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Special : 32 साल बाद मिला न्याय, पूर्व जासूस ने SC की राहत को बताया नाकाफी, कहा- पूरा जीवन और परिवार भेंट चढ़ गया

पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले कोटा के महमूद अंसारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 10 लाख रुपए अनुग्रह राशि देने के निर्देश दिए हैं. लेकिन इस फैसले से महमूद अंसारी खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि 32 साल केस लड़ने के बाद जो फैसला आया है वह नाकाफी है. उन्होंने कहा कि इतना तो उन पर कर्जा है.

32 साल बाद मिला न्याय
32 साल बाद मिला न्याय
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Published : Sep 13, 2022, 11:05 PM IST

Updated : Sep 14, 2022, 12:05 PM IST

कोटा. सुप्रीम कोर्ट ने खुद को पूर्व जासूस बताने वाले महमूद अंसारी के मामले में फैसला (Ex Spy Mahmood Ansari) देते हुए केंद्र सरकार को 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने के निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद देशभर में कोटा के महमूद अंसारी चर्चा में आ गए हैं. खुद को पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले महमूद अंसारी का कहना है कि उन्होंने पाकिस्तान की जेल में साढ़े 13 साल बिताए हैं. वे 32 साल बाद आए इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं कि इतना मेरा पूरा कर्जा है.

कोटा निवासी महमूद अंसारी का दावा है कि वे पूर्व जासूस हैं और पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे. इसके चलते उनकी डाक विभाग की सरकारी नौकरी भी चली गई. यहां तक की वापसी पर कोई मुआवजा या पेंशन भी नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की जेल में वे साढ़े 13 साल बंद रहे. उन्हें काफी यातनाएं दी गई. जिसके चलते उनका पूरा शरीर खराब हो गया है. इसके बाद छूट कर आए, तब तक सब कुछ बदल गया था. उन्हें नौकरी वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाए हैं. महमूद की नौकरी 2007 तक चलती, लेकिन केस लंबा चला और यह नहीं हो सका.

पूर्व जासूस ने SC की राहत को बताया नाकाफी.

32 साल तक लड़ते रहे केसः महमूद अंसारी का कहना है कि वह पेंशन और नौकरी के दौरान मिलने वाले लाभ के लिए लड़ते रहे और मामला 32 साल तक चलता रहा. इस मामले में 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख रुपए देने के निर्देश दिए हैं. जिससे वे संतुष्ट भी नहीं हैं. उनका कहा है कि इतना तो मेरा पूरा कर्जा है. बीमारी में बीते सालों इतना खर्च हो गया है. महमूद का कहना है कि मैने देशभक्ति निभाई और मेरा पूरा परिवार इसकी भेंट चढ़ गया है. हालात ऐसे हैं कि मेरे पास खुद का घर भी नहीं है. उन्होंने कहा कि जब 1976 में पाकिस्तान गए थे, तब 11 महीने की बेटी थी. उसके बाद कोई संतान भी उनके नहीं है. अब उसी बेटी फातिमा अंसारी के भरोसे उनका जीवन कट रहा है. उनकी पत्नी वहीदन भी बीमार रहती है.

अंसारी का दावा है कि पड़ोसी मुल्क में जासूसी और पकड़े जाने की पूरी कीमत उनके परिवार ने चुकाई है. आरोप है कि उनका विभाग और भारत सरकार ने भी उनकी पूरी मदद नहीं की है. इसका ही खामियाजा अब वह भुगत रहे हैं. उन्होंने कहा कि वापसी के बाद अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के चक्कर लगाए, लेकिन राहत और मदद नहीं मिली. सभी ने कहा कि कोर्ट से ही आपको न्याय मिलेगा. अब न्यायालय से 32 साल बाद में मिली राहत नाकाफी है. उनका कहना है कि अगर वे इंटेलिजेंस के लोगों के संपर्क में आने के बाद जासूसी के चक्कर में नहीं पड़ते और डाक विभाग में पूरी नौकरी करते तो लाखों रुपए आज उनके पास होते. यहां तक कि उनका कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें टॉर्चर करने के साथ ऐसा केमिकल पिलाया था, जिसके चलते वतन वापसी के बाद भी औलाद पैदा नहीं कर सके. आज उनके पास एक बेटी फातिमा है, वही उनकी पूरी केयर कर रही है.

32 साल बाद मिला न्याय.

