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Special: जन्म से दृष्टिबाधित राष्ट्रीय कलाकार रामवीर परमार से सुनें होली का प्रसिद्ध ब्रज और बनारस गायन - Dholpur news

फाग बिना होली की मस्ती अधूरी मानी जाती है. होली पर फाग गाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. इसी होली गायन से धौलपुर के एक दिव्यांग कलाकार ने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है. ऐसे में होली पर सुनिये रामवीर परमार की बेहतरीन फाग गायन, जो होली के उल्लास को और भी दोगुना कर रही है.

धौलपुर न्यूज, Singer Ramveer Parmar of Dholpur
रामवीर परमार से खास बातचीत पार्ट 2
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Published : Mar 29, 2021, 12:51 PM IST

Updated : Mar 29, 2021, 1:27 PM IST

धौलपुर. होली रंग, मस्ती और उल्लास का त्योहार है. घरों में गुझिया और गुलाल की खुशबू घुली होती है. वहीं फाग के बिना तो होली का त्योहार अधूरा माना जाता है. फाग गीत होली के त्योहार में उमंग भर देता है. गांव की चौपाल और चबूतरों पर खासकर ग्रामीण लोग ढोलक हारमोनियम लेकर ट्रेडीशन धुनों पर होली गायन की प्रस्तुति देते हैं. ऐसे ही एक दृष्टि बाधित राष्ट्रीय कलाकार रामवीर परमार है, जिन्होंने होली के गायन और होली विधा के विभिन्न अंगों से अवगत कराया है.

रामवीर परमार से खास बातचीत पार्ट-1

साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी होली त्यौहार का बड़ा प्रभाव देखा जाता है. धौलपुर में लोग घरों में ही होली के त्योहार को सेलिब्रेट करेंगे. सांप्रदायिक सौहार्द प्रेम एवं भाईचारे के त्योहार को जिले भर में संगीत के माध्यम से भी मनाया जाता है. गांव की चौपाल पर ढोलक और हारमोनियम लेकर ट्रेडीशन धुनों पर झूमते नजर आ रहे हैं. लोक कलाकार और शास्त्रीय संगीत के कलाकार होली गायन को गायकी के अलग-अलग अंदाज में पेश करते हैं. ऐसे ही एक मशहूर कलाकार हैं रामवीर परमार, जो होली गायन करते हैं तो होली का रंग दोगुना चढ़ता है.

यह भी पढ़ें. Holi Special: यहां होली पर होती है मृत आत्माओं की पूजा, 12 दिन बाद खेलते हैं धुलंडी... जानें 100 साल पुरानी परंपरा

परमार ने प्रमुख रुप से जिले के ब्रज क्षेत्र की दीपचंदी होली, पारंपरिक होली, ठेठ ग्रामीण अंचल की ट्रेडीशन होली, कहरवा ताल की होली के साथ बनारस घराने की मशहूर होली खेले मसाने में होली दिगंबर, होली का गायन कर श्रोताओं के लिए पेश किया है. उसके अलावा ब्रज क्षेत्र की मशहूर होली मत मारे दृगन की चोट रसिया होली में मेरे लग जाएगी उन्होंंने गाया है. साथ ही होली खेले मसाने में गाकर उन्होंने लोकगीत को नया समां बांधा है.

रामवीर परमार से खास बातचीत पार्ट 2

यह भी पढ़ें. SPECIAL : यहां अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में....बीकानेर में 350 साल से खेली जा रही डोलची होली

रामवीर परमार कहते हैं कि पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग से होली का प्रचलन शुरू हुआ है. सतयुग में ही होलिका का दहन हुआ था. उसके अलावा त्रेता युग में अयोध्या में भगवान राम ने भी होली खेलकर इस प्रेम भाईचारे के त्यौहार को बढ़ावा दिया है. द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और गोपियों ने होली खेलकर सांप्रदायिक सौहार्द और प्रेम भाईचारे की बड़ी मिसाल पेश की है. मौजूदा वक्त यानी कलयुग में भी भगवान श्री कृष्ण और भगवान राम के अनुयायी होली के त्यौहार को प्रेम भाईचारे एवं उमंग उत्साह पूर्वक मनाते हैं. परमार ने 'श्याम बजाओ बंशी' गाकर समां बांध दिया.

