नई दिल्ली : भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने भारत के विभिन्न तीर्थस्थलों में वंशावली पुजारियों के पास उपलब्ध अनेक पीढ़ियों के अभिलेखों को डिजिटल स्वरूप प्रदान करने की परियोजना की परिकल्पना की है, जिसका उद्देश्य पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक संकलनों का उपयोग करना तथा उन्हें सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित करना है.
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) ने इन पुजारियों से संपर्क किया है और यह परियोजना मध्य प्रदेश के उज्जैन से शुरू होगी. एनएआई के महानिदेशक अरुण सिंघल ने यहां अंतरराष्ट्रीय अभिलेखागार परिषद की दक्षिण और पश्चिम एशियाई क्षेत्रीय शाखा की बैठक के उद्घाटन सत्र में अपने संबोधन में कहा.
भारत लंबे समय के बाद उक्त संस्था की बैठक की मेजबानी कर रहा है. वह इस समय पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय अभिलेखागार परिषद (आईसीए) के इस क्षेत्रीय निकाय के कोषाध्यक्ष के पद पर है. सिंघल ने अपने संबोधन में पिछले साल शुरू हुई अपनी परियोजना के हिस्से के रूप में दो साल की अवधि में 30 करोड़ पृष्ठों को डिजिटल स्वरूप प्रदान करने के एनएआई के ‘महत्वाकांक्षी कार्यक्रम’ से संबंधित कुछ विवरण और आंकड़े भी साझा किए.
एनएआई महानिदेशक ने कहा, ‘‘इस परियोजना को शुरू करने से पहले, हमारा पोर्टल, ‘अभिलेख पटल’ लगभग एक करोड़ पृष्ठ प्रदर्शित कर रहा था. पिछले 7-8 महीने में, यह संख्या एक करोड़ से बढ़कर 8.4 करोड़ पृष्ठ हो गई है. हर दिन, हम लगभग चार लाख पृष्ठों को स्कैन कर रहे हैं. यह प्रक्रिया अच्छी तरह चल रही है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही 10 करोड़ पृष्ठ पूरे कर लेंगे, शायद अप्रैल के अंत तक.’’
सिंघल ने कहा, ‘‘भारत में, यदि आप गया, काशी, इलाहाबाद (अब प्रयागराज), बद्रीनाथ, केदारनाथ, जगन्नाथ पुरी, द्वारका जाते हैं, तो वहां पुजारी होते हैं जो हर तीर्थयात्री की हर यात्रा का विवरण दस्तावेजों में दर्ज करते हैं. ये दस्तावेज उनके पास उपलब्ध होते हैं. इसलिए, यदि आप वहां जाते हैं और उन्हें अपने पिता का नाम, अपने दादा का नाम, आप किस स्थान से ताल्लुक रखते हैं, के बारे में बताते हैं, तो वे कुछ दस्तावेज, कुछ पोथियां दिखा सकते हैं, जिनमें ऐसे परिवारों के वंशावली रिकॉर्ड होंगे.’’
उन्होंने कहा कि इन वंशावली रिकॉर्ड में कई परिवारों की दस पीढ़ियों से संबंधित जानकारी भी हो सकती है. सिंघल ने कहा, ‘‘यह पारंपरिक ज्ञान है जिसे कुछ पोथियों में एक साथ रखा गया है. और, ये पोथियां नष्ट हो सकती हैं. केदारनाथ में आई भीषण बाढ़ में इनमें से कुछ पोथियां नष्ट हो गईं.’’ सिंघल ने कहा कि इनमें से कई पुजारियों के बच्चों ने अन्य पेशों को अपना लिया है और यहां तक कि इन पुराने शहरों से बाहर चले गए हैं, इसलिए वे इस पारिवारिक परंपरा को जारी रखने में रुचि नहीं रखते.
उन्होंने कहा, ‘‘हमने इन पुजारियों से संपर्क किया. और, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि उज्जैन के पुजारियों ने सहमति जताई है. इसलिए, हम उज्जैन से शुरुआत करेंगे, हम उनके रिकॉर्ड को डिजिटल करेंगे.’’
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