हमने तो मरा हुआ समझ लिया था, अचानक आई चिट्ठी ने खोला राजः महमूद अंसारी की पत्नी वहीदन का कहना है कि उन्होंने कई परेशानियां झेली हैं. साल 1976 में अचानक से उनके चले जाने के बाद अगले 2 सालों तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पत्नी ने कहा कि मेरे ससुराल के बड़े बुजुर्गों ने मुझ पर ही शक किया और कहा कि इसने ही कुछ करवा दिया होगा. मैं 11 माह की बच्ची फातिमा को लेकर दर-दर भटकती रही. हमने तो इन्हें मरा हुआ समझ लिया था कि कोई एक्सीडेंट हो गया होगा और हमें जानकारी नहीं मिल पा रही है.

वहीदन अंसारी का कहना है कि उन्हें महमूद अंसारी के पाकिस्तान में जाकर जासूसी करने के बारे में भी पता नहीं था, उन्होंने कभी भी इस सीक्रेट मिशन के बारे में हमें बताया भी नहीं था. हालांकि उनके गायब होने के दो साल बाद अचानक एक चिट्ठी आई. इसी चिट्ठी ने उनके पति की जासूस होने का राज खोला. इसके बाद हमने चिट्ठी के जरिए ही उनसे पाकिस्तान जेल में संपर्क किया और मेरे भाई जो उस समय केनिया में थे, उनकी मदद से हमने इनका केस भी वहां पर दोबारा शुरू करवाया. वहीदन का कहना है कि मैने कोटा में छोटे-मोटे मजदूरी से लेकर कपड़े व सब्जी बेचना, सिलाई, बीड़ी बनाने से लेकर कई काम किए हैं. बेटी फातिमा को पढ़ाया लिखाया और इससे कई ज्यादा गुना खर्चा पाकिस्तान जेल में बंद महमूद अंसारी के लिए भेजा जाता था. उन्हें जरूरत के सामान भेजते थे. पति महमूद अंसारी के वापस आने के बाद भी उनको नौकरी पर दोबारा लगाने के लिए भी काफी खर्चा किया है, लेकिन उसका कोई फल हमें नहीं मिला.

पढ़ें : भीलवाड़ा और पाली से ISI के दो स्थानीय एजेंट गिरफ्तार, पाकिस्तान भेज रहे थे सूचनाएं

घर के जेवर से लेकर फर्नीचर तक सब बिक गयाः महमूद अंसारी की बेटी फातिमा का कहना है कि पूरे मामले में (Story of Mahmood Ansari) हमारे घर का फर्नीचर से लेकर जेवर तक सब बिक गया. यहां तक घर का छोटा-मोटा सभी सामान भी हमारे पास नहीं रहा. वापस आने के बाद पिता के पास नौकरी नहीं थी और वह छोटे-मोटे रोजगार करते रहे. मां ने उनको काम धंधा लगवाने के लिए भी काफी मेहनत की और अपने पास की सारी जमा पूंजी भी खर्च कर दी. इसके पहले भी मां ने छोटे-मोटे सभी काम किए और उनसे जो पैसा आता था.

उससे हमारा खाने पीने और मेरी पढ़ाई का खर्चा होता. इसके बाद बचा हुआ सारा पैसा पाकिस्तान जेल में बंद पापा को सामान भेजने में खर्च हो जाता था. उनको तेल, साबुन, कपड़े से लेकर सभी सामान यहीं से भेजा जा रहा था. उनका आरोप है कि इस दौरान न तो भारत सरकार ने हमारी मदद की, न डाक विभाग आगे आया. हमारे पास एक छोटा प्लॉट बसंत विहार में भी था, वह भी बिक गया. फातिमा का कहना है कि मेरे पिता परिवार में सबसे बड़े थे. ऐसे में चाचा और बुआ की पढ़ाई का खर्चा भी उनके ऊपर ही था. पिता एकमात्र कमाने वाले थे, लेकिन वह जब पाकिस्तान जेल में गए तो डाक विभाग से तनख्वाह बंद हो गई और पूरा परिवार ही पिछड़ गया. आज उनके भाई पढ़ाई पूरी नहीं होने के चलते छोटे-मोटे रोजगार से ही जुड़े हुए हैं.

