला सीगड़ा चुनाव हार जाती है तो निश्चित ही राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व उनसे यह सवाल तो जरूर करेगा कि 6 माह में परिस्थितियां कैसे बदल गई। क्या उन्होंने पुत्र मोह में पूरा साथ नहीं दिया नेताओं में यह चर्चा है कि इस हार का बदला संतोष अहलावत की तरह नरेंद्र का अगली बार सांसद का टिकट काटकर चुकाया जा सकता है।

प्रत्याशी जीता तो कहीं स्थाई ना हो जाए
भाजपा प्रत्याशी सुशीला सीगड़ा चार बार की प्रधान है और यहां की राजनीति में कहा जाता है कि उनको यदि एक बार कोई चीज मिल जाए तो वे ऐसी परिस्थितियां बना देती हैं कि वह पद उनसे दूर नहीं जाता। प्रधान के पद पर उन्होंने यह सिद्ध किया है कि वह जोड़-तोड़ कर लगातार चौथी बार प्रधान है ऐसे में सांसद नरेंद्र खीचड़ के समर्थकों को यह डर है कि यदि सुशीला सीगड़ा विधायक बन गई तो यहां पैर जमा लेगी और सांसद पुत्र का राजनीतिक भविष्य खतरे में आ जाएगा। उपचुनाव में जीती हुई विधायक का टिकट कटना मुश्किल हो जाएगा और इसके बाद आगामी चुनाव में भी अतुल खीचड़ को टिकट नहीं मिल पाएगा। इसके अलावा सीगड़ा पर भाजपा के कद्दावर नेता राजेंद्र राठौड़ का भी हाथ है और वे जीती हुई विधायक का टिकट कतई नहीं कटने देंगे, अब भविष्य में यहां की राजनीति क्या करवट लेती है यह आने वाला भविष्य ही बताएगा।


बाइट वन राजेंद्र राठौड़ मंडावा विधानसभा उप चुनाव प्रभारी व उप नेता प्रतिपक्ष


वाइट दो सतीश पूनिया प्रदेशाध्यक्ष भाजपा


बाइट 3 सांसद नरेंद्र खीचड़ झुंझुनूं


Conclusion:
Last Updated : Oct 10, 2019, 10:15 PM IST
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