उदयपुर. रंगों का त्योहार होली आने में अभी माह भर का समय है लेकिन इसका रंग अभी से चढ़ने लगा है. हालांकि बाजार में आने वाले केमिकल युक्त रंगों के कारण कई लोग होली खेलने से भी परहेज करने लगे हैं. लेकिन होली के उत्सव को उमंग में बदलने के लिए उदयपुर के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में आदिवासी महिलाएं हर्बल रंग तैयार (tribal women making herbal colour) कर रही हैं. आदिवासी महिलाएं बिना साइड इफेक्ट वाले हर्बल गुलाल बना रही हैं जो न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में सप्लाई किए जा रहे हैं. इससे जहां एक और महिलाएं आत्मनिर्भर (tribal women becoming self dependent) बन रही हैं वहीं दूसरी ओर उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है.
उदयपुर के आदिवासी बाहुल्य इलाके कोटडा में आजीविका स्वयं सहायता समूह की बड़ी संख्या में महिलाएं ऑर्गेनिक हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही है. इससे जहां एक और आदिवासी महिलाओं को रोजगार मिल रहा है तो दूसरी और महिलाएं आत्मनिर्भर भी बन रही हैं. इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है. इसके साथ ही रासायनिक गुलाल से लोगों को छुटकारा भी मिल रहा है.
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कैसे बनाया जाता हर्बल गुलाल
हर्बल गुलाल उदयपुर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में वनस्पतियों एवं फूलों से बनाया जा रहा है. हर्बल गुलाल बनाने के लिए फूल एवं पत्तियों का उपयोग किया जाता है. हरे रंग के लिए रिजका लाल रंग के लिए चुकंदर, गुलाबी के लिए गुलाब फूल पीले रंग के लिए पलाश के फूलों का मिश्रण तैयार कर गर्म पानी में उबाल जाता है.बाद में इसको ठंडा करके आरारोट आटे को मिलाकर मिक्सर में पीसकर सुगंधित अके डालकर हर्बल गुलाल तैयार किया जाता है.जिस से पहले इस मिक्सर को छांव में सुखाकर के महिलाएं अपने हाथों द्वारा मिक्स करके उन्हें तैयार करती हैं.जिसके बाद उन्हें महिलाएं इस गुलाल को पैकेट में पैक करके रखती हैं.
हर्बल गुलाल के मिलते हैं ऑर्डर
दुर्गाराम ब्लॉक को कोऑर्डिनेटर ने बताया कि हर्बल गुलाल बनाने का कार्य 2021 से शुरू हुआ था. इसमें सबसे पहले महिलाएं कोटडा ब्लॉक से कार्य शुरू हुआ था. शुरुआत में इसमें 10 से 15 महिलाओं के अलग-अलग समूह बनाकर रंग बनाने का कार्य शुरू किया गया. अब झाडोल ब्लॉक में इस कार्य को शुरू किया गया है जिसमें करीब 300-300 महिलाओं का समूह प्राथमिकता के अनुसार कार्य में लगाया जाता है. इस राजीविका स्वयं सहायता समूह में कोटडा ब्लॉक में 19000 महिलाएं अब तक जुड़ चुकी है. साथ ही 1567 स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं. वहीं चार क्लस्टर फेडरेशन बने हुए हैं जिसके माध्यम से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य किया जा रहा है.
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पिछले साल इतना बनाया गुलाल
पिछले वर्ष आदिवासी महिलाओं ने 100 क्विंटल हर्बल गुलाल बनाया था. इस बार हर्बल गुलाल की डिमांड आना अभी शुरू हो गई है जो पहले की तुलना में ज्यादा रहने वाली है. क्योंकि अभी से ही जगह-जगह से इसकी मांग बढ़ रही है इसमें खासकर सहकारिता विभाग के जुड़ने के बाद और ज्यादा मांग हुई. ऐसे में बड़ी संख्या में महिलाएं इसमें कार्य कर रही हैं.
