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JLF 2023: जेएलएफ के क्लोजिंग डिबेट में जागा गोधरा कांड और सिख विरोधी दंगे का जिन

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की क्लोजिंग डिबेट में गोधरा कांड और 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे का जिन भी जाग (mention of Godhra kand and 1984 riots in JLF) गया. इसमें मोशन के पक्ष और विपक्ष में प्रतिभागियों ने अपने ​विचार रखे.

mention of Godhra kand and 1984 riots in JLF 2023 in a debate
जेएलएफ के क्लोजिंग डिबेट में जागा गोधरा कांड और सिख विरोधी दंगे का जिन
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Published : Jan 23, 2023, 11:28 PM IST

Updated : Jan 24, 2023, 11:27 AM IST

जेएलएफ क्लोजिंग डिबेट

जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी सत्र में लेफ्ट और राइट की डिबेट के बीच 2002 में हुआ गोधरा कांड और 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे का जिन भी जाग गया. जेएलएफ की क्लोजिंग डिबेट 'द राइट एंड डिवाइड कैन नेवर बी ब्रिज' पर हुई. जिसमें लेफ्ट की तरफ से पुरूषोत्तम अग्रवाल, जवाहर सरकार और वंदना शिवा ने अपने तर्क रखे. वहीं राइट की तरफ से पवन वर्मा, प्रियंका चतुर्वेदी और मकरंद परांजमे ने अपनी बात रखी. इस डिबेट को वीर संघवी ने मॉडरेट किया. डिबेट का फैसला ऑडियंस पोल से हुआ जिसमें निष्कर्ष निकला कि लेफ्ट और राइट के बीच की दूरी को पाटा नहीं जा सकता. इनके बीच कोई ब्रिज विकसित नहीं हो सकता.

'द राइट एंड डिवाइड कैन नेवर बी ब्रिज' डिबेट को लेकर श्रोताओं में खासी उत्सुकता नजर आई. हर कोई इस क्लोजिंग डिबेट को सुनने के लिए आतुर था. यही वजह रही कि 5:30 बजे शुरू होने वाली डिबेट से पहले 5:00 बजे ही फ्रंट लॉन पांडाल भर गया. डिबेट की शुरूआत मोशन पक्ष से जवाहर सरकार ने की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग बदलाव लाना चाहते हैं और कुछ उसी ऑर्डर में बने रहना चाहते हैं. लेकिन उन लोगों से कभी संधि नहीं की जा सकती जो महात्मा गांधी के हत्यारे हैं.

पढ़ें: JLF 2023: गौर गोपाल दास ने शेयर किए जीवन मंत्र, सोशल मीडिया पर कही ये बात

उन्होंने वेपन्स ऑफ टॉर्चर की बात करते हुए इनडायरेक्टली गोधरा कांड की ओर इशारा करते हुए कहा कि एक राज्य में 1000 से 2000 लोग मारे गए और पुलिस वहां मुंह मोड़े खड़ी थी. ये लोग केवल लेफ्ट और हाईजेक करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं पुरूषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि मनरेगा की बुराई करने वालों ने सरकार में आने के बाद भी कोई क्षमा नहीं मांगी. इस योजना को जारी रखा. ये केवल राजनीति है. उन्होंने आइंस्टीन की बात को दोहराते हुए कहा कि बेवकूफियों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता.

इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए वंदना शिवा ने कहा कि लेफ्ट और रॉन्ग दोनों अलग-अलग पैरामीटर हैं. यहां लेफ्ट और राइट की बात हो रही है और फिजिक्स के अनुसार लेफ्ट और राइट कभी आपस में नहीं मिल सकते. क्योंकि इन्हें ऑर्गनाइज ही अलग-अलग पैरामीटर के लिए किया गया है. राइट कल्चर डॉमिनेशन के लिए जबकि लेफ्ट समानता और न्याय के लिए काम करता है. वो बीते 30 साल से इकोनॉमिक और समानता की प्रक्रिया में लगे हैं.

उन्होंने दोनों हाथों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक लेफ्ट है, एक राइट है. उनके दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते करने से पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजिंग सिस्टम को नहीं बदल सकता. इसलिए इस ब्रिज के बजाए किसी ओर रास्ते को अपनाना होगा. वसुधैव कुटुम्बकम को अपनाना होगा. राजनीतिक दलों में लोग एक दल से दूसरे दल में जाते हैं जो सिर्फ राजनीतिक फायदा होता है. लेकिन इससे विचारों के बीच ब्रिज तैयार नहीं होता.