पाकिस्तान से डाक आने के चलते इंटेलिजेंस की नजर पड़ी: महमूद अंसारी की नौकरी डाक विभाग के कोटा जंक्शन पर स्थित रेलवे मेल सर्विस में सोल्टिंग असिस्टेंट के पद पर 1966 में लगी थी. उनके पाकिस्तान से रिश्तेदारों की डाक आती थी, ऐसे में इंटेलिजेंस की नजर उनकी डाक पर पड़ी. जिसके बाद उनका स्थानांतरण जयपुर 12 जून 1972 को करवा दिया. जहां पर उन्हें पाकिस्तान जाकर जासूसी करने के लिए इंटेलिजेंस ने तैयार किया. पहले उन्होंने मना किया, लेकिन बाद में अंसारी तैयार हो गए और उन्हें जयपुर में ही ट्रेनिंग दी गई. अंसारी को साल 1976 में तीन बार पाकिस्तान भेजा गया. इंटेलिजेंस की टीम भारत के अनूपगढ़ बॉर्डर तक उन्हें छोड़ कर आती थी, जहां पर पाकिस्तान में रहने वाला गाइड उन्हें लेकर जाता था. गाइड बॉर्डर को पार करा और नजदीकी रेलवे स्टेशन चिस्तियां छोड़ देता था, जहां से वह अपने रिश्तेदार के घर कराची चले जाते थे. अंसारी का कहना है कि कराची में उनके छोटे नाना रहते थे, पहले हिंदुस्तान में ही थे, लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे. पहली बार वे 3 दिन के लिए गए थे, जिसमें इंटेलिजेंस के लोगों ने अखबार सबूत के तौर पर मंगवाया था. दूसरी बार भी वे 7 दिन के लिए गए थे, यहां पर उन्होंने कोई सैन्य जानकारियां जुटाकर उपलब्ध करवाई थी.

तीसरे सीक्रेट मिशन में पकड़े गए और पूरी लाइफ बदल गई- महमूद अंसारी ने बताया कि 1 दिसंबर 1976 को वह तीसरी बार पाकिस्तान भेजे गए. इस बार मिशन 21 दिन का था. पाक सैन्य ठिकानों के आसपास जाकर काफी जानकारी जुटा ली थी और उसे कोडवर्ड में नोट भी कर लिया था. महमूद अंसारी का कहना है कि गाइड ने धोखा दिया और वापसी के समय बॉर्डर पर पाकिस्तान आर्मी से फोर्ट अब्बास के नजदीक पकड़वा दिया. उन्होंने अपने कोट के कोलर में सीक्रेट जानकारियां के कागज छुपा रखे थे. यह सब कोडिंग लैंग्वेज में थे, जिससे आर्मी को जासूस होने पक्का यकीन हो गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इन्हीं सबूतों के चलते पाकिस्तान में उनके छोटे नाना और अन्य रिश्तेदारों को भी परेशान किया और उन्हें भी आर्मी से यातनाएं मिली है.

सर्दी में बर्फ की सिल्ली और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में रखा- अंसारी का कहना है कि बॉर्डर पर जासूसी के आरोप में पकड़े जाने के बाद मेरा कोर्ट मार्शल हुआ. पाकिस्तान में आर्मी का शासन था. इसमें मुल्तान आर्मी कैंप में 2 साल बतौर कैदी और जासूसी के आरोप में रहा. मुझे सर्दियों में बर्फ की सिल्ली पर लेटा कर रखते थे और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में छोड़ देते थे. हाथ पैरों पैरों में बेड़ियां जकड़ी हुई थी. मुझे खाने के दौरान केमिकल खिला देते थे, जिससे पेट में काफी जलन और गर्मी लगती थी. इससे शरीर पर कई निशान हो गए. इन दो साल की भारी यातना के बाद बाद उन्होंने मेरा इलाज भी करवाया और सेंट्रल जेल बहावलपुर में शिफ्ट कर दिया. फातिमा का कहना है कि सजा पूरी होने के बाद साल 1989 में अमृतसर वाघा बॉर्डर पर उन्हें छोड़ दिया. जब मेरे पिता यहां पर आए थे, तब बेड़ियों के निशान उनके हाथ, पैर, गर्दन व शरीर पर थे. यह निशान अब जाकर ठीक हुए हैं. उनका शरीर पूरी तरह से कमजोर और टूट गया है. इसी के चलते आज कई बीमारियों ने उनको जकड़ लिया है.