हर्बल गुलाल की रेट
पिछले वर्ष हर्बल गुलाल 270 रुपए किलो की रेट थी.लेकिन इस बार महंगाई के कारण 320 रुपए इसकी रेट है.जबकि विदेशों में इससे दोगुनी रेट में बिकता है.
एक महिला की औसतन आय
इस कारोबार में काफी संख्या में आदिवासी महिलाएं कार्य कर रही हैं जिसमें उन्हें आत्मनिर्भर बनने के साथ ही अपने परिवार के भरण-पोषण में भी बड़ा सहयोग मिल रहा है. क्योंकि इस कार्य के लिए उन्हें महीने के 6000 हजार रुपए से लेकर 9000 हचार अलग-अलग कार्य के दिए जाते हैं. हर्बल गुलाल बनाने के बाद इसको मार्केट में बेचने के लिए जिला परिषद, पंचायत समितियों, ब्लॉक स्तर, हाट बाजार, पर्यटन विभाग के साथ ही महिलाएं स्टॉल भी लगाती हैं.
मेवाड़ का हर्बल गुलाल विदेशों तक पहुंचा
मेवाड़ के हर्बल गुलाल की सुगंध न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रही है. यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका के अलावा अन्य देशों में गुलाल की मांग बढ़ रही है. वहीं राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, यूपी और जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों में भी मांग के अनुसार गुलाल सप्लाई किया जाता है.
हर्बल गुलाल के मार्केट को और बढ़ाने के लिए राजीविका सहायता समूह से अधिक से अधिक महिलाओं को जोड़ा जाए जिससे उन्हें रोजगार मिले. हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही सीता देवी ने बताया कि वर्तमान में जो मानदेय दिया जा रहा है. वह बहुत कम है. इसे सरकार की ओर से और अधिक बढ़ाया जाए. इस गुलाल को बेचने के लिए मार्केटिंग स्तर तक पहुंचने के लिए संसाधनों का भी सहयोग मिले तो और अधिक बढ़ सकता है.
हर्बल गुलाल बेचने के लिए पर्यटन विभाग की पहल...
उदयपुर के आदिवासी अंचल में फूल और पत्तियों से तैयार होने वाले हर्बल गुलाल की खुशबू को बढ़ाने के लिए उदयपुर का पर्यटन विभाग आगे आया है. अब ट्राइबल प्रोडक्ट को नया मार्केट देने के लिए पर्यटन विभाग ने भी सभी प्रमुख पर्यटन स्थलों पर आदिवासी अंचल के महिलाओं को मुफ्त काउंटर उपलब्ध कराए जाएंगे. यही नहीं, विभाग इन प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करेगा. इससे बिक्री में भी इजाफा होगा.
पर्यटन विभाग की उपनिदेशक शिखा सक्सेना ने बताया कि शहर के प्रमुख पर्यटन स्थल भारतीय लोक कला मंडल, फिश एक्वेरियम, कर्णी माता रोपवे, प्रताप गौरव केंद्र, सहेलियों की बाड़ी, आरके मॉल इनके अलावा अन्य जगह स्टाल लगाए जाएंगे.
हर्बल गुलाल के नए प्रोडक्ट का संभागीय आयुक्त ने किया लोकार्पण
संभागीय आयुक्त ने जनजातीय महिलाओं की ओर से तैयार हर्बल गुलाल को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने उपभोक्ता भंडार और अन्य संस्थाओं के माध्यम से इसकी बिक्री करने के निर्देश दिए तथा हर्बल गुलाल के नवीन प्रोडक्ट का लोकार्पण भी किया. उन्होंने इसे जनजाति महिलाओं के उत्पाद के नाम से ब्रांड बनाने की बात कही थी.
आदिवासी महिलाओं की आत्मनिर्भरता के बढ़ते कदमों को ताकत देने के लिए हर्बल गुलाल का उपयोग एक सार्थक कदम होगा. इसके साथ ही होली पर केमिकल रंगों के प्रयोग के बजाए हर्बल कलर के इस्तेमाल से त्वचा को भी नुकसान नहीं होगा.