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Special : दोनों हाथ गंवाने वाले पंकज के लिए तैराकी बना जुनून, अब देश के लिए मेडल जीतने की चाहत

विकलांगता एक अभिशाप माना जाता है, लेकिन व्यक्ति ठान ले तो कोई भी परेशानी आड़े नहीं आती. बीकानेर के पंकज ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. बचपन में दोनों हाथ गांवाने के बावजूद अपनी जिंदगी बदल डाली. देखिए ये खास रिपोर्ट...

Struggle of Pankaj
संघर्ष के बल पर मुकाम
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Published : Jan 20, 2023, 6:05 PM IST

Updated : Jan 20, 2023, 6:24 PM IST

पंकज के संघर्ष की कहानी...

बीकानेर. 'गिरते हैं शहसवार मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले'....यह पंक्तियां उन लोगों के लिए वाकई प्रेरणादायी हैं जो जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं और मुकाम हासिल करते हैं. 5 साल की उम्र में एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा चुके बीकानेर के पंकज लगता है इन पंक्तियों को साकार करने के लिए ही जी रहे हैं.

6 साल में बदली जिंदगी : पंकज बताते हैं कि 6 साल पहले तैराकी की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया और इसके लिए उन्हें कोलायत में ही एक व्यक्ति राम अवतार सैनी ने उनहें इसके लिए प्रेरित किया. क्योंकि उन्होंने पंकज को तैरते हुए देखा था. उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि पंकज कुछ अच्छा कर सकता है.

पढ़ें : इन बड़ी प्रतियोगिताओं में टीम इंडिया को चैंपियन बनते देखना चाहेंगे फैंस, देश विदेश में हो रहे कई आयोजन

2005 से कर रहा तैराकी : पंकज बताते हैं कि वह 2005 से तैराकी कर रहे हैं और कोलायत में अपने दोस्तों को जब उन्होंने तैराकी करते हुए देखा तो उन्हें लगा कि शायद वह भी कर सकते हैं. धीरे-धीरे उन्होंने तैरना शुरू किया और आज अपने जुनून के दम पर वह इस मुकाम पर हैं कि राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं.

Paralympic Games 2024
अब देश के लिए मेडल जीतने की चाहत...

मेडल जीते तो मिली नौकरी : पंकज बताते हैं कि राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में लगातार पिछले सालों में कैटेगरी S7 में वे गोल्ड मेडल विजेता रहे हैं. वहीं, तीन बार राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीता. पंकज के खेल के प्रति उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए राज्य सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे में खिलाड़ियों को प्रमोट करने के नीति के तहत उन्हें 2021 में कनिष्ठ सहायक पद पर सीधी नौकरी दी. वर्तमान में वह सिंचित क्षेत्र विकास विभाग में कनिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं.

संघर्ष के बल पर मुकाम : पांच साल की उम्र में घर के आगे से गुजर रही 11000 केवी लाइन की चपेट में आने से पंकज को दोनों हाथ गंवाने पड़े. इसके बाद करीब 2 सालों तक उन्होंने संघर्ष किया और उसके बाद कोलायत की एक शिक्षिका के प्रोत्साहन से उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की. दसवीं की पढ़ाई अपने गांव से की और उसके बाद M. A. अपने ननिहाल सरदारशहर से की.

Struggle of Pankaj
संघर्ष के बल पर मुकाम...

पढ़ें : पैरा विश्व चैंपियनशिप: भारत को दूसरा स्वर्ण, सिंहराज ने 2024 पेरिस पैरालंपिक कोटा हासिल किया

ओलंपिक में मेडल जीतना लक्ष्य : पंकज कहते हैं कि जब तक मेरा शरीर काम करेगा मैं तैराकी करता रहूंगा. मेरा लक्ष्य है कि 2024 में होने वाले पैरा ओलंपिक में भाग लें और देश के लिए मेडल जीतें. सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंकज के पिताजी टैक्सी चलाते हैं और दो भाई अपना खुद का काम करते हैं. बचपन से ही उनका जीवन संघर्ष में रहा है, लेकिन खुद अपने दम पर पंकज ने इस मुकाम को हासिल किया है.

पंकज की उपलब्धि पर आज खुद उनके घर वाले नाज करते हैं. पंकज की मां शायर देवी कहती हैं कि मेरे बेटे के साथ हुए हादसे ने हमें जिंदगी में बहुत बड़ा दुख दिया, लेकिन अपने दम पर इसने एक मुकाम हासिल किया है, जिसकी हमें खुशी है. हम चाहते हैं कि 2024 में बेटा देश के लिए पैरा ओलंपिक में मेडल जीते और पूरे देश का नाम रोशन करे. यही हम सबकी दिली इच्छा है.

Letter of Appreciation
सम्मान पत्र...

