जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने कार्यस्थल और सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के लिए टॉयलेट्स की कमी होने व मौजूदा टॉयलेट्स में आधारभूत सुविधाओं की कमी से जुडे़ मामले में केन्द्र व राज्य सरकार से पूछा है कि महिला टॉयलेट्स के मौजूदा हालात क्या हैं?. वहीं, महिला शौचालयों के सुधार के लिए उनकी क्या कार्य योजना है. इसके साथ ही अदालत ने मामले से जुडे़ न्याय मित्रों को कहा है कि वे भी सर्वे करके महिला टॉयलेट्स के हालातों पर अपनी रिपोर्ट पेश करें. सीजे एमएम श्रीवास्तव व जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश मंगलवार को प्रदेश में महिला टॉयलेट्स में आधारभूत सुविधाओं की कमी पर लिए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान मामले में सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी राजदीपक रस्तोगी और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता माही यादव पेश हुए. दोनों की ओर से मामले में जवाब पेश करने के लिए समय मांगा गया. इस पर अदालत ने सरकार को चार सप्ताह का समय देते हुए टॉयलेट्स के वर्तमान हालातों और उनमें सुधार की कार्य योजना बताने को कहा है. दरअसल हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 3 दिसंबर को महिलाओं के लिए टॉयलेट्स की कमी को गंभीरता से लिया था और संबंधित अफसरों से पूछा था कि क्यों ना सभी नगर निगम और बोर्ड आदि सार्वजनिक क्षेत्र, गलियों और स्कूल आदि में टॉयलेट निर्माण के लिए समग्र स्कीम बनाई जाए.
वहीं, क्यों ना संबंधित स्थानीय निकाय के आयुक्त या अतिरिक्त आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित की जाए. अदालत ने कहा था कि 21 वीं सदी में भी महिलाएं समाज में अपनी जगह पाने के लिए संघर्ष ही कर रही हैं और उन्हें रोजाना कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसमें खराब स्वास्थ्य व शौचालयों की कमी भी शामिल है. अदालत ने कहा था कि घर से बाहर निकली महिलाएं अपने लिए टॉयलेट तलाश करती हैं, लेकिन उन्हें या तो टॉयलेट नहीं मिलता या मिलता है तो उसमें पर्याप्त साफ सफाई नहीं होती. इसके कारण महिला वापस घर पहुंचने तक यूरिन रोकती है, जो गंभीर है.