कोटा. जिले में केमिकल फैक्ट्री के मालिक और आईआईटी बॉम्बे से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में पीएचडी करने वाले डॉ. राकेश अग्रवाल ने गोमूत्र का पेटेंट करवाया है. यह पेटेंट गोमूत्र को बैक्टीरिया फ्री और प्रिजर्व रखने को लेकर था जिसे मान्यता भी मिल गई है. डॉ अग्रवाल 30 सालों से गो सेवा कार्य से ही जुड़े हुए हैं.
गोमूत्र पर काफी रिसर्च इंडिया में हुआ है. कोटा में एक केमिकल फैक्ट्री मालिक ने इसे पेटेंट भी करवाया है. यह पेटेंट गोमूत्र को बैक्टीरिया फ्री और प्रिजर्व रखने को लेकर था जिसे अब मान्यता भी मिल गई है. यह पेटेंट कोटा में केमिकल फैक्ट्री के मालिक और आईआईटी बॉम्बे से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में पीएचडी करने वाले डॉ. राकेश अग्रवाल ने करवाया है.
जो कि खुद 73 वर्ष के हैं. डॉ अग्रवाल बीते 30 सालों से गो सेवा कार्य से जुड़े हुए हैं. उन्होंने देश भर के बड़े वैद्य की कोटा में कॉन्फ्रेंस करवाई थी जिसमें वैद्यों ने बताया था कि गोमूत्र को आधे घंटे से ज्यादा प्रिजर्व नहीं रखा जा सकता है. इसके बाद ही उन्होंने इसपर रिसर्च शुरू की और उसको प्रिजर्व रखने की प्रक्रिया पर शोध पूरा भी किया. इसके साथ ही इस रिसर्च को पेटेंट भी करवा लिया है. इसको इंडियन पेटेंट जंगल में बीते साल प्रकाशित भी करवा लिया है.
इसके तहत गोमूत्र में आने वाली बदबू भी पूरी तरह से गायब हो जाती है और यह पीने में बिल्कुल गोमूत्र जैसा भी नहीं लगता है. इसका क्लीनिकल ट्रायल आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. तेजेश गोयल ने की है. ये एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी फंगल, हार्ट व कैंसर, कोरोना, डेंगू, चिकनगुनिया, वायरल, अस्थमा व टीबी में उपयोग कर सकते हैं. कोटा विश्वविद्यालय की माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर डॉ. पल्लवी शर्मा ने दावा किया है कि विश्व में पहली बार इस तरह का यह प्रोसेस गोमूत्र के साथ कर उसे प्रिजर्व करने के लिए बनाया गया.
छह माह से एक साल तक रख सकते हैं प्रिजर्व
इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को 6 महीने से लेकर 1 साल तक भी प्रिजर्व रखा जा सकता है. फ्लेवर्ड होने से इसमें किसी भी तरह का कोई गोमूत्र जैसा स्वाद नहीं आता है. इसमें से यूरिया और अमोनिया भी हटा दिया गया है जिससे पीने में बिल्कुल भी अजीब नहीं लगता है. साथ ही पान से लेकर कई फ्लेवर में यह बनाए गए हैं.
कोई विदेशी दावा नहीं करें, इसलिए कराया पेटेंट
डॉ. राकेश अग्रवाल ने बताया कि कोटा विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉक्टर पल्लवी शर्मा ने भी इस पर रिसर्च किया है. कोटा विश्वविद्यालय के ही 3 स्टूडेंट्स ने इस पर थीसिस भी तैयार की हैं, जो कि काफी सराही गई हैं. डॉ. अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने इसे पेटेंट भी इसीलिए कराया है ताकि कोई दूसरा विदेशी व्यक्ति इसका पेटेंट नहीं करा सके. उनका कहना है कि मेरी इस पर कोई मोनोपोली नहीं रहेगी, हिंदुस्तान का कोई भी व्यक्ति इस तरीके का उपयोग कर सकेगा. मैं खुद उन लोगों को यह सिखा रहा हूं.
देश भर के कई लोग यहां पर आकर मुझसे निशुल्क सीख भी रहे हैं.