खुद करते हैं अपना काम : पंकज सामान्य व्यक्ति की तरह अपने सारे काम नहीं कर सकते. बावजूद इसके, दोनों हाथों से निशक्त होने के बावजूद भी वह अपने अधिकतर काम खुद करते हैं. यहां तक कि 12वीं तक की पढ़ाई में भी वह किसी हेल्पर को लेकर नहीं गए. हाथों और पैरों से उन्हें अच्छी तरह लिखना आता है. खुद भोजन कर सकते हैं और अपने काम भी आसानी से कर लेते हैं.

पंकज के संघर्ष की कहानी...

बीकानेर. 'गिरते हैं शहसवार मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले'....यह पंक्तियां उन लोगों के लिए वाकई प्रेरणादायी हैं जो जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं और मुकाम हासिल करते हैं. 5 साल की उम्र में एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवा चुके बीकानेर के पंकज लगता है इन पंक्तियों को साकार करने के लिए ही जी रहे हैं.

6 साल में बदली जिंदगी : पंकज बताते हैं कि 6 साल पहले तैराकी की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया और इसके लिए उन्हें कोलायत में ही एक व्यक्ति राम अवतार सैनी ने उनहें इसके लिए प्रेरित किया. क्योंकि उन्होंने पंकज को तैरते हुए देखा था. उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि पंकज कुछ अच्छा कर सकता है.

पढ़ें : इन बड़ी प्रतियोगिताओं में टीम इंडिया को चैंपियन बनते देखना चाहेंगे फैंस, देश विदेश में हो रहे कई आयोजन

2005 से कर रहा तैराकी : पंकज बताते हैं कि वह 2005 से तैराकी कर रहे हैं और कोलायत में अपने दोस्तों को जब उन्होंने तैराकी करते हुए देखा तो उन्हें लगा कि शायद वह भी कर सकते हैं. धीरे-धीरे उन्होंने तैरना शुरू किया और आज अपने जुनून के दम पर वह इस मुकाम पर हैं कि राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं.

Paralympic Games 2024
अब देश के लिए मेडल जीतने की चाहत...

मेडल जीते तो मिली नौकरी : पंकज बताते हैं कि राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में लगातार पिछले सालों में कैटेगरी S7 में वे गोल्ड मेडल विजेता रहे हैं. वहीं, तीन बार राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीता. पंकज के खेल के प्रति उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए राज्य सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे में खिलाड़ियों को प्रमोट करने के नीति के तहत उन्हें 2021 में कनिष्ठ सहायक पद पर सीधी नौकरी दी. वर्तमान में वह सिंचित क्षेत्र विकास विभाग में कनिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं.

संघर्ष के बल पर मुकाम : पांच साल की उम्र में घर के आगे से गुजर रही 11000 केवी लाइन की चपेट में आने से पंकज को दोनों हाथ गंवाने पड़े. इसके बाद करीब 2 सालों तक उन्होंने संघर्ष किया और उसके बाद कोलायत की एक शिक्षिका के प्रोत्साहन से उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की. दसवीं की पढ़ाई अपने गांव से की और उसके बाद M. A. अपने ननिहाल सरदारशहर से की.

Struggle of Pankaj
संघर्ष के बल पर मुकाम...

पढ़ें : पैरा विश्व चैंपियनशिप: भारत को दूसरा स्वर्ण, सिंहराज ने 2024 पेरिस पैरालंपिक कोटा हासिल किया

ओलंपिक में मेडल जीतना लक्ष्य : पंकज कहते हैं कि जब तक मेरा शरीर काम करेगा मैं तैराकी करता रहूंगा. मेरा लक्ष्य है कि 2024 में होने वाले पैरा ओलंपिक में भाग लें और देश के लिए मेडल जीतें. सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंकज के पिताजी टैक्सी चलाते हैं और दो भाई अपना खुद का काम करते हैं. बचपन से ही उनका जीवन संघर्ष में रहा है, लेकिन खुद अपने दम पर पंकज ने इस मुकाम को हासिल किया है.

पंकज की उपलब्धि पर आज खुद उनके घर वाले नाज करते हैं. पंकज की मां शायर देवी कहती हैं कि मेरे बेटे के साथ हुए हादसे ने हमें जिंदगी में बहुत बड़ा दुख दिया, लेकिन अपने दम पर इसने एक मुकाम हासिल किया है, जिसकी हमें खुशी है. हम चाहते हैं कि 2024 में बेटा देश के लिए पैरा ओलंपिक में मेडल जीते और पूरे देश का नाम रोशन करे. यही हम सबकी दिली इच्छा है.

Letter of Appreciation
सम्मान पत्र...

खुद करते हैं अपना काम : पंकज सामान्य व्यक्ति की तरह अपने सारे काम नहीं कर सकते. बावजूद इसके, दोनों हाथों से निशक्त होने के बावजूद भी वह अपने अधिकतर काम खुद करते हैं. यहां तक कि 12वीं तक की पढ़ाई में भी वह किसी हेल्पर को लेकर नहीं गए. हाथों और पैरों से उन्हें अच्छी तरह लिखना आता है. खुद भोजन कर सकते हैं और अपने काम भी आसानी से कर लेते हैं.

Last Updated : Jan 20, 2023, 6:24 PM IST
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