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बीकानेर : चांदमल ढ़ढा गणगौर की ये है एतिहासिक कहानी

गणगौर पर बीकानेर में सभी गणगौर को पानी पिलाने की रस्म अदायगी चौतीना कुआं पर की जाती है.लेकिन यहां चांदमल ढ़ढा के नाम से प्रसिद्ध इस गणगौर का इतिहास थोड़ा अलग है.

करोड़ों के गहने पहनी चांदमल ढ़ढा की गणगौर
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Published : Apr 10, 2019, 3:22 PM IST

बीकानेर. चांदमल ढ़ढा गणगौर अपने ही चौक में रहती है और यहीं गणगौर को पानी पिलाने की रस्म को पूरा किया जाता है. चांदमल ढ़ढा परिवार के वंशज और इजराइल निवासी शांतिचंद्र कहते हैं कि प्राचीन काल में राजा के समय गणगौर को विशेष सम्मान दिया गया और दरअसल चांदमल ढ़ढा के परिवार के लोग फलौदी से बीकानेर बसे थे और एक बार राजपरिवार की ओर से इनको गणगौर देखने का निमंत्रण मिला.

चांदमल ढ़ढा के नाम से प्रसिद्ध इस गणगौर सवारी निकली

लेकिन इनके परिवार की महिला ने प्रण लिया कि पुत्र प्राप्त होने पर ही गणगौर के दर्शन करूंगी. सेठ उदयमल की पत्नी के इस प्रण के बाद एक साल तक गणगौर में विश्वास और आस्था से उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसका नाम चांदमल रखा गया. तभी से हर साल गणगौर निकालने की परंपरा शुरू हुई और इसका नाम चांदमल ढ़ढा गणगौर रखा गया. गणगौर की खास बात यह है कि अन्य गणगौर से अलग इस गणगौर के पांव होते हैं सामान्यतः अन्य गणगौर के पांव नहीं होते हैं.

लगभग सवा सौ साल से निकाली जा रही इस गणगौर के मेले में खास बात यह है कि समय के साथ धीरे-धीरे इस गणगौर का गहना बढ़ता ही जा रहा है और हर साल हजारों की संख्या में देर रात तक लोग इस मेले का आनंद लेते हैं और गणगौर के दर्शन करते हैं. इस गणगौर को मंशापूर्ण गणगौर भी कहा जाता है मान्यता है कि यहां इस गणगौर के दर्शन के साथ जो मन्नत मांगी जाती है वह पूरी होती है. हर साल इसको निकाला जाता है और इस पूरे आयोजन को ढ़ढा परिवार के लोग स्थानीय लोगों के साथ मिलकर संचालित करते हैं.

बीकानेर. चांदमल ढ़ढा गणगौर अपने ही चौक में रहती है और यहीं गणगौर को पानी पिलाने की रस्म को पूरा किया जाता है. चांदमल ढ़ढा परिवार के वंशज और इजराइल निवासी शांतिचंद्र कहते हैं कि प्राचीन काल में राजा के समय गणगौर को विशेष सम्मान दिया गया और दरअसल चांदमल ढ़ढा के परिवार के लोग फलौदी से बीकानेर बसे थे और एक बार राजपरिवार की ओर से इनको गणगौर देखने का निमंत्रण मिला.

चांदमल ढ़ढा के नाम से प्रसिद्ध इस गणगौर सवारी निकली

लेकिन इनके परिवार की महिला ने प्रण लिया कि पुत्र प्राप्त होने पर ही गणगौर के दर्शन करूंगी. सेठ उदयमल की पत्नी के इस प्रण के बाद एक साल तक गणगौर में विश्वास और आस्था से उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसका नाम चांदमल रखा गया. तभी से हर साल गणगौर निकालने की परंपरा शुरू हुई और इसका नाम चांदमल ढ़ढा गणगौर रखा गया. गणगौर की खास बात यह है कि अन्य गणगौर से अलग इस गणगौर के पांव होते हैं सामान्यतः अन्य गणगौर के पांव नहीं होते हैं.

लगभग सवा सौ साल से निकाली जा रही इस गणगौर के मेले में खास बात यह है कि समय के साथ धीरे-धीरे इस गणगौर का गहना बढ़ता ही जा रहा है और हर साल हजारों की संख्या में देर रात तक लोग इस मेले का आनंद लेते हैं और गणगौर के दर्शन करते हैं. इस गणगौर को मंशापूर्ण गणगौर भी कहा जाता है मान्यता है कि यहां इस गणगौर के दर्शन के साथ जो मन्नत मांगी जाती है वह पूरी होती है. हर साल इसको निकाला जाता है और इस पूरे आयोजन को ढ़ढा परिवार के लोग स्थानीय लोगों के साथ मिलकर संचालित करते हैं.

