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पिछले 28 साल में 48 चुनाव लड़ चुके हैं सीकर से निर्दलीय प्रत्याशी खर्राटे...जानें

सीकर के भागीरथ सिंह में चुनाव लड़ने का ऐसा जुनून है कि वो पिछले 28 साल में 48 चुनाव लड़ चुके हैं. यहां तक उन्होंने पंच-सरपंच से लेकर लोकसभा विधानसभा तक सभी चुनाव लड़े है.

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Published : Apr 29, 2019, 2:54 PM IST

28 साल में 48 चुनाव लड़ चुके हैं सीकर के भागीरथ

सीकर. भागीरथ सिंह खर्राटे, ये नाम आपके लिए नया होगा लेकिन सीकर के लोगों के लिए नहीं. यहां आपको बता दें कि खर्राटे इनकी कोई गोत्र या जाति नहीं है. यह नाम गांव के लोगों ने इनको इसलिए दिया है कि यह खरी बात कहते है. खरी बात कहने की वजह से गांव के लोग इन्हें खर्राटे कहने लगे और इन्होंने अपने कागजात में भी अपना सरनेम यहीं लगा लिया.

28 साल में 48 चुनाव लड़ चुके हैं सीकर के भागीरथ

भागीरथ सिंह खर्राटे वह नाम है जो सीकर में चाहे कोई भी चुनाव हो यह पहले से तय होता है कि भागीरथ सिंह का नामांकन तो जरूर आएगा. पिछले 28 साल में भागीरथ सिंह 48 चुनाव लड़ चुके हैं. जिनमें पंच, सरपंच से लेकर विधायक और सांसद के चुनाव शामिल है. अगर सीकर में चुनाव नहीं होता है तो वहां भी पहुंच जाते हैं जहां उपचुनाव होता है. चुनाव लड़ने का जुनून तो इतना है कि राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रपति तक के लिए आवेदन करने पहुंच गए. लेकिन, प्रस्तावक नहीं मिले तो वापस आ गए.

सीकर से लोकसभा प्रत्याशी हैं खर्राटे
इस बार भी लोकसभा चुनाव 2019 में भागीरथ सिंह अपनी ताल ठोंक रहे है. सीकर सीट से वो निर्दलीय प्रत्याशी है. जिनका चुनाव चिन्ह डायमंड (हीरा ) है.

1991 में लड़ा पहला लोकसभा चुनाव
भागीरथ सिंह खराटे ने 1991 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था. इसके बाद तो राजस्थान में जो भी विधानसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक सभी चुनाव इन्होंने लड़े हैं. पंचायत चुनाव में पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य सहित सभी चुनाव लड़ते हैं. खेती-बाड़ी करके अपना गुजारा करने वाले भागीरथ सिंह खराटे चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी अपनी खेती से ही जुटाते हैं. इनका कहना है कि वह आमजन और गरीब की आवाज उठाने के लिए चुनाव लड़ते हैं. लेकिन, पैसे वाले उम्मीदवारों के सामने लोगों ने वोट नहीं करते.

जीतकर गरीब का करना चाहते हैं भला
भागीरथ सिंह का कहना है कि चुनाव जीतकर गरीब और किसान का भला करना चाहते हैं. आज गरीब की कोई सुनने वाला नहीं है. चुनाव में धनबल का इस्तेमाल होता है. इसीलिए वे अन्य लोगों के सामने टिक नहीं पाते हैं. क्योंकि, उनके पास तो जैसे लोकसभा की फीस ₹25000 है तो पूरी साल खेती करते हैं तब इतना बचा पाते हैं.

दूसरी जगह से भी लड़ लेते हैं चुनाव
भागीरथ सिंह कराटे ने एक बार दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. क्योंकि वहां पर उपचुनाव था और उस वक्त सीकर में चुनाव नहीं था. इसके अलावा एक बार अजमेर के उपचुनाव में भी मैदान में उतर चुके हैं. उनका चुनाव प्रचार भी पैदल ही घूम कर होता है. वह सुबह झोला उठाकर घर से रवाना होते हैं और शाम तक लोगों से मिलकर वोट देने की अपील करते हैं. यहां तक की पीने का पानी भी अपने घर से साथ लेकर जाते हैं.

सीकर. भागीरथ सिंह खर्राटे, ये नाम आपके लिए नया होगा लेकिन सीकर के लोगों के लिए नहीं. यहां आपको बता दें कि खर्राटे इनकी कोई गोत्र या जाति नहीं है. यह नाम गांव के लोगों ने इनको इसलिए दिया है कि यह खरी बात कहते है. खरी बात कहने की वजह से गांव के लोग इन्हें खर्राटे कहने लगे और इन्होंने अपने कागजात में भी अपना सरनेम यहीं लगा लिया.

28 साल में 48 चुनाव लड़ चुके हैं सीकर के भागीरथ

भागीरथ सिंह खर्राटे वह नाम है जो सीकर में चाहे कोई भी चुनाव हो यह पहले से तय होता है कि भागीरथ सिंह का नामांकन तो जरूर आएगा. पिछले 28 साल में भागीरथ सिंह 48 चुनाव लड़ चुके हैं. जिनमें पंच, सरपंच से लेकर विधायक और सांसद के चुनाव शामिल है. अगर सीकर में चुनाव नहीं होता है तो वहां भी पहुंच जाते हैं जहां उपचुनाव होता है. चुनाव लड़ने का जुनून तो इतना है कि राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रपति तक के लिए आवेदन करने पहुंच गए. लेकिन, प्रस्तावक नहीं मिले तो वापस आ गए.

