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वंशवाद को खाद्य पानी दे रहे नगरीय निकाय चुनाव, यहां पिछले तीन दशकों से 5-7 परिवारों का है दबदबा

शहर की सरकार के बारे में दो से तीन दशकों की बात की जाए तो शहरी सरकार की सियासत कुछ चुनिंदा परिवारों के इर्द-गिर्द जरूर रहती है. इसमें पूर्व पालिकाध्यक्ष तैयब अली, पूर्व सभापति खालिद हुसैन, पुजारी परिवार, टीबड़ा परिवार और गत कुछ समय से जाटों के कुछ परिवारों का लगातार दबदबा रहा है.

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Published : Nov 12, 2019, 4:52 PM IST


झुंझुनू. केंद्रीय और राज्य स्तर पर, बड़े नेताओं के मामले में तो वंशवाद का मुद्दा गरमाया रहता है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस वंशवाद को खाद पानी नीचे से ही मिलता है. झुंझुनू शहर की सरकार बनाने में 5-7 परिवार ऐसे हैं, जो हर बार दंगल में हाथ आजमाते नजर आते हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां भी इन्हीं परिवारों को हर बार टिकट थमा देती हैं. नगर निकाय के चुनाव के बीच जहां हर वार्ड में जीत हार के समीकरणों की चर्चा हो रही है. वहीं, कुछ ऐसे भी प्रत्याशी हैं जो खुद या उनके परिवार बेहद चर्चा में हैं.

झुंझुनू में निकाय चुनाव में वंशवाद

सास ससुर पार्षद रहे, अब बहू मैदान में

शहर के वार्ड नंबर 40 से कांग्रेस नेता नगमा बानो दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. उनके ससुर तैयब अली तीन बार पार्षद और एक बार पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं. वहीं, 2004 में नगमा की सास जमीला भी पार्षद चुनी गई थीं. 2018 में हुए उपचुनाव में तैयब अली की पुत्रवधू नगमा बानो पार्षद बनीं. इस बार वे फिर से चुनावी मैदान में हैं. तैयब अली के ताऊ हाजी हकीम मुमताज अली भी 1971 में पार्षद रहे.

ये पढ़ेंः महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन है अपवित्र : अर्जुन राम मेघवाल

दो दशक से मैदान में हैं पुजारी परिवार

बात की जाए पूर्व पालिका उपाध्यक्ष पवन पुजारी के परिवार की तो ये परिवार पिछले दो दशकों से निकाय चुनाव में भागीदारी आजमा रहा है. 1994 में पवन पुजारी पार्षद चुने गए, 1999 में वे दूसरी बार पार्षद बनकर पालिका उपाध्यक्ष भी बने. 2004 में उन्होंने अपने बेटे आनंद पुजारी को पार्षद बनाया. 2009 के चुनाव में पवन पुजारी ने सभापति का चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए. 2004 में उनकी चाची संतोष भी पार्षद रह चुकी हैं. इस चुनाव में भी पवन पुजारी वार्ड 55 से चुनाव लड़ रहे हैं.

चार बार चुनाव जीतने वाली सुधा फिर चुनाव रण में

महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला बेनीवाल चार चुनाव में से तीन बार जीती हैं और यह उनका पांचवा चुनाव है. बेनीवाल 2009 में उपसभापति भी बनीं. इसी प्रकार भाजपा नेता सुधा पवार चार बार पार्षद बन चुकी हैं. अब पांचवी बार मैदान में हैं. वर्तमान पार्षद कुलदीप पूनिया का परिवार चौथी बार मैदान में है. पूनिया ने इस बार अपनी पत्नी सुमन पूनिया को मैदान में उतारा है. कुलदीप 2004 में पहली बार पार्षद बने 2009 में सुमन पार्षद बनीं.

ये पढ़ेंः Exclusive: अयोध्या फैसला, अनुच्छेद 370 और निकाय चुनाव को लेकर अर्जुन राम मेघवाल से खास बातचीत, क्या कहा सुनिए

पूर्व सभापति खालिद हुसैन के बाद पत्नी भी सियासी राह पर

पूर्व सभापति खालिद हुसैन की पत्नी नाजिमा दूसरी बार मैदान में है. हुसैन के ताऊ अली हुसैन 6 बार सदस्य रहे. 1994 में खुद खालिद हुसैन पार्षद बने 2009 में हुसैन सभापति चुने गए. 2004 में उनकी पत्नी नाजिमा पार्षद बनीं.