रंगों का यह त्योहार भारतवर्ष में बड़ी आस्था और श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है. खासकर ग्रामीण अंचल में भांग घोट कर भी आस्थावादी लोग होली के त्योहार को सेलिब्रेट करते हैं.

धौलपुर. होली रंग, मस्ती और उल्लास का त्योहार है. घरों में गुझिया और गुलाल की खुशबू घुली होती है. वहीं फाग के बिना तो होली का त्योहार अधूरा माना जाता है. फाग गीत होली के त्योहार में उमंग भर देता है. गांव की चौपाल और चबूतरों पर खासकर ग्रामीण लोग ढोलक हारमोनियम लेकर ट्रेडीशन धुनों पर होली गायन की प्रस्तुति देते हैं. ऐसे ही एक दृष्टि बाधित राष्ट्रीय कलाकार रामवीर परमार है, जिन्होंने होली के गायन और होली विधा के विभिन्न अंगों से अवगत कराया है.

रामवीर परमार से खास बातचीत पार्ट-1

साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी होली त्यौहार का बड़ा प्रभाव देखा जाता है. धौलपुर में लोग घरों में ही होली के त्योहार को सेलिब्रेट करेंगे. सांप्रदायिक सौहार्द प्रेम एवं भाईचारे के त्योहार को जिले भर में संगीत के माध्यम से भी मनाया जाता है. गांव की चौपाल पर ढोलक और हारमोनियम लेकर ट्रेडीशन धुनों पर झूमते नजर आ रहे हैं. लोक कलाकार और शास्त्रीय संगीत के कलाकार होली गायन को गायकी के अलग-अलग अंदाज में पेश करते हैं. ऐसे ही एक मशहूर कलाकार हैं रामवीर परमार, जो होली गायन करते हैं तो होली का रंग दोगुना चढ़ता है.

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परमार ने प्रमुख रुप से जिले के ब्रज क्षेत्र की दीपचंदी होली, पारंपरिक होली, ठेठ ग्रामीण अंचल की ट्रेडीशन होली, कहरवा ताल की होली के साथ बनारस घराने की मशहूर होली खेले मसाने में होली दिगंबर, होली का गायन कर श्रोताओं के लिए पेश किया है. उसके अलावा ब्रज क्षेत्र की मशहूर होली मत मारे दृगन की चोट रसिया होली में मेरे लग जाएगी उन्होंंने गाया है. साथ ही होली खेले मसाने में गाकर उन्होंने लोकगीत को नया समां बांधा है.

रामवीर परमार से खास बातचीत पार्ट 2

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रामवीर परमार कहते हैं कि पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग से होली का प्रचलन शुरू हुआ है. सतयुग में ही होलिका का दहन हुआ था. उसके अलावा त्रेता युग में अयोध्या में भगवान राम ने भी होली खेलकर इस प्रेम भाईचारे के त्यौहार को बढ़ावा दिया है. द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण और गोपियों ने होली खेलकर सांप्रदायिक सौहार्द और प्रेम भाईचारे की बड़ी मिसाल पेश की है. मौजूदा वक्त यानी कलयुग में भी भगवान श्री कृष्ण और भगवान राम के अनुयायी होली के त्यौहार को प्रेम भाईचारे एवं उमंग उत्साह पूर्वक मनाते हैं. परमार ने 'श्याम बजाओ बंशी' गाकर समां बांध दिया.

रंगों का यह त्योहार भारतवर्ष में बड़ी आस्था और श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है. खासकर ग्रामीण अंचल में भांग घोट कर भी आस्थावादी लोग होली के त्योहार को सेलिब्रेट करते हैं.

Last Updated : Mar 29, 2021, 1:27 PM IST
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