पढ़ें: JLF 2023 : सुधा मुर्ती बोलीं, विदेश जाना गलत नहीं, कल्चर से जुड़े रहें, दामाद ऋषि सुनक के ब्रिटेन पीएम बनने पर कही ये बात

वहीं जवाब में राइट पक्ष से पवन वर्मा ने कहा कि लेफ्ट और राइट पश्चिमी सोच है. भारत में सीविलाइजेशनल यूनिटी पर भरोसा करते हैं. लेफ्ट और राइट विचारधारा हो सकती है लेकिन वो ये मानते है कि गलत को कैसे सुधारा जाए और सही को कैसे बेहतर किया जाए. कांग्रेस ने आरएसएस पर बैन लगाया था, लेकिन नेहरू ही वो व्यक्ति थे, जिन्होंने आरएसएस से बैन हटाया. उन्होंने ही आरएसएस को 1963 गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया था. क्योंकि आरएसएस ने चीन से युद्ध के दौरान शानदार काम किया था.

उन्होंने कहा कि राष्ट्र ज्यादा महत्वपूर्ण है ना कि लेफ्ट और राइट. 1977 में जनसंघ और कम्युनिस्ट ने मिल कर जनता दल बनाया, यही भारत की सोच है. उन्होंने कहा कि लेफ्ट और राइट दोनों एक दूसरे से विचार और आइडिया को आदान-प्रदान करते हैं. वो किसी को क्रिटीसाइज नहीं करना चाहता. लेकिन ममता बनर्जी भी अटल बिहारी वाजपेयी की केबिनेट में शामिल थी और जिन देशों में कम्युनिस्ट सरकार है, वहां तानाशाही चल रही है.

पढ़ें: Pilot On Old Scams: पायलट ने उखाड़े गड़े मुर्दे, प्रदेश सरकार को दिलाई ललित मोदी की याद...दी सलाह

वहीं मोशन विपक्ष की बात को आगे बढ़ाते हुए मकरंद परान्जमे ने कहा कि वाम और दक्षिण पंथ ये तंत्र के हिस्से हैं. डिबेट लेफ्ट और राइट पर नहीं होनी चाहिए. बल्कि सही और गलत पर होनी चाहिए. धर्म और अर्धम पर होनी चाहिए. हमें सच के साथ खड़ा होना चाहिए. पड़ोसी देश में किसी को फ्रीडम नहीं है हर कोई सर्विलेंस पर है. इसलिए ये विचारधारा कभी काम नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि लड़ाई होनी चाहिए उन लोगों के बीच एक जो भारत को बढ़ता देखना चाहते हैं और दूसरे जिन्हें भारत की परवाह नहीं. उन्होंने कहा कि लेफ्ट और राइट के बीच पहले ही एक ब्रिज है जिस पर से लोग गुजर रहे हैं.

उन्होंने वंदना शिवा की बात पर कहा कि दो हाथों को जोड़कर नमस्कार, ताली और किसी का हाथ पकड़कर चला जा सकता है. उन्होंने कटाक्ष भरे लहजे में कहा कि लोग गुजरात की बात करते हैं. लेकिन दिल्ली में 1984 में जो हुआ उसके बारे में नहीं कहते. 26/11 के बारे में नहीं कहते. किसी ने विभाजन की बात नहीं कही. जो ये डिवाइड कैन नॉट बी ब्रिज की बात कहते हैं, उनसे डर लगता है क्योंकि वो इस ब्रिज को पहले ही तोड़ चुके हैं.

इस दौरान प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि वो खुद लेफ्ट और राइट के बीच के ब्रिज को क्रॉस कर चुकी हैं. ये देश मल्टी कल्चर वाला है. जहां अलग-अलग भाषा बोली जाती है. इसमें कोई चॉइस नहीं बल्कि सेंट्रलाइज सिस्टम देश की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी से जब पूछा गया कि उनका भारत लेफ्ट अलाइन होगा या राइट अलाइन. इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि वो भारत को यथार्थवादी के रूप में देखती हैं. ऐसे में बीच का रास्ता अपनाना चाहिए, तो चॉइस नहीं है, ये विकास की जरूरत है.

उन्होंने मनरेगा का उदाहरण देते हुए कहा कि बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए इसका विरोध किया, लेकिन सरकार में आने पर इसे जनता की जरूरत समझते हुए जारी भी रखा. उन्होंने संसद में हुए कहा कि ये एक तरफ बात करते हैं वसुधैव कुटुम्बकम की, वहीं दूसरी तरफ एक फैमिली की तरह रहने की बात से भी इनकार करते हैं. यहीं उनकी हार हो गई. अब वक्त आ गया है कि खुद के इंटरेस्ट की नहीं बल्कि पब्लिक इंटरेस्ट की बात हो. अब भारत के आइडिया और भारत को बेहतर बनाने का समय आ गया है.

