कोटा. दशहरा का उल्लास इस बार फीका है. रावण के गगनचुम्बी पुतले बनाने वाले कारीगर नईम कहते हैं कि रावण का राज तो सिर्फ लंका में था, लेकिन कोरोना ने तो पूरी दुनिया पर राज किया है, जाहिर है कि कोरोना के सामने रावण का कद कुछ भी नहीं.
कोटा के दशहरे मेले के लिए हर बार नईम कम से कम 30 करीगरों को साथ लाते थे. रावण कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाने में दिन रात मजदूर काम किया करते थे. 100 फीट से ज्यादा ऊंचाई के पुतले बनाकर ही उनका रोजगार अच्छा चलता था, लेकिन अब रावण उतनी कमाई देने में सक्षम नहीं रहा. आदेश तो था रस्मी तौर पर 15 फीट का पुतला बनाने का, लेकिन नईम का मन नहीं माना तो उन्होंने अपनी तरफ से इसे बढ़ाकर 25 फीट कर दिया है.
कोटा में दशहरे पर विजयश्री रंगमंच पर पहले वाली रोनक इस बार नजर नहीं आएगी. राज्य सरकार ने आतिशबाजी को भी बैन कर दिया है. इसके चलते नगर निगम ने भी बिना पटाखों वाला रावण बनाने का ही टेंडर जारी किया है. कारीगर नईम और उनके कारीगर रावण बनाना शुरू कर चुके हैं. इस बार का रावण बौना रहेगा, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले भी 10 फीट तक के ही होंगे.
जाहिर है कि अंतरराष्ट्रीय दशहरा मेला इस बार भी कोविड0-19 के चलते फीका रहने वाला है. विजयश्री रंगमंच पर उत्सव का माहौल भी फीका रहेगा. राज्य सरकार की ओर से आतिशबाजी बैन के आदेशों के बाद कोटा नगर निगम ने बिना पटाखों का रावण बनाने का टेंडर जारी किया. कोविड-19 से पहले कोटा में रावण परिवार के पुतले 12 लाख रुपये में तैयार होते थे. इस बार यह कीमत महज डेढ़ लाख रुपए रह गई है. रावण का पुतला घास-फूस डालकर ही जलाया जाएगा.
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नईम अपने स्तर पर ऊंचाई बढ़ाने का करेंगे प्रयास
बरसों से कोटा में रावण बनाने वाले फतेहपुर सीकरी के कारीगर नईम का कहना है कि नगर निगम से उन्हें जो कॉन्ट्रैक्ट मिला है, वह सवा लाख रुपए का है. इसके अंदर उन्हें 10-10 फुट के कुंभकरण और मेघनाद के पुतले बनाने हैं. वहीं 15 फीट का रावण का पुतला बनेगा. हालांकि वे यह सुंदर नहीं बन पा रहे थे, इसके चलते वे अपनी तरफ से रावण की ऊंचाई बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा तो इस बार रावण की ऊंचाई करीब 25 फीट कर देंगे. हालांकि नईम कहते हैं कि वे कोटा में 101 फीट का रावण भी खड़ा कर चुके हैं. नईम कहते हैं चूंकि रावण का आकार इस बार छोटा होगा, लिहाजा कोशिश होगी कि इस बार उसे सुंदर बनाया जाए. उसमें अच्छे रंगों का उपयोग किया जाएगा, ताकि वह दिखने में अधिकारियों को आकर्षक लगे.
रावण का राज लंका तक, कोरोना ने विश्व पर राज किया
रावण का आकार घटने को लेकर नईम तंजभरे लहजे में कहते हैं कि रावण का साम्राज्य तो महज लंका तक ही सीमित था, सोने की लंका उसने बना दी थी, लेकिन कोरोना वायरस ने तो पूरी दुनिया और देश के हालात विकट कर दिए. कोरोना का तो साम्राज्य पूरे विश्व तक फैल गया था. कहा जाए तो कोरोना ने पूरे विश्व को ही संकट में डाल दिया. ऐसा संकट खड़ा किया है कि अब हमारी आमदनी भी खत्म जैसी ही हो गई है.
