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त्रिपुर सुंदरी की महिमा है अपरमपार...दिन में तीन बार बदलता है मां का स्वरूप

राजस्थान में बांसवाड़ा से लगभग 14 किलोमीटर दूर तलवाड़ा ग्राम से 5 किलोमीटर की दूरी पर है मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर. कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे. शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा. इनको माता राजराजेश्वरी भी कहा जाता है. दावा किया जाता है कि जो भी माता के दरबार में अपनी उम्मीद लेकर आता हैं वो कभी खाली हाथ नहीं जाता.

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Published : Apr 13, 2019, 7:54 PM IST

मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर, बांसवाड़ा

बांसवाड़ा. प्रदेश का प्रमुख शक्तिपीठ मां त्रिपुरा सुंदरी प्रदेश के 52 शक्तिपीठों में एक है. इनको माता राजराजेश्वरी भी कहा जाता है. इसके पीछे मान्यता यह है कि राजा महाराजाओं पर माता की विशेष मेहरबानी रही. दावा किया जाता है कि जो भी माता के दरबार में अपनी उम्मीद लेकर आता हैं वो कभी खाली हाथ नहीं जाता. राजतंत्र जाने के बाद देश में लोकतंत्र लागू हुआ लेकिन इस दौरान भी माता की महिमा वागड़ से निकल कर देश के विभिन्न कोनों तक पहुंची.

आज भी माता त्रिपुरा सुंदरी को राजनेताओं की देवी कहा जाता है. माता के दरबार में देश की राष्ट्रपति से लेकर कई मुख्यमंत्रियों ने माथा टेका हैं. यहीं नहीं देश के टॉप अधिकारी वर्ग के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तक अपनी हाजिरी लगा चुके हैं. मान्यता है कि राजनेताओं पर यह देवी खास मेहरबान हैं. इसी कारण पूरे साल यहां नेताओं से लेकर अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है. माता त्रिपुरा सुंदरी को तरताई माता भी कहा जाता है. इसका अर्थ तुरंत फल मिलना माना जाता है. इसी कारण साल दर साल श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है, जो आज लाखों में पहुंच गई है.

मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर, बांसवाड़ा

महिमा है अपरमपार...दिन में तीन बार बदलती है मां का स्वरूप

माता की मूर्ति बड़ी चमत्कारी मानी जाती है. माना जाता है कि यदि पूरे मन से दिन भर कोई भक्त मूर्ति को श्रद्धा के साथ देखे तो प्रात काल में बाल रूपा, मध्यान्ह में यौवना रूप तथा साइन काल में परौड रूप में नजर आती है. यानि कि दिन में माता के तीन रुप देखने को मिल सकते हैं. इसे मां का चमत्कार ही कहा जायेगा कि अगर सच्चे मन से कोई दिन भर मां को श्रद्धा भाव से देखें तो मां तीन-तीन रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं.

जोशी से लेकर वसुंधरा तक खास भक्त

मंदिर सूत्रों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री बांसवाड़ा के ही हरिदेव जोशी देवी के खास भक्तों में शुमार रहे. 2003 में परिवर्तन यात्रा के दौरान वसुंधरा राजे ने यहां आकर मन्नत मांगी थी. जिसके बाद से ही वसुंधरा राजे साल में तीन से चार बार माता के दरबार में पूजा अर्चना करने आती हैं. गत विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी तीन बार त्रिपुरा सुंदरी आ चुके हैं. यहां तक की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के अलावा पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती भी माता के दरबार में हाजरी दे चुके हैं.
आम जनों की भी मन्नते होती है पूरी

ऐसा नहीं है कि यहां नेता और अधिकारियों की ही सुना जाती है, बल्कि आम लोगों की भी बढ़ चढ़ कर मन्नतें पूरी होती हैं. साल दर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं. श्रद्धालु कहते है कि जो कोई भी सच्चे मन से मां से कुछ मांगता हैं उसकी मुरादे जरुर पूरी होती हैं. यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जा सकता.