जेएलएफ क्लोजिंग डिबेट

जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी सत्र में लेफ्ट और राइट की डिबेट के बीच 2002 में हुआ गोधरा कांड और 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे का जिन भी जाग गया. जेएलएफ की क्लोजिंग डिबेट 'द राइट एंड डिवाइड कैन नेवर बी ब्रिज' पर हुई. जिसमें लेफ्ट की तरफ से पुरूषोत्तम अग्रवाल, जवाहर सरकार और वंदना शिवा ने अपने तर्क रखे. वहीं राइट की तरफ से पवन वर्मा, प्रियंका चतुर्वेदी और मकरंद परांजमे ने अपनी बात रखी. इस डिबेट को वीर संघवी ने मॉडरेट किया. डिबेट का फैसला ऑडियंस पोल से हुआ जिसमें निष्कर्ष निकला कि लेफ्ट और राइट के बीच की दूरी को पाटा नहीं जा सकता. इनके बीच कोई ब्रिज विकसित नहीं हो सकता.

'द राइट एंड डिवाइड कैन नेवर बी ब्रिज' डिबेट को लेकर श्रोताओं में खासी उत्सुकता नजर आई. हर कोई इस क्लोजिंग डिबेट को सुनने के लिए आतुर था. यही वजह रही कि 5:30 बजे शुरू होने वाली डिबेट से पहले 5:00 बजे ही फ्रंट लॉन पांडाल भर गया. डिबेट की शुरूआत मोशन पक्ष से जवाहर सरकार ने की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग बदलाव लाना चाहते हैं और कुछ उसी ऑर्डर में बने रहना चाहते हैं. लेकिन उन लोगों से कभी संधि नहीं की जा सकती जो महात्मा गांधी के हत्यारे हैं.

पढ़ें: JLF 2023: गौर गोपाल दास ने शेयर किए जीवन मंत्र, सोशल मीडिया पर कही ये बात

उन्होंने वेपन्स ऑफ टॉर्चर की बात करते हुए इनडायरेक्टली गोधरा कांड की ओर इशारा करते हुए कहा कि एक राज्य में 1000 से 2000 लोग मारे गए और पुलिस वहां मुंह मोड़े खड़ी थी. ये लोग केवल लेफ्ट और हाईजेक करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं पुरूषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि मनरेगा की बुराई करने वालों ने सरकार में आने के बाद भी कोई क्षमा नहीं मांगी. इस योजना को जारी रखा. ये केवल राजनीति है. उन्होंने आइंस्टीन की बात को दोहराते हुए कहा कि बेवकूफियों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता.

इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए वंदना शिवा ने कहा कि लेफ्ट और रॉन्ग दोनों अलग-अलग पैरामीटर हैं. यहां लेफ्ट और राइट की बात हो रही है और फिजिक्स के अनुसार लेफ्ट और राइट कभी आपस में नहीं मिल सकते. क्योंकि इन्हें ऑर्गनाइज ही अलग-अलग पैरामीटर के लिए किया गया है. राइट कल्चर डॉमिनेशन के लिए जबकि लेफ्ट समानता और न्याय के लिए काम करता है. वो बीते 30 साल से इकोनॉमिक और समानता की प्रक्रिया में लगे हैं.

उन्होंने दोनों हाथों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक लेफ्ट है, एक राइट है. उनके दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते करने से पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजिंग सिस्टम को नहीं बदल सकता. इसलिए इस ब्रिज के बजाए किसी ओर रास्ते को अपनाना होगा. वसुधैव कुटुम्बकम को अपनाना होगा. राजनीतिक दलों में लोग एक दल से दूसरे दल में जाते हैं जो सिर्फ राजनीतिक फायदा होता है. लेकिन इससे विचारों के बीच ब्रिज तैयार नहीं होता.

