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बचपन का शौक बना जुनून, 50 साल की उम्र तक कर लिया 35 हजार डाक टिकटों का कलेक्शन - डाक टिकटों का संग्रह

जोधपुर के 63 वर्षीय ईश्वर किशन को डाक टिकट संग्रह करने का जुनून है. उन्होंने बचपन के शौक को जुनून में बदला. वे पिछले 50 सालों से डाक टिकट कलेक्शन कर रहे हैं.

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डाक टिकट कलेक्शन का अनूठा शौक
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Published : Jun 30, 2021, 7:57 PM IST

Updated : Jun 30, 2021, 9:27 PM IST

जोधपुर. जीएसटी विभाग से अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी के रूप में रिटायर्ड ईश्वर किशन के पास करीब 35 हजार से भी ज्यादा डाक टिकट का संग्रह है. खास बात यह है कि ईश्वर किशन के पास साल 1947 से लेकर 2021 तक भारत में जारी किए गए सभी डाक टिकट का कलेक्शन है.

साल 1947 से लेकर 2021 तक देश में कुल 3300 तरह के टिकट जारी हुए हैं. ईश्वर किशन के संग्रह में महात्मा गांधी पर जारी बापू टिकट भी शामिल है. 1994 में बेगम अख्तर पर जारी टिकट भी उनके पास था, जिसे सरकार ने वापस ले लिया था.

ईश्वर किशन नए टिकट के लिए नियमित अंतराल पर जोधपुर के डाक टिकट ब्यूरो (Philatelic Bureau) जाते हैं. करीब 35 हजार से ज्यादा डाक टिकटों को उन्होंने सहेज कर रखा है. इसे वे भविष्य का धन मानते हैं. रिटायर होने के बाद उन्होंने अपने बच्चों को भी इस काम में शामिल कर लिया है. हालांकि पहले वे इस काम के लिए सिर्फ अपनी पत्नी ओम शान्ति का ही सहयोग लेते थे.

पढ़ें: Special : गुलाबी नगरी में गोविंद की रसोई...हर दिन ढाई हजार जरूरतमंदों तक पहुंचा रही फूड पैकेट

भारत सरकार के विशेष अवसरों पर जारी विरले डाक टिकट भी उनके पास मौजूद हैं. इनमें भारतीय मेले, साड़ियां, नृत्य, त्योहार, प्रसिद्ध मंदिरों के टिकट शामिल हैं. रामायण, महाभारत और राशि वाले डाक टिकट भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों वाले और आर्कियोलॉजी से जुड़े टिकट भी उनके पास हैं. भारत और अन्य देश के साथ जारी होने वाले स्टाम्प भी शामिल हैं.

रिश्तेदार ने 1972 में पहला टिकट दिया

ईश्वर किशन बताते हैं कि जब कक्षा 9वीं के छात्र थे, तब एक रिश्तेदार ने 1972 में जयपुर में एक टिकट का फर्स्ट कवर पेज दिया था. उसके बाद उन्होंने इसे अपनी आदत बना लिया. बचपन में मिलने वाले जेब खर्च से भी वे डाक टिकट खरीदते थे. जहां भी जाते वहां टिकट ही ढूंढते थे. उनकी 85 वर्षीय मां सत्यरूपा बताती हैं कि ईश्वर को यह शौक बचपन से लग गया था. 1986 में जोधपुर में डाक टिकट ब्यूरो (Philatelic Bureau ) खुला, तब कही जाकर टिकट संग्रह में थोड़ी राहत मिली. वे आज भी नियमित रूप से ब्यूरो जाते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : पौधा लगाइये और परिवार की तरह पालिये...Family Forestry पर जानें Land for Life Awardee श्याम सुंदर ज्याणी के विचार

बापू टिकट के लिए हुई मशक्कत

ईश्वर किशन बताते हैं कि महात्मा गांधी पर 10 रुपए का टिकट जारी हुआ था. उन्हें वो ब्लॉक ऑफ फोर (चार टिकट का जोड़ा) में लेना था. उस दौर में 10 रुपए भी बड़ी राशि थी. वे बताते हैं कि इसके लिए 100 रुपए जुटाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी. इसके बाद उन्होंने एक राशि तय कर दी. जिसे वे हर महीने डाक टिकट खरीदने के लिए खर्च करते थे. अब यह राशि हर महीने 1000 तक पहुंच चुकी है.