जेलर की मदद से कई लोगों को सजा पूरी होने पर छुड़वाया- महमूद अंसारी का यह भी कहना है कि बहावलपुर जेल में असिस्टेंट जेलर से मेरी जान पहचान हो गई और वह मुझे पेन और कागज उपलब्ध करवा देते थे. जिनसे मैंने भारतीय कैदियों की काफी मदद की. यह कैदी सजा पूरी होने के बाद भी 5 से 7 साल बंद थे. मैनें पाकिस्तान की पंजाब हाईकोर्ट की सर्किट बेंच बहावलपुर को अपील करता था. जिसके बाद रिहाई के आदेश सिंध व पंजाब प्रांत के सेक्रेटरी को न्यायालय ने दिए. वहां से पुशबैक अभियान चलाकर सैकड़ों लोगों को भारत के बॉर्डर में छोड़ दिया गयाय.अंसारी का यह भी कहना है कि भारत सरकार ने वापस आने पर उनकी मदद नहीं की, जबकि उनके पास पूरे सबूत हैं कि उन्हें जासूसी के लिए ही भेजा गया था.

परिवार का पत्नी पर ही हत्या का शक- वहीदन का कहना है कि इनके गायब होने के बाद हमारी स्थिति काफी खराब थी. रिश्तेदारों व बड़े बुजुर्गों ने टॉर्चर किया. मुझे जेल में बंद करवाने और पुलिस को सुपुर्द करने की तैयारी थी. मुझे कहा गया कि इसने हमारे लड़के को मरवा दिया है. हालांकि लेटर आने के बाद मैंने भी इन्हें पत्र लिखा और फिर आपस में इस तरह से बातचीत होती रही. फातिमा का कहना है कि मैं जबसे समझने लगी, तबसे मेरी मां काफी दुखी रहती थी, हमेशा रोती ही रहती थी. मुझे भी काफी अजीब लगती थी, मेरे पिता जेल में क्यों है और पाकिस्तान क्या करने गए थे.

बाद में समझ आया कि वह जासूसी करने देश के लिए गए थे और वहीं फस गए. मेरे माता-पिता और मेरे बचपन के दुखों की कहानी को शब्दों में भी बयां नहीं कर सकती हूं. पिता को भारत सरकार ने पाकिस्तान से छुड़ाने के लिए भी कोई मदद नहीं की. हमारे घर पर कई सारे कागज हैं, जो मेरे पिता की देशभक्ति का सबूत है. मैं बड़ी भी हुई तब सामने आया कि जेल जाना कोई अच्छा नहीं माना जाता, चाहे देश भक्ति के लिए ही हो. कोई इस बात को नहीं समझ रहे थे कि मेरे पिता देश भक्ति के लिए पाकिस्तान गए और वहां गिरफ्तार हो गए.

सब नेगेटिव बोलते थे, बुरी कंडीशन से गुजरे- फातिमा का कहना है कि जब पिता जासूसी करते हुए पकड़े गए, तब कुछ लोग पॉजिटिव तो कुछ नेगेटिव थे. लोग मुंह पर सही बोलते थे, लेकिन पीछे से नेगेटिव ही बोलते थे. ज्यादातर नेगेटिव ही सहा है, जिसे हम बयां भी नहीं कर सकते हैं. पिता की सरकारी नौकरी होने के बावजूद हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं. आज मेरे माता पिता के पास कोई सेविंग भी नहीं है, जबकि लाखों का कर्जा है. पिता के पास वापस आने के बाद नौकरी नहीं थी, ऐसे में उन्होंने पासपोर्ट बनवाने व गैस कनेक्शन दिलवाने के मीडिएटर का काम किया. स्टेशन से एरोड्रम तक साइकिल से जाते और मोटर मार्केट में मुंशी का काम किया. आज भी उनके पास कुछ नहीं है, वह बुरी कंडीशन से गुजर रहे हैं. मेरी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि मैं उनकी पूरी मदद कर सकूं.

10 लाख की मदद से कुछ नहीं होगा- फातिमा का कहना है कि मेरे माता-पिता काफी बीमार रहते हैं. पिता के ऊपर बहुत कर्जा भी हो गया है. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है. किसी की पूरी जिंदगी का मुआवजा 10 लाख नहीं हो सकता, देशभक्ति की कोई कीमत नहीं होती है तो उसको इस राशि में कैसे जोड़ सकते हैं. इससे बीमारी का कर्ज भी नहीं चुकेगा. सर्विस का पैसा या पेंशन मिलती, तो बाकी की जिंदगी भी अच्छे से गुजर जाती. भारत सरकार को योगदान देना चाहिए. उनकी जिम्मेदारी भी बनती है. हमने 32 साल में न्याय के लिए जो लड़ाई लड़ी है, इंसाफ की उम्मीद में सब कुछ बेच दिया है। घर के पंखे व सिलाई मशीन तक बिक गए.