पढ़ें: JLF 2023 : सुधा मुर्ती बोलीं, विदेश जाना गलत नहीं, कल्चर से जुड़े रहें, दामाद ऋषि सुनक के ब्रिटेन पीएम बनने पर कही ये बात

वहीं जवाब में राइट पक्ष से पवन वर्मा ने कहा कि लेफ्ट और राइट पश्चिमी सोच है. भारत में सीविलाइजेशनल यूनिटी पर भरोसा करते हैं. लेफ्ट और राइट विचारधारा हो सकती है लेकिन वो ये मानते है कि गलत को कैसे सुधारा जाए और सही को कैसे बेहतर किया जाए. कांग्रेस ने आरएसएस पर बैन लगाया था, लेकिन नेहरू ही वो व्यक्ति थे, जिन्होंने आरएसएस से बैन हटाया. उन्होंने ही आरएसएस को 1963 गणतंत्र दिवस की परेड में भी शामिल किया था. क्योंकि आरएसएस ने चीन से युद्ध के दौरान शानदार काम किया था.

उन्होंने कहा कि राष्ट्र ज्यादा महत्वपूर्ण है ना कि लेफ्ट और राइट. 1977 में जनसंघ और कम्युनिस्ट ने मिल कर जनता दल बनाया, यही भारत की सोच है. उन्होंने कहा कि लेफ्ट और राइट दोनों एक दूसरे से विचार और आइडिया को आदान-प्रदान करते हैं. वो किसी को क्रिटीसाइज नहीं करना चाहता. लेकिन ममता बनर्जी भी अटल बिहारी वाजपेयी की केबिनेट में शामिल थी और जिन देशों में कम्युनिस्ट सरकार है, वहां तानाशाही चल रही है.

पढ़ें: Pilot On Old Scams: पायलट ने उखाड़े गड़े मुर्दे, प्रदेश सरकार को दिलाई ललित मोदी की याद...दी सलाह

वहीं मोशन विपक्ष की बात को आगे बढ़ाते हुए मकरंद परान्जमे ने कहा कि वाम और दक्षिण पंथ ये तंत्र के हिस्से हैं. डिबेट लेफ्ट और राइट पर नहीं होनी चाहिए. बल्कि सही और गलत पर होनी चाहिए. धर्म और अर्धम पर होनी चाहिए. हमें सच के साथ खड़ा होना चाहिए. पड़ोसी देश में किसी को फ्रीडम नहीं है हर कोई सर्विलेंस पर है. इसलिए ये विचारधारा कभी काम नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि लड़ाई होनी चाहिए उन लोगों के बीच एक जो भारत को बढ़ता देखना चाहते हैं और दूसरे जिन्हें भारत की परवाह नहीं. उन्होंने कहा कि लेफ्ट और राइट के बीच पहले ही एक ब्रिज है जिस पर से लोग गुजर रहे हैं.

उन्होंने वंदना शिवा की बात पर कहा कि दो हाथों को जोड़कर नमस्कार, ताली और किसी का हाथ पकड़कर चला जा सकता है. उन्होंने कटाक्ष भरे लहजे में कहा कि लोग गुजरात की बात करते हैं. लेकिन दिल्ली में 1984 में जो हुआ उसके बारे में नहीं कहते. 26/11 के बारे में नहीं कहते. किसी ने विभाजन की बात नहीं कही. जो ये डिवाइड कैन नॉट बी ब्रिज की बात कहते हैं, उनसे डर लगता है क्योंकि वो इस ब्रिज को पहले ही तोड़ चुके हैं.

इस दौरान प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि वो खुद लेफ्ट और राइट के बीच के ब्रिज को क्रॉस कर चुकी हैं. ये देश मल्टी कल्चर वाला है. जहां अलग-अलग भाषा बोली जाती है. इसमें कोई चॉइस नहीं बल्कि सेंट्रलाइज सिस्टम देश की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी से जब पूछा गया कि उनका भारत लेफ्ट अलाइन होगा या राइट अलाइन. इस पर उन्होंने जवाब दिया था कि वो भारत को यथार्थवादी के रूप में देखती हैं. ऐसे में बीच का रास्ता अपनाना चाहिए, तो चॉइस नहीं है, ये विकास की जरूरत है.

उन्होंने मनरेगा का उदाहरण देते हुए कहा कि बीजेपी ने विपक्ष में रहते हुए इसका विरोध किया, लेकिन सरकार में आने पर इसे जनता की जरूरत समझते हुए जारी भी रखा. उन्होंने संसद में हुए कहा कि ये एक तरफ बात करते हैं वसुधैव कुटुम्बकम की, वहीं दूसरी तरफ एक फैमिली की तरह रहने की बात से भी इनकार करते हैं. यहीं उनकी हार हो गई. अब वक्त आ गया है कि खुद के इंटरेस्ट की नहीं बल्कि पब्लिक इंटरेस्ट की बात हो. अब भारत के आइडिया और भारत को बेहतर बनाने का समय आ गया है.

Last Updated : Jan 24, 2023, 11:27 AM IST
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