शिलाजीत से लेकर कई मिनरल्स और विटामिन
डॉ. पल्लवी शर्मा ने दावा किया है कि लैबोरेट्री टेस्ट में गोमूत्र में 6 महत्वपूर्ण मिनरल्स पाए गए हैं, जिनमें आयरन, जिंक, कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम और मैग्नीशियम शामिल है. उसके साथ ही विटामिन बी-5 और 7 भी इसमें पाया गया है. इसके साथ ही उनका यह भी दावा है कि गोमूत्र में शिलाजीत के तत्व भी अच्छी मात्रा में मिले हैं. फर्मिक एसिड शिलाजीत में मिलता है जो कि गोमूत्र में भी मिला है.
बाजार में मिलता है केवल गोमूत्र का अर्क, पहली बार बैक्टीरिया फ्री गोमूत्र
कोटा विश्वविद्यालय की माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. पल्लवी शर्मा का कहना है कि बाजारों में गोमूत्र का अर्क मिलता है, जो कि उबाल कर उसकी भाप से तैयार किया जाता है. जबकि गोमूत्र को कुछ घंटों में ही रखने पर उसमें बैक्टीरिया हो जाते हैं. ऐसे में उसे सुरक्षित रखा गया है. इसकी हमने लेबोरेट्री में टेस्टिंग की है. जिसमें किसी भी तरह का कोई बैक्टीरिया नहीं मिला है. जिस तरीके से डॉ. राकेश अग्रवाल ने इस गोमूत्र को तैयार किया है. वह पूरी तरह से सुरक्षित है.
यह एक अच्छी रिसर्च है जिसको हमने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिका इंटरनेशनल जनरल ऑफ एडवांस रिसर्च (आईजेएआर) में अगस्त 2021 में प्रकाशित किया है. कोटा विश्वविद्यालय के तीन एमएससी स्टूडेंट्स ने गौमूत्र पर थीसिस कर रहे हैं. साथ ही डॉ. पल्लवी शर्मा ने बताया कि इसमें मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी खनिज लवण हैं.
कोटा प्रोसेस के नाम से देश भर में उपयोग
डॉ. राकेश अग्रवाल बीते 30 सालों से ही गो सेवा के लिए कार्य कर रहे हैं. उन्होंने इसके लिए श्री हाड़ौती गौ सेवा संस्थान भी बनाया हुआ है. डॉ. राकेश अग्रवाल ने बताया कि मेरठ, गाजियाबाद, कन्नौज, बांदा, अहमदाबाद स्वामीनारायण मंदिर, रत्नागिरी, नागपुर, अक्षरधाम अहमदाबाद सहित 30 गोशाला के लोग यहां से यह ट्रेनिंग ले चुके हैं. यूपी की सबसे बड़ी गोशाला 10 हजार से ज्यादा बोतल बेच चुकी है. ऐसे लाखों लोग इसका उपयोग कर रहे हैं. इसको कोटा प्रोसेस का नाम दिया है.
छाछ में मिलने वाले लैक्टिक एसिड से किया शुद्ध
जामनगर आयुर्वेद विश्वविद्यालय में त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. हितेश जानी ने कोटा में आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रेंस में बताया था कि 8 लेकर के कपड़े से छान केवल 30 मिनट में ही पिया जा सकता है. इसके बाद ही डॉ राकेश कुमार अग्रवाल ने इस पर उतर कर दी और उन्होंने गोमूत्र में साइट्रिक एसिड डाल कर उसके अमोनिया को रिलीज किया. जिसके बाद लेक्टिक्स एसिड यानि छाछ या दही में मिलने वाला एसिड है. इसे डालकर उसके एंजाइम को स्टेबल कर दिया है. एस्कोर्बिक एसिड डाल यानी विटामिन सी डाल कर इसके सभी एंजाइम प्रिजर्व किया. इसके बाद डिओड्राइज्ड करने के लिए ऑरेंज ऑयल का उपयोग किया गया जिसके बाद अलग-अलग फ्लेवर डालकर इससे तैयारकिया गया. इसको ही कोटा प्रोसेस के नाम से पूरे देश भर में उपयोग किया जा रहा है.