कोटा. सुप्रीम कोर्ट ने खुद को पूर्व जासूस बताने वाले महमूद अंसारी के मामले में फैसला (Ex Spy Mahmood Ansari) देते हुए केंद्र सरकार को 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने के निर्देश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद देशभर में कोटा के महमूद अंसारी चर्चा में आ गए हैं. खुद को पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले महमूद अंसारी का कहना है कि उन्होंने पाकिस्तान की जेल में साढ़े 13 साल बिताए हैं. वे 32 साल बाद आए इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं कि इतना मेरा पूरा कर्जा है.

कोटा निवासी महमूद अंसारी का दावा है कि वे पूर्व जासूस हैं और पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे. इसके चलते उनकी डाक विभाग की सरकारी नौकरी भी चली गई. यहां तक की वापसी पर कोई मुआवजा या पेंशन भी नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की जेल में वे साढ़े 13 साल बंद रहे. उन्हें काफी यातनाएं दी गई. जिसके चलते उनका पूरा शरीर खराब हो गया है. इसके बाद छूट कर आए, तब तक सब कुछ बदल गया था. उन्हें नौकरी वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाए हैं. महमूद की नौकरी 2007 तक चलती, लेकिन केस लंबा चला और यह नहीं हो सका.

पूर्व जासूस ने SC की राहत को बताया नाकाफी.

32 साल तक लड़ते रहे केसः महमूद अंसारी का कहना है कि वह पेंशन और नौकरी के दौरान मिलने वाले लाभ के लिए लड़ते रहे और मामला 32 साल तक चलता रहा. इस मामले में 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख रुपए देने के निर्देश दिए हैं. जिससे वे संतुष्ट भी नहीं हैं. उनका कहा है कि इतना तो मेरा पूरा कर्जा है. बीमारी में बीते सालों इतना खर्च हो गया है. महमूद का कहना है कि मैने देशभक्ति निभाई और मेरा पूरा परिवार इसकी भेंट चढ़ गया है. हालात ऐसे हैं कि मेरे पास खुद का घर भी नहीं है. उन्होंने कहा कि जब 1976 में पाकिस्तान गए थे, तब 11 महीने की बेटी थी. उसके बाद कोई संतान भी उनके नहीं है. अब उसी बेटी फातिमा अंसारी के भरोसे उनका जीवन कट रहा है. उनकी पत्नी वहीदन भी बीमार रहती है.

अंसारी का दावा है कि पड़ोसी मुल्क में जासूसी और पकड़े जाने की पूरी कीमत उनके परिवार ने चुकाई है. आरोप है कि उनका विभाग और भारत सरकार ने भी उनकी पूरी मदद नहीं की है. इसका ही खामियाजा अब वह भुगत रहे हैं. उन्होंने कहा कि वापसी के बाद अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के चक्कर लगाए, लेकिन राहत और मदद नहीं मिली. सभी ने कहा कि कोर्ट से ही आपको न्याय मिलेगा. अब न्यायालय से 32 साल बाद में मिली राहत नाकाफी है. उनका कहना है कि अगर वे इंटेलिजेंस के लोगों के संपर्क में आने के बाद जासूसी के चक्कर में नहीं पड़ते और डाक विभाग में पूरी नौकरी करते तो लाखों रुपए आज उनके पास होते. यहां तक कि उनका कहना है कि पाकिस्तान में उन्हें टॉर्चर करने के साथ ऐसा केमिकल पिलाया था, जिसके चलते वतन वापसी के बाद भी औलाद पैदा नहीं कर सके. आज उनके पास एक बेटी फातिमा है, वही उनकी पूरी केयर कर रही है.

32 साल बाद मिला न्याय.

हमने तो मरा हुआ समझ लिया था, अचानक आई चिट्ठी ने खोला राजः महमूद अंसारी की पत्नी वहीदन का कहना है कि उन्होंने कई परेशानियां झेली हैं. साल 1976 में अचानक से उनके चले जाने के बाद अगले 2 सालों तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पत्नी ने कहा कि मेरे ससुराल के बड़े बुजुर्गों ने मुझ पर ही शक किया और कहा कि इसने ही कुछ करवा दिया होगा. मैं 11 माह की बच्ची फातिमा को लेकर दर-दर भटकती रही. हमने तो इन्हें मरा हुआ समझ लिया था कि कोई एक्सीडेंट हो गया होगा और हमें जानकारी नहीं मिल पा रही है.

