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राजस्थान की 'सांगरी' को मिल सकता GI टैग! आवेदन हुआ स्वीकार - KHEJRI SANGRI

राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ में उगने वाली सांगरी को अब वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास हो रहा है.

'खेजड़ी की सांगरी'
'खेजड़ी की सांगरी' (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 25, 2025, 9:33 AM IST

बीकानेर : स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने राजस्थान में बहुतायत में पाई जाने वाली 'खेजड़ी की सांगरी' को भौगोलिक संकेत (जियोग्राफिकल इंडिकेशन- जीआई) टैग देने के लिए चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया है.

क्या है सांगरी : दरअसल, सांगरी खेजड़ी के पेड़ से उगने वाली एक फसल है और राजस्थान में विशेष आयोजन के मौकों पर सांगरी की सब्जी बनाई जाती है. वहीं, बड़े होटल्स में भी सांगरी की सब्जी को वैल्यूएबल डिश के तौर पर परोसा जाता है.

700 पेज का आवेदन : कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि बड़ी खुशी की बात है कि इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है. उन्होंने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने बायोटेक्नोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत कुमार यादव के नेतृत्व में कड़ी मेहनत कर खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग देने के लिए करीब 700 पेज के डॉक्यूमेंट प्रस्तुत किए हैं. अब चेन्नई कार्यालय की ओर से जो भी आक्षेप भेजे जाएंगे, इसका जवाब एसकेआरएयू देगा. कुलपति ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय किसानों के हित के लिए कार्य कर रहा है. विभिन्न फसलों की नई-नई वैरायटी देने के साथ साथ किसानों की आय कैसे बढ़ाई जाए, इसको लेकर भी कार्य कर रहा है.

पढ़ें. डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल मरीजों के लिए रामबाण साबित हो सकती है सांगरी, JNVU और आईआईटी जोधपुर की रिसर्च में आया सामने

भुजिया और मेहंदी के बाद सांगरी : बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत कुमार यादव ने बताया कि बौद्धिक संपदा संरक्षण का बड़ा टूल भौगोलिक संकेत (जीआई) है. चेन्नई स्थित कार्यालय में इसका रजिस्ट्रेशन किया जाता है. भारत में अब तक करीब 600 उत्पादों को जीआई मिल चुका है, जिसमें से कृषि उत्पाद करीब 200 हैं. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के करीब 18 कृषि उत्पाद जीआई टैग हैं. राजस्थान में शुद्ध रूप से कृषि के क्षेत्र में अब तक केवल एक सोजत की मेहंदी को ही जीआई टैग मिला हुआ है. फूड प्रोडक्ट को इसमें शामिल कर लें तो बीकानेरी भुजिया को जीआई टैग मिल चुका है. खेजड़ी एक पवित्र पौधा है. इसको लेकर राजस्थान में बहुत बड़ा बलिदान हुआ. इसके उत्पाद यूनिक हैं. ये विटामिन और मिनरल से भरपूर है. इसे लीगल प्रोटेक्शन भी मिलना चाहिए. लिहाजा इसे जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया है, जो राजस्थान प्रदेश के लिए भी गौरव का विषय है.

होंगे तीन लाभ : डॉ. यादव बताते हैं कि राजस्थान में खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग मिलेगा तो इसके तीन बड़े फायदे होंगे. बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यानी खेजड़ी के पेड़ को संरक्षित किया जा सकेगा. खेजड़ी के पेड़ को कोई काटेगा नहीं. खेजड़ी के उत्पाद सांगरी को वैश्विक पहचान मिलेगी और सांगरी प्रोडक्ट को निर्यात करेंगे तो डब्ल्यूटीओ नॉर्म्स के अनुसार प्रीमियम प्राइस मिलेगा. यानी अब अगर सांगरी अगर 1500 रुपए प्रति किलो एक्सपोर्ट हो रही है तो जीआई टैग मिलने के बाद करीब दोगुनी कीमत पर एक्सपोर्ट होगी. जीआई टैग किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि समुदाय को मिलता है, लिहाजा कोलायत के गोविंदसर गांव के उन किसानों की एक सोसायटी बनाई गई, जो खेजड़ी उत्पाद बेचते हैं. सोसायटी का रजिस्ट्रेशन करवाया गया है. कृषि विश्वविद्यालय ने सोसायटी की ओर से ही जीआई टैग का आवेदन प्रस्तुत किया है.

