कोटा. चंबल के किनारे बसा शहर कोटा है. लेकिन. इसके बावजूद कोटा के बाशिंदे दूर-दूर से पानी लाने को मजबूर हैं. पानी की समस्या से यहां की जनता भी जूझ रही है. कोटा मेडिकल कॉलेज के बसी हुई एक कच्ची बस्ती के हालात यह हैं कि यहां सरकारी नल लगे हुए हैं और आसपास की ट्यूबवेल से भी कनेक्शन दिए हुए हैं, लेकिन पूरे दबाव से पानी नहीं आता है. ऐसे में लोगों को कीचड़ के नजदीक ही पानी भरना मजबूरी हो गया है. वे लोग पहले छोटे पेंदे वाले बर्तन में पानी भरते हैं.
इसके बाद दूसरे बर्तनों में पानी भर अपनी झोपड़ी में लेकर जाते हैं. ताकि उनके परिजन इस पानी को पी, नहा और कपड़े भी धो सकें. यह 500 से ज्यादा लोगों की बस्ती है और कमोबेश हर घर का यही हाल है. पानी को लेकर पूरी बस्ती में त्राहि-त्राहि मची हुई है. क्योंकि पानी की जरूरत हर व्यक्ति को है और उसमें बच्चे से लेकर बूढ़े सभी शामिल हैं. बच्चे भी अपने हिस्से का पानी लेने के लिए सरकारी नलों पर पहुंच जाते हैं.
जहां पर घंटों कतार में खड़े होकर अपने परिवार जनों के लिए पानी लेकर आते हैं. यहां पर पानी भर रहे अर्जुन और हरदेव गुर्जर का कहना है कि वह सुबह 7:00 बजे ही ड्यूटी पर लग जाते हैं और दोपहर 1:00 बजे तक वह इसी तरह से पानी भरते हैं. ताकि घर वालों को लिए पूरे पानी का इंतजाम हो जाए. उनके परिवार की महिलाएं सरकारी नल पर आती है और अपने सिर पर बाल्टिया रखकर झोपड़ियों में लेकर जाती है.
जहां पानी भरते हैं वहां लड़ाई झगड़े की नौबत
अभी वह 1 किलोमीटर दूर पानी भरने जाते हैं और वहां पर भी पानी कर लेकर रार हो जाती है. कई बार लड़ाई झगड़े की नौबत आ जाती है, क्योंकि हर व्यक्ति को काम धंधे पर जाना है और उसे जल्दी से पानी लेकर घर पहुंचना होता है.
महिलाएं पानी भरने जाती है बच्चे रोते रहते हैं
बस्ती में रहने वाली लक्ष्मी और रिंकू का कहना है कि वे रोज करीब 2 से 3 घंटे पानी लाने में ही बिता देती है, क्योंकि पानी की जरूरत काफी होती है. जब पानी भरने जाते हैं तो घर पर बच्चे अकेले रहते हैं और छोटे-छोटे बच्चे रोने को मजबूर हैं. क्योंकि अगर वह पानी नहीं लाएंगे, तो घर का काम भी नहीं चलेगा. ऐसे में बच्चों को रोने देना भी उनकी मजबूरी बन गया है.
पानी लाते लाते बच्चे हो जाते हैं पसीना पसीना
पानी की मार इतनी भारी है कि छोटे बच्चे भी पानी की समस्या से गुजर रहे हैं. इस बस्ती के लोगों का कहना है कि 3 दिन में एक बार नहाना इस भीषण गर्मी में उनकी मजबूरी है. क्योंकि पानी नहीं होता है, बच्चे भी अपने नहाने के लिए पानी लाना होता है, लेकिन उस पानी को ढोते ढोते बच्चे भी पसीना पसीना हो जाते हैं. दूर सरकारी नल पर जाते है कड़ी धूप में और कड़ी धूप में सिर में पानी की कैन रखकर या साइकिल पर पानी की कैन लटका कर लेकर आते हैं. इनको देखकर सरकारी महकमे के बड़े बाबुओ का दिल नहीं पसीजता है. क्योंकि उनके घरों में तो 24 घंटे पानी बह रहा होता है.
नेताओं से मिले, नहीं मिला समाधान
इन लोगों का कहना है कि वे अपनी समस्या के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मिल चुके हैं, लेकिन समाधान कुछ नहीं होता है. उनका कहना है कि बस्ती के आसपास दो-तीन सरकारी नल और लग जाए तो उनकी समस्या थोड़ी कम होगी. उन्हें दूर से पानी नहीं लाना पड़ेगा.