वार्ड 35 का पार्षद परिवार, सास के बाद बहू भी चुनावी रण में उतरी

वार्ड 35 से आबिदा खोखर पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. 2004 में उनकी सास रबिया पार्षद थीं. 2009 और 2014 में उनके पति जुल्फीकार खोखर पार्षद बने. इस बार उन्होंने अपनी पत्नी आबिदा खोखर को मैदान में उतारा है.


झुंझुनू. केंद्रीय और राज्य स्तर पर, बड़े नेताओं के मामले में तो वंशवाद का मुद्दा गरमाया रहता है. लेकिन सच्चाई यह है कि इस वंशवाद को खाद पानी नीचे से ही मिलता है. झुंझुनू शहर की सरकार बनाने में 5-7 परिवार ऐसे हैं, जो हर बार दंगल में हाथ आजमाते नजर आते हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां भी इन्हीं परिवारों को हर बार टिकट थमा देती हैं. नगर निकाय के चुनाव के बीच जहां हर वार्ड में जीत हार के समीकरणों की चर्चा हो रही है. वहीं, कुछ ऐसे भी प्रत्याशी हैं जो खुद या उनके परिवार बेहद चर्चा में हैं.

झुंझुनू में निकाय चुनाव में वंशवाद

सास ससुर पार्षद रहे, अब बहू मैदान में

शहर के वार्ड नंबर 40 से कांग्रेस नेता नगमा बानो दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. उनके ससुर तैयब अली तीन बार पार्षद और एक बार पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं. वहीं, 2004 में नगमा की सास जमीला भी पार्षद चुनी गई थीं. 2018 में हुए उपचुनाव में तैयब अली की पुत्रवधू नगमा बानो पार्षद बनीं. इस बार वे फिर से चुनावी मैदान में हैं. तैयब अली के ताऊ हाजी हकीम मुमताज अली भी 1971 में पार्षद रहे.

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दो दशक से मैदान में हैं पुजारी परिवार

बात की जाए पूर्व पालिका उपाध्यक्ष पवन पुजारी के परिवार की तो ये परिवार पिछले दो दशकों से निकाय चुनाव में भागीदारी आजमा रहा है. 1994 में पवन पुजारी पार्षद चुने गए, 1999 में वे दूसरी बार पार्षद बनकर पालिका उपाध्यक्ष भी बने. 2004 में उन्होंने अपने बेटे आनंद पुजारी को पार्षद बनाया. 2009 के चुनाव में पवन पुजारी ने सभापति का चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए. 2004 में उनकी चाची संतोष भी पार्षद रह चुकी हैं. इस चुनाव में भी पवन पुजारी वार्ड 55 से चुनाव लड़ रहे हैं.

चार बार चुनाव जीतने वाली सुधा फिर चुनाव रण में

महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला बेनीवाल चार चुनाव में से तीन बार जीती हैं और यह उनका पांचवा चुनाव है. बेनीवाल 2009 में उपसभापति भी बनीं. इसी प्रकार भाजपा नेता सुधा पवार चार बार पार्षद बन चुकी हैं. अब पांचवी बार मैदान में हैं. वर्तमान पार्षद कुलदीप पूनिया का परिवार चौथी बार मैदान में है. पूनिया ने इस बार अपनी पत्नी सुमन पूनिया को मैदान में उतारा है. कुलदीप 2004 में पहली बार पार्षद बने 2009 में सुमन पार्षद बनीं.

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पूर्व सभापति खालिद हुसैन के बाद पत्नी भी सियासी राह पर

पूर्व सभापति खालिद हुसैन की पत्नी नाजिमा दूसरी बार मैदान में है. हुसैन के ताऊ अली हुसैन 6 बार सदस्य रहे. 1994 में खुद खालिद हुसैन पार्षद बने 2009 में हुसैन सभापति चुने गए. 2004 में उनकी पत्नी नाजिमा पार्षद बनीं.

वार्ड 35 का पार्षद परिवार, सास के बाद बहू भी चुनावी रण में उतरी

वार्ड 35 से आबिदा खोखर पहली बार चुनाव लड़ रही हैं. 2004 में उनकी सास रबिया पार्षद थीं. 2009 और 2014 में उनके पति जुल्फीकार खोखर पार्षद बने. इस बार उन्होंने अपनी पत्नी आबिदा खोखर को मैदान में उतारा है.

