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दक्षिण एशिया में युद्ध का खतरा! पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता संघर्ष , ऐसे में क्या कर रहा है भारत? - PAKISTAN AFGHANISTAN CONFLICT

नई दिल्ली के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान संघर्ष एक बड़ी चिंता का विषय हो सकता है. तनाव का असर पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरेशियाई क्षेत्रों पर पड़ सकता है. ईटीवी भारत संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट...

-As the Pakistan, Afghanistan conflict worsens, what is India doing?
पाकिस्तान और अफगानिस्तान संघर्ष भारत के लिए चिंता का विषय (फाइल फोटो) (AFP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 22 hours ago

नई दिल्ली: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव से संभावित संघर्ष की चिंता बढ़ रही है. जिसका असर पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरेशियाई क्षेत्रों पर पड़ सकता है. यह घटनाक्रम पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में हवाई हमले के बाद हुआ है. जवाब कार्रवाई में तालिबान ने पाकिस्तान में कई जगहों पर हमला किया.

वहीं, भारत अपने दोनों पड़ोसियों के बीच बढ़ते तनाव पर पैनी नजर बनाए हुए है. वह इसलिए, क्योंकि दोनों के बीच युद्ध नई दिल्ली की सुरक्षा और शरणार्थी संकट तथा आतंकवाद में वृद्धि जैसे कई मोर्चों पर चिंता का एक बड़ा कारण होगा. इसके अलावा, यह ध्यान देने योग्य है कि सोमवार को विदेश मंत्रालय ने निर्दोष नागरिकों पर किसी भी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा की है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक बयान में कहा, "अपनी आंतरिक विफलताओं के लिए अपने पड़ोसियों को दोष देना पाकिस्तान की पुरानी प्रथा है. हमने इस संबंध में अफ़गान प्रवक्ता की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान दिया है."

गौरतलब है कि, 1990 के दशक में पाकिस्तान ने भारत पर आतंकी हमले करने के लिए तालिबान का इस्तेमाल किया था. तो, सवाल यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष का भारत के लिए क्या मतलब हो सकता है? नई दिल्ली क्या कर रही है?

ईटीवी भारत से खास बातचीत में पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने कहा, "हाल ही में अफगानिस्तान-पाकिस्तान हिंसा काफी हद तक उन दोषपूर्ण नीतियों का नतीजा है, जो पाकिस्तान ने अपने पड़ोसियों के साथ व्यवहार में अपनाई हैं, जिसमें उसने विवेकपूर्ण कूटनीतिक लक्ष्यों की तुलना में संकीर्ण सैन्य उद्देश्यों को प्राथमिकता दी है.

अजय बिसारिया ने कहा कि,अपनी ओर से भारत ने अफगानिस्तान में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है. तालिबान के साथ जुड़ाव को संतुलित करते हुए उन पर भारत विरोधी गतिविधियों से दूर रहने का दबाव बनाया है. इसके विपरीत, पाकिस्तान अफगानिस्तान को रणनीतिक गहराई और प्रभाव हासिल करने के लिए देखता है. हालांकि, अगस्त 2021 में अमेरिका की वापसी के बाद से यह रणनीति उल्टी पड़ गई है.

अजय बिसारिया ने आगे कहा, "पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को निशाना बनाएगा, डूरंड रेखा को मान्यता देगा और भारत को दूर रखेगा. इसके बजाय, भारत और तालिबान ने एक व्यावहारिक समझ विकसित की है, तालिबान डूरंड रेखा की अवहेलना करता है और वे टीटीपी का समर्थन करते हैं."

उन्होंने कहा कि, अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान में और उलझता है, तो उसकी सेना को उस सेना से बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसने ऐतिहासिक रूप से ब्रिटिश, रूसी और अमेरिकियों सहित कई शक्तियों को हराया है. पूर्व राजनयिक ने कहा, "आखिरकार, पाकिस्तान को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसकी "अच्छा तालिबान, बुरा तालिबान" नीति विफल हो गई है, और कूटनीति के साथ बिगड़ते संकट से निपटना चाहिए. एक अच्छा शुरुआती बिंदु यह होगा कि पाकिस्तानी सेना बल पर अपना एकाधिकार फिर से हासिल करे और उन आतंकवादी संगठनों को निरस्त्र करे, जिन्हें वह अपनी पड़ोस नीति के हिस्से के रूप में बढ़ावा देती है."

विशेषज्ञों का मानना है कि, नई दिल्ली पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर बारीकी से नज़र रख रही है, इस बात के संकेत हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हालिया सैन्य युद्धाभ्यास के मद्देनजर काबुल भारत के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने की कोशिश कर सकता है और इस्लामाबाद से खुद को दूर कर सकता है.

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत ने पिछले साल तालिबान के साथ कई चर्चाएं की हैं, एक ऐसी रणनीति जिसने पाकिस्तान को नाराज किया है. इसके अलावा, भारत ने तालिबान के एक प्रतिनिधि को मुंबई में अफगान वाणिज्य दूतावास से काम करने की अनुमति दी है, और काबुल ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है कि उसके क्षेत्र का उपयोग भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा.

अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते भी भारत के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता से प्रभावित हैं. अफगानिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं, खासकर आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों के मामले में, जो अक्सर पाकिस्तान के लिए तनाव का स्रोत रहा है. इस्लामाबाद अफगान भारत के साथ किसी भी मजबूत संबंध को क्षेत्र में अपने प्रभाव के लिए खतरा मानता है.

ये भी पढ़ें: पाकिस्तान बोला, 'नहीं माना अफगानिस्तान तो फिर करूंगा हमला'

नई दिल्ली: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव से संभावित संघर्ष की चिंता बढ़ रही है. जिसका असर पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरेशियाई क्षेत्रों पर पड़ सकता है. यह घटनाक्रम पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में हवाई हमले के बाद हुआ है. जवाब कार्रवाई में तालिबान ने पाकिस्तान में कई जगहों पर हमला किया.

वहीं, भारत अपने दोनों पड़ोसियों के बीच बढ़ते तनाव पर पैनी नजर बनाए हुए है. वह इसलिए, क्योंकि दोनों के बीच युद्ध नई दिल्ली की सुरक्षा और शरणार्थी संकट तथा आतंकवाद में वृद्धि जैसे कई मोर्चों पर चिंता का एक बड़ा कारण होगा. इसके अलावा, यह ध्यान देने योग्य है कि सोमवार को विदेश मंत्रालय ने निर्दोष नागरिकों पर किसी भी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा की है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक बयान में कहा, "अपनी आंतरिक विफलताओं के लिए अपने पड़ोसियों को दोष देना पाकिस्तान की पुरानी प्रथा है. हमने इस संबंध में अफ़गान प्रवक्ता की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान दिया है."

गौरतलब है कि, 1990 के दशक में पाकिस्तान ने भारत पर आतंकी हमले करने के लिए तालिबान का इस्तेमाल किया था. तो, सवाल यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष का भारत के लिए क्या मतलब हो सकता है? नई दिल्ली क्या कर रही है?

ईटीवी भारत से खास बातचीत में पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने कहा, "हाल ही में अफगानिस्तान-पाकिस्तान हिंसा काफी हद तक उन दोषपूर्ण नीतियों का नतीजा है, जो पाकिस्तान ने अपने पड़ोसियों के साथ व्यवहार में अपनाई हैं, जिसमें उसने विवेकपूर्ण कूटनीतिक लक्ष्यों की तुलना में संकीर्ण सैन्य उद्देश्यों को प्राथमिकता दी है.

अजय बिसारिया ने कहा कि,अपनी ओर से भारत ने अफगानिस्तान में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है. तालिबान के साथ जुड़ाव को संतुलित करते हुए उन पर भारत विरोधी गतिविधियों से दूर रहने का दबाव बनाया है. इसके विपरीत, पाकिस्तान अफगानिस्तान को रणनीतिक गहराई और प्रभाव हासिल करने के लिए देखता है. हालांकि, अगस्त 2021 में अमेरिका की वापसी के बाद से यह रणनीति उल्टी पड़ गई है.

अजय बिसारिया ने आगे कहा, "पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को निशाना बनाएगा, डूरंड रेखा को मान्यता देगा और भारत को दूर रखेगा. इसके बजाय, भारत और तालिबान ने एक व्यावहारिक समझ विकसित की है, तालिबान डूरंड रेखा की अवहेलना करता है और वे टीटीपी का समर्थन करते हैं."

उन्होंने कहा कि, अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान में और उलझता है, तो उसकी सेना को उस सेना से बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसने ऐतिहासिक रूप से ब्रिटिश, रूसी और अमेरिकियों सहित कई शक्तियों को हराया है. पूर्व राजनयिक ने कहा, "आखिरकार, पाकिस्तान को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसकी "अच्छा तालिबान, बुरा तालिबान" नीति विफल हो गई है, और कूटनीति के साथ बिगड़ते संकट से निपटना चाहिए. एक अच्छा शुरुआती बिंदु यह होगा कि पाकिस्तानी सेना बल पर अपना एकाधिकार फिर से हासिल करे और उन आतंकवादी संगठनों को निरस्त्र करे, जिन्हें वह अपनी पड़ोस नीति के हिस्से के रूप में बढ़ावा देती है."

विशेषज्ञों का मानना है कि, नई दिल्ली पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर बारीकी से नज़र रख रही है, इस बात के संकेत हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हालिया सैन्य युद्धाभ्यास के मद्देनजर काबुल भारत के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने की कोशिश कर सकता है और इस्लामाबाद से खुद को दूर कर सकता है.

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, भारत ने पिछले साल तालिबान के साथ कई चर्चाएं की हैं, एक ऐसी रणनीति जिसने पाकिस्तान को नाराज किया है. इसके अलावा, भारत ने तालिबान के एक प्रतिनिधि को मुंबई में अफगान वाणिज्य दूतावास से काम करने की अनुमति दी है, और काबुल ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है कि उसके क्षेत्र का उपयोग भारत के खिलाफ गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा.

अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते भी भारत के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता से प्रभावित हैं. अफगानिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं, खासकर आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों के मामले में, जो अक्सर पाकिस्तान के लिए तनाव का स्रोत रहा है. इस्लामाबाद अफगान भारत के साथ किसी भी मजबूत संबंध को क्षेत्र में अपने प्रभाव के लिए खतरा मानता है.

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