Intro:बीकानेर। गणगौर का पर्व पूरे देश की तरह बीकानेर में भी धूमधाम से मनाया गया। बीकानेर में प्राचीन जूनागढ़ से श्री गणगौर की सवारी निकली और चौतीना कुआं के पास पानी पिलाने की रस्म अदायगी के बाद फिर से जूनागढ़ में पहुंची शाही गणगौर को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। शाही लवाजमे के साथ प्राचीन काल से निकाली जा रही परंपरागत शाही गणगौर को पूरी सुरक्षा के साथ पानी पिलाने की रस्म अदायगी के लिए ले जाया गया। इस दौरान जूनागढ़ में राज परिवार के सदस्यों की ओर से अन्य गणगौर की खोल भरने की रस्म अदायगी भी की गई। इसके बाद बीकानेर की अंदरूनी शहर के ढ़ढो के चौक में प्राचीन चांदमल ढढा की ख्यातनाम गणगौर का मेला देर रात तक चला। दरअसल पूरे देश में चांदमल ढ़ढा की की गवर अपने आप में प्रसिद्ध है इस गणगौर के खास बात यह है कि साल में एक बार बढ़ने वाले इस मेले के दौरान गणगौर को करोड़ों रुपए के जेवरात पहने जाते हैं प्राचीन काल से इस गणगौर को यह जेवरात पहनाए जाते हैं और लखदख नजर आती इस गणगौर को राज परिवार की ओर से भी विशेष मान्यता हासिल है दरअसल बीकानेर में सभी गणगौर को पानी पिलाने की रस्म अदायगी चौतीना कुआं पर की जाती है लेकिन यह गणगौर अपने ही चौक में रहती है और यहीं इस रस्म अदायगी को पूरा किया जाता है। चांदमल ढढा के नाम से प्रसिद्ध इस गवर का इतिहास बहुत पुराना है। चांदमल ढ़ढा परिवार के वंशज और इजराइल निवासी शांतिचंद्र कहते हैं कि प्राचीन काल में राजा के समय गणगौर को विशेष सम्मान दिया गया और दरअसल चांदमल ढ़ढा के परिवार के लोग फलौदी से बीकानेर बसे थे और एक बार राजपरिवार की ओर से इनको गणगौर देखने का निमंत्रण मिला लेकिन इनके परिवार की महिला ने प्रण लिया कि पुत्र प्राप्त होने पर ही गणगौर के दर्शन करूंगी। सेठ उदयमल की पत्नी के इस प्रण के बाद एक वर्ष तक गणगौर में विश्वास और आस्था से उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसका नाम चांदमल रखा गया तभी से हर साल गणगौर निकालने की परंपरा शुरू हुई और इसका नाम चांदमल ढढा गणगौर रखा गया। गणगोर की खास बात यह है कि अन्य गणगौर से अलग इस गणगौर के पांव होते हैं सामान्यतः अन्य गणगौर के पांव नहीं होते हैं।


Body:लगभग सवा सौ साल से निकाली जा रही इस गणगौर के मेले में खास बात यह है कि समय के साथ धीरे-धीरे इस गणगौर का गहना बढ़ता ही जा रहा है और हर साल हजारों की संख्या में देर रात तक लोग इस मेले का आनंद लेते हैं और गणगौर के दर्शन करते हैं इस गणगौर को मंशापूर्ण गणगौर भी कहा जाता है मान्यता है कि यहां इस गणगौर के दर्शन के साथ जो मान्यता मांगी जाती है वह पूरी होती है परिवार के सदस्य शांति चंद्र कहते हैं कि सवा सौ साल में कभी भी किसी भी तरह की अनहोनी घटना यहां नहीं हुई है जबकि सुरक्षा और इंतजार सामान्य तौर पर ही होते हैं। इस गणगौर को कितना गहना पहना जाता है इस बात का जिक्र नहीं किया जाता है और यह एक अपने आप में उदाहरण यह है कि आज तक इस गैंग गणगौर को पहनाए जाने वाले गहने को लेकर कभी कोई आंकड़ा सामने नहीं आया मेले के बाद गणगौर के गहने को सुरक्षा में रख दिया जाता है और हर साल फिर से उसको निकाला जाता है और इस पूरे आयोजन को ढ़ड्ढा परिवार के लोग स्थानीय लोगों के साथ मिलकर संचालित करते हैं।


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