वहीदन अंसारी का कहना है कि उन्हें महमूद अंसारी के पाकिस्तान में जाकर जासूसी करने के बारे में भी पता नहीं था, उन्होंने कभी भी इस सीक्रेट मिशन के बारे में हमें बताया भी नहीं था. हालांकि उनके गायब होने के दो साल बाद अचानक एक चिट्ठी आई. इसी चिट्ठी ने उनके पति की जासूस होने का राज खोला. इसके बाद हमने चिट्ठी के जरिए ही उनसे पाकिस्तान जेल में संपर्क किया और मेरे भाई जो उस समय केनिया में थे, उनकी मदद से हमने इनका केस भी वहां पर दोबारा शुरू करवाया. वहीदन का कहना है कि मैने कोटा में छोटे-मोटे मजदूरी से लेकर कपड़े व सब्जी बेचना, सिलाई, बीड़ी बनाने से लेकर कई काम किए हैं. बेटी फातिमा को पढ़ाया लिखाया और इससे कई ज्यादा गुना खर्चा पाकिस्तान जेल में बंद महमूद अंसारी के लिए भेजा जाता था. उन्हें जरूरत के सामान भेजते थे. पति महमूद अंसारी के वापस आने के बाद भी उनको नौकरी पर दोबारा लगाने के लिए भी काफी खर्चा किया है, लेकिन उसका कोई फल हमें नहीं मिला.

पढ़ें : भीलवाड़ा और पाली से ISI के दो स्थानीय एजेंट गिरफ्तार, पाकिस्तान भेज रहे थे सूचनाएं

घर के जेवर से लेकर फर्नीचर तक सब बिक गयाः महमूद अंसारी की बेटी फातिमा का कहना है कि पूरे मामले में (Story of Mahmood Ansari) हमारे घर का फर्नीचर से लेकर जेवर तक सब बिक गया. यहां तक घर का छोटा-मोटा सभी सामान भी हमारे पास नहीं रहा. वापस आने के बाद पिता के पास नौकरी नहीं थी और वह छोटे-मोटे रोजगार करते रहे. मां ने उनको काम धंधा लगवाने के लिए भी काफी मेहनत की और अपने पास की सारी जमा पूंजी भी खर्च कर दी. इसके पहले भी मां ने छोटे-मोटे सभी काम किए और उनसे जो पैसा आता था.

उससे हमारा खाने पीने और मेरी पढ़ाई का खर्चा होता. इसके बाद बचा हुआ सारा पैसा पाकिस्तान जेल में बंद पापा को सामान भेजने में खर्च हो जाता था. उनको तेल, साबुन, कपड़े से लेकर सभी सामान यहीं से भेजा जा रहा था. उनका आरोप है कि इस दौरान न तो भारत सरकार ने हमारी मदद की, न डाक विभाग आगे आया. हमारे पास एक छोटा प्लॉट बसंत विहार में भी था, वह भी बिक गया. फातिमा का कहना है कि मेरे पिता परिवार में सबसे बड़े थे. ऐसे में चाचा और बुआ की पढ़ाई का खर्चा भी उनके ऊपर ही था. पिता एकमात्र कमाने वाले थे, लेकिन वह जब पाकिस्तान जेल में गए तो डाक विभाग से तनख्वाह बंद हो गई और पूरा परिवार ही पिछड़ गया. आज उनके भाई पढ़ाई पूरी नहीं होने के चलते छोटे-मोटे रोजगार से ही जुड़े हुए हैं.