मंदिर निर्माण और इतिहास

यह मंदिर पुरातन कालीन सम्राट कनिष्क काल से पूर्व का माना जाता है. मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे. सीतापुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा. प्राचीन समय में यहां गढ़ पोली महानगर था. यह भी कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी अल्लाउद्दीन आदि मूर्ति भंजक इस इलाके में आए और अरथुना सहित आसपास के मंदिरों में मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया लेकिन मां त्रिपुरा सुंदरी का चमत्कार कहे या कुछ और कोई भी मूर्ति भंजक आंख नहीं उठा पाया. विक्रम संवत 1157 में वाद्दा बाई और प्रताप भाई लोहार द्वारा पहली बार इसका जीर्णोद्धार कराया गया. विक्रम संवत 1930 में मंदिर की शिखर प्रतिष्ठा की गई और 1991 में फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया.

प्रत्येक शीला का हवन पूजन

मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर ट्रस्ट के प्रवक्ता अंबालाल पांचाल के अनुसार भारत का यह पहला मंदिर है जहां प्रत्येक शीला की हवन पूजन के साथ स्थापना की गई. लोहार पांचाल समाज द्वारा अपने स्तर पर एक-एक शीला समर्पित की गई. उन्होनें बताया कि कुल 1223 लोगों द्वारा शीलाए भेंट की गई. मंदिर के जीर्णोद्धार में कुल 1889 शीला उपयोग में ली गई और 2016 में यह काम संपन्न हुआ. इस मंदिर का संचालन लोहार पांचाल समाज 14 चोकला द्वारा किया जा रहा है.

इन वस्तुओं का निषेध

मंदिर में किसी भी प्रकार की चमड़े की चीज ले जाने की मनाही है. अर्थात कोई भी श्रद्धालु बेल्ट या चमड़े की कोई भई वस्तू नहीं ले जा सकता. यहां तक कि कोई व्यक्ति जुराब पहनकर भी प्रवेश नहीं कर सकता. मंदिर में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी प्रतिबंधित है.

बांसवाड़ा. प्रदेश का प्रमुख शक्तिपीठ मां त्रिपुरा सुंदरी प्रदेश के 52 शक्तिपीठों में एक है. इनको माता राजराजेश्वरी भी कहा जाता है. इसके पीछे मान्यता यह है कि राजा महाराजाओं पर माता की विशेष मेहरबानी रही. दावा किया जाता है कि जो भी माता के दरबार में अपनी उम्मीद लेकर आता हैं वो कभी खाली हाथ नहीं जाता. राजतंत्र जाने के बाद देश में लोकतंत्र लागू हुआ लेकिन इस दौरान भी माता की महिमा वागड़ से निकल कर देश के विभिन्न कोनों तक पहुंची.

आज भी माता त्रिपुरा सुंदरी को राजनेताओं की देवी कहा जाता है. माता के दरबार में देश की राष्ट्रपति से लेकर कई मुख्यमंत्रियों ने माथा टेका हैं. यहीं नहीं देश के टॉप अधिकारी वर्ग के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तक अपनी हाजिरी लगा चुके हैं. मान्यता है कि राजनेताओं पर यह देवी खास मेहरबान हैं. इसी कारण पूरे साल यहां नेताओं से लेकर अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है. माता त्रिपुरा सुंदरी को तरताई माता भी कहा जाता है. इसका अर्थ तुरंत फल मिलना माना जाता है. इसी कारण साल दर साल श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है, जो आज लाखों में पहुंच गई है.

मां त्रिपुरा सुंदरी का मंदिर, बांसवाड़ा

महिमा है अपरमपार...दिन में तीन बार बदलती है मां का स्वरूप

माता की मूर्ति बड़ी चमत्कारी मानी जाती है. माना जाता है कि यदि पूरे मन से दिन भर कोई भक्त मूर्ति को श्रद्धा के साथ देखे तो प्रात काल में बाल रूपा, मध्यान्ह में यौवना रूप तथा साइन काल में परौड रूप में नजर आती है. यानि कि दिन में माता के तीन रुप देखने को मिल सकते हैं. इसे मां का चमत्कार ही कहा जायेगा कि अगर सच्चे मन से कोई दिन भर मां को श्रद्धा भाव से देखें तो मां तीन-तीन रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं.

