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मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका का राजस्थान हाईकोर्ट ने किया निस्तारण - राजस्थान हाईकोर्ट

हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका को राजस्थान हाईकोर्ट ने सारहीन होने के चलते निस्तारित कर दिया है.

HC dismissed petition of Heritage Mayor Munesh Gurjar
मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 18, 2023, 11:11 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका के सारहीन होने के चलते निस्तारण कर दिया है. जस्टिस इंद्रजीत सिंह ने यह आदेश दिए. याचिका में मुनेश गुर्जर ने अपने निलंबन को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि जिस निलंबन आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, वह आदेश राज्य सरकार ने वापस ले लिया है. ऐसे में अब याचिका पर आगे सुनवाई करने का कोई औचित्य नहीं है. वहीं यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ राज्य सरकार किसी तरह का कोई नया आदेश जारी करती है, तो उसे नए सिरे से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी जा सकती है.

गौरतलब है कि गत 5 अगस्त को मेयर मुनेश गुर्जर के घर एसीबी ने रेड डाली थी. इसके बाद देर रात राज्य सरकार ने मुनेश को महापौर पद से निलंबित कर दिया था. इस निलंबन आदेश को मुनेश गुर्जर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार ने आनन-फानन में आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को पार्षद और मेयर पद से निलंबित कर दिया.

पढ़ें: Rajasthan High Court: रिश्वत लेकर पट्टा जारी करने का मामला, मेयर पति सुशील गुर्जर सहित दोनों दलालों को मिली जमानत

उस पर आरोप है कि उसके पति ने पट्टे जारी करने के नाम पर उसकी उपस्थिति में दलाल से दो लाख रुपए की रिश्वत ली और उसके घर से 40 लाख रुपए से अधिक की राशि बरामद हुई. जबकि पंचनामे में याचिकाकर्ता के बयान दर्ज हैं कि घटना के तीन दिन पहले उसके ससुर ने अपना प्लॉट बेचा था, जिसके रुपए घर में रखे थे. इसके अलावा एसीबी की रेड के समय उसके पति घर पर ही नहीं थे, बल्कि उन्हें उनके कार्यालय से पकड़ कर लाया गया था. वहीं एफआईआर में भी याचिकाकर्ता का नाम नहीं है.

पढ़ें: Rajasthan High Court : मेयर मुनेश गुर्जर के पति की कोर्ट से अपील, कहा- शिकायतकर्ता खुद ही दलाल, मुझे दी जाए जमानत

इसके अलावा सह आरोपी बनाए गए नारायण सिंह के घर से बरामद 2 लाख रुपए का संबंध याचिकाकर्ता से नहीं है. याचिका में कहा गया कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को निलंबित करने से पहले कम से कम प्रारंभिक जांच करनी चाहिए थी या उसका नाम एफआईआर में होना चाहिए था. एसीबी ने मामले में 6 अगस्त को एफआईआर दर्ज की, लेकिन राज्य सरकार ने उसका इंतजार किए बिना देर रात ही याचिकाकर्ता को एसीबी के प्रेस नोट के आधार पर निलंबित कर दिया. वहीं इस प्रेस नोट और एफआईआर के तथ्य ही आपस में विरोधाभासी हैं. जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश पर रोक लगा दी थी. वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने निलंबन आदेश को वापस ले लिया था.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने हेरिटेज नगर निगम की मेयर मुनेश गुर्जर की याचिका के सारहीन होने के चलते निस्तारण कर दिया है. जस्टिस इंद्रजीत सिंह ने यह आदेश दिए. याचिका में मुनेश गुर्जर ने अपने निलंबन को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि जिस निलंबन आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, वह आदेश राज्य सरकार ने वापस ले लिया है. ऐसे में अब याचिका पर आगे सुनवाई करने का कोई औचित्य नहीं है. वहीं यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ राज्य सरकार किसी तरह का कोई नया आदेश जारी करती है, तो उसे नए सिरे से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी जा सकती है.

गौरतलब है कि गत 5 अगस्त को मेयर मुनेश गुर्जर के घर एसीबी ने रेड डाली थी. इसके बाद देर रात राज्य सरकार ने मुनेश को महापौर पद से निलंबित कर दिया था. इस निलंबन आदेश को मुनेश गुर्जर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार ने आनन-फानन में आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को पार्षद और मेयर पद से निलंबित कर दिया.

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उस पर आरोप है कि उसके पति ने पट्टे जारी करने के नाम पर उसकी उपस्थिति में दलाल से दो लाख रुपए की रिश्वत ली और उसके घर से 40 लाख रुपए से अधिक की राशि बरामद हुई. जबकि पंचनामे में याचिकाकर्ता के बयान दर्ज हैं कि घटना के तीन दिन पहले उसके ससुर ने अपना प्लॉट बेचा था, जिसके रुपए घर में रखे थे. इसके अलावा एसीबी की रेड के समय उसके पति घर पर ही नहीं थे, बल्कि उन्हें उनके कार्यालय से पकड़ कर लाया गया था. वहीं एफआईआर में भी याचिकाकर्ता का नाम नहीं है.

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इसके अलावा सह आरोपी बनाए गए नारायण सिंह के घर से बरामद 2 लाख रुपए का संबंध याचिकाकर्ता से नहीं है. याचिका में कहा गया कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि को निलंबित करने से पहले कम से कम प्रारंभिक जांच करनी चाहिए थी या उसका नाम एफआईआर में होना चाहिए था. एसीबी ने मामले में 6 अगस्त को एफआईआर दर्ज की, लेकिन राज्य सरकार ने उसका इंतजार किए बिना देर रात ही याचिकाकर्ता को एसीबी के प्रेस नोट के आधार पर निलंबित कर दिया. वहीं इस प्रेस नोट और एफआईआर के तथ्य ही आपस में विरोधाभासी हैं. जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश पर रोक लगा दी थी. वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने निलंबन आदेश को वापस ले लिया था.

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