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अलवर के करणी माता मंदिर में मेला हुआ शुरू, बख्तावर सिंह ने कराया था मंदिर का निर्माण

अलवर स्थित करणी माता मंदिर में आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ा है. श्रद्धा और भक्ति से सरोबार दर्शनार्थियों की लंबी-लंबी कतारें लग रहीं है. मां करणी के गगन भेदी जयकारों से करणीमय हुआ देशनोक.

करणी माता मंदिर में मेला शुरू
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Published : Apr 8, 2019, 7:03 AM IST

अलवर. बाला किला एरिया में अरावली की पहाड़ियों के बीचो-बीच करणी माता का मंदिर स्थित है. नवरात्रों के दिनों में यहां मेला लगता है. 9 दिनों तक चलने वाले इस मेले में देशभर से हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.

अलवर के करणी माता मंदिर में मेला हुआ शुरू

आपको बता दें कि शहर से यह मंदिर 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मंदिर पहुंचने के दो रास्ते हैं, एक सड़क से और दूसरा पैदल. हालांकि प्रशासन ने अभी पैदल चलकर जाने वाला रास्ता बंद कर रखा है. क्योंकि पैदल चलने के दौरान हादसे होने का खतरा बना रहता है. वहीं सड़क मार्ग से दो पहिया वाहन चल रहे हैं. नवरात्रि की शुरुआत होते ही मंदिर में मेले की शुरुआत हो जाती है. दिनभर श्रद्धालुओं का मंदिर में तांता लगा रहता है. मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेन्द्र का कहना है कि इस मंदिर की विशेष मान्यता है यहां सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

क्या है मंदिर का मान्यता?
पूर्व राज परिवार के निजी सचिव नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि इस मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि साल 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में 1 दिन काफी तेज दर्द हुआ था. हकीम और वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ. उनके सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया.

इस पर उन्हें मेल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी. सफेद चील करणी माता का प्रतीक मानी जाती है. सफेद चील के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया. इसके बाद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था.

महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर जिले में स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेंट किया था. राठौड़ ने बताया कि साल 1985 में राम बक्स सैनी की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया था. इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था. मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से करणी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग था.

गौरतलब हो कि मंदिर को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस की तरफ से खास इंतजाम किए गए हैं. अष्टमी और नवमी के दिन मंदिर में खास भीड़ रहती है. देश भर से लोग अपनी मन्नत लेकर माता के दर्शन के लिए आते हैं.

अलवर. बाला किला एरिया में अरावली की पहाड़ियों के बीचो-बीच करणी माता का मंदिर स्थित है. नवरात्रों के दिनों में यहां मेला लगता है. 9 दिनों तक चलने वाले इस मेले में देशभर से हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.

अलवर के करणी माता मंदिर में मेला हुआ शुरू

आपको बता दें कि शहर से यह मंदिर 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मंदिर पहुंचने के दो रास्ते हैं, एक सड़क से और दूसरा पैदल. हालांकि प्रशासन ने अभी पैदल चलकर जाने वाला रास्ता बंद कर रखा है. क्योंकि पैदल चलने के दौरान हादसे होने का खतरा बना रहता है. वहीं सड़क मार्ग से दो पहिया वाहन चल रहे हैं. नवरात्रि की शुरुआत होते ही मंदिर में मेले की शुरुआत हो जाती है. दिनभर श्रद्धालुओं का मंदिर में तांता लगा रहता है. मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेन्द्र का कहना है कि इस मंदिर की विशेष मान्यता है यहां सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

क्या है मंदिर का मान्यता?
पूर्व राज परिवार के निजी सचिव नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि इस मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि साल 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में 1 दिन काफी तेज दर्द हुआ था. हकीम और वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ. उनके सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया.

इस पर उन्हें मेल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी. सफेद चील करणी माता का प्रतीक मानी जाती है. सफेद चील के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया. इसके बाद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था.

महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर जिले में स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेंट किया था. राठौड़ ने बताया कि साल 1985 में राम बक्स सैनी की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया था. इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था. मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से करणी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग था.

गौरतलब हो कि मंदिर को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस की तरफ से खास इंतजाम किए गए हैं. अष्टमी और नवमी के दिन मंदिर में खास भीड़ रहती है. देश भर से लोग अपनी मन्नत लेकर माता के दर्शन के लिए आते हैं.

Intro:अलवर में बाला किला एरिया में अरावली की पहाड़ियों के बीचो-बीच करणी माता का मंदिर स्थित है। नवरात्रों के दिनों में यहां मेला भरता है। 9 दिन मंदिर में हजारों श्रद्धालु देशभर से माता के दर्शन के लिए आते हैं। अलवर शहर से यह मंदिर 6 किलोमीटर दूर है। मंदिर पहुंचने के दो रास्ते हैं, सड़क मार्ग व पैदल मार्ग। हालांकि प्रशासन ने अभी पैदल का रास्ता बंद कर रखा है। उसमें हादसे होने का खतरा रहता है तो वहीं सड़क मार्ग से दो पहिया वाहन चल रहे हैं।


Body:नवरात्रों की शुरुआत से मंदिर में मेले की शुरुआत होती है। दिनभर श्रद्धालुओं का मंदिर में ताता लगा रहता है। मंदिर के पुजारी पंडित धर्मेन्द्र का कहना है कि इस मंदिर की विशेष मान्यता है यहां सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

पूर्व राज परिवार के निजी सचिव नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि इस मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में 1 दिन काफी तेज दर्द हुआ था। हकीम व वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ। उनके सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया।

इस पर उन्हें मेल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी। सफेद चील करणी माता का प्रतीक मारी जाती है। सफेद चील के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया। इसके बाद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।

महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेट किया था। राठौर ने बताया कि 1985 में राम बक्स सैनी की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया था। इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था। मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से करनी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग था।


Conclusion:मंदिर को देखते हुए जिला प्रशासन व पुलिस की तरफ से खास इंतजाम किए जाते हैं। अष्टमी व नवमी के दिन मंदिर में खास भीड़ रहती है। देश भर से लोग अपनी मन्नत लेकर माता के दर्शन के लिए आते हैं।
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