झुंझुनूं. जिले के मलसीसर कस्बे में एक 100 बीघा में फैली जोहड़ी है. इसमें बरसात का पानी एकत्र होता और वो पूरे साल गांव वासियों और जानवरों की जरूरतों को पूरा करता. लेकिन वक्त बीतता गया और समय के साथ-साथ यह जोहड़ी मिट्टी से भरती गई. हमारी लापरवाही और अनदेखी का शिकार होती गई यह जोहड़ी 30 सालों में सिर्फ सांकेतिक रूप से यह अपना वजूद जिंदा रखे हुए हैं. अगर कुछ सालों तक और भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह इतिहास हो जाएगी.
आज के समय में एक बार फिर लौटेंगे लेकिन एक बार फिर आपको इतिहास में लिए चलते हैं. पहले क्षेत्र के अमीर और व्यापारी लोग दान-पुण्य का काम भी काफी करते थे. जैसे कि आज के समय में भी करते हैं. ऐसे ही झुंझुनूं के भी व्यापारियों ने मुंबई और कोलकाता में अच्छा नाम और पैसा कमाया. इन्हीं में से एक थे सेठ भगवानदास बिहारीलाल बंका. जिन्होंने गायों के चरने के लिए काफी अपनी जमीनें दान में दे दिए. जिसके बाद एक जोहड़ और एक जोहड़ी खुदवाई गई. जिसके जरिए जल संरक्षण किया जाता था.
समय बीतता गया. इस जोहड़ और जोहड़ी से गांव वालों को काफी आराम पहुंचा. लेकिन उन्होंने इसका ख्याल नहीं रखा. जब देश में विकास की लहर चली तो जोहड़ मुख्य सड़क के पास पड़ा तो उसका पक्का निर्माण करवा दिया गया. लेकिन 100 बीघे में फैली जोहड़ी कच्ची ही रह गई. इसके बाद इसमें धीरे-धीरे मिट्टी जमा होने लगी और जल संरक्षण खत्म होता गया. आज यह जोहड़ी के सिर्फ निशान बचे हैं.
अब इस जोहड़ी को लोगों से उम्मीद थी कि कोई आए और उसे फिर से उसके पुराने स्वरूप में ले जाए. हमेशा सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाला ईटीवी भारत जलसंरक्षण को लेकर एक खास मुहिम लेकर आया. और प्रदेश के अन्य जलाशयों और बांधों की तरह बंका सेठ की जोहड़ी का मुद्दा भी उठाया. और लोगों और प्रशासन से इसके पुनर्जीवित करने को लेकर अपील भी की. इसका असर भी हुआ. ग्रामीणों के साथ-साथ प्रशासन भी हमारी मुहिम के साथ आया. और यहां के कलेक्टर रवि जैन ने खुद यहां पर ग्रामीणों के साथ मिलकर जोहड़ी से मिट्टी निकालने की काम शुरू किया.
इस प्रयास के बाद उम्मीद जगी है कि यह जोहड़ी फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटेगी. और मलसीसर कस्बे के लोगों और जानवरों के लिए यह फिर से उसी तरह उपयोगी साबित होगी जैसे कि इसका जिक्र इतिहास में है.