जोशी से लेकर वसुंधरा तक खास भक्त

मंदिर सूत्रों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री बांसवाड़ा के ही हरिदेव जोशी देवी के खास भक्तों में शुमार रहे. 2003 में परिवर्तन यात्रा के दौरान वसुंधरा राजे ने यहां आकर मन्नत मांगी थी. जिसके बाद से ही वसुंधरा राजे साल में तीन से चार बार माता के दरबार में पूजा अर्चना करने आती हैं. गत विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी तीन बार त्रिपुरा सुंदरी आ चुके हैं. यहां तक की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के अलावा पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती भी माता के दरबार में हाजरी दे चुके हैं.
आम जनों की भी मन्नते होती है पूरी

ऐसा नहीं है कि यहां नेता और अधिकारियों की ही सुना जाती है, बल्कि आम लोगों की भी बढ़ चढ़ कर मन्नतें पूरी होती हैं. साल दर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं. श्रद्धालु कहते है कि जो कोई भी सच्चे मन से मां से कुछ मांगता हैं उसकी मुरादे जरुर पूरी होती हैं. यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जा सकता.

मंदिर निर्माण और इतिहास

यह मंदिर पुरातन कालीन सम्राट कनिष्क काल से पूर्व का माना जाता है. मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे. सीतापुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा. प्राचीन समय में यहां गढ़ पोली महानगर था. यह भी कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी अल्लाउद्दीन आदि मूर्ति भंजक इस इलाके में आए और अरथुना सहित आसपास के मंदिरों में मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया लेकिन मां त्रिपुरा सुंदरी का चमत्कार कहे या कुछ और कोई भी मूर्ति भंजक आंख नहीं उठा पाया. विक्रम संवत 1157 में वाद्दा बाई और प्रताप भाई लोहार द्वारा पहली बार इसका जीर्णोद्धार कराया गया. विक्रम संवत 1930 में मंदिर की शिखर प्रतिष्ठा की गई और 1991 में फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया.

प्रत्येक शीला का हवन पूजन

मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर ट्रस्ट के प्रवक्ता अंबालाल पांचाल के अनुसार भारत का यह पहला मंदिर है जहां प्रत्येक शीला की हवन पूजन के साथ स्थापना की गई. लोहार पांचाल समाज द्वारा अपने स्तर पर एक-एक शीला समर्पित की गई. उन्होनें बताया कि कुल 1223 लोगों द्वारा शीलाए भेंट की गई. मंदिर के जीर्णोद्धार में कुल 1889 शीला उपयोग में ली गई और 2016 में यह काम संपन्न हुआ. इस मंदिर का संचालन लोहार पांचाल समाज 14 चोकला द्वारा किया जा रहा है.

इन वस्तुओं का निषेध

मंदिर में किसी भी प्रकार की चमड़े की चीज ले जाने की मनाही है. अर्थात कोई भी श्रद्धालु बेल्ट या चमड़े की कोई भई वस्तू नहीं ले जा सकता. यहां तक कि कोई व्यक्ति जुराब पहनकर भी प्रवेश नहीं कर सकता. मंदिर में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी प्रतिबंधित है.