सीकर से लोकसभा प्रत्याशी हैं खर्राटे
इस बार भी लोकसभा चुनाव 2019 में भागीरथ सिंह अपनी ताल ठोंक रहे है. सीकर सीट से वो निर्दलीय प्रत्याशी है. जिनका चुनाव चिन्ह डायमंड (हीरा ) है.

1991 में लड़ा पहला लोकसभा चुनाव
भागीरथ सिंह खराटे ने 1991 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था. इसके बाद तो राजस्थान में जो भी विधानसभा से लेकर पंचायत चुनाव तक सभी चुनाव इन्होंने लड़े हैं. पंचायत चुनाव में पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य सहित सभी चुनाव लड़ते हैं. खेती-बाड़ी करके अपना गुजारा करने वाले भागीरथ सिंह खराटे चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी अपनी खेती से ही जुटाते हैं. इनका कहना है कि वह आमजन और गरीब की आवाज उठाने के लिए चुनाव लड़ते हैं. लेकिन, पैसे वाले उम्मीदवारों के सामने लोगों ने वोट नहीं करते.

जीतकर गरीब का करना चाहते हैं भला
भागीरथ सिंह का कहना है कि चुनाव जीतकर गरीब और किसान का भला करना चाहते हैं. आज गरीब की कोई सुनने वाला नहीं है. चुनाव में धनबल का इस्तेमाल होता है. इसीलिए वे अन्य लोगों के सामने टिक नहीं पाते हैं. क्योंकि, उनके पास तो जैसे लोकसभा की फीस ₹25000 है तो पूरी साल खेती करते हैं तब इतना बचा पाते हैं.

दूसरी जगह से भी लड़ लेते हैं चुनाव
भागीरथ सिंह कराटे ने एक बार दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. क्योंकि वहां पर उपचुनाव था और उस वक्त सीकर में चुनाव नहीं था. इसके अलावा एक बार अजमेर के उपचुनाव में भी मैदान में उतर चुके हैं. उनका चुनाव प्रचार भी पैदल ही घूम कर होता है. वह सुबह झोला उठाकर घर से रवाना होते हैं और शाम तक लोगों से मिलकर वोट देने की अपील करते हैं. यहां तक की पीने का पानी भी अपने घर से साथ लेकर जाते हैं.

Intro:सीकर के भागीरथ सिंह खराटे। खर्राटे इनकी कोई गोत्र या जाति नहीं है यह नाम गांव के लोगों ने इनको इसलिए दिया है कि यह खरी बात कहते हैं। खरी बात कहने की वजह से गांव के लोग इन्हें खर्राटे कहने लगे और इन्होंने अपने कागजात में भी अपना सरनेम यही लगा लिया। भागीरथ सिंह खर्राटे वह नाम है जो सीकर में चाहे कोई भी चुनाव हो यह पहले से तय होता है कि भागीरथ सिंह का नामांकन तो जरूर आएगा। पिछले 28 साल में भागीरथ सिंह 48 चुनाव लड़ चुके हैं जिनमें पंच सरपंच से लेकर विधायक और सांसद के चुनाव शामिल है। अगर सीकर में चुनाव नहीं होता है तो वहां भी पहुंच जाते हैं जहां उपचुनाव होता है। चुनाव लड़ने का जुनून तो इतना है कि राज्य सभा सदस्य और राष्ट्रपति तक के लिए आवेदन करने पहुंच गए लेकिन प्रस्तावक नहीं मिले तो वापस आ गए।


Body:भागीरथ सिंह खराटे ने 1991 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था इसके बाद तो राजस्थान में जो भी विधानसभा चुनाव हुए पंचायत के चुनाव हुए सभी चुनाव इन्होंने लड़े हैं। पंचायत चुनाव में पंच सरपंच पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य सहित सभी चुनाव लड़ते हैं। खेती-बाड़ी करके अपना गुजारा करने वाले भागीरथ सिंह खराटे चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी अपनी खेती से ही जुटाते हैं। इनका कहना है कि वह आमजन और गरीब की आवाज उठाने के लिए चुनाव लड़ते हैं लेकिन पैसे वाले उम्मीदवारों के सामने लोगों ने वोट नहीं करते।

गरीब का करना चाहते हैं भला
भागीरथ सिंह का कहना है कि चुनाव जीतकर गरीब और किसान का भला करना चाहते हैं आज गरीब की कोई सुनने वाला नहीं है। चुनाव में धनबल का इस्तेमाल होता है और इसीलिए वे अन्य लोगों के सामने टिक नहीं पाते हैं क्योंकि उनके पास तो जैसे लोकसभा की फीस ₹25000 है तो पूरी साल खेती करते हैं तब इतना बचा पाते हैं।

दूसरी जगह से भी लड़ लेते हैं चुनाव
भागीरथ सिंह कराटे ने एक बार दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा था क्योंकि वहां पर उपचुनाव था और उस वक्त सीकर में चुनाव नहीं था इसके अलावा एक बार अजमेर के उपचुनाव में भी मैदान में उतर चुके हैं। उनका चुनाव प्रचार पैदल ही घूम कर होता है वह सुबह झोला उठाकर घर से रवाना होते हैं और शाम तक लोगों से मिलकर वोट देने की अपील करते हैं पीने का पानी भी अपने घर से साथ लेकर जाते हैं


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