पाकिस्तान से डाक आने के चलते इंटेलिजेंस की नजर पड़ी: महमूद अंसारी की नौकरी डाक विभाग के कोटा जंक्शन पर स्थित रेलवे मेल सर्विस में सोल्टिंग असिस्टेंट के पद पर 1966 में लगी थी. उनके पाकिस्तान से रिश्तेदारों की डाक आती थी, ऐसे में इंटेलिजेंस की नजर उनकी डाक पर पड़ी. जिसके बाद उनका स्थानांतरण जयपुर 12 जून 1972 को करवा दिया. जहां पर उन्हें पाकिस्तान जाकर जासूसी करने के लिए इंटेलिजेंस ने तैयार किया. पहले उन्होंने मना किया, लेकिन बाद में अंसारी तैयार हो गए और उन्हें जयपुर में ही ट्रेनिंग दी गई. अंसारी को साल 1976 में तीन बार पाकिस्तान भेजा गया. इंटेलिजेंस की टीम भारत के अनूपगढ़ बॉर्डर तक उन्हें छोड़ कर आती थी, जहां पर पाकिस्तान में रहने वाला गाइड उन्हें लेकर जाता था. गाइड बॉर्डर को पार करा और नजदीकी रेलवे स्टेशन चिस्तियां छोड़ देता था, जहां से वह अपने रिश्तेदार के घर कराची चले जाते थे. अंसारी का कहना है कि कराची में उनके छोटे नाना रहते थे, पहले हिंदुस्तान में ही थे, लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे. पहली बार वे 3 दिन के लिए गए थे, जिसमें इंटेलिजेंस के लोगों ने अखबार सबूत के तौर पर मंगवाया था. दूसरी बार भी वे 7 दिन के लिए गए थे, यहां पर उन्होंने कोई सैन्य जानकारियां जुटाकर उपलब्ध करवाई थी.

तीसरे सीक्रेट मिशन में पकड़े गए और पूरी लाइफ बदल गई- महमूद अंसारी ने बताया कि 1 दिसंबर 1976 को वह तीसरी बार पाकिस्तान भेजे गए. इस बार मिशन 21 दिन का था. पाक सैन्य ठिकानों के आसपास जाकर काफी जानकारी जुटा ली थी और उसे कोडवर्ड में नोट भी कर लिया था. महमूद अंसारी का कहना है कि गाइड ने धोखा दिया और वापसी के समय बॉर्डर पर पाकिस्तान आर्मी से फोर्ट अब्बास के नजदीक पकड़वा दिया. उन्होंने अपने कोट के कोलर में सीक्रेट जानकारियां के कागज छुपा रखे थे. यह सब कोडिंग लैंग्वेज में थे, जिससे आर्मी को जासूस होने पक्का यकीन हो गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इन्हीं सबूतों के चलते पाकिस्तान में उनके छोटे नाना और अन्य रिश्तेदारों को भी परेशान किया और उन्हें भी आर्मी से यातनाएं मिली है.

सर्दी में बर्फ की सिल्ली और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में रखा- अंसारी का कहना है कि बॉर्डर पर जासूसी के आरोप में पकड़े जाने के बाद मेरा कोर्ट मार्शल हुआ. पाकिस्तान में आर्मी का शासन था. इसमें मुल्तान आर्मी कैंप में 2 साल बतौर कैदी और जासूसी के आरोप में रहा. मुझे सर्दियों में बर्फ की सिल्ली पर लेटा कर रखते थे और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में छोड़ देते थे. हाथ पैरों पैरों में बेड़ियां जकड़ी हुई थी. मुझे खाने के दौरान केमिकल खिला देते थे, जिससे पेट में काफी जलन और गर्मी लगती थी. इससे शरीर पर कई निशान हो गए. इन दो साल की भारी यातना के बाद बाद उन्होंने मेरा इलाज भी करवाया और सेंट्रल जेल बहावलपुर में शिफ्ट कर दिया. फातिमा का कहना है कि सजा पूरी होने के बाद साल 1989 में अमृतसर वाघा बॉर्डर पर उन्हें छोड़ दिया. जब मेरे पिता यहां पर आए थे, तब बेड़ियों के निशान उनके हाथ, पैर, गर्दन व शरीर पर थे. यह निशान अब जाकर ठीक हुए हैं. उनका शरीर पूरी तरह से कमजोर और टूट गया है. इसी के चलते आज कई बीमारियों ने उनको जकड़ लिया है.

जेलर की मदद से कई लोगों को सजा पूरी होने पर छुड़वाया- महमूद अंसारी का यह भी कहना है कि बहावलपुर जेल में असिस्टेंट जेलर से मेरी जान पहचान हो गई और वह मुझे पेन और कागज उपलब्ध करवा देते थे. जिनसे मैंने भारतीय कैदियों की काफी मदद की. यह कैदी सजा पूरी होने के बाद भी 5 से 7 साल बंद थे. मैनें पाकिस्तान की पंजाब हाईकोर्ट की सर्किट बेंच बहावलपुर को अपील करता था. जिसके बाद रिहाई के आदेश सिंध व पंजाब प्रांत के सेक्रेटरी को न्यायालय ने दिए. वहां से पुशबैक अभियान चलाकर सैकड़ों लोगों को भारत के बॉर्डर में छोड़ दिया गयाय.अंसारी का यह भी कहना है कि भारत सरकार ने वापस आने पर उनकी मदद नहीं की, जबकि उनके पास पूरे सबूत हैं कि उन्हें जासूसी के लिए ही भेजा गया था.