Intro:बांसवाड़ाl वागवर प्रदेश का प्रमुख शक्तिपीठ मां त्रिपुरा सुंदरी प्रदेश के 52 शक्तिपीठों में एक है। इस माता को राजराजेश्वरी भी कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि राजा महाराजाओं पर माता की विशेष मेहरबानी रही। जो भी माता के दरबार में अपनी उम्मीद लेकर आया उसकी उम्मीदें माता ने परवाह चढ़ाई। राजतंत्र जाने के बाद देश में लोकतंत्र लागू हुआ लेकिन इस दौरान भी माता की महिमा वागड़ से निकल कर देश के विभिन्न कोणों तक पहुंच गई। आज भी माता त्रिपुरा सुंदरी को राजनेताओं की देवी कहा जाता है। माता के दरबार में देश की राष्ट्रपति से लेकर


Body:कई मुख्यमंत्री और देश के टॉप अधिकारी वर्ग के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तक अपनी हाजिरी लगा चुके हैं। मान्यता है कि राजनेताओं पर यह देवी खास मेहरबान हैं। इसी कारण वर्षभर यहां नेताओं से लेकर अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है। माता त्रिपुरा सुंदरी को तरताई माता भी कहा जाता है इसका अर्थ तुरंत फल मिलना माना जाता है। इसी कारण साल दर साल श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है जो आज लाखों में पहुंच गई है।
दिन में तीन रूप
माता की मूर्ति बड़ी चमत्कारी मानी जाती है। माना जाता है कि यदि पूरे मन से दिन भर कोई भक्त मूर्ति को श्रद्धा के साथ देखे तो प्रात काल में बाल रूपा, मध्यान्ह में यौवना रूप तथा साइन काल में परौड रूप में नजर आती हैl
जोशी से लेकर वसुंधरा तक खास भक्त
मंदिर सूत्रों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री बांसवाड़ा के ही हरिदेव जोशी देवी के खास भक्तों में शुमार रहे। 2003 में परिवर्तन यात्रा के दौरान वसुंधरा राजे ने यहां आकर मन्नत मांगी थी उसके बाद से ही वसुंधरा राजे साल में तीन से चार बार माता के दरबार में पहुंचती है। गत विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी तीन बार त्रिपुरा सुंदरी आ चुके हैं। यहां तक की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के अलावा पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती बी माता के दरबार में शीश नवा चुके हैं। यह नेता और अधिकारी ही नहीं आमजन भी बड़ी मुरादों के साथ पहुंचता है जो खाली हाथ नहीं लौटता।
मंदिर निर्माण और इतिहास
यह मंदिर पुरातन कालीन सम्राट कनिष्क काल से पूर्व का माना जाता है। प्राचीन समय में यहां गढ़ पोली महानगर था। नगर में तीन दुर्ग थे सीतापुरी शिवपुरी तथा विष्णु पुरी। यह भी कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी अल्लाउद्दीन आदि मूर्ति भंजक इस इलाके में आए और अरथुना सहित आसपास के मंदिरों में मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया लेकिन मां त्रिपुरा सुंदरी का चमत्कार कहे या कुछ और कोई भी मूर्ति भंजक आंख नहीं उठा पाया। विक्रम संवत 1157 में वाद्दा बाई और प्रताप भाई लोहार द्वारा पहली बार इसका जीर्णोद्धार कराया गया। विक्रम संवत 1930 में मंदिर किस शिखर प्रतिष्ठा की गई और 1991 में फिर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
प्रत्येक शीला का हवन पूजन
मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर ट्रस्ट के प्रवक्ता अंबालाल पांचाल के अनुसार भारत का यह पहला मंदिर है जहां प्रत्येक शीला की हवन पूजन के साथ स्थापना की गई। लोहार पांचाल समाज द्वारा अपने स्तर पर एक एक शीला समर्पित की गई। कुल 1223 लोगों ने शीलाए भेंट की। मंदिर के जीर्णोद्धार में कुल अट्ठारह सौ नवासी शीला उपयोग में ली गई और 2016 में यह काम संपन्न हुआ। इस मंदिर का संचालन लोहार पांचाल समाज 14 चोकला द्वारा किया जा रहा है।
इन वस्तुओं का निषेध
मंदिर में किसी भी प्रकार की चमड़े की चीज ले जाने की मनाही है। अर्थात कोई भी श्रद्धालु बेल्ट तक नहीं ले जा सकता। वहीं जुराब पहनकर भी कोई प्रवेश नहीं कर सकता। मंदिर में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी प्रतिबंधित है।



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