झुंझुनू. मंडावा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से कोई बूथ स्तर का कार्यक्रम हो या बड़े से बड़े नेता की सभा, झुंझुनू सांसद नरेंद्र खीचड़ हर जगह ये विश्वास दिलाने के प्रयास में जुटे रहते हैं कि वो पूरे मन से उम्मीदवार को जिताने में जुटे हैं. इसका कारण है कि हर सर्वे में उनका पुत्र आगे चल रहा था. टिकट मिलने से एक दिन पहले तक उनके पुत्र अतुल खींचड़ का ही टिकट तय माना जा रहा था. बाद में राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां ऐसी बनी कि ऐन वक्त पर टिकट कट गया.
ऐसे में लोग अब मानने को तैयार नहीं है कि पुत्र के राजनीतिक करिअर को दांव पर लगाकर वो टिकट मिलने से एक दिन पहले भाजपा में आई सुशीला सींगड़ा के लिए मन से लगेंगे. इसलिए वो चाहते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय नेताओं के सामने ये संदेश कतई ना जाए कि अंदरखाने कोई गड़बड़ कर रहे हैं या मन से साथ नहीं है.
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कहीं इतिहास तो नहीं दोहराया जाएगा
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सूरजगढ़ विधायक संतोष अहलावत को झुंझुनू से टिकट मिला और उन्होंने यहां से पहली बार कमल खिलाया. इससे सूरजगढ़ विधानसभा की सीट खाली हो गई और संतोष अहलावत ने अपने पति सुरेंद्र अहलावत के लिए यहां से टिकट की मांग की. लेकिन, भाजपा ने अपने कद्दावर नेता दिगंबर सिंह को चुनाव में उतारा. लेकिन यहां गड़बड़ हो गई और केवल छह महीने में ही भाजपा के हाथ से सूरजगढ़ विधानसभा की सीट निकल गई और दिगंबर चुनाव में हार गए. आरोप यह भी लगे कि संतोष अहलावत ने अंदरखाने गड़बड़ की, नहीं तो केवल छह महीने में माहौल कैसे बदल गया. राजनीतिक हलकों में भी यह चर्चा आम है कि इसे राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने गंभीरता से लिया. राजस्थान से एकमात्र महिला सांसद होने और बेस्ट सांसद का अवॉर्ड मिलने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया. उनकी जगह मंडावा विधायक नरेंद्र खीचड़ को टिकट दिया गया. अब विधायक भी अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी जगह भाजपा ने सुशीला सींगड़ा को टिकट दे दिया. अब स्थिति ऐसी बन गई है कि खींचड़ को सुशीला सींगड़ा के प्रचार में कोई कमी नहीं रखनी होगी. नहीं तो निश्चित ही राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व उनसे ये सवाल जरूर करेगा कि छह महीने में परिस्थितियां कैसे बदल गई. क्या उन्होंने पुत्र मोह में पूरा साथ नहीं दिया. नेताओं में ये चर्चा है कि इस हार का बदला संतोष अहलावत की तरह नरेंद्र खीचड़ का अगली बार सांसद का टिकट काटकर चुकाया जा सकता है.