सबसे कठिन थीम जुड़वां टिकट का कर रहे कलेक्शन

ईश्वर किशन बताते हैं कि पूरी दुनिया में लोग पोस्टल स्टैंप थीम बेस कलेक्शन करते हैं. भारत में भी अभी शुरू हो चुका है. कोई बर्ड पर टिकट कलेक्शन करता है. कोई टेंपल पर तो कोई और कलेक्शन करता है. मैंने यह तय किया है कि मैं जुड़वां टिकट का कलेक्शन करूंगा. पिछले 5 साल से इसी काम में जुटा हूं. भारतीय डाक विभाग अलग-अलग मौकों पर जुड़वां टिकट जारी करता है. कलेक्शन में उस टिकट की वैल्यू तभी बनती है, जब जुड़वां टिकट अपने जोड़ के साथ संग्रहित हो.

पढ़ें: Special : योग के सहारे कैंसर को मात देने वाले सुचित खंडेलवाल की कहानी, मुंह के कैंसर का ऑपरेशन होने के बाद नहीं खुल रहा था जबड़ा

परिवार में पत्नी का सहयोग, अब बेटों को बताया महत्व

ईश्वर किशन अपने इस जुनून के दौरान किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते थे. सिर्फ उनकी पत्नी ओम शांति ही उनका सहयोग करती थी. बच्चों को भी टिकट छूने नहीं देते थे. उनका मानना है कि अगर टिकट किसी ने छुआ तो खराब हो जाएगा, क्योंकि इनमें गोंद लगा होता है.

उनकी पत्नी ओम शांति बताती हैं कि मैं अपनी बचत का पैसा भी उनको टिकट का शौक पूरा करने के लिए दिया करती थी. अब ईश्वर किशन के बेटे अभिमन्यु किशन मानते हैं कि पिता जी ने हमारे लिए एक धरोहर सहेज कर रखा है, जिसका हमें ध्यान रखना है.

जोधपुर. जीएसटी विभाग से अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी के रूप में रिटायर्ड ईश्वर किशन के पास करीब 35 हजार से भी ज्यादा डाक टिकट का संग्रह है. खास बात यह है कि ईश्वर किशन के पास साल 1947 से लेकर 2021 तक भारत में जारी किए गए सभी डाक टिकट का कलेक्शन है.

साल 1947 से लेकर 2021 तक देश में कुल 3300 तरह के टिकट जारी हुए हैं. ईश्वर किशन के संग्रह में महात्मा गांधी पर जारी बापू टिकट भी शामिल है. 1994 में बेगम अख्तर पर जारी टिकट भी उनके पास था, जिसे सरकार ने वापस ले लिया था.

ईश्वर किशन नए टिकट के लिए नियमित अंतराल पर जोधपुर के डाक टिकट ब्यूरो (Philatelic Bureau) जाते हैं. करीब 35 हजार से ज्यादा डाक टिकटों को उन्होंने सहेज कर रखा है. इसे वे भविष्य का धन मानते हैं. रिटायर होने के बाद उन्होंने अपने बच्चों को भी इस काम में शामिल कर लिया है. हालांकि पहले वे इस काम के लिए सिर्फ अपनी पत्नी ओम शान्ति का ही सहयोग लेते थे.