परिवार का पत्नी पर ही हत्या का शक- वहीदन का कहना है कि इनके गायब होने के बाद हमारी स्थिति काफी खराब थी. रिश्तेदारों व बड़े बुजुर्गों ने टॉर्चर किया. मुझे जेल में बंद करवाने और पुलिस को सुपुर्द करने की तैयारी थी. मुझे कहा गया कि इसने हमारे लड़के को मरवा दिया है. हालांकि लेटर आने के बाद मैंने भी इन्हें पत्र लिखा और फिर आपस में इस तरह से बातचीत होती रही. फातिमा का कहना है कि मैं जबसे समझने लगी, तबसे मेरी मां काफी दुखी रहती थी, हमेशा रोती ही रहती थी. मुझे भी काफी अजीब लगती थी, मेरे पिता जेल में क्यों है और पाकिस्तान क्या करने गए थे.

बाद में समझ आया कि वह जासूसी करने देश के लिए गए थे और वहीं फस गए. मेरे माता-पिता और मेरे बचपन के दुखों की कहानी को शब्दों में भी बयां नहीं कर सकती हूं. पिता को भारत सरकार ने पाकिस्तान से छुड़ाने के लिए भी कोई मदद नहीं की. हमारे घर पर कई सारे कागज हैं, जो मेरे पिता की देशभक्ति का सबूत है. मैं बड़ी भी हुई तब सामने आया कि जेल जाना कोई अच्छा नहीं माना जाता, चाहे देश भक्ति के लिए ही हो. कोई इस बात को नहीं समझ रहे थे कि मेरे पिता देश भक्ति के लिए पाकिस्तान गए और वहां गिरफ्तार हो गए.

सब नेगेटिव बोलते थे, बुरी कंडीशन से गुजरे- फातिमा का कहना है कि जब पिता जासूसी करते हुए पकड़े गए, तब कुछ लोग पॉजिटिव तो कुछ नेगेटिव थे. लोग मुंह पर सही बोलते थे, लेकिन पीछे से नेगेटिव ही बोलते थे. ज्यादातर नेगेटिव ही सहा है, जिसे हम बयां भी नहीं कर सकते हैं. पिता की सरकारी नौकरी होने के बावजूद हम इस स्थिति में पहुंच गए हैं. आज मेरे माता पिता के पास कोई सेविंग भी नहीं है, जबकि लाखों का कर्जा है. पिता के पास वापस आने के बाद नौकरी नहीं थी, ऐसे में उन्होंने पासपोर्ट बनवाने व गैस कनेक्शन दिलवाने के मीडिएटर का काम किया. स्टेशन से एरोड्रम तक साइकिल से जाते और मोटर मार्केट में मुंशी का काम किया. आज भी उनके पास कुछ नहीं है, वह बुरी कंडीशन से गुजर रहे हैं. मेरी स्थिति भी ऐसी नहीं है कि मैं उनकी पूरी मदद कर सकूं.

10 लाख की मदद से कुछ नहीं होगा- फातिमा का कहना है कि मेरे माता-पिता काफी बीमार रहते हैं. पिता के ऊपर बहुत कर्जा भी हो गया है. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है. किसी की पूरी जिंदगी का मुआवजा 10 लाख नहीं हो सकता, देशभक्ति की कोई कीमत नहीं होती है तो उसको इस राशि में कैसे जोड़ सकते हैं. इससे बीमारी का कर्ज भी नहीं चुकेगा. सर्विस का पैसा या पेंशन मिलती, तो बाकी की जिंदगी भी अच्छे से गुजर जाती. भारत सरकार को योगदान देना चाहिए. उनकी जिम्मेदारी भी बनती है. हमने 32 साल में न्याय के लिए जो लड़ाई लड़ी है, इंसाफ की उम्मीद में सब कुछ बेच दिया है। घर के पंखे व सिलाई मशीन तक बिक गए.

Last Updated : Sep 14, 2022, 12:05 PM IST
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