Intro:झुंझुनू शहर की सरकार के बारे में दो से तीन दशकों की बात की जाए तो शहरी सरकार की सियासत कुछ चुनिंदा परिवारों परिवारों के इर्द-गिर्द जरूर रहती है। इसमें पूर्व पालिकाध्यक्ष तैयब अली, पूर्व सभापति खालिद हुसैन, पुजारी परिवार, टीबड़ा परिवार और गत कुछ समय से जाटों के कुछ परिवारों का लगातार दबदबा रहा है।



Body:झुंझुनू। केंद्रीय और राज्य स्तर पर और बड़े नेताओं के मामले में तो वंशवाद का मुद्दा गरमाया रहता है लेकिन सच्चाई यह है कि इस वंशवाद को खाद पानी नीचे से ही मिलता है। झुंझुनू शहर की सरकार बनाने में 5- 7 परिवार जैसे हैं ,जो हर बार दंगल में हाथ आजमाते नजर आते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां भी इन्हीं परिवारों को हर बार टिकट थमा देते हैं। नगर निकाय के चुनाव के बीच जहां हर वार्ड में जीत हार के समीकरणों की चर्चा हो रही है वहीं कुछ ऐसे भी प्रत्याशी हैं जो खुद या उनके परिवार बेहद चर्चा में हैं।



सास ससुर पार्षद रहे, अब बहू मैदान में

शहर के वार्ड नंबर 40 से कांग्रेस नेता नगमा बानो दूसरी बार चुनाव लड़ रही है ,उनके ससुर तैयब अली तीन बार पार्षद व एक बार पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। 2004 में नगमा की सास जमीला भी पार्षद चुनी गई थी 2018 में हुए उपचुनाव में तैयब अली की पुत्रवधू नगमा बानो पार्षद बनी इस बार वे फिर से चुनावी मैदान में है। तैयब अली के ताऊ हाजी हकीम मुमताज अली भी 1971 में पार्षद रहे।

दो दशक से मैदान में हैं पुजारी परिवार

पूर्व पालिका उपाध्यक्ष पवन पुजारी का परिवार पिछले दो दशकों से निकाय चुनाव में भागीदारी आजमा रहा है 1994 में पवन पुजारी पार्षद चुने गए, 1999 में वे दूसरी बार पार्षद बनकर पालिका उपाध्यक्ष भी बने। 2004 में उन्होंने अपने बेटे आनंद पुजारी को पार्षद बनाया, 2009 के चुनाव में पवन पुजारी ने सभापति का चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए। 2004 में उनकी चाची संतोष भी पार्षद रह चुकी हैं इस चुनाव में भी पवन पुजारी वार्ड 55 से चुनाव लड़ रहे हैं।

चार बार चुनाव जीतने वाली सुधा फिर चुनाव रण में

महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष बिमला बेनीवाल पूर्व के चार चुनाव में से तीन बार जीती है और यह उनका पांचवा चुनाव ।है बेनीवाल 2009 में उपसभापति भी बनी इसी प्रकार भाजपा नेता सुधा पवार चार बार पार्षद बन चुकी है ,अब पांचवी बार मैदान में हैं। इसी प्रकार नि।वर्तमान पार्षद कुलदीप पूनिया का परिवार चौथी बार मैदान में है पूनिया ने इस बार अपनी पत्नी सुमन पूनिया को मैदान में उतारा है कुलदीप 2004 में पहली बार पार्षद बने 2009 में सुमन पार्षद बनी।

पूर्व सभापति खालिद हुसैन पति के बाद पत्नी भी सियासी राह पर

पूर्व सभापति खालिद हुसैन की पत्नी नाजिमा दूसरी बार मैदान में है हुसैन के ताऊ अली हुसैन के छ: बार सदस्य रहे, 1994 में खुद खालिद हुसैन पार्षद बने 2009 में हुसैन सभापति चुने गए, 2004 में उनकी पत्नी नाजिमा पार्षद बनी।

वार्ड 35 का पार्षद परिवार, सास के बाद बहू भी चुनावी रण में उतरी

वार्ड 35 से आबिदा खोखर पहली बार चुनाव लड़ रही है 2004 में उनकी सास रबिया पार्षद थी, 2009 और 2014 में उनके पति जुल्फीकार खोखर पार्षद बने। इस बार उन्होंने अपनी पत्नी आबिदा खोखर को मैदान में उतारा है।


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