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स्पेशल: CAZRI में लहलहाई खजूर की फसल, खारे पानी में भी पनपता है खजूर

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Published : Jun 25, 2021, 11:04 AM IST

करीब 5 साल पहले काजरी जोधपुर (CAZRI) की ओर से शुरू की गई मेहनत अब रंग लाने लगी है. यहां पर लगाए गए टिश्यू कल्चर तकनीक के खजूर फार्म में फसल लहलहा रही है. एडीपी किस्म की फसल के एक पौधे से 80 से 100 किलो खजूर (Dates) का उत्पादन लिया जा रहा है. देखें पूरी रिपोर्ट...

date palm crop in jodhpur, jodhpur cazri
CAZRI में लहलहाई खजूर की फसल

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर में करीब 5 साल पहले लगाए गए टिश्यू कल्चर तकनीक के खजूर फार्म में फसल लहलहा रही है. एडीपी नामक इस खजूर (Dates) की किस्म भी बहुत उन्नत है. एक पौधे से 80 से 100 किलो खजूर का उत्पादन लिया जा रहा है. खास बात यह भी है कि यह खजूर खारे पानी में पैदा होता है, जो शक्कर जीतना मीठा होता है और उतना ही पौष्टिक भी होता है.

CAZRI में लहलहाई खजूर की फसल

यह फसल दूसरे खजूर की फसल से 25 दिन पहले तैयार होती है. बारिश से पहले इसे प्रमोट किया जाता है. पश्चिमी राजस्थान में 200 हेक्टेयर में खजूर होता है. काजरी जोधपुर में इस तकनीक पर काम कर रहे प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अखत सिंह का कहना है कि जोधपुर मारवाड़ के अलावा बीकानेर क्षेत्र में इस खजूर की खेती कर रहे हैं. एक हेक्टेयर यह खेती कर 4 से 5 साल बाद 5 लाख रुपये प्रतिवर्ष तक की आमदनी की जा सकती है. यह खजूर बाजार में सौ रुपए प्रति किलो बिकता है.

date palm crop in jodhpur, jodhpur cazri
पश्चिमी राजस्थान में 200 हेक्टेयर में होती है खजूर की फसल

पढ़ें- जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किए बाजरे के हाइब्रिड बीज, अभी तक दूसरे राज्यों से किसान लेकर आते थे

डॉ. सिंह का कहना है कि काजरी के फार्म पर इस बार रिकार्ड एक पौधे से 100 किलो तक खजूर उतारा गया है. यह और बढ़ सकता था, लेकिन गत दिनों आए तूफान और मौसम के परिवर्तन से थोड़ी परेशानी हुई. इसके अलावा लगातार लॉकडाउन रहने से फार्म की देखरेख भी प्रभावित हुई.

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एक पौधे से 80 से 100 किलो खजूर का उत्पादन होता है

किसान ले सकते हैं लैब से

डॉ. अखत सिंह ने बताया कि टिश्यू तकनीक से विकसित इस खजूर की किस्म के पौधे राज्य की टिश्यू लैब से प्राप्त किए जा सकते हैं, क्योंकि किसान के लिए तैयार करना आसान नहीं होता है. लैब में तैयार पौधे के रोपण के बाद भी क्षेत्र में काजरी के वैज्ञानिक समय-समय पर खेतों में जाकर भी किसानों को इसके बारे में जानकारियां देते हैं. पौधे के अलावा इसके सकर भी खेती की जा सकती है. एक हेक्टेयर में 150 पौधे लगते हैं, जो 8 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं. जो 3 साल बाद फल देना शुरू करते हैं. 5 साल का उत्पादन प्रति पौधा 100 किलो तक पहुंच जाता है.

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर में करीब 5 साल पहले लगाए गए टिश्यू कल्चर तकनीक के खजूर फार्म में फसल लहलहा रही है. एडीपी नामक इस खजूर (Dates) की किस्म भी बहुत उन्नत है. एक पौधे से 80 से 100 किलो खजूर का उत्पादन लिया जा रहा है. खास बात यह भी है कि यह खजूर खारे पानी में पैदा होता है, जो शक्कर जीतना मीठा होता है और उतना ही पौष्टिक भी होता है.

CAZRI में लहलहाई खजूर की फसल

यह फसल दूसरे खजूर की फसल से 25 दिन पहले तैयार होती है. बारिश से पहले इसे प्रमोट किया जाता है. पश्चिमी राजस्थान में 200 हेक्टेयर में खजूर होता है. काजरी जोधपुर में इस तकनीक पर काम कर रहे प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अखत सिंह का कहना है कि जोधपुर मारवाड़ के अलावा बीकानेर क्षेत्र में इस खजूर की खेती कर रहे हैं. एक हेक्टेयर यह खेती कर 4 से 5 साल बाद 5 लाख रुपये प्रतिवर्ष तक की आमदनी की जा सकती है. यह खजूर बाजार में सौ रुपए प्रति किलो बिकता है.

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पश्चिमी राजस्थान में 200 हेक्टेयर में होती है खजूर की फसल

पढ़ें- जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किए बाजरे के हाइब्रिड बीज, अभी तक दूसरे राज्यों से किसान लेकर आते थे

डॉ. सिंह का कहना है कि काजरी के फार्म पर इस बार रिकार्ड एक पौधे से 100 किलो तक खजूर उतारा गया है. यह और बढ़ सकता था, लेकिन गत दिनों आए तूफान और मौसम के परिवर्तन से थोड़ी परेशानी हुई. इसके अलावा लगातार लॉकडाउन रहने से फार्म की देखरेख भी प्रभावित हुई.

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एक पौधे से 80 से 100 किलो खजूर का उत्पादन होता है

किसान ले सकते हैं लैब से

डॉ. अखत सिंह ने बताया कि टिश्यू तकनीक से विकसित इस खजूर की किस्म के पौधे राज्य की टिश्यू लैब से प्राप्त किए जा सकते हैं, क्योंकि किसान के लिए तैयार करना आसान नहीं होता है. लैब में तैयार पौधे के रोपण के बाद भी क्षेत्र में काजरी के वैज्ञानिक समय-समय पर खेतों में जाकर भी किसानों को इसके बारे में जानकारियां देते हैं. पौधे के अलावा इसके सकर भी खेती की जा सकती है. एक हेक्टेयर में 150 पौधे लगते हैं, जो 8 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं. जो 3 साल बाद फल देना शुरू करते हैं. 5 साल का उत्पादन प्रति पौधा 100 किलो तक पहुंच जाता है.

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