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भारतीय किसान संघ ने केंद्रीय कृषि कानून के MSP पर दी प्रतिक्रिया

कृषि कानून के विरोध में भारतीय किसान संघ ने प्रतिक्रिया दी. जिसमें उन्होंने कहा कि कृषि कानून में बहुत खामियां रही हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के साथ न्याय नहीं किया है.

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भारतीय किसान संघ की कृषि कानून पर प्रतिक्रिया
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Published : Nov 4, 2020, 12:29 PM IST

जयपुर. केंद्रीय कृषि बिलों और राज्य द्वारा पारित कृषि बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय की गारंटी को लेकर भारतीय किसान संघ ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. भारतीय किसान संघ का कहना है कि कृषि कानून के विरोध में महत्वपूर्ण खामियां रही. उनके विरोध में उतरे किसानों के संगठनों ने और विपक्षी राजनीतिक दलों ने लगातार आंदोलन किए. अभी 5 नवंबर को चक्का जाम की घोषणा की जा चुकी है.

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किसान संघ का प्रेस नोट

भारतीय किसान संघ ने प्रेस नोट जारी किया जिसमें किसान संघ के अनुसार कुछ राज्य सरकारें इन बिलों को नकारते हुए अपने राज्य के किसानों की हित रक्षा के नाम पर विधानसभाओं में बिल पारित कर चुकी है. जो किसानों को भ्रमित करने के अलावा कुछ भी नहीं है, या फिर किसानों को इतना नासमझ मानती है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आता. इससे किसानों के प्रति दिखावटी हमदर्दी की पोल खुल चुकी है.

यह भी पढ़ें. एचपीसीएल कम्पनी की परियोजना को लेकर सीएम गहलोत ने ली बैठक, कहा- समय पर पूरा होगा काम

केरल सरकार के किसानों के साथ केंद्र सरकार ने न्याय नहीं किया केवल दो ही उपज गेहूं और धान के बारे में ही यह कानून बनाया गया है. न्यूनतम समर्थन मूल्य कुल 24 फसलों का निर्धारित किया जाता है लेकिन दो ही फसलों के लिए कानून बनाने का क्या अर्थ हुआ, यह तो किसानों के साथ मजाक किया गया है.

राजस्थान सरकार 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को विशेष सत्र बुलाकर और बहुत पहले से भारी प्रचार कर किसान हितैषी कानून लाने की घोषणाओं की पोल खुल गई, जब 31 अक्टूबर को विधानसभा के पटल पर प्रस्तावित प्रारूप रखा गया, जो अब तो पादित भी हो चुका है. यह जानकर किसान आश्चर्यचकित है कि कितना बड़ा मजाक सरकार कर सकती है. आखिर किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया.

इस बात का तो कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दरों पर क्रय विक्रय नहीं होगा बल्कि 5 जून 2020 के पूर्व की स्थिति को बहाल करते हुए केंद्रीय कानून का ही संरक्षण किया गया है. कांग्रेस पार्टी ने जो घोषणाएं और वादे किए थे वह सब व्यर्थ ही रह गए.

यह भी पढ़ें. सीएम गहलोत ने कांग्रेस विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़ा एक वीडियो किया शेयर, BJP पर साधा निशाना

केरल सरकार सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बिना किसी आधार के तय कर दी, जो लागत के बराबर दरें हैं. उसके दुगने तो बाजार में आज भी भाव मिल रहे हैं. आखिर झूठा यश लेने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं किया गया.छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि खरीद चाहे मंडी से हो या मंडी के बाहर केंद्र सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य थे कि उससे कम पर क्रय विक्रय नहीं होगा. ऐसा कानून कांग्रेस सरकार लेकर आएगी. अब छत्तीसगढ़ सरकार से आशा है कि यह सरकार सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर क्रय विक्रय को अपराध घोषित कर दे.

किसानों ने सोचा कि इस बार उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाएगा लेकिन वोट बैंक की राजनीति का शिकार किसान होता ही रहा है. जिसके रुकने की भी संभावना कम दिखाई दे रही है.

जयपुर. केंद्रीय कृषि बिलों और राज्य द्वारा पारित कृषि बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय की गारंटी को लेकर भारतीय किसान संघ ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. भारतीय किसान संघ का कहना है कि कृषि कानून के विरोध में महत्वपूर्ण खामियां रही. उनके विरोध में उतरे किसानों के संगठनों ने और विपक्षी राजनीतिक दलों ने लगातार आंदोलन किए. अभी 5 नवंबर को चक्का जाम की घोषणा की जा चुकी है.

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किसान संघ का प्रेस नोट

भारतीय किसान संघ ने प्रेस नोट जारी किया जिसमें किसान संघ के अनुसार कुछ राज्य सरकारें इन बिलों को नकारते हुए अपने राज्य के किसानों की हित रक्षा के नाम पर विधानसभाओं में बिल पारित कर चुकी है. जो किसानों को भ्रमित करने के अलावा कुछ भी नहीं है, या फिर किसानों को इतना नासमझ मानती है कि उसकी समझ में कुछ नहीं आता. इससे किसानों के प्रति दिखावटी हमदर्दी की पोल खुल चुकी है.

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केरल सरकार के किसानों के साथ केंद्र सरकार ने न्याय नहीं किया केवल दो ही उपज गेहूं और धान के बारे में ही यह कानून बनाया गया है. न्यूनतम समर्थन मूल्य कुल 24 फसलों का निर्धारित किया जाता है लेकिन दो ही फसलों के लिए कानून बनाने का क्या अर्थ हुआ, यह तो किसानों के साथ मजाक किया गया है.

राजस्थान सरकार 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को विशेष सत्र बुलाकर और बहुत पहले से भारी प्रचार कर किसान हितैषी कानून लाने की घोषणाओं की पोल खुल गई, जब 31 अक्टूबर को विधानसभा के पटल पर प्रस्तावित प्रारूप रखा गया, जो अब तो पादित भी हो चुका है. यह जानकर किसान आश्चर्यचकित है कि कितना बड़ा मजाक सरकार कर सकती है. आखिर किसानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया.

इस बात का तो कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दरों पर क्रय विक्रय नहीं होगा बल्कि 5 जून 2020 के पूर्व की स्थिति को बहाल करते हुए केंद्रीय कानून का ही संरक्षण किया गया है. कांग्रेस पार्टी ने जो घोषणाएं और वादे किए थे वह सब व्यर्थ ही रह गए.

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केरल सरकार सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य बिना किसी आधार के तय कर दी, जो लागत के बराबर दरें हैं. उसके दुगने तो बाजार में आज भी भाव मिल रहे हैं. आखिर झूठा यश लेने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं किया गया.छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि खरीद चाहे मंडी से हो या मंडी के बाहर केंद्र सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य थे कि उससे कम पर क्रय विक्रय नहीं होगा. ऐसा कानून कांग्रेस सरकार लेकर आएगी. अब छत्तीसगढ़ सरकार से आशा है कि यह सरकार सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर क्रय विक्रय को अपराध घोषित कर दे.

किसानों ने सोचा कि इस बार उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाएगा लेकिन वोट बैंक की राजनीति का शिकार किसान होता ही रहा है. जिसके रुकने की भी संभावना कम दिखाई दे रही है.

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