बीकानेर : स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने राजस्थान में बहुतायत में पाई जाने वाली 'खेजड़ी की सांगरी' को भौगोलिक संकेत (जियोग्राफिकल इंडिकेशन- जीआई) टैग देने के लिए चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत किया है.

क्या है सांगरी : दरअसल, सांगरी खेजड़ी के पेड़ से उगने वाली एक फसल है और राजस्थान में विशेष आयोजन के मौकों पर सांगरी की सब्जी बनाई जाती है. वहीं, बड़े होटल्स में भी सांगरी की सब्जी को वैल्यूएबल डिश के तौर पर परोसा जाता है.

700 पेज का आवेदन : कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि बड़ी खुशी की बात है कि इस आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है. उन्होंने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने बायोटेक्नोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत कुमार यादव के नेतृत्व में कड़ी मेहनत कर खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग देने के लिए करीब 700 पेज के डॉक्यूमेंट प्रस्तुत किए हैं. अब चेन्नई कार्यालय की ओर से जो भी आक्षेप भेजे जाएंगे, इसका जवाब एसकेआरएयू देगा. कुलपति ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय किसानों के हित के लिए कार्य कर रहा है. विभिन्न फसलों की नई-नई वैरायटी देने के साथ साथ किसानों की आय कैसे बढ़ाई जाए, इसको लेकर भी कार्य कर रहा है.

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भुजिया और मेहंदी के बाद सांगरी : बायोटेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत कुमार यादव ने बताया कि बौद्धिक संपदा संरक्षण का बड़ा टूल भौगोलिक संकेत (जीआई) है. चेन्नई स्थित कार्यालय में इसका रजिस्ट्रेशन किया जाता है. भारत में अब तक करीब 600 उत्पादों को जीआई मिल चुका है, जिसमें से कृषि उत्पाद करीब 200 हैं. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के करीब 18 कृषि उत्पाद जीआई टैग हैं. राजस्थान में शुद्ध रूप से कृषि के क्षेत्र में अब तक केवल एक सोजत की मेहंदी को ही जीआई टैग मिला हुआ है. फूड प्रोडक्ट को इसमें शामिल कर लें तो बीकानेरी भुजिया को जीआई टैग मिल चुका है. खेजड़ी एक पवित्र पौधा है. इसको लेकर राजस्थान में बहुत बड़ा बलिदान हुआ. इसके उत्पाद यूनिक हैं. ये विटामिन और मिनरल से भरपूर है. इसे लीगल प्रोटेक्शन भी मिलना चाहिए. लिहाजा इसे जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया है, जो राजस्थान प्रदेश के लिए भी गौरव का विषय है.

होंगे तीन लाभ : डॉ. यादव बताते हैं कि राजस्थान में खेजड़ी की सांगरी को जीआई टैग मिलेगा तो इसके तीन बड़े फायदे होंगे. बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यानी खेजड़ी के पेड़ को संरक्षित किया जा सकेगा. खेजड़ी के पेड़ को कोई काटेगा नहीं. खेजड़ी के उत्पाद सांगरी को वैश्विक पहचान मिलेगी और सांगरी प्रोडक्ट को निर्यात करेंगे तो डब्ल्यूटीओ नॉर्म्स के अनुसार प्रीमियम प्राइस मिलेगा. यानी अब अगर सांगरी अगर 1500 रुपए प्रति किलो एक्सपोर्ट हो रही है तो जीआई टैग मिलने के बाद करीब दोगुनी कीमत पर एक्सपोर्ट होगी. जीआई टैग किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि समुदाय को मिलता है, लिहाजा कोलायत के गोविंदसर गांव के उन किसानों की एक सोसायटी बनाई गई, जो खेजड़ी उत्पाद बेचते हैं. सोसायटी का रजिस्ट्रेशन करवाया गया है. कृषि विश्वविद्यालय ने सोसायटी की ओर से ही जीआई टैग का आवेदन प्रस्तुत किया है.

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