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भारत सरकार के विशेष अवसरों पर जारी विरले डाक टिकट भी उनके पास मौजूद हैं. इनमें भारतीय मेले, साड़ियां, नृत्य, त्योहार, प्रसिद्ध मंदिरों के टिकट शामिल हैं. रामायण, महाभारत और राशि वाले डाक टिकट भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों वाले और आर्कियोलॉजी से जुड़े टिकट भी उनके पास हैं. भारत और अन्य देश के साथ जारी होने वाले स्टाम्प भी शामिल हैं.

रिश्तेदार ने 1972 में पहला टिकट दिया

ईश्वर किशन बताते हैं कि जब कक्षा 9वीं के छात्र थे, तब एक रिश्तेदार ने 1972 में जयपुर में एक टिकट का फर्स्ट कवर पेज दिया था. उसके बाद उन्होंने इसे अपनी आदत बना लिया. बचपन में मिलने वाले जेब खर्च से भी वे डाक टिकट खरीदते थे. जहां भी जाते वहां टिकट ही ढूंढते थे. उनकी 85 वर्षीय मां सत्यरूपा बताती हैं कि ईश्वर को यह शौक बचपन से लग गया था. 1986 में जोधपुर में डाक टिकट ब्यूरो (Philatelic Bureau ) खुला, तब कही जाकर टिकट संग्रह में थोड़ी राहत मिली. वे आज भी नियमित रूप से ब्यूरो जाते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : पौधा लगाइये और परिवार की तरह पालिये...Family Forestry पर जानें Land for Life Awardee श्याम सुंदर ज्याणी के विचार

बापू टिकट के लिए हुई मशक्कत

ईश्वर किशन बताते हैं कि महात्मा गांधी पर 10 रुपए का टिकट जारी हुआ था. उन्हें वो ब्लॉक ऑफ फोर (चार टिकट का जोड़ा) में लेना था. उस दौर में 10 रुपए भी बड़ी राशि थी. वे बताते हैं कि इसके लिए 100 रुपए जुटाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी. इसके बाद उन्होंने एक राशि तय कर दी. जिसे वे हर महीने डाक टिकट खरीदने के लिए खर्च करते थे. अब यह राशि हर महीने 1000 तक पहुंच चुकी है.

सबसे कठिन थीम जुड़वां टिकट का कर रहे कलेक्शन

ईश्वर किशन बताते हैं कि पूरी दुनिया में लोग पोस्टल स्टैंप थीम बेस कलेक्शन करते हैं. भारत में भी अभी शुरू हो चुका है. कोई बर्ड पर टिकट कलेक्शन करता है. कोई टेंपल पर तो कोई और कलेक्शन करता है. मैंने यह तय किया है कि मैं जुड़वां टिकट का कलेक्शन करूंगा. पिछले 5 साल से इसी काम में जुटा हूं. भारतीय डाक विभाग अलग-अलग मौकों पर जुड़वां टिकट जारी करता है. कलेक्शन में उस टिकट की वैल्यू तभी बनती है, जब जुड़वां टिकट अपने जोड़ के साथ संग्रहित हो.

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परिवार में पत्नी का सहयोग, अब बेटों को बताया महत्व

ईश्वर किशन अपने इस जुनून के दौरान किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते थे. सिर्फ उनकी पत्नी ओम शांति ही उनका सहयोग करती थी. बच्चों को भी टिकट छूने नहीं देते थे. उनका मानना है कि अगर टिकट किसी ने छुआ तो खराब हो जाएगा, क्योंकि इनमें गोंद लगा होता है.

उनकी पत्नी ओम शांति बताती हैं कि मैं अपनी बचत का पैसा भी उनको टिकट का शौक पूरा करने के लिए दिया करती थी. अब ईश्वर किशन के बेटे अभिमन्यु किशन मानते हैं कि पिता जी ने हमारे लिए एक धरोहर सहेज कर रखा है, जिसका हमें ध्यान रखना है.

Last Updated : Jun 30, 2021, 9:27 PM IST
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