कारीगरों की घटी कमाई
पहले जहां दशहरे पर रावण बनाने के लिए कारीगर 7 से 8 लाख रुपए लिया करते थे, वहीं अब यह राशि महज डेढ़ लाख रह गई है. नईम पहले पुतले बनाने के लिए अपने साथ 35 से ज्यादा कारीगर लेकर आते थे. अब चार से पांच कारीगर ही रावण का पुतला तैयार कर रहे हैं. पुतलों में लाखों रुपये की आतिशबाजी ही लग जाती थी. पिछले साल भी रावण का कद 12 फीट ही रह गया था. जिसकी लागत एक लाख से कुछ ज्यादा आई थी. पिछले साल आतिशबाजी पर महज 25 हजार का खर्चा हुआ था. लेकिन इस बार आतिशबाजी भी नहीं होगी. कोरोना काल के पहले से कोटा के दशहरा उत्सव में डेढ़ लाख के पटाखे पुतलों में लगाए जाते थे और आतिशबाजी 3 लाख रुपये के आसपास होती थी.
मेले में नहीं जुटेगी भीड़
राज्य सरकार ने किसी भी मेले या सार्वजनिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी है. इसके चलते रावण दहन वाले दिन आम जनता का प्रवेश दशहरा मैदान में निषेध रहेगा. अधिकारी और राम बारात ही इस दौरान मौजूद रहेगी. जिसमें पूर्व राजपरिवार के सदस्य शामिल होंगे. राम झांकी गढ़ पैलेस से रवाना होगी. कोविड-19 से पहले करीब एक लाख के आसपास लोग दशहरा मैदान में रावण दहन को देखने के लिए मौजूद रहते थे.
पुतलों को खड़ा करने में लगते थे 3 दिन
कोटा में रावण बनने का अलग ही क्रेज लोगों में नजर आता था. करीब डेढ़ महीने पुतले बनना शुरू हो जाते थे, दहन से 3-4 दिन पहले से पुतलों को खड़ा करने की मशक्कत शुरू हो जाती थी. इस काम में 2-3 विशालकाय क्रेनों की मदद ली जाती थी. जिनके सहारे से रावण को खड़ा किया जाता था. कोटा में 107 फीट ऊंचा रावण तक बनाया जा चुका है. रावण परिवार के खड़े हुए पुतलों को देखने के लिए ही बड़ी संख्या में लोग पहुंचते थे.
आर्टिफिशियल और लेजर लाइट से बढ़ाएंगे चमक-दमक
नगर निगम कोटा दक्षिण की आयुक्त कीर्ति राठौड़ का कहना है कि कोविड-19 के पहले रावण के पुतलों पर करीब सात से आठ लाख का खर्चा हो जाता था. अब यह राशि सवा लाख के आसपास ही है. इसके अलावा आतिशबाजी पर भी लाखों का खर्चा किया जाता था. यह इस बार बिल्कुल भी नहीं होगा. ऐसे में हम आर्टिफीशियल आतिशबाजी करने वाले हैं. रावण के आसपास अच्छी लाइटिंग करवाएंगे और लेजर के जरिए रावण के आसपास चमक दमक बढ़ाएंगे. कोशिश करेंगे कि इस तरह आतिशबाजी की कमी को पूरा किया जा सके.
नगर निगम को होगी करोड़ों की बचत
कोटा दशहरा मेले का करीब 8 करोड़ का बजट रहता था. मेले से निगम को करीब चार करोड़ की आमदनी होती थी. यह आमदनी मेला परिसर में लगने वाले झूलों और दुकानदारों से रेवेन्यू कलेक्शन से ही होती थी. जबकि दशहरे मेले में आम जनता के लिए नगर निगम तीन करोड़ का घाटा सहन करता था, लेकिन बीते 2 सालों से मेला नहीं भर रहा है. इससे कोटा नगर निगम को करोड़ों रुपए की बचत हो रही है.